दिल्ली महानगर की सड़कों पर दौड़ते ६० लाख वाहन, जिनमे से करीब १० लाख कारें हैं। इनमे से आधी से ज्यादा
सी सेगमेंट या इससे ऊपर की बड़ी गाड़ियाँ है।
लगता है ,दिल्ली वालों के पास बहुत पैसा है। लेकिन
१९८३ से पहले ऐसा नही था। तब खाली
अम्बेसेडर और
फिएट कारें ही सड़कों पर दिखाई देती थी। वो तो
स्वर्गीय संजय गाँधी के सपनों की छोटी कार --
मारुती सुजुकी ---जब दिसंबर १९८३ में लौंच हुई तो जैसे एक सैलाब सा आ गया, ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में।
आज दिल्ली की सड़कों पर हर मेक की और हर सेगमेंट की गाड़ियाँ सरपट दौड़ती नज़र आती हैं।
लेकिन एक पागलपन सा छाया रहता है, हम दिलीवालों के दिमाग पर। घर में पति- पत्नी और दो छोटे बच्चे, फ़िर भी गाड़ियां तीन तीन , वो भी लम्बी लम्बी। चलाने वाला भले ही एक ही हो लेकिन खरीद कर ज़रूर डालनी हैं।
आख़िर शान तो तभी बनती है। इधर सड़कों पर तो कन्जेस्शन रहता ही है, पार्किंग के लिए भी मारा मारी रहती है।
मुझे तो ख़ुद भी गिल्टी सा फील होता है, पाँच सवारी वाली गाड़ी में अकेला ऑफिस जाते हुए।
कई बार पूलिंग की कोशिश की, लेकिन आख़िर हैं तो दिल्ली वाले ही ना, दो मिनट भी सड़क पर इंतज़ार करना पड़े तो अपनी तौहीन समझते हैं। सो, पूलिंग कभी कामयाब हुई ही नही।
कनाडा के हाइवेज पर हमने जगह जगह कार पूल स्टॉप बने हुए देखे। कितने ओर्गनाइज्द हैं वहाँ लोग। अब सुना है, ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट ऑटोरिक्शा की जगह छोटी कारें चलाएगा। मुझे तो लगता है की सभी बड़ी कारों को ऑफिस के लिए बैन कर देना चाहिए। एक तो सड़कों पर राहत मिलेगी, और पार्किंग की भी समस्या हल हो जाएगी। बड़ी कारें सिर्फ़ फैमिली के साथ जाने या दो से ज्यादा लोगों के
लिए ही अलाउड होनी चाहिए।
अकेले ड्राइव करने के लिए सिर्फ़ छोटी कार। कैसा रहेगा ये आइडिया ?लेकिन छोटी कार है कहाँ ?
कुछ साल पहले
रेवा आई थी। लेकिन एक तो कीमत ४ लाख, फ़िर बैटरी चार्ज करने का झंझट, इसलिए कामयाब नही हो सकती थी।
फ़िर
टाटा की नैनो ने धूम मचा दी। मैंने तो घर में एलान भी कर दिया था की मुझे तो नैनो ही चाहिए। लेकिन श्रीमती जी के विरोध के आगे हमारी नही चली।
आख़िर स्त्री -शक्ति में कुछ तो शक्ति है। तलाश है ,एक ऐसी कार की जो टू सीटर हो , लेकिन चौपहिया हो। अब ज़रा इसे देखें ---

ये स्मार्ट कार , जी हाँ इसका नाम ही
स्मार्ट कार है ,
मोंट्रियल से क्यूबेक जाने वाले हाइवे पर
टिम होर्तन्स के आउटलेट के बाहर देखी थी।
मुझे पूरा विश्वास है की श्री समीर लाल जी इसके बारे में पूरा डिटेल्स पता लगाकर बता देंगे।
तो क्या ख्याल है एजेंसी लेने के बारे में ?बुकिंग कराने के लिए तो हम तैयार हैं।नोट : यह पोस्ट उन लोगों के लिए है जो कार चलाते हैं और अकेले ऑफिस जाते हैं।और उनके लिए भी जो कार चलाने की तमन्ना रखते हैं।