एक कहावत है --नया नया मुल्ला ज्यादा अल्लाह अल्लाह करता है । कुछ इसी तरह का माहौल हिंदी ब्लॉगजगत में भी रहा है । नया ब्लोगर किसी के कहने पर बड़े जोश के साथ ब्लोगिंग शुरू करता है। अपने सारे काम छोड़कर ब्लोगिंग में ज्यादा से ज्यादा समय लगाता है ताकि उसकी पहचान बने । परन्तु जल्दी ही अक्ल ठिकाने आ जाती है जब कहीं से कोई रिस्पोंस नहीं मिलती टिप्पणियों के रूप में ।
पुराने ब्लोगर्स भी अब ब्लोगिंग छोड़ फेसबुक , ट्विटर आदि में लीन हो गए हैं । अब कोई आधी आधी रात तक जागकर ब्लोगिंग नहीं करता ।
दिग्गज़ माने जाने वाले ब्लोगर्स भी अब ठंडे पड़ चुके हैं । जो कभी ६-१० ब्लोग्स मेनेज करते थे , अब फेसबुक में फोटो टैग करते नज़र आ रहे हैं ।
कुछ ब्लोगर्स या तो अस्वस्थता की वज़ह से, या कार्य अधिकतावश ब्लोगिंग से दूर हो गए हैं . कुछ ने असंतुष्ट होकर ब्लोगिंग से सन्यास ले लिए लगता है ।
बड़े बड़े कविराज भी ब्लॉग से गायब हो गए हैं । ज़ाहिर है, मुफ्त में अंगुलियाँ घिसना किसी को अच्छा नहीं लगता । वैसे भी मंच के बदले ब्लॉग में क्या मिलता है , कुछ झूठी सच्ची टिप्पणियां ।
अब तो अलग अलग बने खेमे भी बिखरते से नज़र आ रहे हैं। रही सही कसर व्यक्तिगत छींटा कसी ने पूरी कर दी ।
कुछ तो ऐसे हैं कि जाति विशेष को बढ़ावा देते हुएव्यक्तिगत उपलब्धियों को ही ब्लोगिंग समझते हैं ।
बड़े बड़े कविराज भी ब्लॉग से गायब हो गए हैं । ज़ाहिर है, मुफ्त में अंगुलियाँ घिसना किसी को अच्छा नहीं लगता । वैसे भी मंच के बदले ब्लॉग में क्या मिलता है , कुछ झूठी सच्ची टिप्पणियां ।
अब तो अलग अलग बने खेमे भी बिखरते से नज़र आ रहे हैं। रही सही कसर व्यक्तिगत छींटा कसी ने पूरी कर दी ।
कुछ तो ऐसे हैं कि जाति विशेष को बढ़ावा देते हुएव्यक्तिगत उपलब्धियों को ही ब्लोगिंग समझते हैं ।
स्वाभाविक है , आजकल बहुत पढने को मिल रहा है कि --अब ब्लोगिंग में मन नहीं लग रहा ।
अपने तीन साल के अनुभव में इतना ज़रूर देखा है कि ब्लोगिंग में टिप्पणियों का बहुत महत्त्व है । यदि पोस्ट पर टिप्पणी न हों तो ऐसा लगता है जैसे आप भैंस के आगे बीन बजा रहे हैं । कुछ लोग पोस्ट पर टिप्पणी का ऑप्शन बंद कर देते हैं । वह तो और भी ख़राब लगता है । ऐसी पोस्ट को पढ़ते हुए ऐसा महसूस होता है जैसे यह एक तरफा ट्रैफिक है । आप पढ़ तो सकते हैं लेकिन कुछ कह नहीं सकते । यह तो मेगालोमेनिया हुआ ।
अपने तीन साल के अनुभव में इतना ज़रूर देखा है कि ब्लोगिंग में टिप्पणियों का बहुत महत्त्व है । यदि पोस्ट पर टिप्पणी न हों तो ऐसा लगता है जैसे आप भैंस के आगे बीन बजा रहे हैं । कुछ लोग पोस्ट पर टिप्पणी का ऑप्शन बंद कर देते हैं । वह तो और भी ख़राब लगता है । ऐसी पोस्ट को पढ़ते हुए ऐसा महसूस होता है जैसे यह एक तरफा ट्रैफिक है । आप पढ़ तो सकते हैं लेकिन कुछ कह नहीं सकते । यह तो मेगालोमेनिया हुआ ।
कुछ ब्लोगर्स तो ऐसे हैं कि इ मेल पर आग्रह करते हैं पोस्ट पढने के लिए लेकिन स्वयं कभी किसी ब्लॉग पर टिप्पणी करते नज़र नहीं आते । हमें तो यह उदंडता लगती है ।
पोस्ट लिखने का असली फायदा ही तब है जब आप विचारों का आदान प्रदान कर सकें ।
अब तो गूगल ने भी टिप्पणियों की कमी का ख्याल रखते हुए उत्तर प्रत्युत्तर का प्रावधान कर ब्लोगर्स के लिए एक नया सामान दे दिया है , ब्लोगिंग से उदासीन न होने के लिए ।
प्रस्तुत है --इसी विषय पर , छोटी बह्र में एक छोटी सी ग़ज़ल :
पाठक कटने लगे
नोट : ब्लोगिंग में झलकती उदासीनता के कई कारण हैं । जैसे एक अच्छे ब्लॉग एग्रीगेटर का न होना , गूगल द्वारा टिप्पणियों और पोस्ट्स को गायब कर देना , ब्लोगर्स की व्यक्तिगत और स्वास्थ्य समस्याएँ, ब्लोगिंग से कोई कमाई न होना तथा समय के साथ शौक पूरा हो जाना ।
टीपाँ घटने लगे।
चाटू पोस्ट सभी
पढ़कर चटने लगे।
दिल से अब भरम के
बादल छंटने लगे।
आँखों से शरम के
परदे हटने लगे।
आपस के वैर में
मठ भी बंटने लगे।
गेहूं संग घुन ज्यों
हम भी लुटने लगे।
कहने को तो यहाँ
साथी पटने लगे।
आदर विश्वास के
सफ़्हे फटने लगे।
मंच पे पढना पड़े
कविता रटने लगे।
छोडो "तारीफ"क्यों
ग़म से घुटने लगे ।
नोट : ब्लोगिंग में झलकती उदासीनता के कई कारण हैं । जैसे एक अच्छे ब्लॉग एग्रीगेटर का न होना , गूगल द्वारा टिप्पणियों और पोस्ट्स को गायब कर देना , ब्लोगर्स की व्यक्तिगत और स्वास्थ्य समस्याएँ, ब्लोगिंग से कोई कमाई न होना तथा समय के साथ शौक पूरा हो जाना ।
जहाँ बाकि सब कारण हमारे वश में नहीं , वहीँ शौक को यूँ डूबने न दें , यही कामना है ।
एकदम मन पढ़ लिया मानों आपने ब्लॉगर का.....
ReplyDeleteहर बात सोलह आने सच लगी....
बहुत बढ़िया लेखन डॉक्टर साहब...
गेहूं संग घुन ज्यों
हम भी लुटने लगे।
गज़ल के लिए दाद कबूल करें...
सादर
अनु
गूगल द्वारा टिप्पणियों और पोस्ट्स को गायब कर देना ,
ReplyDeleteमैं तो त्रस्त हूँ इस समस्या से....
अभी अभी यहाँ टिप्पणी की...अब देखा तो गायब.....
दुबारा टिप्पणी में वो बात नहीं रहती....
अच्छी पोस्ट सर...
बढ़िया गज़ल..
सादर.
my comment gone.........for the 3rd time..........
ReplyDeleteits sickening!!!!!
regards.
anu
oh here they are...all ...
Deletethanks doc
:-)
अनु जी , इस स्पैम ने तो सब का काम बढ़ा दिया है . कोई हल भी नहीं निकल रहा .
Deleteबात तो आप सही कह रहे हैं काफ़ी हद तक यही हो रहा है मगर हम तो अभी सक्रिय हैं देखते हैं कब तक रह सकते हैं।
ReplyDeleteडॉ.साहब! आज आप की उदासी काम आ गई ...
ReplyDeleteहकीकत से रु-ब-रु कराती आप की शानदार गज़ल पढ़ने को मिली |
राफ्ता कायम रखिये .....वरना हमें कौन पूछेगा :-))
खुश रहें !
आभार!
अशोक जी , यूँ तो ब्लोगिंग टाइम पास शौक है . बेशक , अपने काम छोड़कर नहीं करना चाहिए .
Deleteलेकिन शौक के लिए टाइम न हो , ऐसा भी नहीं होना चाहिए . इसीलिए हम भी लगे हुए हैं .
सर जी, मैं तो बस यही कहूँगा कि आज आप मूड में लग रहे है ! :)हाँ, कविता बहुत ही जानदार लिखी है आपने !
ReplyDeleteनया नया मुल्ला ज्यादा अल्लाह अल्लाह करता है । Ha-ha-ha....
गोदियाल जी , लिखा तो बहुत पहले था । लेकिन ब्लॉग पर आज ही डाल पाया हूँ । वैसे आज भी उतना ही तर्कसंगत है ।
Deleteनया नया ---जी हाल तो कुछ ऐसा ही है ।
वाह जी वाह! बात तो आपने सौलाह आने सच कही... जो कुछ विशेष प्राप्त करना चाहते थे वह ना मिलने के कारण दूर हुए, तो कुछ व्यस्तता के कारण. लेकिन एक बात है, जो एक बार हिंदी ब्लोगिंग में आगया, वह हमेशा के लिए अलविदा कह ही नहीं सकता है. कुछ लिखे ना लिखे, परन्तु अक्सर या कभी-कभी देख अवश्य लेता है कि कौन क्या लिख रहा है. और कुछ नहीं तो गूगल महाराज तो हैं ही...
ReplyDeleteवैसे आपके अच्छे एग्रीगेटर का क्या पैमाना है? :-)
वैसे आपके अच्छे एग्रीगेटर का क्या पैमाना है? :-)
Deletegood question
शाहनवाज़ जी , नाम तो नहीं गिनवा सकते लेकिन बहुत से मित्र ऐसे हैं जो अब कहीं नज़र नहीं आते । दोष भी नहीं दे सकते क्योंकि सबके लिए और भी ग़म हैं ज़माने में ।
Deleteअच्छा एग्रीगेटर --इस वक्त तो सिर्फ हमारीवाणी का ही सहारा है लेकिन इसकी पहुँच उतनी नहीं हो पाई जितनी ब्लॉग वाणी या चिटठाजगत की थी । हालाँकि कोई शिकायत नहीं ।
ab daekhiyae naari blog ko to 4 saal ho gyae aur abhi bhi paer tikkae haen
ReplyDeleteअच्छी बात है । आप अच्छा काम कर रही हैं ।
Deleteसकारात्मक सोच के साथ चलते रहिये ।
:) क्या मौज ली है जी।
ReplyDeleteआठ साल होने को आये लेकिन अपन का तो ब्लॉगिंग में फ़ुल मन लगा है। फ़ेसबुक ट्विटर को तो खाली अपन नोटिस बोर्ड की तरह इस्तेमाल करते हैं। :)
अनूप जी , जो देखा वो लिख दिया । :)
Deleteवैसे इस फेसबुक ने ब्लोगिंग का बहुत नुकसान किया है ।
लोग अंधाधुंध जागने से लेकर सोने तक का एक एक आँखों देखा हाल बयां करते रहते हैं ।
क्या पागलपन है !
कुछ लोग भले ही इसे सेल्फ प्रोमोशन का ज़रिया बनाकर बैठे हैं । अधिकतर तो टाइम खोटी ही करते हैं , वाहियात बातों में । अफ़सोस तो तब होता है जब बड़े बड़े कविराज भी यही करते दिखते हैं ।
हां मामला सुप्रभात से शुरु होकर शुभरात्रि तक जाता है कई लोगों का।
Deleteइसी को लेकर एक लेख लिखा था - ब्लॉगिंग, फ़ेसबुक और ट्विटर
अनूप जी , उपरोक्त लेख पढ़ा । ज्यादातर बातों से हम भी सहमत हैं ।
Deleteब्लोगिंग का कोई मुकाबला नहीं फेसबुक आदि से । जो अभिव्यक्ति ब्लॉग पर हो सकती है वह कहीं और नहीं ।
लेकिन निश्चित ही ब्लोगिंग टिप्पणियों पर आधारित है । जहाँ टिप्पणी मिलनी बंद या कम हुई , लोग फेसबुक की शरण में चले जाते हैं ।
ब्लोगिंग को कम इसलिए माना जा रहा है क्योंकि हर समय कुछ जाने माने परिचित ब्लोगर ब्लॉग पर कम और फेसबुक पर ज्यादा नज़र आते हैं । बेशक यह घटता बढ़ता रहता है ।
दराल साहब कविराज के वाहियात होने वाली आपकी बात से सौ फीसदी सहमत हूं :)
Deleteअली जी , इस पैसे की आपा धापी में शायद कवि भी अपनी मार्केटिंग के लिए फेसबुक का सहारा लेते हैं ।
Deleteaap mareej ki nabj pahachaante hain ye to pata tha kintu blogers ki nabj bhi padhte hain aaj hi pata chala ....hahaha....bilkul sahi likha hai kuch salaah ke roop me upchar bhi kiya.hardik aabhar.
ReplyDeleteराजेश जी , तीन साल में तो एम डी हो जाती है। :)
DeleteJCMar 24, 2012 02:13 AM
ReplyDeleteडॉक्टर का यह काम ही होता है कि बीमार 'सर' कहे, और उसके आगे कुछ बोल सके, उस से पहले ही सरदर्द की दवा लिख देना :) इसे ही तो कहते हैं अनुभव, अथवा धुप में बाल न सफ़ेद करना!
ब्लॉगिंग भी मानव जीवन का प्रतिबिम्ब है, या कहिये कि रेल-यात्रा समान है, जहा हर स्टेशन आने पर कुछ सवारियां उतर जाती हैं... और लम्बी रेस के घोड़े समान कुछेक दृष्टा-भाव से अन्या यात्रियों को उतरते देखते रहते हैं और अपने गंतव्य का इंतज़ार करते हैं...
बहुत सही कहा जे सी जी ।
Deleteइसीलिए किसी से कोई शिकायत भी नहीं हो सकती ।
सब अपनी मर्ज़ी से आते हैं , अपनी मर्ज़ी से जाते हैं ।
दो साल से अधिक हो गए हैं.....पर कुछ विषय अब तक अपने लिखे जाने की बाट ही जोह रहेहैं
ReplyDeleteजिन्हें लिखने का मर्ज हो..उनके लिए ब्लॉग्गिंग ही दवास्वरूप है.
यही तो ब्लोगिंग की जान है रश्मि जी ।
Deleteलिखने के लिए इतना कुछ है कि शायद ये सारी जिंदगी भी कम पड़ जाए ।
लेकिन पढने के लिए भी बहुत है जो हो नहीं पाता ।
इसलिए धीरे धीरे कनेक्शन कटने लगता है ।
उसकी पोस्ट पढ़ी जाय तो अपनी पढ़ पाय
ReplyDeleteकमेंट उस पर ही करें जो हमको टिपियाय।
बिलाबात ही सही, लिखता हो दिन-रात
ब्लॉगर वो महान है जो देता हरदम साथ।
दो चार को छोड़कर अमर हुआ ना कोय
अमरत्व लोभ में कवि, काहे साथी खोय!
....डा0 साहब कम से कम ब्लॉगिंग में तो आपका साथ हम निभायेंगे ही चिंता मत कीजिए।
एक तुक्कड़ अपना भी :)
Deleteब्लागिंग प्रतिभा के चेहरे से परदे हटने लगे !
शर्मसार बंदे ट्विटर फेसबुक में सिमटने लगे !!
नवमुल्लों ने लिखे संविधान वो अब फटने लगे !
मौक़ा-ए-वारदात से यार दोस्त सब छंटने लगे !!
मठाधीशी के फालतू भ्रम आंख से छटने लगे !
लुटे पिटे वीरान ब्लाग डेरों में उल्लू भटकने लगे !!
ब्लागिरी के शेर सारे दुमदबा कर खिसकने लगे !
कच्चे-लंगोट मल्ल सारे ट्विट ओट दुबकने लगे !!
पाण्डे जी , चिंता हमें अपनी नहीं है । जिस दिन लगेगा कि ब्लोगिंग में वक्त ज़ाया कर रहे हैं , उस दिन छोड़ देंगे । लेकिन बात उनकी है जो छोड़ कर जा चुके । जगजीत सिंह जी की एक ग़ज़ल याद आ रही है --
Deleteकोई जल्दी में , कोई देर से जाने वाला ।
यह पोस्ट जा चुके साथियों की याद में लिखी है ।
वाह वाह , अली जी , आपने अपने शब्दों में यही बात कह दी । बहुत सुन्दर ।
अपन भी रि-ठेले देते हैं:
Deleteब्लागिंग एक बवाल है, बड़ा झमेला राग,
पल में पानी सा बहे, छिन में बरसत आग!
भाई हते जो काल्हि तक,वे आज भये कुछ और,
रिश्ते यहां फ़िजूल हैं, मचा है कौआ रौर!
हड़बड़-हड़बड़ पोस्ट हैं, गड़बड़-सड़बड़ राय,
हड़बड़-सड़बड़ के दौर में,सब रहे यहां बड़बड़ाय!
हमें लगा सो कह दिया, अब आपौ कुछ कहिये भाय,
चर्चा करने को बैठ गये, आगे क्या लिक्खा जाय!
हे देखो! हमारे लिखे की तारीफ तो कर नहीं सके, उल्टे हमे नीचा दिखाने के लिए हमसे अच्छा-अच्छा लिखकर फूट लिये:)
Deleteपाण्डे जी , अली जी और अनूप जी पूरी तरह मस्ती के मूड में आ चुके थे । लेकिन हमें ही कहीं जाना पड़ा । इसलिए यह संवाद यहीं छोड़ना पड़ा ।
Deleteदेवेन्द्र जी ,
Deleteफूटे हुए यार किसके
दम लगाई ,खिसके :)
क्या जलवेदार बात लिखी है देवेन्द्र पाण्डेयजी ने और तदोपरांत क्या रोना रोया है तारीफ़ न मिलने का। गज्जब। दोनों की किलो-किलो तारीफ़। :)
Delete...स्वाभाविक है , आजकल बहुत पढने को मिल रहा है कि --अब ब्लोगिंग में मन नहीं लग रहा ।...
ReplyDeleteमुझे तो यह कहीं पढ़ने को नहीं मिला!!!!!
[नसीहत : ऐसी जगह पढ़ने को जाएं जहाँ ऐसी वाहियात किस्म की बातें कहने को तो दूर, सोची भी न जाती हों :)]
और, ब्लॉगिंग तो सदा सर्वदा की तरह फल फूल रही है. नित सैकड़ों नए ब्लॉगर आ रहे हैं और हर विषय पर [उदाहरण - मोटरगाड़ी.कॉम - http://krantisambhav.blogspot.in/ देखा क्या?] पोस्ट पर पोस्ट लिखे जा रहे हैं. अलबत्ता नजरों में आने की समस्या जरुर है. मगर फिर जब पचास हजार और एक लाख ब्लॉगर हो चुके हैं तो आप उनमें से 100-50 को ही तो देख पाएंगे और उनमें भी 5-10 को ही पढ़ पाएंगे - एग्रीगेटर हो या न हो. स्थिति अब यही बनी रहेगी!
लोग अब इंटरनेट सर्च के जरिए ही अपने पसंदीदा विषय के ब्लॉगों पर जाएंगे, और यदि मामला जमा तो स्थाई सदस्यता (माने फीड, ईमेल इत्यादि से) ग्रहण करेंगे. अंग्रेज़ी ब्लॉगों में जैसा चलता है ठीक वैसा ही. और यह स्थिति हिंदी ब्लॉगों के लिए बेहतर ही है.
श्रीवास्तव जी , हम भी यही कह रहे हैं कि लम्बी रेस के घोड़े ज्यादा नहीं दिख रहे । आप जैसे बरसों से जमे ब्लोगर कितने हैं !
Delete८०-९० के करीब जिन ब्लोग्स को मैं फोलो करता हूँ उनमे से १०-१५ ही सक्रीय हैं । इनमे से ४-५ को ही लोकप्रियता हासिल है । ज़ाहिर है , बाकि देर सबेर मैदान छोड़ कर जाने वाले हैं ।
अंतत : अच्छा लिखने वाले ही रह जायेंगे जिन्हें लोग ढूंढ कर पढेंगे ।
ब्लोगिंग में इनिशियल यूफोरिया होता है जो जल्दी ही यथार्थ के सामने घुटने टेक देता है ।
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएँ!
विचारों का उत्कृष्ट आदान प्रदान हो तो अवश्य बेहतर होगा
ReplyDeleteसही बात है, सीमा है इसकी कि कितने ब्लोग्स पढ़े जा सकते हैं... अब इतने सारे ब्लोग्स हैं तो स्वाभाविक है, ध्यान बंटेगा.
ReplyDeleteशेष ये कि आपकी बातें बेबाक सत्य हैं. आशा है हिंदी ब्लॉगजगत कि गुणवत्ता बरकरार रहे!
आपने सही समय पर सही पोस्ट दी है। एक दो दिन से मैं भी इसी विषय पर लिखने की सोच रही थी। उदासीनता तो है, कारण भी कई है। यहां दलगत राजनीति हो गयी है इसलिए विषय कम होते जा रहे हैं।
ReplyDeleteचिंता नहीं अजित जी । राजनीति से कुछ ही लोग दूर हो सकते हैं , सब नहीं । स्वांत: सुखाय लिखते हुए यदि समाज का भी भला होता रहे तो ब्लोगिंग सार्थक कहलाएगी ।
Delete" स्वांत: सुखाय लिखते हुए यदि समाज का भी भला होता रहे तो ब्लोगिंग सार्थक कहलाएगी ।" EXACTLY !!
Deleteसत्य वचन, आपकी ज्यादातर बाते सही है। वैसे भी जिसके पास लिखने को कुछ ना(कुछ खास) होगा वो लिखेगा भी क्या? बेकार को पढेगा कौन? ये जिंदगी के मेले दुनिया में कम ना होंगे, अफ़सोस हम ना होंगे, यह आना जाना लगा रहता है इसे ही जीवन कहते है जिसका जितना जीवन उतने दिन जी लेगा? बस यही बात यहाँ भी लागू हो रही है,
ReplyDeleteसंदीप जी , ब्लोगिंग ने विचारों को विस्तार दिया है । थोड़ी सी कोशिश करके और सुधार किया जा सकता है । इसलिए प्रयास जारी रहना चाहिए ।
Deleteउदासीनता तो है मगर पोस्ट आपकी मजेदार रही भाई जी !
ReplyDeleteमुबारक हो !
सतीश जी , इस उदासीनता का एक कारण यह भी है कि ब्लोगर या तो बहुत गंभीर होकर लिखते हैं या बहुत मस्ती के मूड में । गंभीर को पढने वाले ज्यादा नहीं हो सकते । मस्ती को बनाये रखना मुश्किल होता है । जबकि आवश्यकता है हलके और मनोरंजक अंदाज़ में गंभीर लेखन की । रोचक अंदाज़ में भी बड़ी से बड़ी बात कही जा सकती है ।
Deleteयह बिल्कुल वैसा है जैसे कॉलेज में कई प्रवक्ता हूट हो जाते हैं , कईयों को बड़े ध्यान से सुना जाता है ।
यदि जिंदगी के प्रति हम अपना नज़रिया बदल लें तो शायद कोई बात बने ।
क्या बात है बहुत खूब...अपने तो सभी के दिलों की बात कह डाली....एकदम सही लिखा है आपने, मेरा भी दो सालों में कुछ ऐसा ही अनुभव रहा है। जो ब्लोगर मुझे अच्छे लगे उनमें से ज़्यादातर लोगों ने या तो अब लिखना लगभग छोड़ ही दिया है या फिर लिखते तो बहुत है मगर कभी किसी और की पोस्ट पर जाने क्यूँ उन्हें जाने में बहुत कष्ट होता है। सटीक एवं सार्थक पोस्ट आभार...
ReplyDeleteदराल साहब आपने सब कुछ सच सच बाँच दिया।
ReplyDeleteकम से कम मैं गायब नहीं हूँ। हाँ कुछ व्यक्तिगत मसरूफियत और स्वास्थ्य कारणों से अनवरत पर हाजिरी कम हुई है। लेकिन तीसरा खंबा नियमित है। अनवरत पर भी नियमितता बनाए रखने का प्रयत्न कर रहा हूँ। शायद जल्दी ही बन भी जाएगी।
द्विवेदी जी , तीसरा खंबा पर आप जो जन सेवा कर रहे हैं , वह वास्तव में अत्यंत सराहनीय है । मेरी राय में दो से ज्यादा ब्लॉग चलाने में दिक्कत होती है । इसलिए इन्ही पर केन्द्रित रहें । आभार ।
Deleteआपका ये पोस्ट सही दिशा में है. कारण भी हज़ार है.
ReplyDeleteकभी मैंने भी विश्लेषण किया था तक़रीबन तीन साल पहले उन दिनों ब्लॉग जगत में अच्छी सामग्रियों के साथ उठा पाठक भी खूब होती थी.
अपन को जब भी समय मिलता है, पोस्टें पढने या कमेन्ट के लिए आ जाता हूँ, वैसे बहुत सारे पोस्ट तो मैं इमेल फीड से प्राप्त कर लेता हूँ.
Deleteयदि २०-४० के युवा ब्लोगिंग में ज्यादा समय बिताते हैं तो उनके लिए ये शौक महंगा है. मैं आज भी कुछ अच्छे और समर्पित ब्लोगरों को मन से पढता हूँ.
खुद के ब्लॉग को अपडेट नहीं कर पाता. मैं मानता हूँ कि कविता या शायरी और मोहब्बत में जोर जबरदस्ती नहीं हो सकती. दिल भीगता है तो अच्छी रचना हो जाती है. वर्ना महीनो अकाल रहता है. ये तो हुई कवि मन (कवि ब्लोगर) की बात. हाँ ये जरुर है हिंदी में कमेन्ट देने में समय ज्यादा लगता है और फेसबुक में लाइक ऑप्शन सबको आसान लगता है.
इसके अलावा कुछ अन्य ब्लोगों पर काम भी करता हूँ. कई बार मेरा खाली समय औरों को तकनीकी सपोर्ट देने में बीतता है.
सुलभ --युवाओं को ब्लोगिंग में ज्यादा समय नहीं बिताना चाहिए । यही बात फेसबुक के लिए लागु होती है । बल्कि फेसबुक में ज्यादा समय नष्ट होता है । क्वानटीटी से क्वालिटी बेहतर है ।
Deleteये तुकबंदी 12 सितंबर 2010 को की थी, तब फेसबुक, ट्विटर का इतना तामझाम नहीं था...
ReplyDelete
ब्लॉगिंग की हर शह का इतना ही फ़साना है,
इक पोस्ट का आना है, इक पोस्ट का जाना है...(अब पोस्ट की जगह ब्लागर पढ़ा जाए)
कहीं टिप्पणियों का टोटा, कहीं खजाना है,
ये राज़ नया ब्लॉगर समझा है न जाना है...
इक सक्रियता के फलक पर टिकी हुई ये दुनिया,
इक क्रम खिसकने से आसमां फट जाना है...(उस टाइम चिट्ठाजगत का सक्रियता क्रमांक एक से चालीस तक ही सब मायने रखता था)
कहीं चैट के पचड़े, कहीं मज़हब के झगड़े,
इस राह में ए ब्लॉगर टकराने का हर मोड़ बहाना है...
हम लोग खिलौने हैं, इक ऐसे गूगल के,
जिसको एड के लिए बरसों हमें तरसाना है...
ब्लॉगिंग की हर शह का इतना ही फ़साना है,
इक पोस्ट का आना है, इक पोस्ट का जाना है...
जय हिंद...
बहुत खूब खुशदीप भई । फिर कैसे कहें कि हिंदी ब्लोगिंग का विकास हो रहा है ।
Deleteअरे हमारा कमेन्ट कहाँ गया??? सुबह अच्छा भला छपा देख कर गए थे.खैर
ReplyDeleteहमें तो कोई ओर गम भी नहीं ज़माने में ब्लॉग्गिंग के सिवा, इसे छोड़ा तो और कहाँ जायेंगे.
अच्छा विश्लेषण किया है आपने.
.
ReplyDelete.
.
मैं पल दो पल का ब्लॉगर हूँ...
पल दो पल मेरी कहानी है
पल दो पल मेरी हस्ती है
पल दो पल मेरी जवानी है
मैं पल दो पल का ब्लॉगर हूँ ...
मुझसे पहले कितने ब्लॉगर
आए और आकर चले गए
कुछ आहें भर कर लौट गए
कुछ पोस्ट टिका कर चले गए
वो भी एक पल का किस्सा थे
मैं भी इस पल का किस्सा हूँ
कल तुमसे जुदा हो जाऊँगा
पर आज तुम्हारा हिस्सा हूँ
मैं पल दो पल का ब्लॉगर हूँ ...
कल और आएंगे खयालों की
खिलती कलियाँ चुनने वाले
मुझसे बेहतर लिखने वाले
तुमसे बेहतर पढ़ने वाले
कल कोई मुझको याद करे
क्यूँ कोई मुझको याद करे
मसरूफ़ ज़माना मेरे लिये
क्यूँ वक़्त अपना बरबाद करे
मैं पल दो पल का ब्लॉगर हूँ ... :(
... :)
...
प्रवीण जी , लगता है यह गाना सदियों पहले ब्लोगर्स के लिए ही लिखा गया था । :)
Deleteमैं हर इक पल का ब्लॉगर हूं...
ReplyDeleteहर इक पल मेरी कहानी है,
हर इक पल मेरी हस्ती है,
हर इक पल मेरी जवानी है,
मैं हर इक पल..
माध्यमों का रूप बदलता है, बुनियादें ख़त्म नहीं होती,
ख्वाबों की और उमंगों की, मियादें ख़त्म नहीं होती,
इक ब्लाग में मेरा रूप बसा, इक -इक पोस्ट में मेरी जवानी है,
इक फेसबुक मेरी पहचान, इक ट्विटर मेरी निशानी है,
मैं हर इक पल...
जय हिंद...
कोई पल दो पल के ब्लॉगर हैं
ReplyDeleteकोई चौबिस घंटे पागल हैं
कोई बीबी छोड़ पिले रहते
कहीं ब्लॉगर बीबी, जागल हैं।
इक बेचारा डाकदर से बोला
मेरी बीबी ब्लॉगर है
डाकदर ने माथा पीट लिया
समझा बड़का पागल है!
जहाँ एक होय गनीमत है
दूजा कुछ और करे लेगा
बच्चों का लेकिन का होगा
माँ-बाप अगरचे ब्लॉगर हैं!
बच्चे खानदानी ब्लोगर बन जायेंगे । :)
Deleteहां इतना तो मैं मानता हं कि कम ब्लॉगर सक्रिय हैं...पर रोज रोज पोस्ट लिखना संभव होता भी नहीं है..मेरी तो अब तक सौ पोस्ट नहीं हूई है पिछले सवा दो साल में..ऐसा नहीं है कि नहीं हो सकती थी..पता नहीं किस श्रेणी में मुझे आप रखेंगे..मैं तो अपने को सक्रिय ब्लॉगर ही मानता हूं. पिछले साल के साढ़े तीन महीने फरवरी से जून तक को छोड़कर मैं लगातार सक्रिय हूं..पढ़ना तो चलता रहता है ब्लॉग पर.हां हर बार टिप्पणी संभव नहीं होती..खासकर किसी कविता पर लंबी टिप्पणी संभव ही नहीं होती मेरे लिए...अच्छी कविता या अच्छी रचना ही ज्यादातर कविता के लिए शब्द होते हैं..हां मैं टिप्पणी की परवाह नहीं करता क्योंकि टिप्पणी के लिए लिखना जिस दिन शुरु किया उस दिन लेखन लेखन न रह कर चाटुकारिता रह जाएगी....
ReplyDeleteसतीश जी को प्रत्युत्तर में जो आपने लिखा है उससे सौ प्रतिशत सहमत हूं
रोहित जी , रोज रोज लिखना भी नहीं चाहिए । हम तो ये बात बहुत पहले से कह रहे हैं । सप्ताह में एक या दो पोस्ट बहुत हैं । तभी दूसरों को पढने का समय मिलेगा ।
Deleteलेकिन टिप्पणियों से संवाद स्थापित होता है जो ब्लोगिंग को सार्थक बनाता है ।
बिल्कुल सही बात कही आपने ।
ReplyDeleteJCMar 24, 2012 05:52 PM
ReplyDelete"हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है...", कुछ लोग संगीत में रूचि रखते हैं, भले ही उन्होंने इस विषय विशेष पर शिक्षा न ग्रहण की हो... तानसेन, अथवा जगजीत सिंह तो कोई एक ही हो सकता है, पर उस को सुनने वाले और पसंद करने वाले लाखों- करोड़ों हो सकते हैं, और उन के आलोचक भी कई... सारा मामला (द्वैतवाद का) मन के रुझान का होता है, और कई औरंगजेब समान भी होना स्वाभाविक है (मानव समाज सदैव तीन भाग में बाँट जाता है)...
हम तो भाई कानसेन हैं, जो अच्छा लगा वो सुनने / पढने लगे - प्रयास सदैव किन्तु 'सत्य' / अनंत की खोज... अपने पूर्वजों ने भी कहा, "हरी अनंत/ हरी कथा अनंता...", और उनसे सहमत यदि कोई हो सके तो कभी बोर नहीं होगा ऐसी मेरी मान्यता है...
क्या डाक्टर साहब आपका काम जख्मों को हरा करना है या इलाज है ..
ReplyDeleteतिस पर प्रवीण शाह जी और संजीदा कर दिए...
आईये हम इस विधा को प्रोत्साहित करने की बात करें ,गए को बुलाएं ,नयें को लुभायें !
अरविन्द जी , जाने वाले अपनी इच्छा से गए हैं । यह अलग बात है कि कई ऐसे हैं जिनके बगैर ब्लॉगजगत सूना सा लगता है ।
Deleteफिर भी , लाइफ हैज टू गो ओन ।
ब्लॉगिंग को लेकर कई तरह की अवधारणाएं चल रही हैं,लेकिन इतना तो सत्य है कि इसमें 'सिंगल-ऑपरेशन' जैसा कुछ नहीं है.यह विधा संवाद और विमर्श को लेकर ही अपनाई जा सकती है.आप कित्ते बड़े लेखक या कवि हैं,अच्छे ब्लॉगर तभी बन पाएंगे,जब आप पारस्परिक पढ़ना-लिखना जारी रखेंगे.
ReplyDelete..मेरे पास भी कई मेल आते हैं जिनमें उनकी कविताओं को पढ़ने की हिदायत होती है तो मैं भी वापसी-डाक से उन्हें यह 'नुस्खा' भेज देता हूँ कि भाई,आप पढोगे तभी पढ़े जाओगे.यह ब्लॉग-जगत बड़ा निर्मम है,इस मामले में !
आपसे सहमत हूँ संतोष जी ।
Deleteछोटी बहर की ग़ज़ल अच्छी लगी. बात भी सही है भले सोलह आने न हो...मुझे लगता है कि हिंदी ब्लॉगिंग अभी शैशवावस्था में है (ब्लॉगर नहीं) नया माध्यम है. वर्तमान भले कुछ संकटमय दिखता हो लेकिन भविष्य का मीडिया यही होगा. ऐसा मेरा विश्वास है.
ReplyDeleteचिठ्ठाकारी एक चाक्षुष माध्यम हैं .यहाँ आकर ज्ञान चक्षु जल्दी खुल जातें हैं .कभी कभार विस्फारित भी .'ज्यों की त्यों धर दीन्हीं चदरिया 'राग ,विराग सब कुछ यहाँ आकर समझ में आजाता है .हाँ आपके लिखे को एक तुरता माध्यम मिलता है .आप अवसाद ग्रस्त होने से बच जातें हैं .ब्लोगिंग एक थिरेपी भी है व्यसन भी .अवसाद दूर करता है मोटापा बढाता है .एक्टिव और पेसिव नहीं होता चिठ्ठा कार स्मोकिंग की तरह .बस होता है .कुछ इस तरह -
ReplyDeleteअपने होने का एहसास दिला देतें हैं ,
जब ग़ज़ल कोई ज़माने को सुना देतें हैं .
चिठ्ठाकारी एक चाक्षुष माध्यम हैं .यहाँ आकर ज्ञान चक्षु जल्दी खुल जातें हैं .कभी कभार विस्फारित भी .'ज्यों की त्यों धर दीन्हीं चदरिया 'राग ,विराग सब कुछ यहाँ आकर समझ में आजाता है .हाँ आपके लिखे को एक तुरता माध्यम मिलता है .आप अवसाद ग्रस्त होने से बच जातें हैं .ब्लोगिंग एक थिरेपी भी है व्यसन भी .अवसाद दूर करता है मोटापा बढाता है .एक्टिव और पेसिव नहीं होता चिठ्ठा कार स्मोकिंग की तरह .बस होता है .कुछ इस तरह -
ReplyDeleteअपने होने का एहसास दिला देतें हैं ,
जब ग़ज़ल कोई ज़माने को सुना देतें हैं .
हाँ यहाँ एक के बदले एक टिपण्णी चलती है कई एक के साथ दो टिपण्णी सौगात में दे देतें हैं .'तेरी टिपण्णी के सिवाय दुनिया में रख्खा क्या है ,तू लिखे शम्मा जले ,तू लिखे काम चले ,तेरा आना तेरा जाना मुझे लगता है भला ...
बुजुर्गों के लिए बढ़िया टाइम पास है वीरूभाई जी । बेशक टिप्पणियों की खुराक मिलती रहे तो गाड़ी चलती रहती है ।
Deleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुती आप के ब्लॉग पे आने के बाद असा लग रहा है की मैं पहले क्यूँ नहीं आया पर अब मैं नियमित आता रहूँगा
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद् की आप मेरे ब्लॉग पे पधारे और अपने विचारो से अवगत करवाया बस इसी तरह आते रहिये इस से मुझे उर्जा मिलती रहती है और अपनी कुछ गलतियों का बी पता चलता रहता है
दिनेश पारीक
मेरी नई रचना
कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: माँ की वजह से ही है आपका वजूद:
http://vangaydinesh.blogspot.com/2012/03/blog-post_15.html?spref=bl
Something is better than nothing :)
ReplyDeleteeven when many r gone, few(extremely good) Hindi bloggers r still active... n every time I read them( agree my frequency is too weak and my circle is too small, but still) its a Treat !!!
never mind . in your age , it is more important to concentrate on your carrier . best wishes .
ReplyDeleteआपने भी किस नब्ज़ पे हाथ रख दिया ... वैसे सच है अच्छे अग्रीगेटर का न होना एक कारण है ...
ReplyDeleteबाकी आपने सभी मसले बहाने तरीके ... खोल के लिख दिए हैं ...
रही कही आपकी लाजवाब गज़ल ने भी कह दिया है ... मज़ा आ गया पूरी पोस्ट का ...
क्या करें नासवा जी । खाली सूने पड़े ब्लोग्स को देखकर वास्तव में दुःख सा होता है । कैसे टिकेंगे लोग बिना टिप्पणियों के ज्यादा दिन ब्लोगिंग में ।
Deleteफरवरी '०५ में मैंने, समाचार पत्र में पढ़, ब्लॉग संसार में एक अंग्रेजी ब्लॉग पर टिपण्णी लिख प्रवेश पाया...
Deleteवैसे ही जैसे पानी में काँटा डाल एक मछुआरा बैठा रहता है - इस आशा से की कभी तो कोई मछली फंसेगी ही - 'बेचारी' वर्ष-दो वर्ष से मंदिरों पर पोस्ट पर पोस्ट डाल रही थी, पर कोई टिप्पणी नहीं आ रहीं थीं, जिस कारण वो खुश हो गयी, क्यूंकि उसके बाद कई और तिप्पंणीकार आते चले गए और दायरा बढ़ता गया ...
और यद्यपि बीच में जब सोचा मुझे जो आता था मैंने लिख दिया है, तो उसने मुझसे उसकी हर पोस्ट पर टिपण्णी करने का आग्रह किया, जिसे में निभाता आया हूँ...
इस बीच में उस का विवाह हो गया है और अब एक बेटा भी है, जिस कारण अब वो माह दो माह में एक ही पोस्ट लिखती है, जबकि पहले वो हर सप्ताह में एक पोस्ट तो लिखती ही थी... मुझे भी आनंद प्राप्त होता है मंदिरों आदि के विषय पर जानकारी पा...
50000 और 1000... सचमुच बड़ा अंतर है...
ReplyDeleteअच्छा विश्लेषण किया है आपने. एक अच्छे संकलन की कमी तो खल ही रही है.
ReplyDeleteडॉक्टर साहब बहुत बढ़िया विष्लेषण प्रस्तुत्त किया. इस सभी बीमारियों का इलाज भी तो ढूँढने पड़ेंगे. हो सकता है जो सक्रिय ब्लॉगर बचे हैं उन्हें कुछ अधिक समय देकर इस विधा को कुछ समय तक और जीवित रखने का सामूहिक प्रयास.
ReplyDeleteजी सही कहा । इसीलिए हम तो नहीं छोड़ने वाले अभी ।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है आपने ... मैं भी कुछ वक़्त के लिए गयी थी .. पर अब लौट आई हूँ ... :)
ReplyDeleteस्वागत है । ब्लोगिंग में श्रधानुसार योगदान देती रहें ।
Deleteअपने तीन साल के अनुभव में इतना ज़रूर देखा है कि ब्लोगिंग में टिप्पणियों का बहुत महत्त्व है । यदि पोस्ट पर टिप्पणी न हों तो ऐसा लगता है जैसे आप भैंस के आगे बीन बजा रहे हैं । कुछ लोग पोस्ट पर टिप्पणी का ऑप्शन बंद कर देते हैं । वह तो और भी ख़राब लगता है । ऐसी पोस्ट को पढ़ते हुए ऐसा महसूस होता है जैसे यह एक तरफा ट्रैफिक है । आप पढ़ तो सकते हैं लेकिन कुछ कह नहीं सकते । यह तो मेगालोमेनिया हुआ ।
ReplyDeleteतीन साल के अनुभव से निकली शानदार पोस्ट ... गजल में सारी बात कह दी ... अच्छा विश्लेषण किया है
सही कहा डॉक्टर साहेब.....
ReplyDeleteसोलह क्या....बत्तीस आना सच...!!
मुझे तो आप सबके कमेन्ट पढ़ कर भी मज़ा आता है कभी कभी...!!
आप पारखी जनों की नज़र से कुछ छुपता कहाँ है.....
very true and eye opening post.....for everyone !!
टिप्पणियों का अपना महत्व है, माना ...
ReplyDeleteलेकिन इन दिनों में ब्लॉगिंग संख्यात्मक दृष्टि से कम भले ही हुई है , गुणवत्ता बढ़ी है ...
एग्रीगेटर का ना होना पहले पहल बहुत अखरा था , मगर अब ठीक लग रहा है , फालतू के लडाई- झगड़ों पर अंकुश लगा है .
मुझे भी हंसी आती है जब अपना लिखा इमेल करने वाले स्वयं किसी ब्लॉग पर नजर नहीं आते ..
तीन वर्षीया अनुभव समेट दिया आपने शब्दों में ..
वाणी जी , इसीलिए कहा जाता है -- form is temporary , class is permanant. यही बात ब्लोगिंग में भी लागु होती है . गुणवत्ता के आधार पर अभी भी टिके हैं लोग .
Deleteपहले जब अंतरजाल नहीं था तो आदमी क्या करता था???
ReplyDeleteयह तो आज सभी को पता ही होगा कि पहले जोगी, भौतिक संसार की परेशानियों के कारण 'सत्य की खोज में', हिमालय आदि किसी स्थान में एकांत की खोज में, चले जाते थे...
शेष, जो भीड़ में ही रहते रहे, और बाहरी शक्तियों से प्राकृतिक रूप से तीव्र बुद्धि, शारीरिक शक्ति और अनुभव के आधार पर बचाव के उपाय कर, शान्ति पूर्वक रहने में सफल भी हो गए होंगे - उन्हें अपने अनुभव दूसरों से बांटने की इच्छा से डायरी लिखबे का शौक पैदा हुआ होगा और अन्य अल्पबुद्धि को भी अवसर प्राप्त हुआ होगा उनके ज्ञान से लाभ उठाने का... इस प्रकार गुरु-शिष्य परम्परा का आरम्भ हुआ होगा... और फिर मानव की इसी प्रकृति के कारण वर्तमान में हम पाते हैं की अंतरजाल पर हर विषय पर सभी प्रकार की जानकारी उपलब्ध है... किन्तु, बहुत से प्रश्न फिर भी दिल में ही रह जाते हैं क्क्युनकी लिखित सूचना मानव के सभी प्रश्नों का उत्तर नहीं देता, जो ब्लॉग के माध्यम से सरल हो सकता है... आदि आदि...
P.S.
Deleteडॉक्टर साहिब, आपकी सेंचुरी पूरी हो गयी, पर रिकोर्ड में केवल '88' रन ही बने हैं 'क्यूंकि' शैतान गूगल (आदम समान, इव के माध्यम से सेब खाने समान) कुछेक टिप्पणी खा जाता है, और कुछ शब्दों को तो कुछ का कुछ बना देता है...:)
यह एक अनुभवी ब्लॉगर की दास्तान है जो न सिर्फ अपने काम के प्रति समर्पित है,बल्कि अपने परिवेश के प्रति भी आंखें खोले हुए है। शायद ही कोई इन बातों से असहमत हो।
ReplyDeleteब्लॉगिंग की मौजूदा स्थिति और गूगल की कई अन्य नाकाम तकनीकों को देखते हुए यह आशंका भी पैदा होती है कि कहीं ब्लॉग की सुविधा ही न समाप्त कर दी जाए। यह एक खेदजनक स्थिति होगी क्योंकि आप समेत बहुत से ब्लॉगरों ने काफी अच्छा काम किया है जिनसे अन्यथा परिचय शायद ही संभव होता।
टिप्पणी की समस्या विचित्र है। बंद कर दें तो पता नहीं चलता कि कौन आया और खुला रखें तो वही सार्थक प्रस्तुति,बेहतरीन,उम्दा लेखन जैसी उबाऊ टिप्पणियां....,हालांकि इनसे भी कई लोग अपना उत्साहवर्द्धन होते बताए जाते हैं।
हम तो बस आपको अपनी शुभकामनाएं देना चाहेंगे। आप भी स्नेह बनाए रखिएगा।
राधारमण जी , गूगल के बंद होने से सचमुच हिंदी ब्लोगिंग को बहुत बड़ा धक्का लगेगा .
Deleteटिप्पणियों में भले ही औपचारिकतायें ज्यादा हों , फिर भी सार्थक बातें भी पढने को मिल जाती है . फिर थोड़ी मौज मस्ती भी हो जाती है . इसलिए ऑप्शन बंद नहीं करना चाहिए .
आपकी पोस्ट्स अक्सर हमें भी काफी जानकारी दे जाती हैं . आभार .
JCMar 25, 2012 10:52 PM
ReplyDeleteP.S.
डॉक्टर साहिब, आपकी सेंचुरी पूरी हो गयी, पर रिकोर्ड में केवल '88' रन ही बने हैं 'क्यूंकि' शैतान गूगल (आदम समान, इव के माध्यम से सेब खाने समान) कुछेक टिप्पणी खा जाता है, और कुछ शब्दों को तो कुछ का कुछ बना देता है...:)
जे सी जी , बेशक ब्लोग्स से भी बहुत सी दिलचस्प और काम की जानकारियां मिल जाती हैं .
Deleteइसलिए जो हमें पता है , वो हम लिख देते हैं और कुछ दूसरों से प्राप्त कर लेते हैं .
सेंचुरी --हा हा हा ! गूगल के अपने नखरे हैं .
तुक भिड़ाने का समय नहीं है इसलिये हमारी ओर से एक पुराने फ़िल्मी गीत के रूपांतरण से काम चलाइये:
ReplyDeleteये ब्लॉगिंग नहीं जागीर किसी की
राजा हो या रंक यहाँ तो सबके दिन दो चार
कुछ तो आ कर चले गये कुछ जाने को तैयार
लगे रहिये...हम भी भरसक लगे हैं...एक दौर है -गुजर जायेगा..फिर बहार आयेगी. शुभकामनाएँ एवं बधाई.
ReplyDeleteगूगल द्वारा टिप्पणियों और पोस्ट्स को गायब कर देना ,
ReplyDeleteमैं तो त्रस्त हूँ इस समस्या से....
और अब तो आपके कहने से टेम्पलेट भी बदल दिया fir भी वही हाल है ....
अब गूगल devta को कैसे प्रसन्न करूँ ....?
JCMar 27, 2012 09:31 PM
Deleteहीर जी, नमस्कार! आपकी पुस्तक प्रकाशित हुई कि नहीं?
जहां तक गूगल देवता का प्रश्न है, ये 'पश्चिम दिशा' के राजा, (अथवा नौकर), हैं... हर हमारे पूर्वज शनि देवता को 'पश्चिम दिशा', और नीले रंग, से सम्बंधित जाने हैं, आप मानो या न मानो...:)
मुहम्मद रफ़ी का गाया एक गाना सूना था, "बड़ा ही 'सी आई डी' है यह नीली छतरी वाला"...!
अब यह आपके ऊपर निर्भर है कि आपको 'छतरी' के स्थान पर पगड़ी/ टोपी/ मोरपंख आदि आदि क्या लगाना है...
आशा है यदि इस मन्त्र को दिल से, आस्था के साथ, गायेंगे तो सफलता मिलने की आशा अधिक हो जायेगी...
सभी को नवरात्रि की शुभ कामनाएं!
आपकी सेंचुरी पूरी करने के लिए मस्तिष्क की चालाकी, जैसी मिली, अंग्रेजी में नीचे दे रहा हूँ...
Deleteबहुत बहुत बधाई!
This will confuse your mind and you will keep trying over and over again to see if you can outsmart your foot, but, you can't. It is pre-programmed in your brain! 1. While sitting at your desk in front of your computer, lift your right foot off the floor and make clockwise circles. 2. Now, while doing this, draw the number '6' in the air with your right hand. Your foot will change direction. I told you so! And there's nothing you can do about it!
Quite right so .
Deleteसेंचुरी की बात पर अपना क्रिकेट प्रेम जाग उठा . :)
१९७०s में चेतन चौहान बैटिंग की ओपनिंग करते थे गावस्कर के साथ . यह उन दिनों की सबसे सफल आरंभिक जोड़ी थी . लेकिन बढ़िया बल्लेबाज होते हुए भी चौहान कभी सेंचुरी नहीं बना सके .
बॉलिंग में एकनाथ सोलकर माध्यम तेज गेंदबाज थे जो आबिद अली के साथ मिलकर बस ४ -४ ओवर फेंकते थे और फिर स्पिन बॉलर आ जाते थे . मुझे याद है , सोलकर ने १९७३ -७४ में अपनी आखरी पारी खेलते हुए मेडेन सेंचुरी लगाई थी . :)
चेतन चौहान से अक्सर पूछा जाता था कि आप हमेशा स्कोर तो अच्छा करते थे,पर सेंचुरी कभी नहीं लगा पाए। एक बार चेतन चौहान ने जवाब में पूछा,"70-80 रन कम होते हैं क्या?"
Deleteसही कहा . चेतन चौहान नॉन सेंचुरियन बढ़िया बल्लेबाज रहा .
Deleteसही कहा आपने...हमें ब्लोगिंग छोड़ना नही चाहिए ..मैं स्वयं भी बहुत कम समय निकल पाती हूँ ब्लोगिंग के लिए ..कारण बोले तो हज़ार हैं ...लेकिन भगवान ने चाहा तो अब ब्लोगिंग नियमित होती रहेगी ..आपकी पोस्ट बहुत अच्छी लगी ...बहुत अच्छी बात सिखा गयी ..बहुत सा धन्यवाद
ReplyDeleteआपक लेख पढ़ने के बाद ऐसा लगता हैं जैसे ..ये वो मीठी बबलगम हैं जो पहले पहले अच्छी लगती हैं ...और बाद में ना छोड़ी जाये और ना निगली जाये ....डॉ साब ..आपको विश्वास दिलाते की हम ब्लोगिंग नहीं छोड़ेंगे ...
ReplyDeleteहूँऊँ..बात गम्भीर है, भले ही कही हल्के फ़ुल्के ढ़ंग से गयी हो। ब्लॉग्स, ब्लॉगर्स, टिप्पणीकार और टिप्पणियाँ ...सभी पर सूत्र रूप में किंतु आवश्यक चर्चा की है डॉक़्टर साहब आपने, वह भी बिना लाग लपेट के। हिन्दीब्लॉग सामूहिक जन-चेतना का प्रतीक बन गया है। मैं आशान्वित हूँ...आग सुलगेगी ही नहीं बल्कि भभक कर जलेगी...बस हमारी आत्मायें ज़िन्दा भर बनी रहनी चाहिये। नितांत आत्ममुग्ध ब्लॉगर्स अधिक समय तक टिक नहीं सकेंगे...टिकना चाहिये भी नहीं। जो सम्वेदनशील होगा वही टिकेगा ...उसे ही टिकने की ज़रूरत है।आज पहली बार आपके कनाट प्लेस में आया हूँ। :)
ReplyDeleteकौशलेन्द्र जी , आपका मतलब ब्लॉग से है या वास्तव में दिल्ली आए हुए हैं ?
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