जनता को चिंता सता रही थी ,
क्योंकि होली करीब आ रही थी।
पर पानी की किल्लत थी भारी
कैसे खेलेगी होली जनता बेचारी ।
ऊपर वाले ने आसमान से देखा,
धरा पर उड़ती धूल, तालों में सूखा।
मासूम चेहरे गर्मी से झुलस रहे थे ,
नाजुक पौधे धूप में सूख रहे थे।
मैली होकर सूख रही थी गंगा,
जमना का तल भी हो रहा था नंगा।
नल के आगे झगड़ रही थी ,
शान्ति,पारो और अमीना।
नाजुक बदन कोमल हाथों में लिए बाल्टी ,
मिस नीना चढ़ रही थी जीना।
ये तो कलियुग का प्रकोप है , उपरवाले ने सोचा,
और करूणावश पसीजने से अपने मन को रोका।
पर कलियुग पर आपके कर्मों का पलडा था भारी ,
इसीलिए धरती पर उतरी इन्द्र की सवारी।
फ़िर छमछम बरसा पानी , धरती की प्यास बुझाई ,
पर होलिका दहन में बड़ी मुसीबत आई।
मिट्टी के तेल से, मुश्किल से जली होली,
हमने सोचा इस बरस होली तो बस होली।
पर देखिये चमत्कार, कुदरत ने फ़िर से बदला रूप,
और होली के दिन बिखर गई, नर्म सुहानी धूप।
फ़िर जेम्स, जावेद, श्याम और संता ने मिल कर खेली होली,
और शहर में धर्मनिरपेक्षता की जम कर तूती बोली।
युवा है कलियुग अभी, कहीं जवां हो न जाए,
और मानव के जीवन में इक दिन ऐसा आए,
कि होलिका तो होलिका, रावण भी जल न पाये।
सत्कर्मों को अपनाइए, बस यही है एक उपाय
नाजुक पौधे धूप में सूख रहे थे।
मैली होकर सूख रही थी गंगा,
जमना का तल भी हो रहा था नंगा।
नल के आगे झगड़ रही थी ,
शान्ति,पारो और अमीना।
नाजुक बदन कोमल हाथों में लिए बाल्टी ,
मिस नीना चढ़ रही थी जीना।
ये तो कलियुग का प्रकोप है , उपरवाले ने सोचा,
और करूणावश पसीजने से अपने मन को रोका।
पर कलियुग पर आपके कर्मों का पलडा था भारी ,
इसीलिए धरती पर उतरी इन्द्र की सवारी।
फ़िर छमछम बरसा पानी , धरती की प्यास बुझाई ,
पर होलिका दहन में बड़ी मुसीबत आई।
मिट्टी के तेल से, मुश्किल से जली होली,
हमने सोचा इस बरस होली तो बस होली।
पर देखिये चमत्कार, कुदरत ने फ़िर से बदला रूप,
और होली के दिन बिखर गई, नर्म सुहानी धूप।
फ़िर जेम्स, जावेद, श्याम और संता ने मिल कर खेली होली,
और शहर में धर्मनिरपेक्षता की जम कर तूती बोली।
युवा है कलियुग अभी, कहीं जवां हो न जाए,
और मानव के जीवन में इक दिन ऐसा आए,
कि होलिका तो होलिका, रावण भी जल न पाये।
सत्कर्मों को अपनाइए, बस यही है एक उपाय
आप सब को एक सौहार्दपूर्ण होली की हार्दिक शुभकामनायें ।
आप सब को भी होली मंगलमय हो।
ReplyDeleteHappy Holi..
ReplyDeletebahut sundar prastuti.............holi ki hardik shubhkamnayein.
ReplyDeleteलगे तो रहते हैं,पर कभी-कभार बहक ही जाते हैं कदम। होली के दौरान ख़ास तौर से!
ReplyDeleteहोली पर ग़र कदम न बहके तो कैसी होली !
Deleteहोली के अवसर पर बहुत बढ़िया यथार्थ रचना.
ReplyDeleteआपको भी होली की हार्दिक शुभकामनायें..
रंगोत्सव पर आपको सपरिवार बधाई भाई जी !
ReplyDeleteपर देखिये चमत्कार, कुदरत ने फ़िर से बदला रूप,
ReplyDeleteऔर होली के दिन बिखर गई, नर्म सुहानी धूप ।
सुन्दर सामयिक रचना ... होली की शुभकामना और बधाई ...
होली मुबारक हो >-)))))
ReplyDeleteमौसम के बदलते स्वभाव पर सुन्दर कविता! धन्यवाद!
ReplyDeleteहोली सभी को मंगलमय हो!
holi ki fuhaar aur mausam ka badalta mijaaj aaj yahan bhi hai holi se ek din pahle to barish hai kal holika dahan ke vaqt dekhiye kya hota hai ....bahut achchi gahan abhivyakti liye prastuti.holi ki shubhkamnayen.
ReplyDeleteHappy Holi...
ReplyDeleteयही स्थिति आ गई है ... होली की शुभकामनायें
ReplyDeleteकाश कि सच्ची धर्मनिरपेक्षता आ सके. एक अच्छी कविता के लिये धन्यवाद.
ReplyDeleteसुन्दर सन्देश! शुभ होली!
ReplyDeleteवाह! आपको भी सपरिवार होली की शुभकामनायें!
ReplyDeleteआपको भी होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteहोली की जबरिया शुभकामनायें...हालाँकि अबकी होली में इसके पक्के दावेदार चुनाव हारे हुए नेता हैं !
ReplyDeleteजबरिया मायने --ज़बर्ज़स्त या ज़बर्ज़स्ती ? :):)
DeleteJCMar 6, 2012 10:00 PM
Delete'उत्तर भारत' में ठण्ड आरम्भ होने से पहले दिवाली अनादिकाल से मनाई जाती आ रही है... और उसी प्रकार गर्मी आने पर रंगों के त्यौहार होली...
और, इन्हें "सत्य की असत्य पर विजय" के प्रतीक के रूप में, किसी स्वार्थी राक्षस के वध के रूप में किसी न किसी भगवान् विष्णु के अवतार / परोपकारी देवता के साथ जोड़ दिया गया देखा जा सकता है...
कहानियां कई हो सकती हैं - उदाहरण के रूप में, दिवाली को अधिकतर राम-लक्ष्मण द्वारा शक्तिशाली लंकापति रावण की बहन सूर्पणखा की नाक काटने और तत्पश्चात रावण वध के बाद अयोध्या आगमन पर जनता द्वारा मनाया जाना... और होली को राक्षस हिरन्यकश्यप की वरदान प्राप्त बहन होलिका के अपने ही भतीजे प्रहलाद को मारने हेतु अग्नि में बैठ स्वयं जल जाने के रूप में, और राक्षस की भी अंततोगत्वा स्वयं अंत में नरसिंह के नाखूनों द्वारा पेट फाड़ मारा जाना माना जाता है...
कलियुग में अज्ञानतावश देवता और राक्षश जबरिया (?) होली मनाते है...
युवा है कलियुग अभी, कहीं जवां हो न जाए,
ReplyDeleteऔर मानव के जीवन में इक दिन ऐसा आए,
कि होलिका तो होलिका, रावण भी जल न पाये।
सत्कर्मों को अपनाइए, बस यही है एक उपाय
बहुत saaf sandesh है is कविता में .
Holi मुबारक !
संवेदनशील चिंतन ... होली के दिन को लेकर ..
ReplyDeleteआपको और परिवार में सभी को होली की मंगल कामनाएं ...
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ReplyDeleteप्यारी रचना लिखी डॉक्टर साहब !
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♥ होली ऐसी खेलिए, प्रेम पाए विस्तार ! ♥
♥ मरुथल मन में बह उठे… मृदु शीतल जल-धार !! ♥
आपको सपरिवार
होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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पर देखिये चमत्कार, कुदरत ने फ़िर से बदला रूप,
ReplyDeleteऔर होली के दिन बिखर गई, नर्म सुहानी धूप।
फ़िर जेम्स, जावेद, श्याम और संता ने मिल कर खेली होली,
और शहर में धर्मनिरपेक्षता की जम कर तूती बोली।
होली के पावन पर्व की आपको हार्दिक शुभकामनाये !
आपको सपरिवार होली की शुभकामनायें !
ReplyDeleteभावपूर्ण अनुपम अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteआपकी शानदार प्रस्तुति के लिए आभार.
होली के रंगारंग शुभोत्सव पर बहुत बहुत
हार्दिक शुभकामनाएँ
' मानव के जीवन में इक दिन ऐसा आए,
ReplyDeleteकि होलिका तो होलिका, रावण भी जल न पाये।'
- यही प्रश्न अगर मनों में उठने लगे तो ढर्रा ही बदल जाये !
सपरिवार होली की शुभकामनायें !
आप सभी का हार्दिक आभार ।
ReplyDeleteऔर शुभकामनायें।
कविताएं अख़बार की तरह होती हैं कभी भी पढ़ी लो वही बात मिलती है
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