वो मुश्किल से १८-२० साल की सुकन्या थी। सुंदर गोल चेहरा, अश्रुओं में भीगा हुआ । मेरे कमरे के बाहर बैठी थी, गुमसुम, उदास, चुपचाप आंसू बहाती हुई। किसी का रेफरेंस लेकर आई थी, ऐ आर टी क्लिनिक में इलाज़ कराने के लिए । ज़ाहिर था, वो एड्स से पीड़ित थी। उसका खूबसूरत , मासूम चेहरा देखकर, और स्थिति का आभास होते ही, किसी का भी कलेजा मूंह को आ सकता था।
लेकिन एक डॉक्टर को इमोशनल होना नही होता। क्या करें, वी आर ट्रेंड लाइक देट।
सोचता हूँ, किस ने दी उसको ये भयंकर बीमारी ?
कहाँ से पकड़ा ये नाईलाज रोग ?
क्या मजबूरी रही होगी ?
कौन है उसका गुनाहगार?
कुछ इसी तरह के सवाल उठते हैं जहन में , एड्स का ख्याल आते ही।
क्या है एड्स :
एड्स का पूरा नाम है -- अक्वायेर्ड इम्यूनो- डेफिसियेंसी सिंड्रोम।
ये एक ऐसी बीमारी है, जिसमे शरीर में बाहरी संक्रमण से लड़ने की कुदरती ताकत ख़त्म हो जातीहै।
और इसका जिम्मेदार है, एक नानो साइज़ का वायरस --जिसे एच आई वी कहते हैं---यानि ह्युमन इम्यूनो देफिसियंसी वाइरस।
ये वाइरस शरीर में प्रवेश करने के बाद रक्त की सी डी -४ नाम की कोशिकाओं को नष्ट कर देती हैं, जिससे शरीर की संक्रमण से लड़ने की ताकत ख़त्म हो जाती है। और तरह तरह के रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
क्या एच आई वी और एड्स एक ही बात है ?
जी नही, एच आई वी पोजिटिव होने का मतलब है --आपके शरीर में एड्स के वाइरस प्रवेश कर चुके हैं। लेकिन ये ज़रूरी नही की रोग उत्पन्न हो गया हो।
एड्स --का मतलब है की वाइरस की वजह से शरीर में विकार उत्पन्न होने लगे हैं, यानि रोगों के लक्षण प्रतीत होने लगे हैं।
क्या हैं एड्स के लक्षण ?
१। लगातार वज़न का घटना।
२। लगातार हल्का बुखार रहना।
३। महीनो तक दस्त लगे रहना।
४। मूंह में छाले बने रहना।
५। शरीर में लिम्फ नोड्स का उभरना।
एड्स क्यों होती है ?
इसके ४ मुख्य कारण हैं ---
१- अनैतिक , असुरक्षित यौन संबध ।
यानि असुरक्षित प्री-मेराईतल या पोस्ट- मेराईतल सेक्स।---
समलैंगिक सम्बन्ध।--- वेश्यावर्ती ।--- एच आई वी पोजिटिव पति या पत्नी से असुरक्षित यौन सम्बन्ध।
२ -एच आई वी पोजिटिव ब्लड ट्रांसफ्यूजन।
३ -नशा करने के लिए उपयोग की गई सूई , विशेषकर जब एक ही सूई से कई लोग नशा करते हों।
४ -एच आई वी पोजिटिव गर्भवती महिला से शिशु को एड्स हो सकती है।
कैसे बचा जाए एड्स से ?
ब्रहमचर्य का पालन। जी हाँ, यदि आप कुंवारे हैं तो बेहतर है, दादा- परदादा की बात माने और २५ साल तक ब्रहमचारी रहें। बात पुरानी ज़रूर है, लेकिन बात में दम है। अब तो विकसित देशों में भी इसका अनुसरण होने लगा है।
और यदि आप विवाहित हैं तो गीता में श्री कृष्ण द्वारा दिए ज्ञान का पालन करें, यानि परायी औरत पर नज़र मत डालें।
ये विचार मन में भी न लायें ---की बोर हो गया हूँ घर का खाना खाते खाते।
ब्लड यानि रक्त की आवश्यकता पड़ जाए तो किसी अधिकृत केन्द्र से ही रक्त प्राप्त करें जहाँ इसे अच्छी तरह से जांच कर ही दिया जाता है।
किसी तरह का नशा न करें, विशेषकर सूई लगाने वाली दवा का । नशेड़ियों को कहाँ होश रहता है ,अपनी सेहत का।
यदि गर्भवती मां को एच आई वी पोजिटिव निकल आता है, तो घबराएँ नही। किसी भी पास के अस्पताल में जाकर इलाज़ कराएँ। खाने से शिशु सुरक्षित रहेगा।
सभी बड़े अस्पतालों में वी सी टी सी यानि स्वैच्छिक परामर्श एवम जांच केन्द्र खुले हैं, जहाँ टेस्टिंग मुफ्त की जाती है।
ऐ आर टी क्लिनिक : यानि एंटी रित्रोवाइरल क्लिनिक। यहाँ एड्स के रोगियों को मुफ्त एड्स की दवा दी जाती है। लेकिन इसे उमर भर खाना ज़रूरी होता है।
याद रखिये :
भारत में करीब २.५ मिलियन लोग एच आई वी / एड्स से पीड़ित हैं।
एड्स का कोई इलाज़ नही है। दवा से सिर्फ़ वाइरस को कंट्रोल करके सामान्य जीवन गुजारा जा सकता है ।
ठहरिये, सोचिये, आप क्या करने जा रहे हैं। कही क्षणिक शारीरिक आनंद आपको जीवन भर के लिए आंसुओं में न डुबो दे।
उपरोक्त जानकारी --साभार, सौजन्य से --प्रोफ़ेसर श्रीधर द्विवेदी --इंचार्ज , ऐ आर टी क्लिनिक, जी टी बी हॉस्पिटल, दिल्ली।
वर्ल्ड एड्स डे के अवसर पर जी टी बी अस्पताल में एक पब्लिक लेक्चर का आयोजन किया गया, डॉ द्विवेदी के मार्गदर्शन में ।
इस अवसर पर एक पुस्तिका का भी विमोचन किया गया।
प्रस्तुत है डॉ द्विवेदी द्वारा लिखी एक कविता इस विषय पर--
यह लेख आपको कैसा लगा, बताईएगा ज़रूर.
बहुत अच्छी और ज्ञानवर्धक लगी यह पोस्ट.....
ReplyDeleteदराल सर,
ReplyDeleteसाउथ अफ्रीका के बाद एचआईवी पीड़ितों की सबसे ज़्यादा संख्या भारत में है...ये विडम्बना है कि कामसूत्र और खजुराहो के देश में ही सेक्स को लेकर सबसे ज्यादा भ्रांतियां हैं...जागरूकता की कमी से अनप्रोटेक्टेड सेक्स ही एचआईवी के संक्रमण की सबसे बड़ी वजह है...सेक्स को हमारे देश में ऐसा हव्वा बनाकर रखा गया है कि खुल कर बात करने में हर कोई शर्माता है...और जब होश आता है तो बहुत देर हो चुकी होती है...
एड्स पर सटीक जानकारी वाली पोस्ट के लिए आपको साधुवाद...
जय हिंद...
एड्स के बारे में अच्छी जानकारी दी आपने
ReplyDeleteसुरक्षा में ही इससे बचाव है
दिवस विशेष पर विशिष्ट जानकारी के लिए बहुत आभार. जागरुकता की दरकार है. आपका साधुवाद!!
ReplyDeleteडॉ श्रीधर द्विवेदी जी की रचना बहुत पसंद आई.
ReplyDeleteबेहतरीन जानकारी.... कविता भी अच्छी है..
ReplyDeleteडा. दराल जी ~ धन्यवाद्, जानकारी के लिए! मेरे ख्याल से जितना प्रचार इस विषय पर मीडिया द्वारा किया जा रहा है उससे अब तक सब 'पढ़े लिखे' लोगों को तो यह रट जाना चाहिए...
ReplyDeleteऔर आपने 'गीता' और 'कृष्ण' का नाम ले मुझे याद दिला दिया कैसे मुझे सन '७५ में इसकी एक प्रति मेरे एक स्टाफ ने दी थी जब में भूटान जा रहा था...में उस समय मन ही मन हँसा कि शायद वो मुझे 'पंडित' समझ रही है :) लेकिन जैसा पहले मैंने अपनी पत्नी कि बीमारी के बारे में बताया था, '८४ में उत्तरपूर्व इलाके से दिल्ली लौटने के बाद मैंने कुछ दिन बाद उस प्रति को ढूंढ निकाला और एक ही सांस में उसका अंग्रेजी में दिए अनुवाद को पढ़ा और मन क़ी बत्ती जल गयी :) पहले मैं संस्कृत के श्लोक पढने क़ी कोशिश करता था और बीच में ही छोड़ देता था - इस कारण जो भी ज्ञान था वो सुना सुनाया था, जैसे मुझे केवल कर्म करने का अधिकार है...इत्यादि...और 'पंडित' यदि बतादें कि आपके हाथ में कुछ नहीं है तो उनकी रोजी रोटी छिन जाएगी :)
मेरा निजी प्रयास है 'माया' का अर्थ जानना, रत्नों का ज्ञान प्राप्त करना और उनके उपयोग से कम से कम 'बीमारी' को बढ़ने से रोकना, और हो सके तो 'स्वस्थ' दिखने वालों में इससे पीड़ित ही न होने देना...किन्तु शायद 'पढ़े-लिखे' डॉक्टर इसके पक्ष में न हों क्यूंकि वो पहले डिग्री मांगते हैं...किसी और को, सभी को, 'ठग' कहते हैं बिना जाने...इसी लिए मैंने आपसे प्रश्न किया था जीसस के बारे में, जिनका जन्म-दिन अब निकट ही है, कि वो कैसे छूने मात्र से रोग-मुक्त करते थे और यदि वो संभव है तो क्यूं कोई, क्रिस्तान ही सही, इसकी कोशिश करता? :) रेइकी वाले अवश्य सुनने में आते हैं पर कसी को 'चमत्कार' करते नहीं सुना...
पुनश्च - डा. श्रीधर द्विवेदी की कविता बढ़िया लगी, धन्यवाद्!
एक जागरूकता पूर्ण लेख डा0 साहब, हमारा संचार जगत इन चीजो पर बाते तो बड़ी-बड़ी कर लेते है लेकिन उसके सिम्पटम और बचाव के उपाय कम ही मिलते है जिससे लोगो में जानकारी का अभाव रहता है ! वैसे भी मैं आज ही के अखबार में पढ़ रहा था कि एन सी आर में एड्स तेजी से पाँव पसार रहा है ! बेहद सुन्दर आलेख !
ReplyDeleteडाक्टर साहब बहुत ही सुन्दर जानकारी दी है थोड़ा जानते थे बहुत आपने बताया आभार!!!
ReplyDeleteये शमा जलती रहे।
ReplyDelete--------
अदभुत है हमारा शरीर।
क्या अंधविश्वास से जूझे बिना नारीवाद सफल होगा?
ये शमा जलती रहे।
ReplyDelete--------
अदभुत है हमारा शरीर।
क्या अंधविश्वास से जूझे बिना नारीवाद सफल होगा?
कितनी मेहनत करते हैं आप अपनी पोस्ट पर .....सच कहूँ तो आपने जो यह अपने ब्लाग पे जागरूकता अभियान छेड़ रखा तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ .....डॉ द्विवेदी जी की कविता भी पढ़ी .....उन्हें भी धन्यवाद .....!!
ReplyDeleteहरकीरत जी आपने सही कहा। मेहनत तो होती है , लेकिन हम डॉक्टरों को इसकी आदत होती है। डॉ द्विवेदी ने भी तो कितनी मेहनत की होगी ये पुस्तिका तैयार करने में, एक पब्लिक लेक्चर के लिए।
ReplyDeleteलेकिन लोगों तक संदेश पहुंचे तो संतुष्टि होती है।
बहुत शानदार , सामयिक आलेख.
ReplyDeleteजानकारी से भरपूर हमेशा कि तरह एक अच्छी पोस्ट
ReplyDeleteजानकारी से भरपूर हमेशा कि तरह एक अच्छी पोस्ट
ReplyDeleteपहले कहानी ..... धीरे धीरे जानकारी और फिर ऐसी महामारी से अपने आप को दूर रखने का उपाय ........ अंत में द्विवेदी जी को उम्दा रचना .......... बहुत की लाजवाब लेख है .......... बहुत अच्छा लगा पढ़ कर .........
ReplyDeleteइस लेख को पसंद करने के लिए आप सभी दोस्तों का हार्दिक आभार।
ReplyDeleteेक सार्थक आलेख आपने एक लेखक के साथ साथ एक डा. होने का धर्म भी बाखूबी निभाया है। धन्यवाद इस आलेख के लिये और शुभकामनायें
ReplyDeleteजानकारी भरा ज्ञानवर्ध लेख
ReplyDeleteरश्मि प्रभा जी ब्लॉग बुलेटिन के माध्यम से अक्सर पुरानी यादें ताज़ा करवाती रहती हैं ... आज की बुलेटिन में भी ऐसी ही कुछ ब्लॉग पोस्टों को लिंक किया गया है|
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, वो जब याद आए, बहुत याद आए – 2 “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !