डॉ अरविन्द मिश्र जी ने हमारी एक पोस्ट पर सही टाईटल दिया -- इंफोटेनमेंट।
तो लीजिए हाज़िर है , एक और इंफोटेनमेंट :
गर्मी में आता है गर्म पसीना ,
यही पसीना तो गर्मी से बचाता है।
कंपकपाने का मतलब डर नहीं होता ,
सर्दियों में कंपकपाना ही ऊर्ज़ा दिलाता है।
मत समझो कोई अपशकुन इसे ,
छींकने से तो स्वास मार्ग खुल जाता है।
दस्त भले ही कर डालें पस्त तुम्हें ,
पर पेट को रोगाणुओं से निज़ात दिलाता है।
जूता सुंघाओ या ना सुंघाओ ,
मिर्गी के दौरे में कोई टोटका काम नहीं आता है।
जितने मर्ज़ी बदलो शहर के डॉक्टर ,
वायरल बुखार तो अपने आप ही ठीक हो जाता है।
पीलिया भी एक वायरल इंफेक्शन है ,
इसमें झाड़ फूंक नहीं , आराम ही काम आता है।
किसी को नहीं लगती किसी की नज़र ,
नज़र का लगना भी एक अंधविश्वास कहलाता है।
पेट के दर्द को एसीडिटी मत समझो ,
कभी कभी ये दिल का दर्द भी निकल आता है ।
कुत्ता काट ले तो इंजेक्शन लगवाओ ,
हल्दी मिर्च के लेप से तो रोग और बढ़ जाता है।
शहर में भरे पड़े हैं झोला छाप डॉक्टर ,
इनका ईलाज जान का दुश्मन बन जाता है।
इस जिस्म को अक्सर कुदरत ही रोगों से बचाता है।
वाह डाक्टर साहब , सही इन्फोटेनमेंट॥ आम के आम गुठलियों के दाम
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (18-06-2016) को "वाह री ज़िन्दगी" (चर्चा अंक-2377) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
पढकर ही लोग समझ जांय कि यह कविता किसी डाक्टर ने लिखी है. काम की नसीहत है.
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