यदि अंग अंग पर बसंती रंग छा जाए तो क्या हो --- पीलिया यानि हिपेटाइटिस :
मेरा रंग दे बसंती चोला, मेरा रंग दे। ये प्रसिद्ध गाना तो सबने सुना होगा।
अंग बसंती, संग बसंती, रंग बसंती छा गया। ये भी आपने सुना होगा।
अब ज़रा सोचिये , यदि कपड़ों के बजाय ये बसंती रंग , अंग अंग पर छा जाए तो क्या हाल होगा।
जी हाँ, हम बात कर रहे हैं , जॉन्डिस यानि पीलिया की , जिसमे शरीर के अंग पीले हो जाते हैं। विशेषकर नवजात शिशुओं में, जिनका पूरा शरीर पीला हो जाता है, यदि जॉन्डिस हो जाए।
जॉन्डिस या पीलिया कोई बीमारी नही है, बल्कि एक बीमारी का लक्षण है, जिसे हिपेटाइटिस ( hepatitis) कहते हैं।
यूँ तो जॉन्डिस के कई कारण होते हैं, लेकिन वाइरल हिपेटाइटिस सबसे प्रमुख कारण है।
वाइरल हिपेटाइटिस के प्रकार : ऐ, बी, सी, डी, और ई ।
क्यों होती है वाइरल हिपेटाइटिस ?
यह एक वायरल संक्रमण है, जो लीवर की कोशिकाओं को नष्ट कर देता है। लीवर में इन्फेक्शन होने से लीवर बढ़ जाता है । इसके साथ साथ रक्त में बिलीरूबिन की मात्रा बढ़ने से पीलिया हो जाता है।
प्रारंभिक लक्षण :
सबसे पहले हल्का बुखार होता है। फ़िर धीरे धीरे आँखें पीली दिखने लगती हैं और पेशाब भी पीला आने लगता है। साथ में भूख न लगना , कमजोरी होना और उल्टियाँ भी हो सकती हैं।
संक्रमण के मुख्यतय दो रूट होते हैं --
एक खाने - पीने के द्वारा --जिससे हिपेटाइटिस 'ऐ' और 'ई'' होती हैं।
दूसरा रूट है ---रक्त द्वारा। ---जिससे हिपेटाइटिस 'बी', 'सी', और 'डी' होती हैं।
इनमे सबसे खतरनाक होती है --हिपेटाइटिस 'बी'।
इसके मुख्य कारण हैं --
* हिपेटाइटिस 'बी' पॉजिटिव ब्लड ट्रांसफ्यूजन ।
* संक्रमित रक्त से नीडल परिक या जख्म पर रक्त का संपर्क ।
* असुरक्षित यौन सम्बन्ध।
* गर्भवती माँ से शिशु को संक्रमण ।
कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य :
* विश्व में २०० करोड़ लोग हिपेटाइटिस से या तो पीड़ित हो चुके है या पीड़ित हैं, यानि विश्व की ३० % आबादी इससे प्रभावित होती है।
* इनमे से ३५ करोड़ पूरी तरह से ठीक नही होते और क्रॉनिक रोग के शिकार हो जाते हैं। यानि इनमे बीमारी के लक्षण और संक्रमण दोनों बने रहते हैं।
* इन ३५ करोड़ लोगों में से 15-25 % को जीवन में लीवर कैंसर या सिरोसिस होने की संभावना रहती है।
* प्रति वर्ष ६ लाख लोग अकाल इस रोग से काल के ग्रास बन जाते हैं।
* एक और महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि जहाँ ५ साल से ऊपर के बच्चों और वयस्कों में सिर्फ़ ६ % को ही क्रॉनिक हिपेटाइटिस होने की सम्भावना रहती है, वहीं एक साल तक के शिशुओं में ९० % शिशु क्रॉनिक रोग के शिकार होते हैं। ज़ाहिर है कि नवजात शिशुओं को बचाव की सबसे ज्यादा ज़रूरत है।
बचाव के तरीके :
यूँ तो यह रोग ४-६ सप्ताह में अपने आप ही ठीक हो जाता है, लेकिन जैसा कि हमने देखा , छोटे बच्चों में क्रॉनिक होने की सम्भावना अधिक होती है। अगर ६ महीने में भी ठीक नही हुआ तो फ़िर ठीक नही होता और क्रॉनिक फॉर्म हो जाता है।
बचाव में ही सुरक्षा है :
* यदि रक्त की ज़रूरत पड़े तो अधिकृत केन्द्र से ही रक्त प्राप्त करें।
* हिपेटाइटिस 'बी' पोजिटिव व्यक्ति के रक्त से संपर्क न होने दें। न ही यौन सम्बन्ध बनायें ।
याद रखें :
* खता बेवफा से ही नही होती , वफादार भी गुनहगार हो सकते हैं ।
* यानि न सिर्फ़ अनैतिक यौन संबंधों से बचें, बल्कि यदि पति या पत्नी में एक को यह रोग हो गया हो तो , असुरक्षित सम्भोग से बचें। ऐसे में कंडोम का इस्तेमाल अनिवार्य है।
* यदि गर्भवती माँ 'बी' पोजिटिव है तो पैदा होते ही शिशु को हिपेटाइटिस बी' का टीका अवश्य लगवाएं।
बच्चों में टीकाकरण :
अपने नवजात शिशु को पैदाइश के २४ घंटे के अन्दर टीका लगवाएं। तद्पश्ताप, ६ सप्ताह और ६ महीने पर भी टीका लगवाएं ।
याद रखिये बचाव में ही सुरक्षा है।
मेरा रंग दे बसंती चोला, मेरा रंग दे। ये प्रसिद्ध गाना तो सबने सुना होगा।
अंग बसंती, संग बसंती, रंग बसंती छा गया। ये भी आपने सुना होगा।
अब ज़रा सोचिये , यदि कपड़ों के बजाय ये बसंती रंग , अंग अंग पर छा जाए तो क्या हाल होगा।
जी हाँ, हम बात कर रहे हैं , जॉन्डिस यानि पीलिया की , जिसमे शरीर के अंग पीले हो जाते हैं। विशेषकर नवजात शिशुओं में, जिनका पूरा शरीर पीला हो जाता है, यदि जॉन्डिस हो जाए।
जॉन्डिस या पीलिया कोई बीमारी नही है, बल्कि एक बीमारी का लक्षण है, जिसे हिपेटाइटिस ( hepatitis) कहते हैं।
यूँ तो जॉन्डिस के कई कारण होते हैं, लेकिन वाइरल हिपेटाइटिस सबसे प्रमुख कारण है।
वाइरल हिपेटाइटिस के प्रकार : ऐ, बी, सी, डी, और ई ।
क्यों होती है वाइरल हिपेटाइटिस ?
यह एक वायरल संक्रमण है, जो लीवर की कोशिकाओं को नष्ट कर देता है। लीवर में इन्फेक्शन होने से लीवर बढ़ जाता है । इसके साथ साथ रक्त में बिलीरूबिन की मात्रा बढ़ने से पीलिया हो जाता है।
प्रारंभिक लक्षण :
सबसे पहले हल्का बुखार होता है। फ़िर धीरे धीरे आँखें पीली दिखने लगती हैं और पेशाब भी पीला आने लगता है। साथ में भूख न लगना , कमजोरी होना और उल्टियाँ भी हो सकती हैं।
संक्रमण के मुख्यतय दो रूट होते हैं --
एक खाने - पीने के द्वारा --जिससे हिपेटाइटिस 'ऐ' और 'ई'' होती हैं।
दूसरा रूट है ---रक्त द्वारा। ---जिससे हिपेटाइटिस 'बी', 'सी', और 'डी' होती हैं।
इनमे सबसे खतरनाक होती है --हिपेटाइटिस 'बी'।
इसके मुख्य कारण हैं --
* हिपेटाइटिस 'बी' पॉजिटिव ब्लड ट्रांसफ्यूजन ।
* संक्रमित रक्त से नीडल परिक या जख्म पर रक्त का संपर्क ।
* असुरक्षित यौन सम्बन्ध।
* गर्भवती माँ से शिशु को संक्रमण ।
कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य :
* विश्व में २०० करोड़ लोग हिपेटाइटिस से या तो पीड़ित हो चुके है या पीड़ित हैं, यानि विश्व की ३० % आबादी इससे प्रभावित होती है।
* इनमे से ३५ करोड़ पूरी तरह से ठीक नही होते और क्रॉनिक रोग के शिकार हो जाते हैं। यानि इनमे बीमारी के लक्षण और संक्रमण दोनों बने रहते हैं।
* इन ३५ करोड़ लोगों में से 15-25 % को जीवन में लीवर कैंसर या सिरोसिस होने की संभावना रहती है।
* प्रति वर्ष ६ लाख लोग अकाल इस रोग से काल के ग्रास बन जाते हैं।
* एक और महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि जहाँ ५ साल से ऊपर के बच्चों और वयस्कों में सिर्फ़ ६ % को ही क्रॉनिक हिपेटाइटिस होने की सम्भावना रहती है, वहीं एक साल तक के शिशुओं में ९० % शिशु क्रॉनिक रोग के शिकार होते हैं। ज़ाहिर है कि नवजात शिशुओं को बचाव की सबसे ज्यादा ज़रूरत है।
बचाव के तरीके :
यूँ तो यह रोग ४-६ सप्ताह में अपने आप ही ठीक हो जाता है, लेकिन जैसा कि हमने देखा , छोटे बच्चों में क्रॉनिक होने की सम्भावना अधिक होती है। अगर ६ महीने में भी ठीक नही हुआ तो फ़िर ठीक नही होता और क्रॉनिक फॉर्म हो जाता है।
बचाव में ही सुरक्षा है :
* यदि रक्त की ज़रूरत पड़े तो अधिकृत केन्द्र से ही रक्त प्राप्त करें।
* हिपेटाइटिस 'बी' पोजिटिव व्यक्ति के रक्त से संपर्क न होने दें। न ही यौन सम्बन्ध बनायें ।
याद रखें :
* खता बेवफा से ही नही होती , वफादार भी गुनहगार हो सकते हैं ।
* यानि न सिर्फ़ अनैतिक यौन संबंधों से बचें, बल्कि यदि पति या पत्नी में एक को यह रोग हो गया हो तो , असुरक्षित सम्भोग से बचें। ऐसे में कंडोम का इस्तेमाल अनिवार्य है।
* यदि गर्भवती माँ 'बी' पोजिटिव है तो पैदा होते ही शिशु को हिपेटाइटिस बी' का टीका अवश्य लगवाएं।
बच्चों में टीकाकरण :
अपने नवजात शिशु को पैदाइश के २४ घंटे के अन्दर टीका लगवाएं। तद्पश्ताप, ६ सप्ताह और ६ महीने पर भी टीका लगवाएं ।
याद रखिये बचाव में ही सुरक्षा है।
बहुत अच्छी लगी यह जानकारी...... ज्ञानवर्धक........
ReplyDeleteआपके लेख जानकारी युक्त होते हैं , सराहनीय कार्य
ReplyDeleteसर, खान पान में क्या बदलाव करने की जरूरत होती है, इस पर भी रोशनी डालें
ReplyDeleteअजय कुमार जी, अगली मेडिकल पोस्ट में --मिलिएगा मिस्टर एक्स से। सारी जानकारी उसी में।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी जानकारी दी है आपने डाक्टर साहब .......... सभी ब्लॉगेर्स को इससे फायदा होगा ...... आपका बहुत बहुत शुक्रिया ...
ReplyDeleteवाकई बड़ी नामुराद बीमारी होती है ये पीलिया...शादी से ठीक पहले मुझे भी हुआ था...
ReplyDeleteडॉक्टर साहब, ये अंतर्मंथन रात को किसी पार्टी में गया था क्या...सुबह कहीं हैंगओवर में तो नहीं था..
जय हिंद...
पता नही, पर पूरे 12 घंटे बंद रहा.
ReplyDeleteबहुत काम की जानकारी है धन्यवाद्
ReplyDelete... bahut khatarnaak bimaari hai, jaankaari ke liye dhanyvaad !!!!!
ReplyDeleteअच्छी जानकारी॥ पर बसंती और हल्दी के रंग में अंतर होता है नै? :)
ReplyDeleteस्वास्थ्य सम्बंधित जानकारी का आपका यह प्रयास नितांत सराहनीय है, डा० साहब !
ReplyDeleteप्रसाद जी आप ठीक कह रहे हैं। लेकिन हल्दी जितना पीला रंग हिपेताइतिस में नही होता। ऐसा ओब्स्त्रक्तिव जौंडिस में होता है , जिसमे आंखों का रंग हल्दी जैसा पीला होता है। इसमे रूकावट होने की वजह से स्टूल्स का रंग सफ़ेद हो जाता है। और काफी खुजली भी होने लगती है।
ReplyDeleteसर जी बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख है बहुत कुछ नया जानने को मिला बधाई ।
ReplyDeleteसर जी बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख है बहुत कुछ नया जानने को मिला बधाई ।
ReplyDeleteडा.सा. ~ आपने लिखा कि पीलिया के कई कारण हो सकते हैं...और ए से इ तक वाइरस के कारण जिनमें केवल कांसोनान्ट्स बी, सी, और डी रक्त के रूट से, जबकि वोवेल वाले खाने पीने के...
ReplyDeleteकैसे पता चलेगा आम आदमी को कि उसे डरने कि कोई आवश्यकता नहीं है? सुई तो खैर लगवा ही लेगा.
जे सी जी, यहाँ डॉक्टर वाली सूई की बात नही हो रही। ये उस सूई की बात है जो नशेडी नशे की दावा लगाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। वैसे डॉक्टर की सूई भी इन्फेक्तिव हो सकती है। लेकिन आजकल डिस्पोजेबल सूइयां ही इस्तेमाल की जाती हैं।
ReplyDeleteज्ञानवर्धक आलेख
ReplyDeleteअच्छी जानकारी देती बढ़िया पोस्ट .... आभार
ReplyDelete