एक कहावत है --नया नया मुल्ला ज्यादा अल्लाह अल्लाह करता है । कुछ इसी तरह का माहौल हिंदी ब्लॉगजगत में भी रहा है । नया ब्लोगर किसी के कहने पर बड़े जोश के साथ ब्लोगिंग शुरू करता है। अपने सारे काम छोड़कर ब्लोगिंग में ज्यादा से ज्यादा समय लगाता है ताकि उसकी पहचान बने । परन्तु जल्दी ही अक्ल ठिकाने आ जाती है जब कहीं से कोई रिस्पोंस नहीं मिलती टिप्पणियों के रूप में ।
पुराने ब्लोगर्स भी अब ब्लोगिंग छोड़ फेसबुक , ट्विटर आदि में लीन हो गए हैं । अब कोई आधी आधी रात तक जागकर ब्लोगिंग नहीं करता ।
दिग्गज़ माने जाने वाले ब्लोगर्स भी अब ठंडे पड़ चुके हैं । जो कभी ६-१० ब्लोग्स मेनेज करते थे , अब फेसबुक में फोटो टैग करते नज़र आ रहे हैं ।
कुछ ब्लोगर्स या तो अस्वस्थता की वज़ह से, या कार्य अधिकतावश ब्लोगिंग से दूर हो गए हैं . कुछ ने असंतुष्ट होकर ब्लोगिंग से सन्यास ले लिए लगता है ।
बड़े बड़े कविराज भी ब्लॉग से गायब हो गए हैं । ज़ाहिर है, मुफ्त में अंगुलियाँ घिसना किसी को अच्छा नहीं लगता । वैसे भी मंच के बदले ब्लॉग में क्या मिलता है , कुछ झूठी सच्ची टिप्पणियां ।
अब तो अलग अलग बने खेमे भी बिखरते से नज़र आ रहे हैं। रही सही कसर व्यक्तिगत छींटा कसी ने पूरी कर दी ।
कुछ तो ऐसे हैं कि जाति विशेष को बढ़ावा देते हुएव्यक्तिगत उपलब्धियों को ही ब्लोगिंग समझते हैं ।
बड़े बड़े कविराज भी ब्लॉग से गायब हो गए हैं । ज़ाहिर है, मुफ्त में अंगुलियाँ घिसना किसी को अच्छा नहीं लगता । वैसे भी मंच के बदले ब्लॉग में क्या मिलता है , कुछ झूठी सच्ची टिप्पणियां ।
अब तो अलग अलग बने खेमे भी बिखरते से नज़र आ रहे हैं। रही सही कसर व्यक्तिगत छींटा कसी ने पूरी कर दी ।
कुछ तो ऐसे हैं कि जाति विशेष को बढ़ावा देते हुएव्यक्तिगत उपलब्धियों को ही ब्लोगिंग समझते हैं ।
स्वाभाविक है , आजकल बहुत पढने को मिल रहा है कि --अब ब्लोगिंग में मन नहीं लग रहा ।
अपने तीन साल के अनुभव में इतना ज़रूर देखा है कि ब्लोगिंग में टिप्पणियों का बहुत महत्त्व है । यदि पोस्ट पर टिप्पणी न हों तो ऐसा लगता है जैसे आप भैंस के आगे बीन बजा रहे हैं । कुछ लोग पोस्ट पर टिप्पणी का ऑप्शन बंद कर देते हैं । वह तो और भी ख़राब लगता है । ऐसी पोस्ट को पढ़ते हुए ऐसा महसूस होता है जैसे यह एक तरफा ट्रैफिक है । आप पढ़ तो सकते हैं लेकिन कुछ कह नहीं सकते । यह तो मेगालोमेनिया हुआ ।
अपने तीन साल के अनुभव में इतना ज़रूर देखा है कि ब्लोगिंग में टिप्पणियों का बहुत महत्त्व है । यदि पोस्ट पर टिप्पणी न हों तो ऐसा लगता है जैसे आप भैंस के आगे बीन बजा रहे हैं । कुछ लोग पोस्ट पर टिप्पणी का ऑप्शन बंद कर देते हैं । वह तो और भी ख़राब लगता है । ऐसी पोस्ट को पढ़ते हुए ऐसा महसूस होता है जैसे यह एक तरफा ट्रैफिक है । आप पढ़ तो सकते हैं लेकिन कुछ कह नहीं सकते । यह तो मेगालोमेनिया हुआ ।
कुछ ब्लोगर्स तो ऐसे हैं कि इ मेल पर आग्रह करते हैं पोस्ट पढने के लिए लेकिन स्वयं कभी किसी ब्लॉग पर टिप्पणी करते नज़र नहीं आते । हमें तो यह उदंडता लगती है ।
पोस्ट लिखने का असली फायदा ही तब है जब आप विचारों का आदान प्रदान कर सकें ।
अब तो गूगल ने भी टिप्पणियों की कमी का ख्याल रखते हुए उत्तर प्रत्युत्तर का प्रावधान कर ब्लोगर्स के लिए एक नया सामान दे दिया है , ब्लोगिंग से उदासीन न होने के लिए ।
प्रस्तुत है --इसी विषय पर , छोटी बह्र में एक छोटी सी ग़ज़ल :
पाठक कटने लगे
नोट : ब्लोगिंग में झलकती उदासीनता के कई कारण हैं । जैसे एक अच्छे ब्लॉग एग्रीगेटर का न होना , गूगल द्वारा टिप्पणियों और पोस्ट्स को गायब कर देना , ब्लोगर्स की व्यक्तिगत और स्वास्थ्य समस्याएँ, ब्लोगिंग से कोई कमाई न होना तथा समय के साथ शौक पूरा हो जाना ।
टीपाँ घटने लगे।
चाटू पोस्ट सभी
पढ़कर चटने लगे।
दिल से अब भरम के
बादल छंटने लगे।
आँखों से शरम के
परदे हटने लगे।
आपस के वैर में
मठ भी बंटने लगे।
गेहूं संग घुन ज्यों
हम भी लुटने लगे।
कहने को तो यहाँ
साथी पटने लगे।
आदर विश्वास के
सफ़्हे फटने लगे।
मंच पे पढना पड़े
कविता रटने लगे।
छोडो "तारीफ"क्यों
ग़म से घुटने लगे ।
नोट : ब्लोगिंग में झलकती उदासीनता के कई कारण हैं । जैसे एक अच्छे ब्लॉग एग्रीगेटर का न होना , गूगल द्वारा टिप्पणियों और पोस्ट्स को गायब कर देना , ब्लोगर्स की व्यक्तिगत और स्वास्थ्य समस्याएँ, ब्लोगिंग से कोई कमाई न होना तथा समय के साथ शौक पूरा हो जाना ।
जहाँ बाकि सब कारण हमारे वश में नहीं , वहीँ शौक को यूँ डूबने न दें , यही कामना है ।