गणतंत्र दिवस की साठवीं वर्षगाँठ। और देखिये आज ही हमारी कामवाली एक सप्ताह के अर्जित अवकाश पर चली गई। भई उसका कहना है की जब सरकारी नौकर काम करें या ना करें, उनको हर ६ महीने में सरकार १५ दिन का अर्जित अवकाश देती है। तो घर का सारा काम , यानि झाड़ू पोंछा , सफाई करना और बाहर के भी छोटे मोटे काम करके उनको भी तो कम से कम एक सप्ताह की छुट्टी चाहिए।
( मानव अधिकार )
यहाँ तक तो बात ठीक है। लेकिन ज़रा सोचिये , काम वाली छुट्टी पर चली जाये , तो घरवाली यानि श्रीमती जी पर क्या गुजरेगी। अरे भई, कुछ नहीं गुजरेगी। क्योंकि जो गुजरेगी वो तो श्रीमान जी, यानि घरवाले पर गुजरेगी। जहाँ पहले आधा काम जिम्मे होता था , अब पूरा का पूरा मियां के सर।
भला ६० साल पहले कोई सोच सकता था ऐसी बात।
( विमेन लिबरेशन )
वैसे भी जब से श्रीमती जी को यह बात पता चली है की इस मुए कंप्यूटर के इंटरनेट पर घर बैठे ही सारी जानकारी प्राप्त हो जाती है, तबसे उन्होंने लायब्रेरी छोड़ नेट पर ही सारे आर्टिकल्स रिव्यू करने शुरू कर दिए हैं। यानि जहाँ कंप्यूटर पर पहले हमारा एकछत्र राज था, अब श्रीमती जी एक तरह से सौत बनकर बैठ जाती है। और हम टिपियाने के लिए गिगियाने लगे रहते हैं।
( नारी सशक्तिकरण )
खैर हम बात कर रहे थे काम वाली की। तो भई, गई तो है एक सप्ताह की छुट्टी , पर हमें पता है दो सप्ताह से पहले नहीं आने वाली। और जब ये शंका मैडम ने उससे ज़ाहिर की तो बोली --मैडम आप मेरा मोबाइल नंबर ले लो ।
श्रीमती जी ने कहा --बोलो।
बोली --- अरे बीबी जी, हम काय तोहार जैसन पढ़े लिखें थोड़े ही हैं। हम का याद नहीं रह जात। तम इ करो इ हमार विजिटिंग कार्ड रख लियो।
अब ये देख कर हम तो सकते में आ गए । भई हमने आजतक अपना विजिटिंग कार्ड नहीं बनवाया । और यहाँ काम वाली !
कौन कहता है , देश में विकास नहीं हुआ ।
वैसे भी एक ज़माना था जब फिल्म मोंसून वेडिंग में एक टेंट वाले के हाथ में मोबाइल देखकर सबको हंसी आई थी। आज मोबाइल दूध वाला , सब्जी वाला , अखबार वाला , यहाँ तक की काम वाली के भी हाथ में दिखाई देता है। हाथ में ही क्यों , कान में भी लगा हुआ।
भैया ये विकास नहीं तो और क्या है।
पिछली बार जब वो गयी थी तो एक नेक सलाह भी दे गई थी कामवाली। की कभी देर हो तो एक मिस काल दे दिया करो। लेकिन जब भी श्रीमती जी फोन मिलाती , फ़ौरन एक रिंग पर ही फोन उठाती और कहती ---बीबी जी थोड़ा बुद्धि का इस्तेमाल कर लिया होता । अच्छा होता यदि एक मिस काल कर दिया होता। दो पैसे की बचत हो जाती।
अब अपना तो सारा पढ़ा लिखा ही बेकार हो गया लगता है, क्योंकि आज तक ये पता नहीं चला की ये ससुर का नाती , मिस काल कैसे किया जाता है।
अब अगर विकास का कुछ और प्रमाण चाहिए तो इस चित्र को देखिये :
क्या अब भी आप कह सकते हैं की ६० वर्षों में कोई विकास नहीं हुआ।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
कमाल है सर आखिर आपने विकास खोज ही लिया
ReplyDeleteफ्ह फ्हा
ReplyDeleteहँसते भी नहीं बन रहा है
एक ही चीज का विकास नहीं हुआ इस देश में काम वाली बाई का कोई और अलटेरनेटिव
....विकास ही विकास .... विजिटिंग कार्ड .... मोबाईल ही मोबाईल ......फ़िर अंत में कोल्डड्रिंक ....प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!!
ReplyDeleteहा-हा-हा-हा , Thats really gr8 Dr. sahaab. मजाक मजाक में सोचने पर विवश भी कर दिया और अपनी दुःख भरी दास्ताँ भी सुना दी :)
ReplyDeleteआपका आलेख पढकर मालूम हुआ कि 60 वर्षों में भारत का पूरा विकास हुआ है .. ढूंढने पर भगवान मिल जाते हैं .. भला विकास क्यूं नहीं मिलेगा ??
ReplyDeleteबहुत अच्छा विकास गिनाया, आनन्द आ गया। बढिया पोस्ट।
ReplyDeleteविकास तो बहुत हुवा है........... रोज रोज खबरों में भी तो पढ़ते हैं ....... मंहगाई में विकास, भ्रष्टाचार में विकास, स्विस बांको के डिपॉसिट का विकास, नेताओं का विकास, अमीरों की अमीरी का विकास ........... डाक्टर साहब लिस्ट तो इतनी लंबी हो जाएगी .... पूरी पोस्ट लिखी जाएगी .......... हाँ एक और बात में विकास हुवा है ..... पतियों के काम काज का ..... अब ज़्यादा काम करना पढ़ता है घर का ......
ReplyDeleteसमझ गया , बिल्कुल ।
ReplyDeleteNAHI JI ...HAM TO NAHI KAHENGE KI VIKAASH NAHI HUA....
ReplyDeleteEKDAM SAHI KAH RAHE HAIN AAP....
डा. साहिब ~ विकास का बढ़िया घरेलू नमूना! दो ग्राफिक डिजाइनर बेटियों के कारण मुझे भी आपसे और अन्य कई व्यक्तियों से ब्लॉग में मिलने का मौका मिला...और दूर रह कर भी मेरी तीनों बेटियों का मुझ पर रिमोट कण्ट्रोल संभव हो पाया है.
ReplyDeleteबहुत सुंदर जी सच मै भारत ने हद से ज्यादा तरक्की कर ली है, लेकिन काम वाली के बाद आप भी बीबी से काम बांट ले ना, ओर आटा गुढ ले तवा रख दे, वो रोटिया सेंके, आप उन्हे चुपड दो, वो सब्जी बनाये आप सब्जी के संग रोटी खा ले, अब बरतन किस के हिस्से आये वो साफ़ करे, इस लिये मिल जुल कर काम करना चाहिये, प्यार बना रहता है
ReplyDeleteखयाल तो अपना भी यही था कि विकास हुआ है पर आपके पोस्ट को पढ़ कर पता चला कि बहुत ज्यादा विकास हुआ है!
ReplyDeleteहा हा हा !भाटिया जी। ये सब तो भाई पहले से ही कर रहे हैं। अब तो कोई नया उपाय सुझाइए।
ReplyDeleteमांफ कीजियेगा महेश जी, आपकी बात समझ में नहीं आई।
ReplyDeleteमेरे ख्याल से तो सबसे ज्यादा विकास कामवाली या वालों का ही हुआ है। गाव के भूमिहीन लोग शहर में आकर मजदूरी करके सभी आधुनिक सुख सुविधाओं का भरपूर लाभ उठाते हैं। वहीँ दूसरी ओर किसान बेचारे आज़ादी से पहले साहुकारों और सेठों के क़र्ज़ तले दबे रहते थे। अब सरकारी लोन में फंस कर अपनी जान गंवां रहे हैं।
सर चौधरी छोटू राम के किसान पिता एक साहूकार की दुकान पर सारे दिन पंखा झलते रहते थे। यह देख बालक छोटू राम ने प्रण किया और कर दिखाया ---संयुक्त पंजाब में वज़ीर बनकर किसानों को सेठों के चंगुल से छुडाने का ।
लेकिन आज़ाद भारत में क्यों किसान नित्य आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं।
जी हाँ, विकास तो हुआ है, लेकिन समान रूप से नहीं।
अब इस पर हंसी आ भी कैसे सकती है।
वाह...!
ReplyDeleteविकास हो तो ऐसा!
क्या अब भी आप कह सकते हैं की ६० वर्षों में कोई विकास नहीं हुआ..
ReplyDeleteसवाल ही नही उठता .
आपकी पोस्ट तो झन्नाटेदार -विकासात्मक है.
आनंद आ गया सर जी.
बहुत अच्छा विकास गिनाया, आनन्द आ गया। बढिया पोस्ट।
ReplyDelete.
ReplyDelete.
.
अब अपना तो सारा पढ़ा लिखा ही बेकार हो गया लगता है, क्योंकि आज तक ये पता नहीं चला की ये ससुर का नाती , मिस काल कैसे किया जाता है ???
हा हा हा हा, अरे मिस कॉल करनी भी नहीं आती, लगता है विकास पथ पर नहीं चले अभी तक आप . . . :)
प्रवीण जी, हम तो अब बस मिसेज काल करना ही जानते हैं। हा हा हा !
ReplyDeletewow......
ReplyDeletemazaa aa gayaa......
aisaa jordaar vikaas to sirf hindustaan main hi ho saktaa hain.
badhiyaa likhaa. thanks.
www.chanderksoni.blogspot.com
"सर्वे सन्तु सुखीना" आदि सोच रखने वाले 'भारत' में विकास और किसान की बात आती है तो 'माया' का भी ध्यान रखना आवश्यक है...'वर्तमान' में 'माया' यानि बॉलीवुड ध्यान में आता है जहां मायावी अर्थात नकली चरित्र यानि 'अभिनेता' जनता के मन में ऐसे छा जाते हैं कि हम तुरंत उनको अपना 'नेता' के रूप में भी अपना लेते हैं...भले ही वो काल के प्रभाव से मीठे पानी की बहती नदी के खारे समुद्री जल में समर्पण समान ही हो...
ReplyDelete'हिन्दू मान्यता' को ध्यान में रख, अब मायावी संसार और काल की अनंत लम्बाई के सन्दर्भ में मान लीजिये आप और आपके आने वाली पीढियां भी एक फिल्म बनाएं जिसमें कोई मेहनती किसान और उसके परिवार के सदस्य एक लगभग बंजर भूमि को अथक भागीरथी प्रयास से कई वर्ष में एक हरे- भरे खेत में परिवर्तित करदे, और साथ- साथ उसकी आरंभ से रीलें भी तैयार करते जाये...
अब किसी भी समय या काल में यदि आप या कोई और उन रीलों को एडिट कर, १ से १० नंबर तक जैसे, सही क्रम में चलायें एक के बाद एक तो आप एक भूमि के बंजर टुकड़े को एक हरित प्रदेश में विकास करते देख पाएंगे केवल २- ढाई घंटे में ही...यद्यपि वो कहानी होगी कई वर्षों की...
लेकिन अब मान लीजिये आपका किसी कारण 'दिमाग' फिर जाए यद्यपि आपका 'दिल' सही हो, आपको एम्नेसिया हो जाये जैसे, और आप फिल्म को उलटी रील नंबर १० से १ की ओर कितनी बार भी चलाते जाएँ तो आप 'विकास' के स्थान पर 'विनाश' ही देखंगे, यानि एक हरे-भरे खेत का काल के साथ एक बंजर भूमि में परिवर्तित होना...
डा. दराल साहिब ~ ये 'मिस कॉल' ही मिस या 'कुमारी माया' अर्थात 'मिस्ड काल' यानि 'हाथ से निकल गया वक़्त' है शायद...मुंबई में इसे 'कट-रिंग मार देना' कहते हैं...
ReplyDeleteऔर, मिस काल के प्रभाव से आज वक़्त किसी के पास 'सत्य' के विषय में पढने- सुनने का भी नहीं है...दोष उनका नहीं है क्यूंकि त्रेता काल के पुरुषोत्तम, भगवान् राम, भी मायावी सोने के हिरन के पीछे - सीता द्वारा - दौड़ा दिए गए थे :) स्त्री को इस कारण पुरुष को मायाजाल में बांधे रखने के लिए ही बनाया गया माना जाता है :)
डाक्टर साहब आपकी पोस्ट पढ़ कर लगा कि चलो कही तो मैं आप लोगों से आगे निकली भले काम वाली के कारण.इधर जब से ब्लॉग पर आप लोगों के सम्पर्क में आई हूँ लगता है मेरी किस्मत खुल गई. भई मेरी दो काम वालियों में से एक तो महीने में एक भी छुट्टी नहीं करती जबकि सब काम वालियां कहती हैं कि महीने में दो छुट्टी का उनका हक है.पर ये है कि जाती नहीं. इतनी ठण्ड में मैंने कहा कि तुम तो केवल झाड़ू पोछा ही करती हो इतनी ठंडी में एक दिन दो नहीं करोगी तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा. पर वो नहीं मानी अब चूँकि वो दो छुट्टी नहीं लेती है तो मैं उसे दो दिन के पैसे अलग से देती हूँ यानी कि काम ३० दिन और पैसे ३२ दिन के इससे मुझे लगा कि मैंने भी प्रगति की है. पर जब आपकी पोस्ट कि सारी टिप्पणी पढ़ी तुरंत ज़मीन पर आ गिरी. ये क्या यहाँ आप लोग पत्नी सेवा धर्म निभा रहे हैं और ख़ुशी ख़ुशी उसकी चर्चा कर रहे हैं भले ही कामवाली की अनुपस्थिति की आड़ में सही. पर मैं तो यहाँ बहुत घाटे में हूँ .विकास कि इस दौड़ में मैं पीछे रह गई. सोचती हूँ काम वाली को कुछ एक्स्ट्रा पैसे दे कर छुट्टी पर भेजूं और अपने पति को आप लोगों कि श्रेणी में खड़ा कर गौरान्वित महसूस करूँ और अपने आपको विकास की इस दौड़ का हिस्सा समझूँ
ReplyDelete' bahut hi mazedar post ....aakhir aapne vikash ko khoj hi liya ...bahatarin "
ReplyDelete" photo bahut hi badhiya hai sir ..bahut kuch kahe gaya photo ."
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
विकास ढूंडने पर नजर आ ही जाता है. आपकी पारखी नज़र की बात निराली है.
ReplyDeleteडा. साहब. तकलीफ बस इतनी है की सब जगह सामान रूप से विकास नहीं हुआ है. कहीं ६० वर्ष में १०० वर्ष का विकास हुआ तो कहीं ६० वर्ष में ६ वर्ष का भी नहीं हुआ.
मिस कॉल तो मैं भी नहीं करता हूँ. मगर मिसेज को कॉल करने की इच्छा हो रही है. सॉरी अभी इंतज़ार लम्बा है.
वैसे आखरी तस्वीर सवा लाख की है.
हा हा हा ! रचना जी, आपका पहला आइडिया बढ़िया है। दूसरा और भी बढ़िया है।
ReplyDeleteमैं भी अपनी पत्नी को यही कहता हूँ की गई तो कोई बात नहीं, अच्छा है, आपके जोड़ों की कसरत हो जाएगी।
लेकिन उनका कहना है की , आप उम्र में बड़े हैं, जोड़ों की कसरत की आप को ज्यादा ज़रुरत है।
अब डेन्लोस का कहना कौन टाल सकता है। हा हा हा !
जब मेरी तीसरी लड़की एक साल की थी तब उसका पेट खराब हो गया और उसे पांच दिन तक बीस- बीस मोशन होते रहे - पत्नी भी परेशान हो गयी थी बाथरूम के चक्कर काटते- काटते...डिस्पेंसरी की दवाइयां बेकार जा रही थीं और भगवान् की कृपा से मेरे बड़े भाई मिलने आ गए और मुझे तुरंत डा. जैन के पास जाने को बोला (वे आर एम् पी थे और उनका हॉस्पिटल था गोल मार्केट में - उनके बेटा- बहु एम् डी थे)...
ReplyDeleteउन्होंने उसके पेट पर एक हाथ रख दूसरे हाथ की उँगलियों से उसके उपर पीटा और कहा "आपने इसे कोका कोला पिलाया है!" बहुत सोचने पर याद आया कैसे हम किसी रिश्तेदार के घर गए थे और उनके न मिलने पर उनके मालिक-मकान ने हमें कोला दिया, और क्यूंकि वो मेरी गोद में थी, उसके जिद करने पर मैंने कुछ बूँदें उसके मुंह में भी दाल दी थीं...उनकी दवा से तीन दिन में वो ठीक हो गयी...
सुनीता नारायण की याद आगई और रेगिस्तान के जहाज ऊँट को कोला पीते देख सवाल उठा कि क्या जानवरों के लिए ही कोला हितकारी है?
बहुत बढ़िया पोस्ट ! हर तरफ विकास ही विकास :-)
ReplyDeleteवाह क्या विकास हुया है। वैसे हम माने न माने विकास तो वही देख सकते हैं जिन्हों ने जीवन के पिछले पचास वर्ष देखे हों कहाँ तो मेरे पति को चाय क कप बनाना नहीं आता था कहाँ आजक्ल आप्को देख कर वो भी कितना आगे बढ गये हैं धन्यवाद आपका पतिओं को इसी तरह प्रेरित करते रहें विकास की खातिर हा हा हा
ReplyDeleteपति विकास का आइडिया अच्छा लगा , निर्मला जी। धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लगा! वाह बहुत ही अद्भूत तस्वीर लगाया है आपना जिसे देखकर अब तो मानना ही पड़ेगा की हमारे देश का विकास हुआ है और इसमें कोई संदेह नहीं है!
ReplyDeleteफोटो में ये दिख तो घोड़ा रहा है पर काम गधों वाले कर रहा है (बमाफी बाबा रामदेव).
ReplyDeleteलेकिन काजल जी, ये तो ऊँट है।
ReplyDeleteऔर ऊँट के मूंह में ----।
हे भगवान...60 साल बाद गधे केवल घोड़े ही नहीं ऊंट भी लगने लगे !
ReplyDelete:))
शक्र है की इंसान नहीं लग रहे।
ReplyDeleteBahut hi achchha laga. badhai!
ReplyDeleteडा. दराल और काजल कुमार जी ~ बुरा न मानो होली (आ रही) है!
ReplyDeleteये मानव की संगति का असर ही है कि गधे और ऊँट आदि 'घरेलू जानवर' भी कोला ही नहीं वो सब खाते-पीते हैं जो भी, भला-बुरा, आदमी खाता है...
और ये ही नहीं जो आदमी फ़ेंक देता है उस प्लास्टिक आदि को भी गायें भी खा रही हैं (और उनके कारण मर भी रही हैं)...
और यही नहीं, आदमी भी गौ माता का दूध समझ जिसे पी रहा है उसमें यूरिया, साबुन, और न जाने क्या क्या मिलाया जा रहा है - आदमी द्वारा ही :( और फिर भी आदमी की औसत आयु यदि बढ़ रही है तो इसके पीछे किसका हाथ है?...और वो आदमी को ही मूर्ख क्यूँ बना रहा है? :)
"आसमाँ ये नीला क्यूँ?/ पानी गीला-गीला क्यूँ?...सोचा है? सोचा है तुमने कभी?..."
और "अकल बड़ी कि भैंस (माहिषासुर) ?"
समय के प्रभाव के कारण शायद न्यूरोलोजिस्ट भी इसे (अनादि/ अनंत को) अभी अपने कोर्स के बाहर मानते है (?)...
सही कहा जे सी साहब।
ReplyDeleteBahut sahi dhang se apne vikas ki paribhasha ginai, bas samajhne ka najariya hai.
ReplyDeleteक्यूंकि विषय मानव-विकास और नारी-शक्ति आदि के योगदान पर है, मेरी 'सत्य की खोज' का श्रेय मेरी दिवंगत पत्नी को जाता है जिसने मेरा ३४ वर्ष तक आर्थ्राइटिस की तकलीफ झेलते हुए भी अच्छा साथ दिया - दुःख-सुख में (मैं भी सब्जी काटना, आटे की लोई बनाना आदि इस कारण सीख गया - पर खाना बनाना नहीं :) ...पता नहीं कैसे, किसी भी शहर में कोई मित्र आदि जा रहे हों तो वो तुरंत वहां से 'नल्ली' या 'पोचमपल्ली' आदि की साडी इत्यादि मंगवा लेती थी...बल्कि वे नाम मैंने पहले कभी सुने ही नहीं होते थे :)...
ReplyDeleteबच्चे भी कहते हैं कि इतनी तकलीफ सहते हुए भी मम्मी की आवाज़ हमेशा बुलंद रही, यानी गला सही रहा (जिस कारण उनकी बातें उनके कान में अभी भी गूंजती हैं :)...और गला (जिससे आप विशेषकर सम्बंधित हैं, गायकों, नेता, अभिनेता, हमारे जैसे 'कानसेन' समान भी :) दिल और दिमाग के बीच में ताल-मेल करता है, या अच्छा कर सकता है यदि प्रभु इच्छा हो तो...
जब अपनी दूकान के मिस्त्रियों को और लेबर वालों को मल्टी मीडिया सुविधाओं से लैस मोबाईल फोन का इस्तेमाल करते हुए देखता हूँ तो सचमुच में लगता है कि अपना देश काफी तरक्की कर चुका है..
ReplyDelete