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Monday, November 4, 2024

दीवाली, नए रूप में ...

 दीवाली पर्व था मिलने मिलाने का,

खाने पीने, उपहार देने और पाने का। 

किंतु दीवाली अब डिजिटल हो ली है,

उपहार की जगह अब बधाईयों ने ले ली है,

जो प्रत्यक्ष नहीं अब आभासी हो गई हैं। 

व्यक्तिगत नहीं, वो सामूहिक हो गई हैं। 


ना कार्ड ना ई मेल ना एस एम एस करके 

बस वॉट्सएप ग्रुप्स में आती हैं भर भर के।

ग्रुप में पांच दस हों या मेंबर हों सौ पचास कहीं,

बधाई देते हैं सब, पर लेता कोई एक भी नहीं। 

जब कोई नहीं इसको लेता है,

फिर जाने क्यों कौन किसको देता है।


ऐसा हो गया है हाल, 

मानो चरितार्थ हो गई ये कहावत,

कि नेकी कर कुएं में डाल। 

कौन देखता है किसने दी किसने नहीं दी,

किसने देखा और किसने अनदेखी की। 

यह न कोई देखता है, न देखने की जरूरत है,

इस डिजिटल युग में इंसान की यही असली सूरत है। 

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