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Saturday, March 24, 2012

जाने कितने आए और चले गए ---


पता चला है कि हिंदी ब्लोगर्स की संख्या ५०००० का आंकड़ा पार कर गई है । हालाँकि सक्रिय हिंदी ब्लोगर्स की संख्या १००० से ज्यादा नहीं है ।

एक कहावत है --नया नया मुल्ला ज्यादा अल्लाह अल्लाह करता है । कुछ इसी तरह का माहौल हिंदी ब्लॉगजगत में भी रहा है । नया ब्लोगर किसी के कहने पर बड़े जोश के साथ ब्लोगिंग शुरू करता है। अपने सारे काम छोड़कर ब्लोगिंग में ज्यादा से ज्यादा समय लगाता है ताकि उसकी पहचान बने । परन्तु जल्दी ही अक्ल ठिकाने आ जाती है जब कहीं से कोई रिस्पोंस नहीं मिलती टिप्पणियों के रूप में ।

पुराने ब्लोगर्स भी अब ब्लोगिंग छोड़ फेसबुक , ट्विटर आदि में लीन हो गए हैं । अब कोई आधी आधी रात तक जागकर ब्लोगिंग नहीं करता ।

दिग्गज़ माने जाने वाले ब्लोगर्स भी अब ठंडे पड़ चुके हैं । जो कभी ६-१० ब्लोग्स मेनेज करते थे , अब फेसबुक में फोटो टैग करते नज़र आ रहे हैं ।

कुछ ब्लोगर्स या तो अस्वस्थता की वज़ह से, या कार्य अधिकतावश ब्लोगिंग से दूर हो गए हैं . कुछ ने असंतुष्ट होकर ब्लोगिंग से सन्यास ले लिए लगता है ।

बड़े बड़े कविराज भी ब्लॉग से गायब हो गए हैं । ज़ाहिर है, मुफ्त में अंगुलियाँ घिसना किसी को अच्छा नहीं लगता । वैसे भी मंच के बदले ब्लॉग में क्या मिलता है , कुछ झूठी सच्ची टिप्पणियां ।

अब तो अलग अलग बने खेमे भी बिखरते से नज़र आ रहे हैं। रही सही कसर व्यक्तिगत छींटा कसी ने पूरी कर दी
कुछ तो ऐसे हैं कि जाति विशेष को बढ़ावा देते हुएव्यक्तिगत उपलब्धियों को ही ब्लोगिंग समझते हैं

स्वाभाविक है , आजकल बहुत पढने को मिल रहा है कि --अब ब्लोगिंग में मन नहीं लग रहा ।

अपने तीन साल के अनुभव में इतना ज़रूर देखा है कि ब्लोगिंग में टिप्पणियों का बहुत महत्त्व है । यदि पोस्ट पर टिप्पणी न हों तो ऐसा लगता है जैसे आप भैंस के आगे बीन बजा रहे हैं । कुछ लोग पोस्ट पर टिप्पणी का ऑप्शन बंद कर देते हैं । वह तो और भी ख़राब लगता है । ऐसी पोस्ट को पढ़ते हुए ऐसा महसूस होता है जैसे यह एक तरफा ट्रैफिक है । आप पढ़ तो सकते हैं लेकिन कुछ कह नहीं सकते ।
यह तो मेगालोमेनिया हुआ

कुछ ब्लोगर्स तो ऐसे हैं कि मेल पर आग्रह करते हैं पोस्ट पढने के लिए लेकिन स्वयं कभी किसी ब्लॉग पर टिप्पणी करते नज़र नहीं आते हमें तो यह उदंडता लगती है

पोस्ट लिखने का असली फायदा ही तब है जब आप विचारों का आदान प्रदान कर सकें

अब तो गूगल ने भी टिप्पणियों की कमी का ख्याल रखते हुए उत्तर
प्रत्युत्तर का प्रावधान कर ब्लोगर्स के लिए एक नया सामान दे दिया है , ब्लोगिंग से उदासीन होने के लिए

प्रस्तुत है --इसी विषय पर , छोटी बह्र में एक छोटी सी ग़ज़ल :

पाठक कटने लगे
टीपाँ घटने लगे।

चाटू पोस्ट सभी
पढ़कर चटने लगे।

दिल से अब भरम के
बादल छंटने लगे।

आँखों से शरम के
परदे हटने लगे।

आपस के वैर में
मठ भी बंटने लगे।

गेहूं संग घुन ज्यों
हम भी लुटने लगे।

कहने को तो यहाँ
साथी पटने लगे।

आदर विश्वास के
सफ़्हे फटने लगे।

मंच पे पढना पड़े
कविता रटने लगे।

छोडो "तारीफ"क्यों
ग़म से घुटने लगे ।

नोट : ब्लोगिंग में झलकती उदासीनता के कई कारण हैं । जैसे एक अच्छे ब्लॉग एग्रीगेटर का न होना , गूगल द्वारा टिप्पणियों और पोस्ट्स को गायब कर देना , ब्लोगर्स की व्यक्तिगत और स्वास्थ्य समस्याएँ, ब्लोगिंग से कोई कमाई न होना तथा समय के साथ शौक पूरा हो जाना ।

जहाँ बाकि सब कारण हमारे वश में नहीं , वहीँ शौक को यूँ डूबने न दें , यही कामना है ।


Wednesday, March 21, 2012

बार बार दिन ये आए , बार बार दिल ये गाए ---चुनाव .


हर वर्ष के आरंभ में हम डॉक्टर्स अपनी संस्था , दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के पदाधिकारियों के चुनाव कराते हैं . मार्च अंत तक जहाँ एक तरफ वित्तीय वर्ष का अंत होता है , वहीँ हमारे भी चुनावों की प्रक्रिया समाप्त हो जाती है . इस दौरान चुनावों की सरगर्मी में जो देखने को मिलता है , वही प्रस्तुत है एक हास्य कविता के रूप में :


वज़न हमारा पांच किलो बढ़ जाता है
ड़ी एम् ऐ का जब, चुनाव पास आता है .

कभी लंच, कभी डिनर, कभी दोनों
खाने पीने का रोज, जुगाड़ हो जाता है .

मिलते हैं सब गले जैसे बिछड़े बरसों के
साल भर का सारा, प्यार उमड़ आता है .

करते हैं बेसब्री से , इंतज़ार फ़रवरी का
एक महीना बिना खर्चे निकल जाता है .

उड़ाते हैं सब चिकन मटन व फिश टिक्का
बोतल कोई दारू की, आधी निगल जाता है .

मचता है शोर तब मयखाने में
जब दीवाना कोई होश खो जाता है .

नेता लोग देते हैं भाषण जोशीले
अपना काम तो कविता से चल जाता है .

लड़ें वो जिनके पास है ज्यादा पैसा
बंदा तो बस मुफ्त में मौज उडाता है .

टल जाएँ चुनाव ग़र सर्वसम्मति से
चीटिंग सी लगती है , लॉस हो जाता है .

रहता है यही एक अफ़सोस 'तारीफ'
चुनाव साल में बस एक बार आता है .

नोट : यह ग़ज़ल पढ़कर हो सकता है , शायद हमें कभी चुनाव का टिकेट न मिले .


Saturday, March 17, 2012

फाइव स्टार अस्पताल, किस के लिए ---

रोज सुबह
जब अस्पताल जाता हूँ ,
पाता हूँ
रोज वही भीड़ भाड़ ।
झाड़ से चेहरे, एक जैसे
कैसे कैसे
अरमान लिए आते हैं ,
क्या सबके पूरे हो पाते हैं !

देखता हूँ रोज , मैले कुचैले
एक साँस खांसते ,
पीले पड़े ज़र्द चेहरे ।
देखता हूँ बुढ़िया को डांट मारते
ज़र्ज़र बूढ़े को ,
नन्हे मासूम को चांट मारते
मायूस मां को ,
लाइन में खड़े भुनभुनाते
ग़रीब मजदूर को ,
बूढी मां को कंधे पर उठाते
आँखों के नूर को ,
और देखता हूँ
ट्रौली का इंतजार करते
प्लास्टर में लिपटे ,
दुर्घटना के शिकार मज़बूर को ।

हर जगह लाइन , हर जगह भीड़
कहीं बिना लाइन के भीड़ ।
धक्का मुक्की , शोर शराबा
लड़ाई झगडे , कभी मार पीट ।
कभी रोगी पर चिल्लाते डॉक्टर
डॉक्टर को धिक्कारते कहीं रोगी ।
कहीं रोगी को खून बेचते दलाल ,
माल चुराते भीड़ में जेब कतरे ,
कतरे खून के गिरे कहीं फर्श पर
कहीं फर्श पर पड़ा लावारिश ,
कहीं वारिश पर दुखों की बारिश ।

कोई पास से , कोई दूर से आता है
फिर खाली हाथ घर जाता है ।
न मिली दवाई ,
न टेस्ट की बारी आई ।
सुबह से कुछ नहीं खाया है ,
डॉक्टर ने कल फिर बुलाया है ।

देखता हूँ चेहरे , तनाव भरे
दर्द , तकलीफ , घबराहट ,
कभी यूँ ही झुंझलाहट भरे ।
टेंशन , हाइपरटेंशन
कोई फ्रस्ट्रेशन लेकर आता है ,
हमारे पास ।
अहसास, होता है हमें ऐसा
जैसा, हुआ था सिद्धार्थ को
रोगी , वृद्ध व मृत को देखकर ।
लेकिन हम इक्कीसवीं सदी के इंसान
बुद्धू से बुद्ध कैसे हो सकते हैं ।
बस कर सकते हैं , प्रयास
आंसू पोंछने का
बोलकर प्यार के दो शब्द
सुनकर उनकी व्यथा ।

यह अस्पताल है सरकारी
सूटेड बूटेड या खद्दर धारी ,
यहाँ कोई नहीं आता ।
नहीं भाता उनको यह अस्पताल
मालामाल लोगों का इलाज
फाइव स्टार हॉस्पिटल में होने लगा है ।
सुना है आजकल देश में ,
मेडिकल टूरिज्म बहुत बढ़ने लगा है ।

Tuesday, March 13, 2012

होली के आफ्टर इफेक्ट्स ---


इत्तेफाक
ही रहा कि होली के मौसम में कवियों की तरह हम भी बहुत व्यस्त रहे कई मित्रों से होली पर शुभकामनाओं का आदान प्रदान भी न हो सका । आशा करता हूँ कि नाराज़ नहीं होंगे । ये रहे हमारी व्यस्ताओं के साक्षात नमूने :

) मार्च :

अस्पताल में बाल रोग विभाग द्वारा स्नातकोत्तर चिकित्सा छात्रों के लिए दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया था । ३ मार्च को इसका उद्घाटन हुआ । उद्घाटन समारोह में अस्पताल के सभी उच्च प्रशासनिक अधिकारीगण उपस्थित थे ।

दीप प्रज्वलन करते हुए सभी अधिकारीगण

कार्यक्रम का संचालन करते हुए हमने भी एक सन्देश छात्रों तक पहुंचा ही दिया । हमने कहा कि इस ट्रेनिंग के बाद आप परीक्षा पास करने में तो अवश्य सक्षम हो जायेंगे । लेकिन एक अच्छा डॉक्टर बनने से पहले एक अच्छा इन्सान बनना चाहिए । तभी आप एक अच्छे डॉक्टर बन पाएंगे । हमारे एक प्रोफ़ेसर कहा करते थे कि एक डॉक्टर में तीन गुण होने चाहिए --) availability ) affability ) ability .

) मार्च :

रविवार को दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन द्वारा एक हास्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया । इस का संचालन भी हमें ही करना था । लेकिन एन वक्त पर कुछ असमंजस्य की स्थिति उत्पन्न हो गई ।

हास्य कवि सम्मेलन से पहले डी एम ऐ के सीनियर वाइस प्रेजिडेंट ( बाएं ), प्रेजिडेंट ( दायें ) और एक कवयित्री साहिबा के साथ गंभीर वार्तालाप करते हुए ।

खैर , हमने सभी मेहमान कवियों का स्वागत करते हुए और सभी औपचारिकतायें निभाते हुए कार्यक्रम का शुभारम्भ किया ।

फिर श्रोताओं के साथ बैठकर कवियों को सुना ।
इस बीच कवयित्री साहिबा ने हमें भी आमंत्रित किया कविता सुनाने के लिए । बेशक रंग तो खूब जमा ।


अंत में सब कवियों को शॉल भेंटकर सम्मानित किया गया । कवियों में प्रमुख थे --जानी मानी कवयित्री डॉ सरोजिनी प्रीतम और वयोवृद्ध ग़ज़लकार एवम व्यंगकार डॉ शेर जंग गर्ग
और इस तरह सभी विवादों से बचते हुए हमने इस हास्य कवि सम्मेलन को सफल बनाया ।

) मार्च :

आर्य समाज मंदिर में एक कवि सम्मेलन का आयोजन था । एक परिचित बुजुर्ग कवि को मंच संचालन करना था । हमें भी आमंत्रित कर लिया गया । बाद में पता चला जितने कवि बाहर से बुलाए गए थे उनसे ज्यादा आर्य समाज के सदस्य लोगों में से कविता सुनाने को आतुर थे । उस पर ग़ज़ब यह कि संचालक महोदय को लगा कि पता नहीं बाद में अवसर मिले या न मिले , इसलिए पहले स्वयं ही सुना डाला जाए । खैर किसी तरह कार्यक्रम निपट गया । शायद यह उनका पहला अवसर था । इसलिए कोई फोटो भी उपलब्ध नहीं हो सका । दरअसल, फोटोग्राफर था ही नहीं ।


) मार्च :

अस्पताल में कार्य समाप्त करने के बाद घर के लिए प्रस्थान करने से पहले हमने एक छोटा सा होली मिलन रखा जिसमे सभी उच्च अधिकारियों समेत प्रशासनिक स्टाफ भी शामिल हुआ ।

गुलाल से चेहरे रंगने के बाद एक अलग ही नज़ारा नज़र आ रहा था ।
लोगों की फरमाइश थी कि कविता सुनाई जाए लेकिन एम एस साहब ने ही इतना लम्बा भाषण दे दिया कि फिर कुछ और सुनने की शक्ति ही नहीं बची ।

) मार्च :

होली वाले दिन पूर्वी दिल्ली के डॉक्टर्स संस्था के भवन में एकत्रित होकर होली खेलते हैं । खाना , पीना , हँसना , हँसाना --सब चलता है । इस बार बाहर से हास्य कलाकार बुलाए गए थे । जमकर हँसना हँसाना हुआ ।


नादान पत्नी :

एक व्यक्ति होली खेल कर घर आया
आते ही घर का दरवाज़ा खटखटाया ।

अन्दर से पत्नी की आवाज़ आई
मैंने पहचाना नहीं , तुम कौन हो भाई ?

पति गुर्राया , अरे बंद करो ये टें टें
भई दरवाज़ा खोलो , ये तो मैं हूँ मैं ।

पत्नी बोली , हाय राम यदि आप खड़े हैं यहाँ
तो वो कौन है जो बैठा चाय पी रहा है वहां ।

पति बोला ,
अब ये डुप्लीकेट पति कहाँ से आ गया ।
पत्नी बोली ,
पता नहीं , पर बैठा बैठा दस गुज्जियाँ खा गया ।

अच्छा हुआ मैं सही वक्त पर चला आया
वर्ना ज़ालिम जाने क्या जुल्म कर जाता ।

पत्नी बोली हाँ जी ,
यदि आप थोड़ी देर और ना आते --
तो वो सारे गुलाबजामुन भी खा जाता ।

और इस तरह ख़त्म हुआ यह होली का सीजनअब फिर वही अस्पताल , वही मरीज़ , वही मर्ज़ जो गर्मियां शुरू होने के साथ ही बढ़ने लगते हैंप्राइवेट डॉक्टर्स के लिए भले ही यह कमाई का सीजन होता हो , हमारे लिए तो अत्यधिक काम का समय होता है

नोट : हमारे देश में होली के बाद सावन के आने तक कोई त्यौहार नहीं होतातीज़ से पर्वों का सिलसिला फिर से शुरू हो जाता हैशायद इसका सम्बन्ध तपती गर्मी से रहा होगा


Friday, March 9, 2012

अंजानी (ब्लॉग) राहों पर चलना संभल के ---


होली के अवसर पर हर वर्ष डॉक्टर्स की विभिन्न संस्थाएं अपने अपने क्षेत्र में होली मनाती हैं । रात को होने वाले कार्यक्रम में कॉकटेल डिनर होता है । बात उस समय की है जब हमारी नई नई नौकरी लगी थी । हमने अपने साथ काम करने वाले एक बुजुर्ग डॉक्टर को भी आमंत्रित कर लिया । उनके लिए यह एक नया अनुभव था । जब ड्रिंक्स शुरू होने का समय आया तो मुफ्त की शराब देखकर वह बावला हो गया और गटागट कई पैग पी गया । उसके बाद वह एक ऐसे समूह के साथ वार्तालाप में लीन हो गया जिसमे वह किसी को नहीं जानता था । उनसे बस यही गलती हो गई । उन लोगों ने जब देखा कि यह बंदा उल्लू बन रहा है तो उन्होंने उसे पैग पर पैग देने शुरू कर दिए । थोड़ी ही देर में हमारे डॉक्टर साहब नशे में धुत्त होकर टॉयलेट में पड़े थे । अंतत: हमें ही उन्हें ऑटो में डालकर घर छोड़कर आना पड़ा ।

उस दिन हमने भी एक सबक लिया कि कभी भी अंजान लोगों के साथ मिलकर दारू नहीं पीनी चाहिए

बचपन से लेकर अब तक और भी कई बातें सीखीं हैं जैसे :

* किसी अंजान व्यक्ति से लेकर कुछ खाना नहीं चाहिए विशेषकर सफ़र में
* किसी अंजान व्यक्ति पर आँख मूंदकर विश्वास नहीं करना चाहिए
* चापलूसों से सावधान रहना चाहिए विशेषकर जो ज़रुरत से ज्यादा मीठी मीठी बातें कर रहे हों
* गाड़ी में किसी को लिफ्ट नहीं देनी चाहिए विशेषकर अकेली महिला को

जब से मंच पर आने लगे हैं तब से पब्लिक स्पीकिंग के बारे में कई बातें सीखीं हैं । इसमें सबसे विशेष है कि कभी भी किसी व्यक्ति का मज़ाक इस तरह नहीं उड़ाना चाहिए कि उसे बुरा लगे ।

आखिर मज़ाक और उपहास में अंतर होता है
विशुद्ध हास्य में सौम्यता होती है कि छिछोरापन

होली एक त्यौहार है मौज मस्ती का , रंगों उमंगों का , खाने खिलाने का , पीने पिलाने का , हंसने हंसाने का , मिलने मिलाने का और सबको प्यार से गले लगाने का

होली मनाने के तरीके भी अलग अलग होते हैं । कहीं रंग गुलाल से मनाई जाती है , कहीं पानी से । कहीं लठमार होली होती है तो कहीं कोलड़ा मार । कहीं कहीं गोबर और कीचड़ में सनकर भी होली खेली जाती है हालाँकि ऐसी होली हमने कभी नहीं खेली

लेकिन इस होली पर कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ जब हमने एक अंजान ब्लोगर के आमंत्रित करने पर उनके ब्लॉग पर हास्य की चंद पंक्तियाँ भेज दीं । अब भले ही वो एक जाने माने ग़ज़लकार , हास्य कलाकार या व्यंगकार हों , लेकिन हमारे लिये वो और उनके लिए हम अंजान ही तो थे ।

फिर हमारे साथ कुछ ऐसा हादसा हुआ जो हम सोच भी नहीं सकते थे कि कोई ऐसा करने की सोच भी सकता है

अफ़सोस तो तब हुआ जब कुछ अपने मित्र भी वहां चुस्कियां लेते नज़र आए

आखिर एक बार फिर यही समझ आया कि ब्लोग्स पर भी किसी अंजान व्यक्ति पर भरोसा नहीं किया जा सकता
वैसे भी इस आभासी दुनिया में अक्सर लोगों की फितरत छुपी ही रहती है

नोट : हम जानते हैं कि अक्सर गलती करने वाले को गलती करने का अहसास नहीं होता ही अक्सर उसकी ऐसी मंशा होती हैलेकिन गलती से की गई गलती भी गलती ही कहलाएगी

Tuesday, March 6, 2012

होलिका तो होलिका , कहीं रावण भी जल न पाए --



कुछ
वर्ष पहले दिल्ली में होली के अवसर पर मौसम में हुए बदलाव पर एक कविता लिखी थी जो शायद आज भी उतनी ही तर्कसंगत लगती है


जनता को चिंता सता रही थी ,

क्योंकि होली करीब आ रही थी।
पर पानी की किल्लत थी भारी
कैसे खेलेगी होली जनता बेचारी ।

ऊपर वाले ने आसमान से देखा,
धरा पर उड़ती धूल, तालों में सूखा।
मासूम चेहरे गर्मी से झुलस रहे थे ,
नाजुक पौधे धूप में सूख रहे थे।

मैली होकर सूख रही थी गंगा,
जमना का तल भी हो रहा था नंगा।
नल के आगे झगड़ रही थी ,
शान्ति,पारो और अमीना।

नाजुक बदन कोमल हाथों में लिए बाल्टी ,
मिस नीना चढ़ रही थी जीना।


ये तो कलियुग का प्रकोप है , उपरवाले ने सोचा,
और करूणावश पसीजने से अपने मन को रोका।
पर कलियुग पर आपके कर्मों का पलडा था भारी ,
इसीलिए धरती पर उतरी इन्द्र की सवारी।

फ़िर छमछम बरसा पानी , धरती की प्यास बुझाई ,
पर होलिका दहन में बड़ी मुसीबत आई।
मिट्टी के तेल से, मुश्किल से जली होली,

हमने सोचा इस बरस होली तो बस होली।

पर देखिये चमत्कार, कुदरत ने फ़िर से बदला रूप,
और होली के दिन बिखर गई, नर्म सुहानी धूप।
फ़िर जेम्स, जावेद, श्याम और संता ने मिल कर खेली होली,
और शहर में धर्मनिरपेक्षता की जम कर तूती बोली।

युवा है कलियुग अभी, कहीं जवां हो न जाए,
और मानव के जीवन में इक दिन ऐसा आए,
कि होलिका तो होलिका, रावण भी जल न पाये।
सत्कर्मों को अपनाइए,
बस यही है एक उपाय

आप सब को एक सौहार्दपूर्ण होली की हार्दिक शुभकामनायें