घर के आँगन में एक २५ -३० वर्ष की महिला ज़मीन पर बैठी जोर जोर से हिल रही है और हाथ पैर पटकती हुई सर को गोल गोल घुमाती हुई भर्राई हुई आवाज़ में बडबडा रही है --मैं सबको देख लूँगा ---अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी--- आज से हर सोमवार मेरे लिए हलवा पूरी बनाया करो---- पहले घर की बहु को खिलाओ , फिर सब लोग खाओ--वगैरह वगैरह .
सारे गाँव में खबर फ़ैल जाती है --फलाने की बहु में फलाना दादा आ गया .
अक्सर ऐसे किस्से सुनने में आते रहते थे . एक परिवार के पूर्वज जो रिश्ते में हमारे परदादा लगते थे --अक्सर उनके नाम का भूत उन्ही के परिवार के किसी न किसी व्यक्ति में आ जाता था . अक्सर वह व्यक्ति घर की कोई बहु होती थी .
फिर गाँव के ओझा को बुलाया जाता . ओझा गाँव के निम्न जाति के समुदाय से होता था जिसका दावा था की उसने शमशान में घोर तपस्या करने के बाद भूतों से छुटकारा दिलाने की सिद्धि प्राप्त की है .
वह आता और अपने तंत्र मन्त्र से बहु में आए भूत को बोतल में बंद कर ले जाता और दबा देता कहीं दूर ज़मीन के नीचे .
यह और बात है की कुछ दिन बाद वही भूत फिर किसी बहु के शरीर में प्रवेश कर तहलका मचा देता .
शहर में आने के बाद मैं अक्सर सोचा करता --यहाँ शहर में कभी किसी में भूत क्यों नहीं आता ?
दृश्य २ : ( अस्पताल के आपातकालीन विभाग में )
एक २५-३० वर्षीय महिला को उसके रिश्तेदार लेकर आते हैं . महिला प्रत्यक्ष में बेहोश दिख रही है लेकिन हाथ पैर पटक रही है . टेबल पर लिटाकर उसके पतिदेव जुट जाते हैं उसकी सेवा करने में --हाथ पैरों को मसल रहे हैं . दूसरा रिश्तेदार आकर घबराई आवाज़ में कहता है --डॉक्टर जल्दी कीजिये --देखिये इसे क्या हुआ --बेहोश हो गई है --बैठी बैठी अचानक बेहोश हो गई . पूछने पर पता चलता है की पति पत्नी में कुछ कहा सुनी हुई , उसके बाद वह बेहोश हो गई .
पति बताता है --इसको अक्सर ऐसे दौरे पड़ जाते हैं .
पूरा मुआयना करने के बाद डॉक्टर उसका मर्ज़ समझ जाता है . वह उसे एक मेडिकल ईत्र सुंघाता है . महिला पहले तो साँस रोक लेती है लेकिन जल्दी ही उसका साँस टूट जाता है और वह आँख खोल देती है और होश में आ जाती है . उसकी आँखों के कोर से आंसू की एक बूँद बह निकलती है .
रोगी आज के लिए ठीक हो गई है .
डॉक्टर उसके पति को समझाता है --जितनी सेवा तुम आज कर रहे थे , घर में यदि इसकी आधी भी करो तो यह ठीक रहेगी . इसका ख्याल रखा करो .
निष्कर्ष :
मनुष्य के व्यक्तित्त्व पर परिस्तिथियों का बहुत प्रभाव पड़ता है . बहुत सी बातें हमारे सब्कौन्शिय्स ( अर्धचेतन ) मस्तिष्क में जमा होती रहती हैं . विपरीत परिस्तिथियों में ये बातें अन्जाने ही बाहर आने लगती हैं . अक्सर अज्ञानतावश हम इन्हें कोई विकार मान लेते हैं . इन्ही बातों का नाजायज़ फायदा उठाकर कई तरह के ओझा , बाबा , तथाकथित साधू महात्मा तंत्र मन्त्र का नाटक कर सीधे सादे लोगों को बेवक़ूफ़ बनाते हैं .
सच तो यह है --भूत प्रेत नाम की कोई चीज़ होती ही नहीं .
ऐसे हालातों में अक्सर तीन तरह के रोगी आते हैं :
१ ) मैलिंगर्स :
ये वे रोगी होते हैं जो जान बूझ कर बीमार होने का नाटक करते हैं . इसका सबसे कॉमन उदहारण है --जेब कतरे .
यदि पकडे जाएँ तो उनका नाटक देखने लायक होता है .
वैसे बड़े बड़े नेता , धर्म गुरु या पहुंचे हुए लोग भी इस विद्या में कुछ कम नहीं .
२ ) फंक्शनल :
चिकित्सा की भाषा में ये वे रोगी होते हैं जैसा दृश्य १ और २ में दिखाया गया है .
मन में दबी हुई भावनाओं और इच्छाओं को लिए ये लोग अक्सर विपरीत परिस्तिथियों में बीमार होने का बहाना करते हैं लेकिन इनको पता नहीं होता की ये बहाना कर रहे हैं . यानि ये अर्ध चेतन अवस्था में बीमार होते हैं . कभी कभी इसका इलाज करना भी बहुत सरल नहीं होता जैसे हिस्टीरिया .
इन्हें सायकोथेरपी की ज़रुरत होती है .
हालात सुधरने पर सुधार की आशा की जा सकती है .
३) सिजोफ्रेनिक :
ये वास्तव में मानसिक रोगी होते हैं . अक्सर इनका रोग हालातों पर निर्भर नहीं करता . लेकिन फिर भी हालात का थोडा रोल रह सकता है . इन्हें यथोचित उपचार द्वारा ही ठीक किया जा सकता है . इन्हें पागल कहना या पागल समझ कर दुत्कारना सही नहीं .
निश्चित ही दुनिया का कोई ओझा , बाबा ,या सिद्ध पुरुष इनका इलाज नहीं कर सकता. इनके धोखे में न आएं .
रोचक !
ReplyDeleteकुछ प्रतिक्रियाएं पढ़ने के बाद फिर आता हूं …
आज पूरे 36 घण्टे बाद ब्लॉग पर आना हुआ!
ReplyDelete--
आपका प्रहसन पढ़ा।
अच्छा लगा!
bhoot nachta rhega ourat ke sir pr jb tk vo anpadh rhegi . kya kbhi pdhilikhi ourat ko bhoot ko apne sir pr mndit krte dekha hai kisi ne ? aapka lekh bhut hi achchha hai lekin use pdhalikha tbka hi mnn kr rha hai . ye ashikshito tk kaise phuche taki unme bhi jagrookta aaye our ve is bhrm ko sire se ukhad fenke .
ReplyDeleteaapke shikshaprd lekho ka hmesha swagt rhega .
बहुत अच्छी पोस्ट
ReplyDeleteमुझे इस तरह के केसेज में ज्यादा तो फर्जी और उसके बाद मानसिक परेशानियां ही लगती हैं, कुछ चीजें अनसुलझी क्यों रह जाती हैं शायद यही से वाद विवाद शुरू होता हो .. खैर जो भी हो ..... इस पोस्ट के लिए आभार आपका . बहुत अच्छा विश्लेषण है
ReplyDeleteबढ़िया विश्लेषण ...नयी जानकारी ....
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें आपको !
गाँव की कहानियाँ तो गजब ही होती हैं भूत प्रेतों के विषय में। कभी-कभी मजबुरी में बहुओं को नाटक करना पड़ता है,सास को सबक सिखाने के लिए। तभी तो भूत कहता है, कि सारी बहुओं को हलवा खिलाओ। सास घी-बूरा ताले में रखती है और बहुओ का हलवा खाने का मन तो दादा को बुलाना पड़ता ही है।
ReplyDeleteअब तो ये बातें पुरानी हो गयी, अब के भूत कूछ नयी डिमांड करते होगें, जैसे सारी बहुओं के लिए मो्बाईल सेट लेकर आओ,इनके रुम में एलसीडी लगवाओ, डिश टीवी, लगवाओ वगैरा वगैरा।
कभी कभी तेज बुखार में भी मरीज ऊल-जलूल बोलता है, उसे भी भूत या दैवीय प्रकोप समझ लिया जाता है।
"शहर में आने के बाद मैं अक्सर सोचा करता --यहाँ शहर में कभी किसी में भूत क्यों नहीं आता ?"
ReplyDeleteएक म्यान में दो तलवारे नहीं रह सकती, डा० साहब ! :) Jokes apart, अच्छा ज्ञानवर्धक लेख !!
ज्ञानवर्धक जानकारी !
ReplyDeleteआभार आपका !
बहुत बढ़िया विश्लेषण. कई बार गांवों में औरतों / बहुओं की मजबूरी उन्हें इस तरह के नाटक करने पर मजबूर कर देती है.जिससे वे घर वालों के अत्याचारों से छुटकारा पा पायें. या कुछ सुविधाएँ प्रेत के नाम पर पा सकें.
ReplyDeleteक्या अमोनियाँ सुघाया था ?
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ReplyDeleteसच्ची बात तो ये है कि भूत, प्रेत, जिन्द, देवता आदि सभी होते हैं। दिक्कत ये है कि हम उन्हें गलत स्थान पर तलाशते रहते हैं। हम तलाशते हैं, और जब वहाँ वे नहीं मिलते हैं तो मानते हैं कि वे अदृश्य हैं। मसलन यहाँ जो महिला सिर हिला रही थी, लोग उस के भीतर भूत को तलाशते हैं और उसे बाहर निकालना या भगाना चाहते हैं। लेकिन वह तो वहाँ होता ही नहीं है। लोगों की इस मानसिकता का कि भूत महिला के भीतर है औझा वगैरा लाभ उठाते हैं। क्यों न उठाएँ?
ReplyDeleteभूत प्रेत तो उस महिला में भूत की भावना करने वाले लोगों के दिमागों में भरे पड़े हैं। इन भूत-प्रेतों से निजात पाने के लिए उन लोगों के दिमागों से भूत-प्रेत आदि निकालने होंगे जिन के अन्दर उन्हों ने घर कर रखा है। यदि ये कोशिश की जाए तो जल्दी ही धरती को भूत-प्रेत विहीन किया जा सकता है।
राजवंत जी , अशिक्षित तक कैसे पहुंचे --बड़ा मुश्किल सवाल है . इतना आसान नहीं है इन लोगों को समझाना . तभी तो जनसंख्या भी तेजी से बढ़ रही है .
ReplyDeleteलेकिन अफ़सोस तो तब होता है जब पढ़े लिखे भी इन ढकोसलों से अछूते नहीं रह पाते . बस उनका रूप भिन्न होता है .
ललित जी , भूत उतारने के नाम पर जो अत्याचार किये जाते हैं उन्हें देखकर तो यही लगता है की नाटक बहुएं नहीं बल्कि घरवाले कर रहे हैं . जो भी हो इस विषय में अज्ञानता कूट कूट कर भरी है लोगों में .
ReplyDeleteहा हा हा ! गोदियाल जी , जोक अच्छा है .
अरविन्द जी , कहाँ देखा ?
बहुत सही कहा है द्विवेदी जी . लेकिन लोगों के दिमाग से भूत प्रेतों को निकालना आसान भी तो नहीं .
ReplyDeleteसही कह रहे हैं ,केवल मन का वहम है.
ReplyDeleteडॉक्टर दराल जी, क्षमा प्रार्थी हूँ लम्बी टिप्पणी के लिए!
ReplyDeleteइसको समझने के लिए मस्तिष्क की कार्य विधि को पहले समझना होगा (जैसे मैंने प्रयास किया है) प्राचीन ज्ञानी 'हिन्दुओं' के कथन आदि को 'लाइन के बीच' पढ़कर... तभी शायद 'हम' जान सकते हैं कि 'हम' सभी भूतनाथ शिव के भूत को प्रदर्शित करते प्रतिबिम्ब अथवा प्रतिमूर्ति हैं :)
उनके अनुसार, यद्यपि 'हम' सभी योगी हैं (शक्ति, और शक्ति के 'मिटटी' में परिवर्तित रूप के योग से बने), किन्तु 'हम' सभी 'अपस्मरा पुरुष' हैं, यानी भुलक्कड़ जो अपना भूत भूल चुके हैं... और दूसरी ओर 'पहुंचे हुवे' योगी, अथवा 'सिद्ध पुरुष' (ऑल राउंडर, अथवा सर्वगुण संपन्न), कह गए "शिवोहम! तत त्वम् असी"! यानि 'मैं' ('विष' का विपरीत यानि) अमृत 'शिव', अर्थात परमात्मा हूँ, और (यद्यपि) आप भी हो (किन्तु आप यदि इसे समझ नहीं पा रहे हो तो आपको अपने भीतर ही उपलब्ध आठ चक्रों में भंडारित पूर्ण ज्ञान को अपने मस्तिष्क तक एक बिंदु पर संचित करना होगा, निराकार नादबिन्दू से साक्षात्कार करने हेतु)...
'आधुनिक वैज्ञानिक', अर्थात खगोलशास्त्री भी जब ब्रह्माण्ड के अनंत शून्य और उसके भीतर असंख्य साकार स्वरुप गैलेक्सियों, और हरेक गैलेक्सी के असंख्य तारों और ग्रह आदि पिंडों से बना जान 'हमें' बताते हैं कि प्रकाश कि गति ३ लाख किलो मीटर प्रति सैकिंड है और सूर्य की शक्ति दायिनी किरणों को पृथ्वी तक पहुँचने में ८ मिनट (४८० सैकिंड) लगते हैं... और जो तारे पृथ्वी से बहुत दूर ब्रह्माण्ड में कहीं उपस्थित हैं तो उनकी दूरी प्रकाश-वर्ष (लाईट इअर), यानि जितनी डोरी प्रकाश पृथ्वी तक पहुँचने में लेता है, उसके द्वारा दर्शायी जाती है... जिस कारण यह संभव है कि कोई तारा विशेष यदि उस बीच मर भी गया हो, तो उसका प्रकाश हम देख रहे हों, यानि उसका भूत!
भाई साहब भूत उतारने की एक सच्ची कहानी सुनाऊंगा दो चार दिन में, बड़ी मजेदार है।
ReplyDeleteअच्छी ज्ञानवर्द्धक पोस्ट ...
ReplyDeleteनवरात्रि जैसे त्यौंहारों के अवसर पर बहुसंख्यक महिलाओं को देवी की सवारी आती है उस समय के उनके लक्षण भी करीब-करीब ऐसे ही मिलते-जुलते होते हैं ।
ReplyDeleteलोगों को जागरूक करती रचना। बहुत सी नई जानकारियों से अवगत हुआ।
ReplyDeleteसिज़ोफ़्रेनिया और एपिलेप्सी जैसी मानसिक बिमारियां आ सकती हैं पर आंग भरना, झूलना आदि मानसिक तनाव या स्थिति की द्योतक हैं। अच्छी जानकारी दी डॉक्टर साहब आपने॥
ReplyDeleteअच्छी जानकारी,
ReplyDeleteआभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
एक ज्ञानवर्धक लेख़. जो भूत दिखाई नहीं देते वो कुछ नुकसान भी नहीं कर सकते लेकिन जो इंसानों की शक्ल मैं भूत प्रेत की तरह लोगों को डराते हैं उनका क्या? वैसे आत्मा कभी किसी शेर की, कुत्ते की आती हो नहीं सुना ? इंसानों की ही क्यों आती है?
ReplyDeleteडॉक्टर दराल जी, 'भूत' शब्द काल के साथ भी उपयोग में लाया जाता है, और वैसे भी 'भूत' तो भूतकाल में किसी माध्यम के द्वारा उसके शरीर में धारण किया जाता था ('सेआंस') सत्य को जानने के लिए.... ऐसा एक थेओसौफिकल सोसाइटी द्वारा जिद्दु कृष्णामूर्ती के माध्यम से बुद्ध की आत्मा को उनके शरीर में उतारने का असफल प्रयास किया गया था...
ReplyDelete'धर्म' के आधार पर बंटे 'वर्तमान भारत' में 'हिन्दू' और 'मुस्लिम' आदि के विषय में प्रश्न पूछा जा रहा था "कसाब मेहमान या आतंकवादी ?"... आदि आदि... 'मैंने' संक्षिप्त में अपनी भी टिप्पणी दी, जो आपकी सूचनार्थ भी नीचे दे रहा हूँ...
बचपन से अनेक बातें सुनते आये हैं,,, उनमें से एक है "उसकी मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता"!
फिर प्रश्न उठता है कि वो अदृश्य कौन है केवल जिसकी मर्जी चलती है,,, जैसा माना गया हमारे पूर्वजों द्वारा जिसे अपनी बुद्धि से वो समझ पाए किन्तु आज हम असफल हैं समझने में ?
यहीं पर हमारी भौतिक इन्द्रियों की कमी का आभास होता है, यद्यपि हमें यह बताया जाता है कि मानव मस्तिष्क में अरबों सेल हैं किन्तु वर्तमान में हम उनमें से नगण्य का ही उपयोग कर सकते हैं, और हमारे पूर्वज इसे काल का प्रभाव बताते हैं...
उनके अनुसार काल-चक्र उल्टा चलता है जिसके अनुसार हमें वो देखने को मिलता है जो भूत में किसी काल विशेष में हुआ, जिस कारण यद्यपि उत्पत्ति 'क्षीर-सागर मंथन' से हुई - कलियुग में विष से आरम्भ कर सतयुग के अंत तक देवताओं द्वारा अमृत प्राप्ति तक, किन्तु हमें काल के साथ मानव कार्य-क्षमता घटती दिखती है!
आज हम देख भी सकते हैं कि चहुँ ओर विष व्याप्त है - खाद्य पदार्थ में, जल में, वायु में, और मानव के विचारों तक में भी... इस कारण वर्तमान को शायद घोर कलियुग कह सकते हैं... हमारे नेता ही हमें चोर दिख रहे हैं अथवा लाचार और मौन... और जनता के पास इन्ही में से हर पांच वर्ष में कोई चुनने के अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग है ही नहीं! फिर क्यूँ इनको सब सुख सुविधा, मेहमानों जैसे, दिए जाने को हम मजबूर हैं जबकि सब देख रहे हैं कि इन मेजबानों में एक बड़ी संख्या स्वयं रोटी भी नहीं खाती (अथवा गरीबी रेखा के नीचे है)?
भूत-प्रेत नहीं होते हैं जी. यहाँ ब्लौग जगत में भी कुछेक बाबा जैसे लोग अपनी दुकान जमाये बैठे हैं और इन चीज़ों पर लिखते हैं. मैं तो उन्हें खुला चैलेन्ज करता हूँ कि यदि वे कुछ कर सकते हों तो मेरे ऊपर करके दिखाएँ.
ReplyDeleteकमज़ोर मन और मष्तिष्क वालों को तो कुछ भी करके चमत्कृत किया जा सकता है.
@ निशांत मिश्र जी, भूत देखने हैं तो अपना फोटो एल्बम खोल अपनी ही बचपन से ले कर वर्तमान तक की तसवीरें देख लीजिये :) अथवा, दर्पण के सामने खड़े हो अपने ही प्रतिबिम्ब देख लीजिये :) दर्पण सादा होगा तो आपकी लगभग सही पहचान आपको दिखाई देगी,,, किन्तु यदि 'जादुई' हुए तो पहचान भी नहीं पाओगे भिन्न भिन्न प्रतीत होते प्रतिबिम्बों में 'मैं' कौन है?!
ReplyDeleteऔर, बुरा मत मानना, समझ आ जाएगा क्यूँ हर कोई बकरे समान "मैं मैं" करता है और 'हिन्दू' उसे परम्परानुसार बलि देता आया है :)
(संस्कृत में 'मैं' को 'अहम्' कहते थे, जिसका दूसरा अर्थ 'घमंड' भी इसी लिए रखा गया जिससे व्यक्ति के ध्यान में आ जाए कि उसके शब्दों से घमंड प्रतिबिंबित न हो..)...
डॉक्टर साहिब ने भी भूत में एक पोस्ट में गीता का सार दिया था... उसी गीता में 'कृष्ण' को कहते दर्शाया गया है कि सब गलतियों के मूल में अज्ञान है... "दया धर्म का मूल है/ पाप मूल अभिमान"... भी कहा गया है... इत्यादि इत्यादि...
मुझे हमेशा से ऐसे पाखंड पसंद नहीं रहे ..न भूत,न माता वाले ...यह कुछ मक्कार लोगो की साजिश हैं ...
ReplyDeleteबहुत अच्छे से आपने हर स्थिति की व्याख्या की है ... परिस्थितियाँ भी बीमारी बन जाती हैं और भूत प्रेत के चक्कर में लोग पड़ जाते हैं . मानसिक स्थिति से उत्पन्न बीमारी के साथ कई कई डॉ भी सही ढंग से पेश नहीं आते .... नाटक और मानसिक स्थिति को समझना सब के लिए आसान नहीं होता
ReplyDeleteअज्ञानियों की आँखें खोलने हेतु आपने सराहनीय कार्य किया है,इसका प्रचार-प्रसार होना चाहिए और लोगों को भी ऐसे प्रयास करने चाहिए.
ReplyDeleteअनपढों की तो बात ही और है ,सबसे पहले पढ़े लिखे लोगों को ही ढोंग-पाखंड से बचाने की घोर आवश्यकता है.
A nice post for bringing awareness.
ReplyDeleteश्री जे सी जी,
ReplyDeleteमेरे शब्दों में घमंड दिखाने के लिए आपका धन्यवाद.
और बुरा तो खैर क्या मानना है...
जब हम नयी दिल्ली में स्कूल में ९ वीं कक्षा में थे तो अंग्रेजी भाषा के टीचर थे जो हिंदी से अंग्रेजी में रूपांतरण हेतु कठिन वाक्य देते थे... उनमें से एक था "कल दो प्रकार के होते हैं, एक जो गुजर गया और एक जो आने वाला है"... और फिर सबके सामने कुछेक मजेदार उत्तर पढ़ आनंद लेते थे...
ReplyDeleteभारत में यह एक ऐसा उदाहरण है जिसमें हम दोनों, भूत से और भविष्य से सम्बंधित दिन को, 'कल' कहते हैं,,, इस प्रकार दर्शाते कि काल भूत से ही सम्बंधित है ?!
हमारे एक दूर के रिश्तेदार, जो पिताजी से कुछ वर्ष बड़े थे, उनकी पत्नी के बारे में यह मशहूर था कि जब उनको दौरे पड़ते थे और डॉक्टर देखने आता था तो वो उससे अंग्रेजी में बोलती थीं,,, जबकि पुराने समय पहाड़ी गाँव में रहने के कारण वे स्कूल ही कभी नहीं गयीं थीं! हमारे बड़े भाई आदि कहते थे कि उनमें किसी अंग्रेज का भूत आता था :) खैर उन्होंने कभी झाड-फूँक वाले को नहीं बुलाया...
Damn true.. that these ghosts only capture either poor people or people from rural areas.
ReplyDeleteAt first I laugh but it is a serious problem...
u can see thousands of ppl gathering in mosques for jahd-phhonk and something like that.
interesting post.
सुशिल जी , देवी की सवारी आदि बातें अनपढ़ लोगों की अंधी धार्मिक आस्था का परिणाम होती हैं .
ReplyDeleteमासूम जी , सही कहा --इंसानी भूत ज्यादा खतरनाक होते हैं . वे असली भी होते हैं .
"कल दो प्रकार के होते हैं, एक जो गुजर गया और एक जो आने वाला है"...जे सी जी , बहुत दिलचस्प उदाहरण दिया है . ठीक वैसा ही जैसा -पत्नी को इंग्लिश में वाइफ कहते हैं तो धर्मपत्नी को क्या कहेंगे?
अच्छी जानकारी परक पोस्ट
ReplyDeleteबस यूं ही हमारा ज्ञान बढ़ाते रहिये
आभार
rochak jankari...
ReplyDeleteडॉक्टर दराल जी, हमारी फ्रेंच भाषा टीचर ने हमें फ्रांस में विवाह के विषय में पढ़ाया, कि कैसे वहां पहले शादी चर्च में पादरी के माध्यम से संपन्न होती है तो सर्टिफिकेट मिलता है शादी का... उसके बाद फिर सामाजिक शादी होती है और मस्ती होती है...
ReplyDeleteउसने मुझसे पूछा यदि मेरे पास कोई सर्टिफिकेट है? तो मैंने कहा मेरे पास तीन हैं! तो वो चौंक गयी! मैंने कहा मेरी तीन बेटियाँ ही मेरे सर्टिफिकेट हैं :)
'भारत' में तो चलन था 'प्राण जायें पर वचन न जाई' का,,, और विवाह के सम्बन्ध में, कि विवाह आकाश में तारों आदि और धरा पर उनके प्रतिरूप बंधू-बांधव की उपस्तिथि में (सूर्य के प्रतिरूप) अग्नि के सात फेरे ले संपन्न होती है, और लड़की अब 'धर्म-पत्नी' (विष्णु की अर्धांगिनी, मायावी लक्ष्मी, अथवा शिव की दूसरी मायावी पत्नी पार्वती का प्रतिरूप) बन डोली में बैठ ससुराल जाती है, और अर्थी में बैठ स्मशान घाट (अर्धनारीश्वर शिव, शिव + शक्ति, का निवास स्थान)!
यूरोप में जब 'जंगली' रहते थे तो 'भारत' में योगी रहते थे...
किन्तु काल-चक्र के कारण आज 'भारत' में जंगली (जैसे हम उत्पत्ति के आरम्भ में रहे होंगे, यानि अपने भूत में!) और पश्चिम में भौतिक रूप से हमसे अधिक प्रगतिशील समाज...
"यह दुनिया गोल है / ऊपर से खोल है / भीतर जो देखो प्यारे/ बिलकुल पोलम-पोल है" :)
दराल सर,
ReplyDeleteएक भूत के अस्तित्व को आप भी नहीं नकार सकते...
...
...
...
...
और वो है ब्लॉगिंग का भूत...
जय हिंद...
जागरूक करनेवाला लेख
ReplyDeleteनयी जानकारी ,एक ज्ञानवर्धक लेख़..धन्यवाद....
ReplyDeleteदराल जी, एक बहुत ही उपयोगी और सार्थक पोस्ट। इस शमा को जलाए रखिएगा।
ReplyDelete------
जीवन का सूत्र...
NO French Kissing Please!
खुशदीप यह भूत तो कईयों का उतर चुका है . कईयों का उतरने की प्रोसेस में है .
ReplyDeleteवो गाना है ना --कुछ तो आकर चले गए , कुछ जाने को तैयार .
इसलिए जब तक मूढ़ बना है , लगे रहो .
प्रत्यक्ष मे किसी को भूत प्रेत आते नही देखा, सिर्फ़ टीवी पर या सुनी सुनायी बातों पर ही ये सब देखा है, लगता है यह मानसिक विकार की समस्याएं हैं.
ReplyDeleteरामराम.
हेल्लो कैसे हैं आप....बड़े दिन बाद आया पाया हु ब्लॉग पर...वैसे एक बात संज्ज में नहीं आई के सारे भूत किया पुल्लिंग होते हैं इसलिए औरतो पर ही आते हैं......या जो बिबिओं से परेशान होते है वोह मर के दुसरो के बिबिओं पैर आ जाते है...सर जरा इस बारे में भी प्रकाश डाला जाये तो बेहतर होगा ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया, महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक जानकारी मिली! धन्यवाद!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
समाज को जागरूक करती अनेकानेक जानकारी से भरी हुई पोस्ट
ReplyDeletesahi kaha ...actualy kamjor man hi is sab ko jagah deta hai ...paristhitiyan inhe trigger karti hain ..aapke tippni dene v link dene se mai aapki is post tak pahuch paaee ...shukriya.
ReplyDeleteशारदा जी , आपका स्वागत है . सही कहा , यह मन की कमजोरी ही होती है .
ReplyDeleteआप लोगो की बुद्धि सिर्फ आप लोगो की आँखों तक सिमित है अगर हिम्मत है ५५ रोहिणी सेक्टर २४ Delhi मैं खाली पड़े मकान मैं एक रात बिता कर दिखा दीजिये
ReplyDeleteमें आपकी बातो से पूर्णतया सहमत हु लेकिन मन में एक सवाल ह जिसका मुझे आज तक उत्तर नही मिला कि जब भी किसी में कोई दैवीय शक्ति होती है तो वो सामने वाले क बारे में एकदम सटीक डिटेल बता देती ये कैसे सम्भब है और ये मेरा आजमाया हुआ ह करीब 60% लोग सही जानकारी देते है जिनसे हम कभी नही मिले फिर भी वो हमारा past कैसे बता देते है इसका कोई सटीक उत्तर आपके पास है तो जरूर बताये
ReplyDelete१०० % सटीक उत्तर देने वाले लोगो की कमी नहीं है ।और शहर वाले भी प्रभावित होते है। हर बात को अन्धविश्वास कहना फैशन सा हो गया है। पहले लोग डॉक्टर के पास ही जाते है , जब डॉक्टर असफल हो जाता है तो तांत्रिको के पास जाते है , ........ दैवीय शक्ति (भूत प्रेत ) होती है। गोपाल जी जिस पर बीतती है वो ही जनता है /
ReplyDeleteचमत्कार क्या होता है ? जब तक हमें किसी भी बात के बारे में सही तथ्य पता नहीं चलते , तब तक वह चमत्कार ही रहता है। लेकिन हर बार के पीछे कोई न कोई राज़ ज़रूर होता है , बस हमें पता नहीं होता। जब पता चल जाता है तब सारे राज़ खुल जाते हैं।
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