जब काली घटायें छाती हैं ,
और टिप टिप बारिश आती है।
मौसम भीगा भीगा होता है ,
सब गीला गीला सा होता है।
जब भोर के उजाले होते हैं ,
कुछ नन्हे शेर निकलते हैं।
जो नंगे हाथों की चमड़ी में ,
अपना तीखा डंक घुसेड़ते हैं।
फिर वो खून तुम्हारा पीते हैं ,
और गिफ्ट में वायरस देते हैं।
जब ये रक्त का दौरा करता है ,
तब सारा बदन कंपकपाता है।
आप बदन दर्द से कराहते हैं ,
इसी को डेंगू बुखार कहते हैं।
ना कोई दुआ काम आती है ,
ना दवा ही असर दिखाती है।
ना खाने को मन करता है ,
दिन भर पसीना टपकता है।
फिर सारा फैट झड़ जाता है ,
जब डेंगू बुखार चढ़ जाता है।
मत होने दो जमा पानी को ,
यूज करो मच्छरदानी को ।
फुल स्लीव्ज के पहनो कपडे ,
फिर तो डेंगू कभी ना पकडे।
बस एक गोली पैरासिटामोल ,
और पीओ पानी नीम्बू घोल।
ले लो एक सप्ताह की छुट्टी ,
तभी हो पायेगी डेंगू से कुट्टी।
डेंगू का मच्छर भी सम्मानित महसोस कर रहा होगा जो डॉक्टर साहब की कलम से निकला है ... पूरी जानकारी दे दी .
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