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Wednesday, September 25, 2019

फेसबुक के चक्कर में ब्लॉगिंग भूल गए --

फेसबुक पर हम इतना झूल गए,
के कविता ही लिखना भूल गए।

जिसे देनी थी जीवन भर छाया ,
उस पेड़ को सींचना भूल गए।

मतलब में अपने कुछ ऐसे डूबे,
देश पर मर मिटना भूल गए ।

नींद में देखते रहे जिसे रात भर ,
आँख खुली तो वो सपना भूल गए।

बड़े भोले थे जाल में जा फंसे ,
फंसे तो पर निकलना भूल गए।

आँखों पर ऐसा पर्दा पड़ा यारो,
भीड़ में कौन है अपना भूल गए।

Tuesday, September 3, 2019

यदि देश में विकास लाना है तो जनता को अनुशासित होना पड़ेगा --


बचपन में अक्सर नेताओं और मंत्रियों को विदेश जाते देखते थे जो सरकारी खर्चे पर अपने विभाग से सम्बंधित विषय पर जानकारी प्राप्त करने के लिए विदेश का दौरा बनाते थे।  उनके साथ परिवार के सदस्य और विभाग के ऑफिसर्स भी जाते थे। इस तरह हर दौरे पर सरकार के लाखों रूपये खर्च होते थे जो आज के करोड़ों के बराबर होते होंगे। 
लेकिन अपने स्वयं के खर्चे पर विदेश जाकर जो हमने देखा तो पाया कि विदेशों की विकसित व्यवस्था का ज़रा सा भी प्रभाव या अनुसरण यहाँ नज़र नहीं आता। ऐसा प्रतीत होता है कि ये दौरे मात्र सैर सपाटे के लिए ही उपयोग में लाये गए।  आइये देखते हैं टोरंटो कनाडा जैसे शहर में किस तरह की नागरिक सुविधाएँ उपलब्ध हैं जो हमारे यहाँ नहीं हैं।

सड़कें :

टोरंटो की सड़कें एकदम साफ और समतल हैं।  कहीं कोई गड्ढा नज़र नहीं आता। शहर हो या हाइवे , गाड़ियां सुचारु रूप से चलती हैं। तापमान में बदलाव के कारण सडकों में दरारें अवश्य आती हैं लेकिन इन्हे तुरंत भर दिया जाता है। ज़ाहिर है, सडकों में लगायी गई सामग्री उत्तम गुणवत्ता और बिना किसी मिलावट के होती है। सड़क पर कोई वाहन चालक हॉर्न नहीं बजाता। सभी शांति के साथ बत्ती हरी होने का इंतज़ार करते हैं।  स्टॉप लाइन को कोई पार नहीं करता। पैदल लोगों के लिए भी ज़ेबरा क्रॉसिंग पर लाइट होती है जिस पर हाथ बना होता है।  जहाँ लाइट नहीं होती वहां वाहन चालक पैदल को प्राथमिकता देते हैं। वहां की सडकों पर पैदल चलने वालों का पूरा ध्यान रखा जाता है।  यदि किसी को चोट लग जाये तो भारी जुर्माना होता है। सडकों पर मुख्यतया कारें ही चलती हैं।  हाइवे पर कुछ ट्रक भी नज़र आ जायेंगे। आपको एक भी गाड़ी पर कोई खरोंच या डेंट नज़र नहीं आएगा। सभी कारें साफ और चमचमाती हुई नज़र आती हैं। इन्हे धोने के लिए ऑटोमेटेड वाशिंग स्टेशन्स होते हैं जिसमे कार में ही बैठकर जाना पड़ता है। 

सार्वजनिक परिवहन :

शहर में कारें भी चलती हैं।  लेकिन बसें भी बहुतायत में हैं। बसों के अलावा ट्राम भी चलते हैं। दोनों का एक कॉमन टिकट होता है जिसे एक ही दिशा में  जाने के लिए अंत तक उपयोग में लाया जा सकता है।  टिकट खुद ही लेना पड़ता है। यहाँ सब ईमानदारी से टिकट खरीदते हैं।  बिना टिकट पकड़े जाने पर भारी जुर्माने का प्रावधान है।  हालाँकि हमें एक भी टिकट चेकर नज़र नहीं आया। शहर से बाहर सबअर्ब जाने के लिए ट्रेन चलती है जो बहुत ही आरामदायक है।  सबअर्ब में रहने वाले गाड़ी स्टेशन पर पार्क करते हैं और ट्रेन द्वारा डाउनटाउन में काम करने आते हैं। 

पार्किंग :

गाड़ियां सिर्फ पार्किंग में ही पार्क होती हैं। सडकों पर भी एक साइड में पार्किंग स्लॉट्स बने होते हैं जिसमे आप गाड़ी पार्क कर सकते हैं।  वहीँ साथ में पेमेंट के लिए किऑस्क बना होता है जिसमे कार्ड से पेमेंट कर टिकट ले लिया जाता है।  कहीं किसी भी पार्किंग में कोई अटेंडेंट नहीं होता। सब जगह ईमानदारी से स्वचालित होता है। 

सफाई :

शहर में कहीं भी कूड़ा या कूड़े के ढेर नज़र नहीं आते।  यहाँ कदम कदम पर डस्टबिंस रखे होते हैं जिनमे सामान्य कचरा और रिसाईक्लेबल वेस्ट अलग अलग डालना होता है। कूड़ा कभी ओवरफ्लो नहीं करता। कूड़ा ले जाने वाले ट्रक भी नज़र नहीं आते क्योंकि शायद वे रात में खाली किये जाते हैं। घरों में भी वेस्ट सेग्रिगेशन ईमानदारी से किया जाता है। हर घर में तीन तरह के बैग्स होते हैं। एक में आर्गेनिक वेस्ट दूसरे में प्लास्टिक आदि और तीसरे में सामान्य पेपर आदि।     

ड्रेनेज सिस्टम:

यहाँ अक्सर बारिश होती रहती है।  लेकिन पानी की निकासी इतनी बढ़िया है कि कहीं पानी इकठ्ठा नहीं हो पाता। कहीं कोई ओपन ड्रेन्स नज़र नहीं आती। सारा ड्रेनेज सिस्टम अंडरग्राउंड है। नालियां ब्लॉक होने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। 

शिष्टाचार :

वैसे तो यहाँ सब अपने आप में मस्त रहते हैं।  कोई किसी के काम में दखलअंदाज़ी नहीं करता। लेकिन सार्वजानिक स्थानों पर सब शिष्टाचार निभाते हैं।  पंक्ति में अपनी बारी का इंतज़ार करते हैं। कोई धक्का मुक्की नहीं करता।  बस या ट्रेन में पहले उतरने वाले उतरते हैं ,फिर चढ़ने वाले चढ़ते हैं। 

लगभग २८ लाख की आबादी वाले शहर टोरंटो में विश्व के लगभग सभी देशों से आये लोग रहते हैं। इनमे चीनी, भारतीय, फिलिपिनी , जापानी लोग बहुत हैं। लगभग ५० % गोर लोग हैं।  लेकिन सभी मिलजुल कर रहते हैं। जून से अगस्त तक के महीने गर्मियों के होते हैं जिनमे स्कूलों की भी छुट्टियां होती हैं। इस समय में यहाँ के लोग आउटडोर लाइफ को  एन्जॉय करते हैं।  सर्दियाँ अक्सर बहुत ठंडी होती हैं। लेकिन सभी घर फुल्ली एयर कण्डीशंड होने के कारण आरामदायक रहते हैं। 

भारत में १ सितम्बर से मोटर वेहिकल एक्ट लागु होने पर कुछ लोग बहुत हो हल्ला मचा रहे हैं। उनका कहना है कि अब पुलिस को ज्यादा रिश्वत देनी पड़ेगी।  यह बहुत अफसोसजनक विचारधारा है। यदि हमें अपने शहर और देश को भी विकसित देशों की तरह उच्च श्रेणी में लाना है और रहने लायक बनाना है तो जनता को अनुशासित होना पड़ेगा। जब तक जनता अपनी सोच नहीं बदलेगी , तब तक खाली सरकार के भरोसे रहकर कुछ उपलब्धि प्राप्त नहीं हो पायेगी। सरकार को भी भ्रष्ट तंत्र से जनता को मुक्ति दिलानी होगी ताकि सार्वजनिक कार्यों पर खर्च होने वाला पैसा कार्यों पर ही खर्च हो सके , न कि भ्रष्ट अफसरों और ठेकेदारों की तिजोरियों में समा जाये।