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Thursday, October 10, 2019

ज़ुर्माने के हंगामे पर एक पैरोड़ी --



जुर्माना है क्यों इतना, थोड़ी सी तो ही पी है,
नाका तो नहीं तोड़ा, लाइट जम्प तो नहीं की है। 

क्यों उनको नहीं पकड़ा , जिनके हैं शीशे काले ,
क्या जाने उस गाड़ी में , बैठा कोई बलात्कारी है। 

जुर्माना है क्यों इतना ,थोड़ी सी तो ही पी है,
शीशा तो नहीं काला , लाइन क्रॉस भी नहीं की है।...

गाड़ी को लगे धक्का, ट्रैफिक के नतीज़े हैं ,
धुत हमको कहे मालिक, खुद जिसने ही पी है ।

जुर्माना है क्यों इतना. , थोड़ी सी तो ही पी है,
स्पीड लिमिट तो क्रॉस नहीं की, पी यू सी भी है।...

नासमझ और नादाँ, लोगों की ये बातें हैं ,
स्कॉच को क्या जाने, देसी जिसने पी है ।
जुर्माना है क्यों इतना..

हर ठर्रा निकलता है , मंज़ूर ऐ सिपाही से ,
हर बेवड़ा कहता है , रम है तो नशा भी है।

जुर्माना है क्यों इतना, थोड़ी सी तो ही पी है,
नाका तो नहीं तोड़ा, लाइट जम्प तो नहीं की है।

जुर्माना है क्यों इतना...

नोट : यह व्यंगात्मक हास्य पैरोडी सिर्फ यातायात के नियम तोड़ने वालों पर लिखी गई है।


Wednesday, November 29, 2017

दिल्ली , जहाँ ट्रैफिक में रोंग इज राइट ---


प्रस्तुत है , दिल्लीवालों की यातायात सम्बंधित अनुशासनहीनता पर एक हास्य व्यंग कविता :


चौराहे पर जब लाल बत्ती हुई हरी ,

एक कार चालक ने कार स्टार्ट करी।

दूसरी ओर दूसरे ने बाइक पर किक लगाई ,

तीसरे ने तीसरी ओर से स्कूटी आगे बढाई ।


पहला अभी चला भी नहीं था ,

कि रोंग साइड से दूसरा और तीसरा।

दोनों चौराहे के बीच आ गए ,

और आपस में टकरा गए।


दूसरा बोला -- अबे दिखता नहीं है ,

मैं रैड लाइट जम्प कर रहा हूँ।

तीसरा गुर्राया -- चुप साले ,

मैं भी तो वही काम कर रहा हूँ।


देखते देखते दोनों में झगड़ा सरे आम हो गया ,

और इसी गर्मागर्मी में ट्रैफिक जाम हो गया।

मौका देख दोनों दुपहिया चालक तो खिसक गए ,

पर सही होकर भी कार वाले महाशय फंस गए।


तभी ट्रैफिक पुलिस वाले ने पुकार लगाई ,

अरै तू साइड में आ ज्या भाई।

ज़नाब लाइसेंस और गाड़ी की आर सी दिखाना ,

रैड लाइट जम्प करने पर भरना पड़ेगा जुर्माना।


इस तरह लाइट जम्प करने वाले तो ख़ुशी से जम्प करते हुए फ़रार हो गए ,

और नियमों का पालन करके भी बेचारे कार वाले महाशय गुनेहगार हो गए।


नोट : दिल्ली में लाल बत्ती हरी होते ही पहले चारों ओर से दोपहिया वाहन चालक रैड लाइट जम्प करना अपना अधिकार समझते हैं।

Wednesday, December 2, 2015

हम नहीं सुधरेंगे ---


सर पर हेलमेट नहीं पर मोबाईल पर स्क्रीन गार्ड लग जाये ,
सर भले ही फट जाये पर मोबाईल पर खरोंच कभी ना आये।

बना लो जितने स्पीड ब्रेकर , हम ब्रेकर को ही ब्रेक कर जायेंगे ,
ब्रेक में से गाड़ी निकाल लेंगे पर गाड़ी में ब्रेक नहीं लगाएंगे ।

सडकों पर ज़ेबरा क्रॉसिंग बनाना सरकार मज़बूरी तुम्हारी है ,
हम स्वतंत्र भारत के नागरिक हैं , सारी सड़क ही हमारी है।

जितने मर्ज़ी ओवरब्रिज बना लो , लगा दो रेलिंग छै फुट ऊंची ,
रेलिंग कूद कर फांद जायेंगे , या बिल बना लेंगे खोदकर मिटटी।











Friday, November 27, 2015

असहिष्णुता तो दिल्ली की सडकों पर भी है लेकिन बचकर कहाँ जाएँ हम ---


आजकल स्मार्ट फोन के साथ कारें भी स्मार्ट आ गई हैं।  यदि आप घर से बिना सीट बैल्ट लगाये ही निकल पड़े तो आपकी गाड़ी टें टें करके आपके कान खा लेगी जब तक कि आप सीट बैल्ट लगा नहीं लेते।  इसी तरह दरवाज़ा खुला होने पर भी आपको सूचित कर देगी। पैट्रोल कम होने पर वह आपको यह भी बता देगी कि आप कितनी दूर और जा सकते हैं।  इसके अलावा सुख सुविधा के सभी साधन तो गाड़ी में होते ही हैं।

लेकिन दिल्ली जैसे शहर की सडकों पर चलते हुए आपको ट्रैफिक स्मार्ट नहीं मिलेगा।  बल्कि इतना अनुशासनहीन मिलेगा कि यदि आप स्वयं गाड़ी चला रहे हैं तो आपका ब्लड प्रेशर बढ़ना निश्चित है। यातायात के सभी नियमों की धज्जियाँ कैसे उड़ाई जाती हैं , यह आप यहाँ की सडकों पर देखकर खुद भी एक्सपर्ट बन सकते हैं  नियम तोड़ने में।  आइये देखते हैं कि कैसे कैसे उत्पात मचाये जाते हैं दिल्ली की सडकों पर :

चौराहों पर : सबसे ज्यादा अराजकता चौराहों पर नज़र आती है।  यदि ट्रैफिक पुलिस कॉन्स्टेबल न खड़ा हो तो रेड लाइट जम्प करना दोपहिया चालकों का मनपसंद खेल है।  भरे ट्रैफिक में भी ऐसे बीच में घुस जाते हैं जैसे जान की परवाह ही न हो।  और यदि लाइट ख़राब हो जाये तो फिर ऐसी अराजकता देखने को मिलती है कि अपने इंसान होने पर शर्म आने लगती है।  पहले मैं पहले मैं की तर्ज़ पर चारों ओर से सब अपनी गाड़ी को इंच इंच कर आगे बढ़ाते हुए चौराहे को कुछ ही पलों में युद्ध का मैदान बना देते हैं।  फिर फंस कर ऐसे खड़े हो जाते हैं मानो कह रहे हों कि चल अब निकल कर दिखा।  मिनटों में लगे जैम को ख़त्म करने में घंटों लग जाते हैं।

मोड़ पर : अक्सर मोड़ पर बायीं ओर मुड़ते समय बहुत ध्यान रखना पड़ता है क्योंकि कब कोई आपके बायीं ओर से मोड़ पर ओवरटेक करके निकल जाये , पता ही नहीं चलता।  ऐसे में यदि ज़रा भी चूक हुई तो वो तो गया ही , आप भी मुसीबत में फंस जायेंगे। मोड़ पर ओवरटेक नहीं करते , यह तो जैसे कोई जानता ही नहीं और मानता भी नहीं।  

फ्लाईओवर पर : यहाँ भी ओवरटेक करना मना है लेकिन यह बात कोई नहीं मानता।  आपके पीछे लगकर पीं पीं करके आपको इतना क्रुद्ध कर देंगे कि या तो आपको साइड देनी पड़ेगी या आप कुढ़ते रहेंगे।

लेन ड्राइविंग : तो जैसे कोई जानता ही नहीं।  जब दूसरे लेन में नहीं चलते तब आपके लिए भी लेन में चलना मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव ही हो जाता है। कब कौन अचानक बिना इंडिकेटर दिए लेन बदल कर आपके सामने आ जाये , यह डर सदा लगा रहता है।

हाई बीम : रात में हाई बीम पर चलना दूसरों के लिए बहुत कष्टदायक होता है। ऐसा करने पर २००० रूपये जुर्माना भी हो सकता है।  लेकिन आधे से ज्यादा लोग हाई बीम पर ही ड्राइव करते हैं।  इससे न सिर्फ आगे वाली गाड़ी के चालक को दिक्कत आती है , बल्कि सामने से आते ट्रैफिक के लिए भी घातक सिद्ध हो सकती है। शुक्र है कि आजकल कारों में रियर व्यू मिरर में हाई बीम से बचने का इंतज़ाम होता है।

हॉर्न बजाना : यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो हम दिल्ली वालों को पैदा होते ही सीखने को मिल जाती है।  किसी भी सड़क के किनारे बने घरों में जाकर देखिये , हॉर्न का इतना शोर होता है कि लगता है जैसे सब पगला गए हैं।  बिना बात हॉर्न बजाना हमारी आदत बन गई है।  मोटर साइकिल वाले तो हॉर्न पर हाथ रखकर ही बाइक चलाते हैं। चौराहे पर लाइट ग्रीन होते ही सब एक स्वर से शुरू हो जाते हैं।  ऐसा पागलपन शायद ही किसी और देश में देखने को मिलता हो। जबकि चौराहे के  १०० मीटर के अंदर हॉर्न बजाना कानूनन अपराध है लेकिन आज तक इस बात पर किसी का चालान नहीं कटा।  

बिना हेलमेट : दोपहियां सवारियों को हेलमेट पहनना न सिर्फ कानूनी तौर पर आवश्यक है बल्कि सुरक्षा की दृष्टि से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।  लेकिन एक बाइक पर तीन तीन युवक बैठकर बिना हेलमेट के ट्रैफिक में ज़िग ज़ैग ड्राइव करना तो जैसे फैशन सा बन गया है।  बेशक हर बार दुर्घटना नहीं होती लेकिन यदि हो जाये तो भयंकर परिणाम होना लगभग निश्चित है।

रोड रेज़ : यहाँ बस एक बार किसी की गाड़ी दूसरी गाड़ी से बस ज़रा छू भर जाये , फिर देखिये कैसा दृश्य सामने आता है तू तू मैं मैं का।  यहाँ हर कोई अपने आप को वी आई पी समझता है। या तो तुरंत हाथापाई शुरू हो जाती है या लोग फ़ौरन फोन घुमाना शुरू कर देते हैं अपने साथियों को बुलाने के लिए या नेतागिरि करने के लिए।  अक्सर जितना नुकसान एक्सीडेंट में नहीं होता , उससे ज्यादा लड़ाई झगडे में हो जाता है।

ड्रिंक एंड ड्राइविंग : सबसे खतरनाक है यह उल्लंघन। इसके कारण कई भयंकर हादसे हो चुके हैं।  लेकिन युवा वर्ग बिलकुल परवाह नहीं करता। जबकि सच यहाँ है कि नशे में होने पर स्वयं पर सारा नियंत्रण समाप्त हो जाता है और ड्राईवर अपने लिए और दूसरों के लिए भी खतरा बन जाता है।  हालाँकि आजकल पुलिस वाले जगह जगह एल्कोमीटर लेकर खड़े रहते हैं लेकिन इनकी संख्या अत्यंत कम  होने के कारण प्रभावी नहीं हो पाते।

ड्राइव करते समय फोन का प्रयोग : हानिकारक तो है ही , कानूनन जुर्म भी है।  लेकिन लोग बाज़ नहीं आते और बात करने के नए नए तरीके भी निकल आते हैं।  इनमे सबसे नया है गाड़ी में लगा इंफोटेन्मेंट सिस्टम जिसको आप फोन के साथ सिंक्रोनाइज़ कर सकते हैं और बिना हाथ लगाये बात कर सकते हैं।  पता नहीं पुलिस इस बारे में क्या कहती है।


कानून के उपरोक्त १० उल्लंघनों पर कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त पुलिस न होने के कारण दिल्ली की जनता धड्ड्ले से ट्रैफिक के नियमों का उल्लंघन करती है।  ज़ाहिर है , दिल्ली की सडकों पर खतरा सदा मंडराता रहता है।  लेकिन हम समझने को तैयार नहीं।  इंसान सदा डर से डरता है। जब डर नहीं होता तो वो इंसान से शैतान बन जाता है।  वर्ना यही लोग जब अमेरिका , कनाडा या दुबई जैसे देशों में जाकर ड्राइवर का काम करते हैं तो एकदम सीधे सादे और नेक इंसान बन जाते हैं क्योंकि वहां उन्हें पता होता है कि सजा से बच निकलने का वहां कोई मार्ग नहीं होता। काश कानून का यह डर यहाँ भी होता !  









Saturday, August 3, 2013

ज़रा हटके , ज़रा बचके -- ये है दिल्ली का ट्रैफिक मेरी जान !


जब पहली बार हमने गाड़ी चलानी सीखी, तब लगता था कि क्या कभी हम भी गाड़ी चला पाएंगे। लेकिन सिखाने वाले ने बहुत अच्छे तरीके से हमें सिखाया और हमें भी सीखने में मज़ा आया. लेकिन आज सोचते हैं कि क्या हमारे बच्चे  दिल्ली की सड़कों पर गाड़ी चला पाएंगे। जिस तरह सड़कों पर वाहनों का अनुशासनहीन यातायात देखने को मिलता है , उससे तो यही लगता है कि सिर्फ विदेश में रहने वाले भारतीय ही नहीं बल्कि भारत में भी रहने वाले भावी भारतीयों के लिए गाड़ी चलाना अत्यंत कठिन होगा।

दिल्ली में ७० लाख से ज्यादा पंजीकृत वाहन हैं. साथ ही पड़ोसी राज्यों से भी लाखों वाहन प्रतिदिन दिल्ली में प्रवेश करते हैं. भले ही सरकार सड़कों को चौड़ा करने और फ़्लाइओवर बनाकर यातायात को नियंत्रित करने का भरसक प्रयास कर रही है, लेकिन चालकों की अनुशासनहीनता और डेविल मे केयर रवैये से सडकों पर वाहनों की सुरक्षा उतनी ही कम दिखती है जितनी दिल्ली में महिलाओं की. नियमों का पालन करते हुए , अनुशासित रूप में गाड़ी चलाना असंभव सा लगने लग गया है.

इसका मुख्य कारण है, चालकों को यातायात के नियमों का ज्ञान न होना। यह सर्वविदित है कि यहाँ विदेशों की तरह लाइसेंस मिलने में कोई कठिन टेस्ट पास नहीं करने पड़ते। इसलिए लाइसेंस पाना बच्चों के खेल जैसा है. हालाँकि औपचारिक और अधिकारिक तौर पर यहाँ भी सभी तरह के सख्त नियम बनाये गए हैं, लेकिन सभी कागज़ी शेर बन कर ही रह गए हैं. यहाँ भी भ्रष्टाचार का उतना ही बोलबाला है जितना अन्य क्षेत्रों में. बिना सम्पूर्ण ज्ञान के प्राप्त लाइसेंस गाड़ी चलाने का कम, नियम तोड़ने के ज्यादा काम आते हैं.

कमर्शियल वाहन :

दिल्ली में एक बहुत बड़ी संख्या कमर्सियल वाहनों की है जिनके ड्राईवर अक्सर आठवीं फेल गावों के युवा होते हैं. उन्हें बस गाड़ी को दौड़ाना आता है और उन्हें नियमों से कुछ लेना देना नहीं होता। यही वे लोग हैं जो सडकों पर आतंक फैलाये रखते हैं. न इन्हें लेन में चलना होता है , न कानून का डर होता है. ओवरस्पीडिंग , रेड लाईट जम्पिंग , होंकिंग आदि इनका शौक होता है. चौराहे पर लाईट हरी होते ही ये हॉर्न बजाना शुरू कर देते हैं और अक्सर हॉर्न पर हाथ रखकर ही चलते हैं जबकि नियम अनुसार चौराहे के १०० मीटर दूर तक हॉर्न बजाना अपराध है.

१८ से कम आयु के बच्चे :

दिल्ली वालों को बच्चों के हाथ में बाइक या गाड़ी देने का भी शौक होता है. १८ वर्ष से कम आयु के लोगों को न लाइसेंस मिलता है , न ड्राईव करने की अनुमति होती है. लेकिन अमीर बाप के बिगड़े बच्चों के लिए यह भी एक खेल है. अभी हाल में हुई एक दुर्घटना इसका एक जीता जागता उदाहरण है जिसमे रात के समय सडकों पर बाइक सवार युवक दिल्ली की सडकों पर स्टंट करते पाए गए थे. देखा जाये तो इसके लिए सारा दोष अभिभावकों को ही जाना चाहिये। बच्चों को अनाधिकृत रूप से वाहन सौंपना भी एक अपराध है जिसके लिए उन्हें ही जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।

धनाढ्य लोग :

दिल्ली जैसे शहरों में धनाढ्य लोगों में रात देर तक पार्टी करना एक स्टेटस सिम्बल माना जाता है. अक्सर इन पार्टियों में पेज थ्री ग्रुप के लोग होते हैं जिन्हें सोशलाईट कहा जाता है. ये लोग शराब के नशे धुत होकर जब घर के लिए निकलते हैं तब सुबह के ३ या ४ बजे होते हैं. ऐसे में दुर्घटना होना स्वाभाविक है. जाने कितने ही केस इस तरह दिल्ली की सडकों पर होते रहते हैं.

हमसे बढ़कर कौन :

दिल्ली वालों में एक बुरी आदत यह होती है कि वे अपने सामने किसी दूसरे को कुछ नहीं समझते, बल्कि तुच्छ समझते हैं । इसलिए दिल्ली की सडकों पर पढ़े लिखे गंवारों की कोई कमी नहीं होती। हालाँकि ऐसे लोग पढ़े लिखे कम और पढ़े लिखे दिखने वाले ज्यादा होते हैं. इसका कारण है दिल्ली में पैसे वाले लोगों का बहुतायत में पाया जाना। पैसा होने के बाद अनपढ़ भी शक्ल से सभ्य लगने लगता है जबकि अक्ल से वह अत्यंत असभ्य ही होता है. 

पैदल जनता : 

गाड़ी वाले तो गाड़ी वाले , यहाँ पैदल चलने वाले लोग भी कम नहीं होते। सड़क पर हर चौराहे पर ज़ेबरा क्रॉसिंग बने होते हैं लेकिन उसे छोड़कर बाकि सब जगह से सड़क पार करना अपना परमोधर्म समझते हैं. सरकार चाहे जितने ओवरब्रिज बना ले , लेकिन सड़क पार रेलिंग को कूदकर ही करेंगे। पूर्वी दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे के सामने सौ मीटर की दूरी पर दो ओवरब्रिज बने हैं और डिवाईडर पर ६ फुट ऊंची रेलिंग लगाईं गई है ताकि कोई कूद कर न जा सके. फिर भी रोज दो चार बहादुर भैया बन्दर की तरह कूदते फांदते हुए रेलिंग पार करते हुए मिल जायेंगे, मानो यह साबित करना चाहते हों कि हमारे पूर्वजों के जींस के अवशेष  अभी तक हमारे शरीर में बचे हैं.     

ट्रैफिक पुलिस : 

पौने दो करोड़ की आबादी वाले शहर में पुलिस वालों की संख्या अत्यधिक कम होने से सडकों पर अराजकता होना स्वाभाविक सा लग सकता है. लेकिन हमने दुबई में एक भी पुलिस वाला सडकों पर नहीं देखा था । फिर भी कोई भी कानून नहीं तोड़ रहा था, जबकि वहां के ड्राइवर सारे या तो भारतीय थे या पाकिस्तानी। उधर कनाडा के एल्गोंक्विन जंगल के बीचों बीच एक अकेली लड़की ओवरस्पीडिंग करने वालों के चलान काट रही थी. ज़ाहिर है , कानून व्यवस्था में सुधार भी बहुत आवश्यक है. अभी तो हमारे पुलिस वाले चौराहे पर यातायात नियंत्रण करने के बजाय चलान काटने में ज्यादा व्यस्त नज़र आते हैं, जैसे उल्लंघन करने का इंतजार कर रहे हों.       

नोट : अगली पोस्ट में यातायात के नियम और उन्हें तोड़ने के तरीकों पर दिल्ली वालों की आदत के बारे में.   




               

Monday, August 2, 2010

उल्टा चोर कोतवाल को डांटे---ये भी खूब रही

दिल्ली का ट्रैफिक । साठ लाख वाहन । जिंदगी की भाग दौड़ । सुबह सुबह सब भागने में व्यस्त। ऐसे में क्या क्या दृश्य देखने को मिलते हैं । ज़रा आप भी देखिये ।


द्रश्य १ :

एक चौराहे पर एक गाड़ी वाले ने तीन स्कूटर्स , चार मोटर साईकल्स , दो साईकल रिक्शा और पांच पैदल आदमियों को टक्कर मार दी ।

गाड़ी वाला ग्रीन लाईट ( हरी बत्ती ) जम्प कर रहा था ।

दृश्य २ :

एक चौराहे पर एक युवक ने रैड लाईट जम्प की और ग्रीन लाईट पर दूसरी ओर से आती एक महिला की गाड़ी ठोक दी ।
पुलिस दोनों को पकड़ कर थाने ले गई । थाने में युवक के नेता पिता ने महिला को डांट पिलाई --मैडम आपको दिखता नहीं है । जब वो रैड लाईट जम्प कर रहा था , तो आप रुकी क्यों नहीं ।

दृश्य ३ :

अमेरिका , कनाडा जैसे देशों में लाइसेंस बड़ी मुश्किल से मिलता है । नियमों का सख्ती से पालन किया जाता है ।
ऐसे देश का नियम पालक लाइसेंस धारी पूर्वी दिल्ली की सड़कों पर गाड़ी एक किलोमीटर भी नहीं चला सकता , यह मेरा दावा है ।

दृश्य ४ :

चौराहे पर एक स्कूटर वाले ने एक भिखारी को एक रुपया भीख में दिया । भिखारी बिगड़ कर बोला --बाबू इसे आप ही रखो । मेरा दिवालिया निकलवाओगे क्या ।

अंत में :

एक बूढ़े भिखारी से मैंने कहा , बाबा
आज दायाँ , कल तो बायाँ हाथ बढाया था ।
भिखारी बोला बेटा , बूढा हो गया हूँ
अब याद नहीं रहता , कल किस हाथ में पलस्तर चढ़ाया था ।

कहिये , कैसी रही ।

Friday, December 11, 2009

क्या दिल्ली में बड़ी बड़ी गाड़ियों को बैन कर देना चाहिए ---

दिल्ली महानगर की सड़कों पर दौड़ते ६० लाख वाहन, जिनमे से करीब १० लाख कारें हैं। इनमे से आधी से ज्यादा सी सेगमेंट या इससे ऊपर की बड़ी गाड़ियाँ है। लगता है ,दिल्ली वालों के पास बहुत पैसा है

लेकिन १९८३ से पहले ऐसा नही था। तब खाली अम्बेसेडर और फिएट कारें ही सड़कों पर दिखाई देती थी। वो तो स्वर्गीय संजय गाँधी के सपनों की छोटी कार -- मारुती सुजुकी ---जब दिसंबर १९८३ में लौंच हुई तो जैसे एक सैलाब सा आ गया, ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में।

आज दिल्ली की सड़कों पर हर मेक की और हर सेगमेंट की गाड़ियाँ सरपट दौड़ती नज़र आती हैं।

लेकिन एक पागलपन सा छाया रहता है, हम दिलीवालों के दिमाग पर

घर में पति- पत्नी और दो छोटे बच्चे, फ़िर भी गाड़ियां तीन तीन , वो भी लम्बी लम्बी। चलाने वाला भले ही एक ही हो लेकिन खरीद कर ज़रूर डालनी हैं। आख़िर शान तो तभी बनती है

इधर सड़कों पर तो कन्जेस्शन रहता ही है, पार्किंग के लिए भी मारा मारी रहती है।

मुझे तो ख़ुद भी गिल्टी सा फील होता है, पाँच सवारी वाली गाड़ी में अकेला ऑफिस जाते हुए।
कई बार पूलिंग की कोशिश की, लेकिन आख़िर हैं तो दिल्ली वाले ही ना, दो मिनट भी सड़क पर इंतज़ार करना पड़े तो अपनी तौहीन समझते हैं। सो, पूलिंग कभी कामयाब हुई ही नही।

कनाडा के हाइवेज पर हमने जगह जगह कार पूल स्टॉप बने हुए देखेकितने ओर्गनाइज्द हैं वहाँ लोग

अब सुना है, ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट ऑटोरिक्शा की जगह छोटी कारें चलाएगा

मुझे तो लगता है की सभी बड़ी कारों को ऑफिस के लिए बैन कर देना चाहिए। एक तो सड़कों पर राहत मिलेगी, और पार्किंग की भी समस्या हल हो जाएगी। बड़ी कारें सिर्फ़ फैमिली के साथ जाने या दो से ज्यादा लोगों के लिए ही अलाउड होनी चाहिए।

अकेले ड्राइव करने के लिए सिर्फ़ छोटी कारकैसा रहेगा ये आइडिया ?

लेकिन छोटी कार है कहाँ ?
कुछ साल पहले रेवा आई थी। लेकिन एक तो कीमत ४ लाख, फ़िर बैटरी चार्ज करने का झंझट, इसलिए कामयाब नही हो सकती थी।
फ़िर टाटा की नैनो ने धूम मचा दी। मैंने तो घर में एलान भी कर दिया था की मुझे तो नैनो ही चाहिए। लेकिन श्रीमती जी के विरोध के आगे हमारी नही चली। आख़िर स्त्री -शक्ति में कुछ तो शक्ति है

तलाश है ,एक ऐसी कार की जो टू सीटर हो , लेकिन चौपहिया हो

अब ज़रा इसे देखें ---

ये स्मार्ट कार , जी हाँ इसका नाम ही स्मार्ट कार है , मोंट्रियल से क्यूबेक जाने वाले हाइवे पर टिम होर्तन्स के आउटलेट के बाहर देखी थी।

मुझे पूरा विश्वास है की श्री समीर लाल जी इसके बारे में पूरा डिटेल्स पता लगाकर बता देंगे।

तो क्या ख्याल है एजेंसी लेने के बारे में ?
बुकिंग कराने के लिए तो हम तैयार हैं

नोट : यह पोस्ट उन लोगों के लिए है जो कार चलाते हैं और अकेले ऑफिस जाते हैं।और उनके लिए भी जो कार चलाने की तमन्ना रखते हैं।