( मानव अधिकार )
यहाँ तक तो बात ठीक है। लेकिन ज़रा सोचिये , काम वाली छुट्टी पर चली जाये , तो घरवाली यानि श्रीमती जी पर क्या गुजरेगी। अरे भई, कुछ नहीं गुजरेगी। क्योंकि जो गुजरेगी वो तो श्रीमान जी, यानि घरवाले पर गुजरेगी। जहाँ पहले आधा काम जिम्मे होता था , अब पूरा का पूरा मियां के सर।
भला ६० साल पहले कोई सोच सकता था ऐसी बात।
( विमेन लिबरेशन )
वैसे भी जब से श्रीमती जी को यह बात पता चली है की इस मुए कंप्यूटर के इंटरनेट पर घर बैठे ही सारी जानकारी प्राप्त हो जाती है, तबसे उन्होंने लायब्रेरी छोड़ नेट पर ही सारे आर्टिकल्स रिव्यू करने शुरू कर दिए हैं। यानि जहाँ कंप्यूटर पर पहले हमारा एकछत्र राज था, अब श्रीमती जी एक तरह से सौत बनकर बैठ जाती है। और हम टिपियाने के लिए गिगियाने लगे रहते हैं।
( नारी सशक्तिकरण )
खैर हम बात कर रहे थे काम वाली की। तो भई, गई तो है एक सप्ताह की छुट्टी , पर हमें पता है दो सप्ताह से पहले नहीं आने वाली। और जब ये शंका मैडम ने उससे ज़ाहिर की तो बोली --मैडम आप मेरा मोबाइल नंबर ले लो ।
श्रीमती जी ने कहा --बोलो।
बोली --- अरे बीबी जी, हम काय तोहार जैसन पढ़े लिखें थोड़े ही हैं। हम का याद नहीं रह जात। तम इ करो इ हमार विजिटिंग कार्ड रख लियो।
अब ये देख कर हम तो सकते में आ गए । भई हमने आजतक अपना विजिटिंग कार्ड नहीं बनवाया । और यहाँ काम वाली !
कौन कहता है , देश में विकास नहीं हुआ ।
वैसे भी एक ज़माना था जब फिल्म मोंसून वेडिंग में एक टेंट वाले के हाथ में मोबाइल देखकर सबको हंसी आई थी। आज मोबाइल दूध वाला , सब्जी वाला , अखबार वाला , यहाँ तक की काम वाली के भी हाथ में दिखाई देता है। हाथ में ही क्यों , कान में भी लगा हुआ।
भैया ये विकास नहीं तो और क्या है।
पिछली बार जब वो गयी थी तो एक नेक सलाह भी दे गई थी कामवाली। की कभी देर हो तो एक मिस काल दे दिया करो। लेकिन जब भी श्रीमती जी फोन मिलाती , फ़ौरन एक रिंग पर ही फोन उठाती और कहती ---बीबी जी थोड़ा बुद्धि का इस्तेमाल कर लिया होता । अच्छा होता यदि एक मिस काल कर दिया होता। दो पैसे की बचत हो जाती।
अब अपना तो सारा पढ़ा लिखा ही बेकार हो गया लगता है, क्योंकि आज तक ये पता नहीं चला की ये ससुर का नाती , मिस काल कैसे किया जाता है।
अब अगर विकास का कुछ और प्रमाण चाहिए तो इस चित्र को देखिये :
