किसी की पाक मोहब्बत की दास्ताँ है ये , या कुछ हट कर ख़ास कर दिखाने का ज़नून , यह हम नहीं जानते। लेकिन इतना ज़रूर जानते हैं कि विश्व के सात अज़ूबों में यूँ ही नहीं शामिल कर लिया गया है ताज़महल को। ताज़ का अनुपम सौन्दर्य सिर्फ अंदर ही नहीं , बल्कि बाहर से भी देखने वालों को भाव विभोर कर देता है।
यमुना किनारे बना ताज़ , यदि आगरा फोर्ट से देखा जाये , जहाँ से सुना है कि शाहजहाँ कभी देखा करता था , आज भी बहुत खूबसूरत नज़र आता है।
शाहजहां के पास तो बस दूरबीन ही होती होगी देखने के लिए , लेकिन आजकल हाई ज़ूम वाले कैमरे से एक किलोमीटर दूर बने किले से भी ताज़ की खूबसूरती की एक एक लकीर आसानी से देखी जा सकती है।
पर्यटकों के लिए लगाई गई रेलिंग से ताज़ जैसे सामने ही दिखाई देता है।
ताज़ और फोर्ट के बीच यमुना के किनारे किनारे अच्छी और गहरी हरियाली न सिर्फ देखने में अच्छी लगती है बल्कि ताज़ की प्रदुषण से भी रक्षा करती है।
हालाँकि आस पास बस्ती भी नज़र आती है लेकिन पेड़ों की हरियाली उन्हें छुपा लेती है।
ताज़ के अहाते में प्रवेश करते ही यह नज़ारा सदियों से एक जैसा ही दिखाई देता है। सैंकड़ों सैलानी ताज़ की खूबसूरती को आँखों और कैमरे में कैद करने में लगे रहते हैं।
ठीक सामने बने डायना बेंच पर बैठकर फोटो खिंचवाने के लिए तो जैसे लाइन ही लगी रहती है और आपका नंबर आने में घंटों में लग सकते हैं।
आजकल यहाँ मरम्मत का काम चल रहा है।
सूर्यास्त के साथ ही परिसर को खाली करने के लिए सुरक्षा गार्ड्स की सीटी बजने लगती है।
उधर यमुना के ऊपर सूर्यदेव पल पल रंग बदलते हुए नेपथ्य में विश्राम करने चले जाते हैं।
यही वो समय होता है जब आप सूर्य देव से आँख मिलाने का साहस कर सकते हैं।
धीरे धीरे सूर्य महाराज क्षितिज में पृथ्वी की गोद में समां जाते हैं , किसी और जहाँ को रौशन करने के लिए और हमें अगले एक और सुनहरे दिन का इंतज़ार करने हेतु छोड़ते हुए । और हम निकल पड़ते हैं , गार्ड की तेज होती सीटी के साथ निकास द्वार की ओर , मन में ताज़ और आस पास के वातावरण की मनमोहक छवि लिए हुए।
यमुना किनारे बना ताज़ , यदि आगरा फोर्ट से देखा जाये , जहाँ से सुना है कि शाहजहाँ कभी देखा करता था , आज भी बहुत खूबसूरत नज़र आता है।
शाहजहां के पास तो बस दूरबीन ही होती होगी देखने के लिए , लेकिन आजकल हाई ज़ूम वाले कैमरे से एक किलोमीटर दूर बने किले से भी ताज़ की खूबसूरती की एक एक लकीर आसानी से देखी जा सकती है।
पर्यटकों के लिए लगाई गई रेलिंग से ताज़ जैसे सामने ही दिखाई देता है।
ताज़ और फोर्ट के बीच यमुना के किनारे किनारे अच्छी और गहरी हरियाली न सिर्फ देखने में अच्छी लगती है बल्कि ताज़ की प्रदुषण से भी रक्षा करती है।
हालाँकि आस पास बस्ती भी नज़र आती है लेकिन पेड़ों की हरियाली उन्हें छुपा लेती है।
ताज़ के अहाते में प्रवेश करते ही यह नज़ारा सदियों से एक जैसा ही दिखाई देता है। सैंकड़ों सैलानी ताज़ की खूबसूरती को आँखों और कैमरे में कैद करने में लगे रहते हैं।
ठीक सामने बने डायना बेंच पर बैठकर फोटो खिंचवाने के लिए तो जैसे लाइन ही लगी रहती है और आपका नंबर आने में घंटों में लग सकते हैं।
आजकल यहाँ मरम्मत का काम चल रहा है।
सूर्यास्त के साथ ही परिसर को खाली करने के लिए सुरक्षा गार्ड्स की सीटी बजने लगती है।
उधर यमुना के ऊपर सूर्यदेव पल पल रंग बदलते हुए नेपथ्य में विश्राम करने चले जाते हैं।
यही वो समय होता है जब आप सूर्य देव से आँख मिलाने का साहस कर सकते हैं।
धीरे धीरे सूर्य महाराज क्षितिज में पृथ्वी की गोद में समां जाते हैं , किसी और जहाँ को रौशन करने के लिए और हमें अगले एक और सुनहरे दिन का इंतज़ार करने हेतु छोड़ते हुए । और हम निकल पड़ते हैं , गार्ड की तेज होती सीटी के साथ निकास द्वार की ओर , मन में ताज़ और आस पास के वातावरण की मनमोहक छवि लिए हुए।
लाजबाब
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (10-09-2016) को "शाब्दिक हिंसा मत करो " (चर्चा अंक-2461) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह! गजब के नज़ारे!!!
ReplyDeleteकमरे के एंगल लाजवाब सेट किये हैं आपने ... ताज आज नए रूप में दिख रहा है ....
ReplyDeletehttp://bulletinofblog.blogspot.in/2016/09/7.html
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteखूबसूरत चित्र .
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