पिछली पोस्ट से आगे ----
कैम्प का दूसरा दिन हँसते गाते खाते पीते गुजर गया।
इस बीच करीब ४ बजे हम पास के जंगल में एक ट्रेल पर ट्रेकिंग के लिए पहुँच गए। लेकिन मुश्किल से १०० मीटर ही जा पाए क्योंकि वहां के निवासी विदेशी मच्छर हमपे ऐसे टूट पड़े जैसे दिल्ली में फिरंगियों को देखकर भिखारी बच्चे चिपट जाते हैं।
फर्क बस इतना था की जहाँ स्वदेशी भिखारी मैले कुचैले , पतले दुबले और कुपोषित नज़र आते हैं, वहीँ कनाडियन मच्छर वहां के लोगों की तरह खाते पीते और ओबीज़ दिखते हैं। इसलिए उनको हमारा खून पीने की इच्छा नहीं थी,
बल्कि उनकी सीमा में घुसपैठ करने पर एतराज़ था।
रात १२ बजे के करीब पार्क का केयरटेकर आया और बोला -ज़नाब, अब सो भी जाइए। आपने तो पटियाला माहौल बना रखा है। अब हम कोई अंग्रेज़ तो थे नहीं की बैठ गए एक जगह और तकते रहे शून्य में घंटों तक, और हो गई पिकनिक। भई, शुद्ध हिन्दुस्तानी बन्दे थे सब के सब ।
तो बिना रोला पाए कैम्पिंग का क्या मज़ा।
लेकिन गोरा छोरा जाते जाते एक बात कह गया जिसने हम सब को हिला दिया। बोला --ज़नाब सोने से पहले गार्बेज को ज़रूर ठिकाने लगा देना, वर्ना यहाँ भालू भी आ जाते हैं। और वो खाने की गंध से ही आकर्षित होते हैं।
यहाँ पर हमने एक गलती कर दी। गार्बेज का बोरा उठाकर १०० मीटर दूर जंगल के किनारे रख आये ताकि भालू आये और खाकर चला जाये।
सुबह गोरे जी फिर आ धमके और बोले -हे आई ऍम नोट यौर गार्बेज बॉय। शुक्र है की भालू नहीं आया वर्ना वो आपके सारे टेंट्स को उजाड़ देता। गार्बेज के लिए एक सिक्योर्ड जगह है जहाँ भालू नहीं आ पाता।
खैर हमने राहत की सांस ली की आज तो बच गए और अगले प्रोग्राम के लिए तैयार हुए।
तीसरा दिन :
पिछले दिन के असफल प्रयास के बाद , आज हमारा प्रोग्राम बना , ट्रेल पर जाने का। करीब दस किलोमीटर दूर , एक ट्रेल थी, जिसका नाम था --विस्की रैपिड्स ट्रेल। २.१ किलोमीटर की ये ट्रेल घने जंगल से होती हुई एक नदी तक पहुंचती है।
कैम्प कमांडर डॉ वर्मा , ट्रेल पर मार्गदर्शन करते हुए ---
करीब एक किलोमीटर चलने के बाद , १०० मीटर नीचे उतरकर हम पहुंचे इस नदी के किनारे --
नदी के पार घना जंगल था। ऐसा लग रहा था जैसे अभी कोई शेर पानी पीने आ जायेगा।
इस बीच बारिस फिर आ गयी थी। इसलिए आगे न जाने का ही फैसला हुआ, और हम मुड लिए वापस कैम्प की ओर।
उस शाम हलकी हलकी बारिस होती रही। ये आखरी शाम थी, इसलिए सभी एन्जॉय करने के मूड में थे। फिर फिरंगी बारिस से कौन डरने वाला था। सो महफ़िल जम गई एक टेंट में जो डबल साइज़ का था। और जम गए २५ हिन्दुस्तानी, एक बार फिर कनाडा के जंगल में।
महफ़िल शुरू होने से पहले फैसला किया गया की यदि आज भालू आ जाता है तो सब मिल कर शोर मचा देंगे। ऐसा करने से भालू डर कर भाग जायेगा। ये बात गोरे केयरटेकर ने बताई थी।
कविताओं , जोक्स और गप-शप के बाद कैम्प की स्प्रिचुअल लीडर अमिता जी ने एलान किया की--- आज वो एक सवाल पूछना चाहती हैं।
और उन्होंने सवाल पूछा -- आप जिंदगी में सबसे ज्यादा किसे प्यार करते हैं ?
क्योंकि हम ग्रुप में मेहमान थे, इसलिए सबसे पहले हमी से कहा गया ज़वाब देने के लिए।
मैंने कहा ---मैं अपनी बेटी से सबसे ज्यादा प्यार करता हूँ।
सब एक बार चुप हो गए। बेटे ने तो ऐसे देखा जैसे उसके साथ धोखा हो गया हो।
खैर मैंने बताया की भई मुझे एक कवि के बोल याद आ रहे हैं, जिसने कहा था की ---
उस घर में घर का अहसास नहीं होता
जिस घर में बेटी का वास नहीं होता।
साथ ही मैंने कहा की जिनके बेटी नहीं है, बस बेटे हैं, वो निराश न हों। उन्हें बहु को ही बेटी समझकर प्यार देना चाहिए। इस बात पर अनिल भाई , जिनके दो बेटे हैं, सुनकर खुश हो गए।
अब बारी आई श्रीमती जी की। उन्होंने बताया की वो अपने माता -पिता को सबसे ज्यादा प्यार करती हैं।
जब बेटे की बारी आई , तो उसने बड़े दिप्लोमेतिकली कहा --मैं अपनी फैमिली को प्यार करता हूँ।
इसके बाद तो जैसे ये स्टेंडर्ड ज़वाब बन गया। सभी को यही ज़वाब सेफ लगा।
अभी इसी बात पर बहस हो ही रही थी की अचानक कुछ सरसराहट सी हुई। फिर टेंट का एक हिस्सा थोडा हिला।
थोड़ी देर बाद गुर्राने की आवाज़ --बिलकुल साफ़, सभी ने सुनी।
अचानक गुर्राहट तेज़ हो गई। अब तो सब का ये हाल की काटो तो खून नहीं। एक पल के लिया सब स्तब्ध रह गए। डॉ वर्मा ने तो गाडी का रिमोर्ट सायरन पकड़ा और बजाने के लिए तैयार।
उस वक्त सब भूल गए की कौन किसे प्यार करता है।
डर के मारे सब की घिग्घी बंध गई थी। अगर सचमुच भालू आ गया तो किसको पहले पकड़ेगा ?
तभी ग्रुप के युवा बच्चों ने जोर जोर से हँसना शुरू कर दिया।
और हमें मालूम पड़ा की ये हरकत संजय भाई की थी, जो न जाने कब टेंट से बाहर खिसक गया था।
गज़ब की मिमिकरी थी संजय भाई की।
अब तो सबकी सांस में सांस आई।
अंत में यही फैसला हुआ की सब खुद से सबसे ज्यादा प्यार करते हैं।
हमने भी यही माना --
आदमी को खुद से प्यार करना चाहिए, ताकि वो इस लायक बन सके की अपने सम्बन्धियों को, समाज को और अपने देश को प्यार कर सके। उनके प्रति अपना फ़र्ज़ पूरा कर सके।
इस विषय में आपका क्या कहना है --बताइयेगा ज़रूर।
Saturday, December 19, 2009
एल्गोन्क़ुइन कैम्प में उठा एक सवाल ---आप सबसे ज्यादा किसे प्यार करते हैं ---
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दराल सर,
ReplyDeleteलेटलतीफ़ी के लिए माफ़ी...कैंप की दोनों पोस्ट एक सांस में पढ़ गया...फोटो लाजवाब, संस्मरण लाजवाब...
सब कुछ बताया आपने बस टीचर को छुपा गए...
और जहां तक प्यार करने की बात तो सबसे ज़्यादा प्यार अपने दिल से करना चाहिए...क्योंकि दिमाग खुदगर्ज़ी सिखाता है और दिल कभी किसी दूसरे का दिल दुखाने की गवाही नहीं देगा...
जय हिंद...
ताकि वो इस लायक बन सके की अपने सम्बन्धियों को, समाज को और अपने देश को प्यार कर सके। उनके प्रति अपना फ़र्ज़ पूरा कर सके। -ये बात जंचती है....
ReplyDeleteमस्त रहा आपका कैम्पिंग वृतांत!!
सही कहा आपने शुरुआत अपने से ही होनी चाहिए . सुंदर चित्र और वर्णन
ReplyDeleteसही बात है जब आपदा आन पड़ती है तो सबसे पहले आदमी खुद को ही सुरक्षित करता है और जब अपने को सुरक्षित महसूस पाता है तभी वह किसी दूसरे मतलब कि अपने न्यारे प्यारे को प्यार करता है। मतलब अपनी फ़ैमिली को :)
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब वर्णन किया है आपने इस कैंपिंग का. बहुत रोचक लेखन शैली है आपकी. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
आदमी को खुद से प्यार करना चाहिए, ताकि वो इस लायक बन सके की अपने सम्बन्धियों को, समाज को और अपने देश को प्यार कर सके। उनके प्रति अपना फ़र्ज़ पूरा कर सके। वाह कितनी सुन्दर बात कही जब तक वो खुद से प्यार नहीं करेगा तब तक और किसी को प्यात कर ही नहीं सकता। आपका ये सफर बहुत अच्छा लग रहा है धन्यवाद और शुभकामनायें
ReplyDeleteआपकी दोनो पोस्ट आज ही पढ़ पाया ......... आपके लाजवाब केमपिंग का विवरण पढ़ कर मज़ा आ गया ......... साथ साथ आपने चत्रों ने तो कमाल कर दिया ..... खोब्सूरत है बहुत ........... और हाँ आपका निष्कर्ष ठीक है की इंसान खुद को सबसे ज़्यादा प्यार करता है ............ पर ये बात तब तक नही पता चल पाती जब तक सिर पर नही पढ़ती ......
ReplyDeleteप्यार !!
ReplyDeleteवो क्या होता है ???
हा हा हा हा
दराल साहब, आइन्दा कभी कनाडा आयें तो हमारे घर भी तशरीफ़ लाइयेगा...
ख़ुशी होगी मुझे...
कम्पिंग वृतांत रोचक लगा...
शुक्रिया...
दोनों पोस्ट एक साथ ही पढ़ी....बहुत ही सुन्दर विवरण...तस्वीरें भी बहुत ख़ूबसूरत हैं...वो चाँद और नदी की तस्वीरों ने तो मन मोह लिया....और आपलोगों की टेंट और जलते अलाव देखकर पता लग रहा है कितना आनंद आया होगा...
ReplyDeleteआपकी दूसरी पोस्ट पढ़ते हुए ही मैं सोच ही रही थी कि अपने विचार लिखूंगी कमेंट्स में और आगे आपने वही लिख दिया....मेरे एक अच्छे मित्र हैं जो नामी मनःचिकित्सक हैं...उनसे अक्सर अच्छी बहस हो जाती है ..एक बार उन्होंने यही सवाल किया था..और मैंने झट जबाब किया था."अपने बच्चों को"...और उन्होंने कहा था.."गलत,आप सबसे ज्यादा प्यार अपने आपको करते हैं"...उनसे आगे बहस नहीं की.पर आज आपने अच्छी व्याख्या दी..कि खुद से ही प्यार करना चाहिए.
डा. दराल साहिब ~ आपने वही निष्कर्ष निकाला जो पहले हमारे पिताजी को अपने घर से लिखे पत्र की पहली पंक्ति में लिखा जाता था - जिसे पढ़ हम बच्चे हँसते थे, जिसका हिंदी में रूपांतर है: अपना ध्यान रखना/ तभी हमें भी पाल सकोगे!
ReplyDeleteआदमी को खुद से प्यार करना चाहिए
ReplyDelete--एकदम सही कहा है आपने जो खुद से प्यार नहीं कर सकता वह दूसरे को प्यार क्या देगा सुंदर लेख आपका भ्रमण और भ्रमण का संस्मरण बेहद रोचक है.
सही है.... हर आदमी खुद से ही अधिक प्यार करता है:)
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया बात कही आपने कि आदमी को खुद से प्यार करना चाहिए, ताकि वो इस लायक बन सके की अपने सम्बन्धियों को, समाज को और अपने देश को प्यार कर सके। उनके प्रति अपना फ़र्ज़ पूरा कर सके
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