लम्बे सप्ताहांत पर लम्बे सफ़र की लम्बी दास्ताँ जारी रहेगी . हालाँकि अभी दो दिलचस्प किस्त बाकि हैं . लेकिन अभी लेते हैं एक छोटा सा ब्रेक . ब्रेक के बाद आपको ले चलेंगे असली जंगल में .
इस बीच खुशदीप सहगल ने एक पोस्ट में लिखा -- हिंदी ब्लागिंग में इन दिनों मुझे खालीपन और भारीपन दोनों ही महसूस हो रहा है..खालीपन इसलिए कि मेरे पसंद के कुछ ब्लागरों ने लिखना बहुत कम कर दिया है...
खुशदीप भाई, दोस्तों ने लिखना कम नहीं किया , बल्कि पाला बदल लिया है . बल्कि यूँ कहा जाए -मित्र लोग अब पहले से ज्यादा वक्त लेखन में लगा रहे हैं . सुबह से लेकर शाम तक ---शाम से लेकर सुबह तक --लेखन ही कर रहे हैं . ज़रा देखिये तो :
छोड़ लेखन अब वो , मौनबतिया रहे हैं ।
चेहरे नए नए तब, प्रोत्साहित कर रहे थे
चेहरों पर नित अब , टैग टंगिया रहे हैं ।
रोज लिखते हैं इक , लेख दुनिया दरी पर
मोह टिप्पणी का भी , छोड़ एठियाँ रहे हैं ।
शाम ढल जाये या , रात बीते सुबह हो
भोर से संध्या तक , खबर छपिया रहे हैं ।
कौन कब जागा , कब नींद आई रतीयाँ
हाल हर पल का, सब ओर जतिया रहे हैं ।
चैट करते हैं जो , फेसबुक पर घंटों तक
ब्लॉग पढने का, तज मोह खिसिया रहे हैं ।
राह में देखे जो , 'तारीफ' राही अनेकों
कोइ रोते से , कुछ रंगरसिया रहे हैं ।
क्या आपको भी लगता है -- ब्लॉगर्स में ब्लॉगिंग का मोह भंग हो चुका है ?
क्या फेसबुक ने ब्लॉगिंग की तस्वीर बदल दी है ?