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Tuesday, May 17, 2016

एक सेवानिवृत पति की दिनचर्या का हाल ---


प्रस्तुत है , एक सेवानिवृत पति की दिनचर्या का हाल :

सुबह :

पत्नी : अज़ी सुनते हो , आज कामवाली बाई नहीं आएगी और डस्टिंग करने वाली भी अभी तक नहीं आई।  अब आप सम्भालो , मेरा टाइम हो गया ऑफिस का। ज़रा जल्दी से मेरा लंच पैक कर दो।  

पति : ठहरो , मैं ऐ टी एम से पैसे निकाल लाऊं ।  

पत्नी : अरे आप तो रिटायर्ड आदमी हैं।  अब आपको पैसों की क्या ज़रुरत है ? दस बीस रूपये चाहिए तो मेरे पर्स से निकाल लिया करो। वैसे भी आप ने क्या खर्च करना है , हमेशा से कंजूस के कंजूस ही तो रहे हो।
 
पति : हमें दो शर्ट और दो पैंट खरीदनी हैं।  सारी पुरानी हो गई।

पत्नी : ओहो ! आप भी अब कौन से नए रह गए हैं। और क्या करना है नए कपड़ों का ! आपने कौन सा ऑफिस जाना है ! वैसे भी गर्मी का मौसम है , कहाँ जाओगे इस मौसम में।  घर में बैठो आराम से नेकर और बनियान पहनकर।  

पति : अच्छा ब्रेड तो ले आऊं नाश्ते के लिए।

पत्नी : ठीक है।  लेकिन सारे दिन घर में रहते हो।  अब ये मत करना कि बैठे बैठे सारे दिन खाते ही रहो।  वेट बढ़ जायेगा , पेट बढ़ जायेगा , बी पी बढ़ जायेगा और शुगर भी बढ़ जाएगी।  फिर घूमोगे डॉक्टरों के चक्कर लगाते।
अच्छा सुनो , बाहर कपडे सूख रहे हैं, थोड़ी देर में उतार लेना और धोबी को प्रैस के लिए दे देना। लेकिन सीधे करके देना।  और सुनो , ये करना , वो करना , बहुत काम पड़े हैं , बस टाइम वेस्ट मत करना।

फिर शाम को ऑफिस से आने के बाद :

आप तो कमाल हो जी। मैं ऑफिस गई , तब भी आप अख़बार पढ़ रहे थे , अब आई हूँ तब भी अख़बार ही पढ़ रहे हो। आखिर ऐसा क्या है इस मुए अख़बार में !
अच्छा बताओ , दिन भर क्या किया आपने ?
अरे ये क्या , फ्रिज में सब कुछ वैसा का वैसा ही रखा है।  आपने तो कुछ खाया ही नहीं।  हे भगवान , मैंने कहा था ये दाल ख़त्म कर देना , खराब हो जाएगी।  लेकिन आपको तो कोई फ़िक्र है ही नहीं।  
और कपडे ! वहीँ बाहर जल रहे हैं धूप में। आपके भरोसे तो कुछ भी छोड़ना बेकार है। कितने बेकार बेकाम आदमी हो , पता नहीं सरकार कैसे झेल रही थी आपको।  मुफ्त में तनख्वाह दे रही थी।
जब देखो तब अख़बार या मोबाईल पर फेसबुक और वाट्सएप। इसके अलावा तो कोई काम ही नहीं है आपको। अब तो उठ लो , मुझे पानी ही पिला दो।

अगले दिन छुट्टी के दिन डॉक्टर के पास :

डॉक्टर साहब , मेरे पति सारी रात नींद में बड़बड़ाते हैं , कोई अच्छी सी दवा दीजिये।
डॉक्टर : ये दवा लिख रहा हूँ , केमिस्ट से ले लेना।  रोज एक गोली सुबह शाम लेनी है।  आपके पति बड़बड़ाना बंद  कर देंगे।
पत्नी : नहीं नहीं डॉक्टर साहब , आप तो कोई ऐसी दवा दीजिये कि ये साफ साफ बोलना शुरू  दें।  पता तो चले कि ये नींद में किसका नाम लेते हैं।
डॉक्टर : बहन जी , ये दवा आपके पति के लिए नहीं , आपके लिए है। आप उन्हें दिन में बोलने का मौका दें , वे नींद में बड़बड़ाना अपने आप बंद  कर देंगे।  

नोट : यह गर्मी में टाइम पास के लिए लिखा गया हास्य व्यंग है।  इसका किसी जीवित या अजीवित व्यक्ति से कोई  सम्बन्ध नहीं है।



9 comments:

  1. इधर सेवानिवृत्ति क्या हुए की दूसरी तरफ घर में फटाक से नयी नियुक्ति मिल गई ... पत्नी के सेवा मतलब मेवा ही मेवा
    बहुत खूब!

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  2. यह तो सेवा निवृत्त व्यक्ति की सच्ची कहानी है, आप सेवानिवृत्त हो चुके क्या ? हा हा हा .....

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  3. आज की बुलेटिन विश्व दूरसंचार दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।

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  4. वाह ! सही निदान किया है मर्ज का..

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  5. अच्छा तो है ,अब ऐसी तमाम सूझें दिमाग़ में आयेंगी - लिखने में आनन्द रहेगा !

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  6. ये नोट तो सही नहीं लग रहा है .... वैसे जुगाड़ बढ़िया बताये हैं !

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  7. बहुत बढि़या रचना ।

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  8. सूखा पीड़ित ब्लॉग यात्रा में आप सभी का आभार।

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