उत्तर पूर्व भारत के राज्य मेघालय की राजधानी शिलॉन्ग को पूर्व का स्कॉटलैंड कहा जाता है। समुद्र तल से लगभग ५००० फुट की ऊँचाई पर स्थित शिलॉन्ग एक हिल स्टेशन जैसा ही है। हालाँकि यह उत्तर भारत के हिल स्टेशंस की तरह पहाड़ की ढलान पर नहीं बसा है। सारा शहर लगभग समतल भूमि पर बसा है और चारों ओर छोटी छोटी पहाड़ियां हैं। लगभग सवा लाख की जनसँख्या वाले शहर में गाड़ियों की भीड़ देखकर एक बार तो घबराहट सी होने लगती है। शहर में प्रवेश करने के बाद शहर के मध्य तक पहुँचने में यदि एक घंटा भी लग जाये तो कोई हैरानी नहीं होगी।
लेकिन गाड़ियों और लोगों की भीड़ भाड़ होने के बावजूद यहाँ कभी ट्रैफिक जैम नहीं होता , न ही किसी को कोई परेशानी होती है। इसका कारण है यहाँ के लोगों में यातायात के नियमों के प्रति जागरूक होना। यहाँ विदेशों की तरह पैदल यात्रियों को प्राथमिकता दी जाती है ताकि उन्हें सड़क पार करने में कोई कठिनाई न हो। कितना भी भारी ट्रैफिक क्यों न हो, पैदल सड़क पार करने वाले को देखकर गाड़ियां स्वत: ही रुक जाती हैं। यहाँ की सड़कें भले ही कम चौड़ी हों, लेकिन सड़क के दोनों ओर पक्के टाइल्स लगे हुए साफ सुथरे फुटपाथ बने हैं जिन पर पैदल चलने में बहुत सुविधा रहती है।
यहाँ के निवासियों में महिलाओं की औसत ऊँचाई ५ फुट और पुरुषों की साढ़े पांच फुट नज़र आई। यानि यहाँ के लोग आम तौर पर कम कद के हैं लेकिन स्वाभाव में सीधे और निश्छल नज़र आये। कहीं भी सडकों के किनारे कूड़े के ढेर नज़र नहीं आये। ज़ाहिर है, यहाँ प्रशासन का कूड़ा प्रबंधन उत्तम दर्ज़े का है। साथ ही यहाँ के निवासी भी सफाई पसंद और स्वच्छता के प्रति जागरूक हैं। बस यही जागरूकता और कर्तव्यपरायणता यदि उत्तर भारत के लोगों में भी आ जाये तो निश्चित ही सरकार का स्मार्ट सिटीज बनाने का सपना अवश्य पूरा हो पायेगा।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरूवार 9 मई 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर व सटीक रचना ।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (10-05-2019) को "कुछ सीख लेना चाहिए" (चर्चा अंक-3331) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सही कहा। अगर लोग अपनी जिम्मेदारियों को समझे तो कचरे और ट्रैफिक की काफी मुसीबत कम होती है। उत्तर भारतीय लोगों में ज्यादातर के पास पैसे तो हैं लेकिन सिविक सेंस कम है। उम्मीद है लोग सीखेंगे।
ReplyDeleteसही कहा जनता का जागरूक होना आवश्यक है ....
ReplyDeleteबहुत सटीक...।
इस बहुमूल्य जानकारी को साझा करने के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteChaluBaba
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