जो दौड़ते थे ८० -९० पर , सरकने लगे हैं धीरे धीरे।
मेरे शहर के लोग आखिर, बदलने लगे हैं धीरे धीरे।
हाथ में लटकाकर हेलमेट, उड़ती थी हवा में ज़ुल्फ़ें,
गंजे सर भी अब तो हेलमेट,पहनने लगे हैं धीरे धीरे।
डंडे के डर से मदारी, नचाता है अपने बन्दर को ,
चालान के डर से इंसान, सरकने लगे हैं धीरे धीरे।
ड्रंक ड्राइविंग का ख़ौफ़, रहता था ११ बजे के बाद ,
मदिरा छोड़ अब फ्रूट जूस , गटकने लगे हैं धीरे धीरे।
देर से ही सही मोटर वाहन अधिनियम आया तो ,
धीरे धीरे ही सही लोग, सुधरने लगे हैं धीरे धीरे।
सार्थक असर हुआ है पर विरोध भी बहुत है ।
ReplyDeleteहम सामायिक विषय पर सुंदर प्रस्तुति।
सार्थक व सुन्दर सृजन
ReplyDeleteसादर
आभार।
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