नगरी नगरी , होटल होटल , छुपता जाये बेचारा ,
ये सियासत का मारा ....
चुनावों तक का साथ था इनका , जीतने तक की यारी,
आज यहाँ तो कल उस दल में , घुसने की तैयारी।
नगरी नगरी , होटल होटल ----
मंत्री पद के पीछे क्यों हैं , ये नेता सब पगले ,
यहाँ की ये कुर्सी नहीं मिलेगी , ग़र होटल से निकले ।
नगरी नगरी , होटल होटल ----
कदम कदम पर नेता बैठे , अपना हाथ बढ़ाये ,
सियासत के खेल में जाने , कौन कहाँ मिल जाये।
नगरी नगरी , होटल होटल ---
काले नोटों में बिकता हो, जहाँ दलों का प्यार ,
वोट्स भी बेकार वहां पर , वोटर भी बेकार।
नगरी नगरी , होटल होटल ----
उन जैसों के भाग में लिखा , कुर्सी का वरदान नहीं ,
जिसने उनको नेता चुना वो , अवसर है मतदान नहीं।
नगरी नगरी , होटल होटल ---
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (26-11-2019) को "बिकते आज उसूल" (चर्चा अंक 3531) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह!!!
ReplyDeleteबहुत सटीक...
बहुत खूब
ReplyDeleteवाह बेहतरीन 👌
ReplyDeleteसामयिक व्यंग सटीक प्रहार।
ReplyDeleteबहुत सुंदर पैरोड़ी।