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Saturday, April 22, 2017

नारी की सुरक्षा में ही मानव जाति की सुरक्षा है ---


यह मानव जाति का दुर्भाग्य ही है कि एक ओर जहाँ लगभग आधी शताब्दी पूर्व मानव चरण चाँद पर पड़े थे , मंगल गृह पर यान उतर चुके हैं और अंतरिक्ष में भी मनुष्य तैरकर , चलकर , उड़कर वापस धरती पर सफलतापूर्वक उतर चुका है , वहीँ दूसरी ओर आज भी हमारे देश में विवाहित महिलाओं पर न सिर्फ दहेज़ के नाम पर अत्याचार किये जा रहे हैं , बल्कि उन्हें आग में झोंक दिया जाता है। यह अमानवीय व्यवहार किसी भी तरह क्षमा के योग्य नहीं है। इन कुकृत्यों के अपराधियों की  सज़ा कारावास से बढाकर फांसी कर देना चाहिए। शायद तभी ये शैतान रुपी लालची मनुष्य इंसान बन पाएंगे।

शिक्षा : लेकिन यहाँ यह सवाल भी उठता है कि कोई लड़की क्यों वर्षों तक ससुराल वालों के अत्याचार सहन करे। इसके मूल कारण हैं लड़कियों का अपने पैरों पर खड़े होने की सामर्थ्य न होना। जब तक हमारी बेटियां सुशिक्षित होकर स्वयं सक्षम न होकर दूसरों पर निर्भर रहेंगी , तब तक इस समस्या का सामाजिक समाधान नहीं निकल सकता। इसके लिए सबसे पहला काम है बेटियों को पढ़ाना और उन्हें आत्मनिर्भर बनाना। जब अपने बलबूते पर जीवन जीने का आत्मविश्वास होगा , तभी महिलाओं में इन शैतानों से लड़ने का साहस आ पायेगा।  

तलाक : हमारे देश में आज भी पति पत्नी का साथ सात जन्मों का माना जाता है , जबकि विकसित देशों में कभी कभी एक ही जन्म मे महिलाएं सात शादियां कर डालती हैं। इसका कारण है सहनशीलता के नाम पर अत्याचार सहते हुए साथ रहना जो एक मज़बूरी सी होती है।  लेकिन यदि महिला आर्थिक और शैक्षिक रूप से सक्षम हो तो इस आवश्यकता से अधिक सहनशीलता की आवश्यकता नहीं होती।  यदि सभी प्रयासों के बावजूद आपसी सामंजस्य नहीं बैठ पा रहा तो पति पत्नी का अलग होना ही दोनों के लिए हितकारी है। निसंदेह , तलाक के बाद सबसे ज्यादा विपरीत प्रभाव बच्चों पर पड़ता है और अक्सर बच्चों के कारण पति पत्नी तलाक के बारे में नहीं सोच पाते , लेकिन बच्चों को प्रतिदिन के पति पत्नी के झगड़ों का सामना करना पड़े , इससे बेहतर तो दोनों का अलग होना ही है।
समाज को भी तलाकशुदा पति पत्नी की ओर अपना रवैया बदलना होगा।  आखिर यह दो इंसानों के बीच का आपस का मामला है जिसमे किसी भी अन्य व्यक्ति का हस्तक्षेप सही नहीं।

कानून और समाज  : शादियों में दहेज़ मांगना तो एक अपराध होना ही चाहिए , साथ ही दहेज़ देने को भी हतोत्साहित करना चाहिए।  अक्सर पैसे वाले लोग अपनी शान शौकत दिखाने के लिए शादियों में करोड़ों रूपये तक खर्च कर डालते हैं , जो अन्य व्यक्तियों के लिए एक गलत सन्देश पहुंचाता है। लोगों को इस दिखावे और झूठी शान का मोह छोड़ना होगा।  लेकिन ऐसा संभव नहीं लगता , इसलिए सरकार को ही ऐसा कानून बनाना चाहिए जिसमे शादियों पर होने वाले खर्च की सीमा निर्धारित हो।  हालाँकि यह काम सामाजिक संस्थायें बेहतर कर सकती हैं। सादगी और सरलता में जो बात है वह बनावटी चमक धमक में कहाँ !

किसी भी रूढ़िवादी परम्परा को बदलने में समय लगता है।  लेकिन समय के साथ साथ परिवर्तन भी अवश्यम्भावी है। बस हम थोड़ा सा प्रयास सक्रीय होकर करें तो शायद हमारे आपके समय में ही यह सामाजिक परिवर्तन आ सकता है जो मानव जाति के हित में होगा। नारी की सुरक्षा में ही मानव जाति की सुरक्षा है।  

   

Saturday, April 15, 2017

बाघ जो देखन मैं चला, बाघ मिला ना कोय ---

बाघ जो देखन मैं चला, बाघ मिला ना कोय,
जो तुमको देखा प्रिये , याद आया न कोय ।

जिन लोगों के पास फालतु पैसा होता है , वो शादी की सालगिरह पर विदेश जाते हैं या जश्न मनाने कम से कम फाइव स्टार होटल में जाते हैं । जिनके पास काम ज्यादा और पैसा कम होता है , उनके लिए सालगिरह भी बस एक और दिन ही होता है।  हमारे पास फालतु पैसा तो कभी नही रहा लेकिन वक्त की कमी कभी नहीं रही।  इसलिए हम हर साल सालगिरह पर बाहर ज़रूर जाते हैं। लेकिन लगभग पिछले दस सालों से हम सिर्फ जंगलों में ही जाते हैं। हालाँकि इसका वानप्रस्थ आश्रम से कोई सम्बन्ध नहीं है।

इस बार भी जाना हुआ जिम कॉर्बेट के जंगल में बसा एक गाँव मरचुला जहाँ बना है स्टर्लिंग रिजॉर्ट्स।


 उत्तराखंड के रामनगर शहर से करीब ३२ किलोमीटर की दूरी पर चारों ओर हरे भरे पहाड़ों से घिरा यह रिजॉर्ट दो साल पहले ही बना है और हम तभी से यहाँ जाने का कार्यक्रम बना रहे थे। इसके ठीक सामने बहती है रामगंगा नदी जिसका सम्बन्ध रामायण काल से जुड़ा है। सुना है यहीं कहीं कभी सीता मैया भी रही थीं। शहर से दूर एकदम शांत , सुन्दर , स्वच्छ वातावरण लेकिन सभी सुविधाओं से परिपूर्ण यह स्थान मन को मोह लेता है।  यहाँ गाड़ियों का शोर और प्रदुषण नहीं होता बल्कि सुबह शाम चिड़ियों की चहचाहट , रंग बिरंगी चिड़ियाँ जो शहर में कभी देखने को नहीं मिलती , नदी के बहते पानी की कर्णप्रिय कलकल करती आवाज़ और एक ठहरा हुआ सा समय , मानो जिंदगी स्थिर सी हो गई हो।  सब मिलकर तनावग्रस्त तन और मन को पूर्ण रूप से विषमुक्त कर देते हैं। सिर्फ दो दिन का वास ही मन को हर्ष और उल्लास से भर देता है।  




मरचुला गाँव , यहाँ तक आने के लिए रामगंगा नदी पर एक पुल बनाया गया है।  पुल से बलखाती नदी का एक दृश्य।    




मरचुला गाँव की हरी भरी वादियों के बीच बहती नदी किनारे यह एक नंगी पहाड़ी भी दिखी जिससे कई बार भूस्खलन हुआ लगता है।  इसके ठीक नीचे बने एक रिजॉर्ट को देखकर लगा मानो बहुत खतरनाक जगह है।  लेकिन बताया गया कि यह ज़रा हटकर है , इसलिए रिजॉर्ट को कोई खतरा नहीं है।




गाँव की सड़क पर बनी यह दुकान देखने में शराब की दुकान जैसी लगी।  लेकिन पास जाकर देखा तो पाया कि कोल्ड ड्रिंक्स की बोतलों को बड़े करीने से सजाया गया था जिससे यह एक बार जैसी दिख रही थी। यहाँ बैठकर चाय पीना भी एक सुखद अहसास था।  




स्टर्लिंग रिजॉर्ट के सामने सड़क से नीचे उतरकर करीब आधा किलोमीटर की दूरी पर नदी का पानी कलकल करता बहता नज़र आता है। यहाँ नदी किनारे कई और रिजॉर्ट्स भी बने हैं।  हालाँकि यह क्षेत्र अभी विकसित हो रहा है।  इसलिए एक गाँव जैसा मह्सूस होता है।




चारों ओर पहाड़ और बीच में बहती नदी हो । नदी का किनारा हो , अपना कोई पास हो , और दिन कोई खास हो , तो वातावरण स्वयं ही रोमांचित हो जाता है।




नदी का कलकल करता बहता पानी , शांत वातावरण में जिसे संगीत सा घोल देता है।




सभी सुविधाओं से सुसज्जित इस रिजॉर्ट में स्विमिंग पूल भी है , जिससे यहाँ की खूबसूरती में चार चाँद लग जाते हैं।

यदि संभव हो तो शादी की सालगिरह पर सभी को एक दो दिन के लिए घर से बाहर कहीं दूर निकल जाना चाहिए। शहर के कंक्रीट जंगल से दूर किसी प्राकृतिक जंगल में रहकर आप गुजरे साल के सारे गिले शिकवे ( यदि कोई हों तो ) भूल जायेंगे और अगले एक साल तक के लिए तन मन में एक मीठा मीठा सा अहसास भर जायेगा जब आप होंगे , आपकी खास होगी और तीसरा कोई पास नहीं होगा।

Monday, April 10, 2017

आराम करो , आराम करो : एक बिलकुल नया प्रयोग ---



एक मित्र बोले भैया आजकल किस चक्कर में रहते हो ,
इस महंगाई में बिना जॉब के कैसे गुजर बसर करते हो !
क्या रखा है बेवज़ह घूमने में, कुछ तो काम काज करो,
कब तक खाली घर बैठोगे, कुछ तो शर्म लिहाज़ करो।
हम बोले तुमने भी किया काम ताउम्र , अब तो पूर्ण विराम करो ,
इस भाग दौड़ में क्या रखा है , आराम करो , आराम करो।

आराम स्वस्थता की कुंजी , इससे ना थकावट होती है ,
आराम उत्कंठा की एक दवा , तन मन का तनाव खोती है।
आराम शब्द में राम छिपा, जो पुरुषों में उत्तम होता है,
आराम आराम रटने से ही तो प्रभु राम का दर्शन होता है।
इसलिए मैं कहता हूँ , तुम मत हमको यूँ बदनाम करो ,
पल दो पल के यौवन जीवन, आराम करो आराम करो।

यदि कुछ करना ही है तो स्वस्थ रहने की बात करो ,
सुबह शाम पार्क में जाकर , लम्बी लम्बी वॉक करो।
क्या रखा काम धाम में , जो मज़ा है जिम जाने में ,
जो वेट्स उठाने में लुत्फ़ है, वो कहाँ थैला उठाने में।
मुझसे पूछो मैं बतलाऊँ, है मज़ा सुस्त कहलाने में ,
काम काज में क्या रखा, जो रखा खिसक जाने में।


मैं यही सोचकर घर से बाहर, कम ही जाया करता हूँ ,
जो कामकाज़ी जन होते हैं, उनसे कतराया करता हूँ। 
दफ्तरों की छुट्टी से पहले, बाहर जाया करता हूँ,
शाम अँधेरा होने पर ही, घर वापस आया करता हूँ।
मेरी वॉल पर लिखा हुआ, जो सच्चे योगी होते हैं ,
वे कम से कम बारह घंटे तो, फेसबुक के भोगी होते हैं।

अब वार्ड ना पी डी की चिंता, ये सोचकर आनंद आता है ,
रोग, रोगी , और दवा से , मन स्वच्छंद हो जाता है।
सुबह से शाम सारा समय , जब अपना नज़र आता है ,
तो सच कहता हूँ जीने का जैसे , मज़ा निखर आता है।
लेकर लैप में लैपटॉप मैं फिर फेसबुक की ओर मुड़ जाता हूँ ,
कविता , रचना , गीत , नज़्म , और नगमा से जुड़ जाता हूँ।

तुम को भी मैं सुखी जीवन का ये राज़ बता देता हूँ ,
एक दिन में बस एक काम करो, ये सीख सदा देता हूँ।
मैं आरामी हूँ मुझको तो बस, आराम में जोक्स सूझते हैं ,
उनको भी तो चैन कहाँ जो सोये बिना ही जाग उठते हैं।
इसीलिए मैं कहता हूँ तुम सुनो, मेरी तरह से काम करो , 
ये मोह माया का बंधन छोड़ो, और आराम करो आराम करो।