दो पोस्ट --पहली ---परिवार के मुखिया के जन्मदिन की शुभकामनाएं ---दूसरी ---ब्लॉग परिवार के एक सदस्य की कुशल क्षेम । दोनों के ४०० से ज्यादा पाठक और ५० से ज्यादा शुभकामनाएं। सारा ब्लॉग जगत एकजुट होकर एक साथ। यही है ब्लोगिंग का एसेंस। यही है ब्लोगिंग का उद्देश्य । ब्लोगिंग महज़ एक मनोरंजन का साधन ही नहीं, बल्कि देशवासियों को एक करने का एक सशक्त माध्यम भी है।
और इसके लिए आभार नहीं, आप सभी बधाई के पात्र हैं।
इसी ख़ुशी में चलिए आज आपको सैर कराते हैं ओंटारियो कनाडा में स्थित एल्गोन्क़ुइन प्रोविंसियल पार्क की।
प्रस्तुत है इस पार्क में बिताई तीन रातों का विवरण ---कैम्पिंग इन एल्गोन्क़ुइन पार्क।
टोरोंटो से करीब ३०० किलोमीटर दूर, ७७०,००० हैक्टेयर में फैले इस पार्क में जाने के लिए टोरोंटो से नोर्थ की ओर हाइवे नंबर ४०० से होते हुए , हंट्सविले होकर जाया जा सकता है। इस पार्क के दक्षिण छोर से होता हुआ एकमात्र हाइवे नंबर ६० , पार्क के अन्दर से होता हुआ जाता है। बाकी सारा पार्क खाली जंगल है।
जंगल में भालू, भेड़िये , हिरन और मूज़ नाम के जंगली जानवरों की भरमार है।
हम ६ दोस्तों की मंडली, ६ कारों में परिवार समेत , रवाना हुए, कैम्प के लिए जहाँ हमारी ३ दिन की बुकिंग थी।
हाइवे नंबर ६० पर , कैम्पिंग साईट की ओर जाते हुए।
लेकिन रास्ते में भारी बारिस होने लगी। ऐसे में कैम्प साईट पर जाना उचित नहीं लगा। इसलिए फैसला हुआ की पहली रात एक गाँव के किनारे बने रिवरव्यू मोटल में गुजारी जाये।
मोटल के बाहर। बारिस में ट्रेकिंग ---रेनकोट ---नायग्रा फाल्स की टिकेट पर रिटर्न गिफ्ट थी।
तो पहली रात हमने यहीं गुजारी। रात में बोनफायर हुई, गाने, चुटकले, कवितायेँ और मौज मस्ती।
अगले दिन सुहानी धूप खिली थी। दोपहर तक सब पहुँच गए , कैम्प साईट पर।
कनाडियन लोग कैम्पिंग पर जाने के लिए ये पिकनिक वैन रखते हैं। इनमे ठहरने का पूरा इंतजाम होता है --बेडरूम, किचन, बाथरूम, ड्राइंग रूम , यहाँ तक की बालकनी भी।
लेकिन हम ठहरे शुद्ध हिन्दुस्तानी --जाते ही केयरटेकर से कहा, भैया हम तो तम्बू गाड़ेंगे ---जगह बता दो।
वहां तम्बू गाड़ने के लिए प्लाट बने हुए थे । जी हाँ, बिजली और पानी की सप्लाई के साथ।
तो भई , तम्बू गड़ गए और खटोला भी बिछ गया।---- पीछे घना जंगल।
फिर धीरे धीरे शाम होने लगी और होने लगा जंगल में मंगल।--- महिलाएं खाना बना रही थी ।
और मर्द लोग बोनफायर जला कर हाथ सेक रहे थे। बाएं से--- संजय, प्रदीप, डॉ वर्मा , डॉ दराल और राज।
और फिर चाँद निकल आया। जून -जुलाई में वहां दिन साढ़े नौ बजे छिपता है और अँधेरा दस बजे तक होता है।
किसी ने गाना सुनाया --
निकला है गोरा गोरा चाँद से सजनवा , कर के जतन कोई आजा।
जागूं सारी सारी रात रे सजन, मैं तो घड़ी घड़ी देखूं दरवाज़ा।
वो रात तो कट गयी, लेकिन अगली रात क्या हुआ ?
कौन आया ?
ये जानने के लिए अगली पोस्ट पढना मत भूलियेगा।
नोट : यह पोस्ट समर्पित है --डॉ विनोद वर्मा और मीना वर्मा को --जिनकी आज शादी की सालगिरह है।
आप चाहें तो उन्हें अपनी शुभकामनाएं यहाँ दे सकते हैं।
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वाह! संस्मरण पढ़कर और चित्रों को देखकर मजा आ गया!
ReplyDeleteअगली कड़ी का इंतजार है।
डॉ विनोद वर्मा और मीना वर्मा को शादी की सालगिरह की बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया चल रहा है कैम्पिंग का विवरण..आगे इन्तजार है.
विनोद और मीना जी को विवाह-जयन्ती पर शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteबहुत ही रोचक यात्रा वृत्तांत डा० साहब , यह सब देख मेरा मन भी कहीं भाग जाने को कुचाले भरने लगता है, मगर क्या करे, जीवन की मजबूरियां है, वो भी एक दो नहीं ढेर सारी ! खैर, डॉ विनोद वर्मा और मीना वर्मा जी को शादी की साल गिरह की हार्दिक शुभ-कामनाये !
ReplyDeleteडा. दराल जी ~ सबसे पहले डॉ विनोद वर्मा और श्रीमती मीना वर्मा को उनकी शादी की सालगिरह पर बहुत-बहुत बधाई! इश्वर उन्हें चिरायु और प्रसन्नता सदैव प्रदान करे!
ReplyDeleteइस में कोई शक नहीं लगता कि आपकी कनाडा यात्रा सुखद रही. ख़ुशी बांटने से बढती है और दुःख कम होता है! धन्यवाद्!
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत -२ हार्दिक शुभ कामनाएं
लग रहा है जैसे किसी दूसरी दुनिया में पहुंच गये हों।
ReplyDelete------------------
जिसपर हमको है नाज़, उसका जन्मदिवस है आज।
कोमा में पडी़ बलात्कार पीडिता को चाहिए मृत्यु का अधिकार।
बहुत सुंदर विवरण। आप ने नहीं बताया कि सूरज उगता कब है?
ReplyDeleteशुभकामनाएँ वर्मा दंपत्ति को
ReplyDeleteधन्यवाद आपका चित्रों और वर्णन के लिए
यात्रा का बहुत सुन्दर चित्रण सहित उम्दा जानकारीपूर्ण आलेख ..
ReplyDeleteडॉ विनोद वर्मा और मीना वर्मा को शादी की सालगिरह पर बधाई व् शुभकामना .
आभार .
बहुत बडिया विवरण है तस्वीरें भी बहुत अच्छी हैं लगता है आपके साथ ही हम भी ापनी आँखों से सब कुछ देख रहे हैं धन्यवाद और शुभकामनायें
ReplyDeleteहम तो कह रहे हैं....
ReplyDeleteआधा है चंद्रमा, रात आधी
रह न जाए तेरी मेरी बात आधी :)
बढिया यात्रावृत्त, सुंदर दृष्य॥
बहुत बढिया संस्मरण और चित्रों का तो जबाब नहीं .. डॉ विनोद वर्मा और मीना वर्मा को शादी की सालगिरह की ढेरो बधाई और शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी यह सैर..... तस्वीरें बहुत खूबसूरत हैं....
ReplyDeleteडॉ विनोद वर्मा और मीना वर्मा को शादी की सालगिरह की बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteआपका यह संस्मरण बहुत ही सुंदर चित्रों और जानकारी से भरा हुआ है और बेहद रोचक लग रहा है, बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
बिलकुल सही कहा आपने, जे सी साहब। आभार।
ReplyDeleteद्विवेदी जी, वहां गर्मियों में सूर्योदय ५-३० पर ही हो जाता है। इसलिए घूमने के लिए जून जुलाई के दिन बेस्ट रहते हैं। स्कूलों में भी जुलाई अगस्त की छुट्टियाँ रहती है , ताकि सब मिलकर अच्छे मौसम को एन्जॉय कर सकें।
सर्दियों में तो मौसम बड़ा डिप्रेसिंग हो जाता है।
प्रसाद जी, बात अधूरी नहीं रहेगी। अगली पोस्ट में आपसे एक बहुत बड़ा सवाल पूछेंगे। ज़वाब के लिए तैयार रहिये।
गोदियाल जी, आपकी बात भी सही है, लेकिन ढूँढो तो रास्ता मिल ही जाता है।
डॉ विनोद वर्मा और मीना वर्मा की शादी की सालगिरह पर आप सबका आशीर्वाद, बहुमूल्य है।
बहुत सुन्दर संस्मरण व चित्र। शुभकामनाएं।
ReplyDeleteVinod g or Meena g ko Annant Shubhkamnaen....
ReplyDeleteyatra vivran bhi badiya hai....
डॉ विनोद वर्मा और मीना वर्मा को
ReplyDeleteशादी की सालगिरह की बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ.
संस्मरण पढ़कर और चित्रों को देखकर मजा आ गया!
सचित्र सैर आनन्द दायक
ReplyDeleteखूबसूरत यात्रा वर्णन। डाक्साब, आपका ईमेल आईडी बताइयेगा। मेरा है wadnerkar.ajit@gmail.com
ReplyDeleteसबसे पहले वर्मा दम्पति को बधाई फिर आपको. इतनी अच्छी सैर करवाने के लिए "चाँद आहें भरेगा फूल दिल थाम लेंगे "बहुत सुंदर चित्र
ReplyDelete'
वाह डा. साहब आपके साथ हम भी इन खूबसूरत वादियों में घूम लिए , चित्रो ने तो मन मोह लिया है अब अगली कडी की प्रतीक्षा बडी बेसब्री से रहेगी ..
ReplyDeleteApke sath-sath ham bhi yatra ka ghar baithe aanand le rahe hain,Dr, vinod varma aur mina varma ko shadi ki salgirah ki shubhkamnayen. break ke bad intjar hai.
ReplyDeleteआपके साथ साथ हमारी भी कैम्पिंग हो रही है आगे के वर्णन की प्रतीक्षा हे । विनोद और मीना वर्मा जी को बहुत बधाई और शुभ कामनाएं ।
ReplyDeleteare vah ghar bathe-bathe kanada ki sair maja aa gaya..
ReplyDeletebahut dhanyavad Dr. sahab.
उफ़!...ये क्या होता जा रहा है मुझे?...आपके फोटो देखकर अपने दिल में भी विदेश यात्रा के सोए हुए अरमां जागने से लगे हैं
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