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Wednesday, March 21, 2012

बार बार दिन ये आए , बार बार दिल ये गाए ---चुनाव .


हर वर्ष के आरंभ में हम डॉक्टर्स अपनी संस्था , दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के पदाधिकारियों के चुनाव कराते हैं . मार्च अंत तक जहाँ एक तरफ वित्तीय वर्ष का अंत होता है , वहीँ हमारे भी चुनावों की प्रक्रिया समाप्त हो जाती है . इस दौरान चुनावों की सरगर्मी में जो देखने को मिलता है , वही प्रस्तुत है एक हास्य कविता के रूप में :


वज़न हमारा पांच किलो बढ़ जाता है
ड़ी एम् ऐ का जब, चुनाव पास आता है .

कभी लंच, कभी डिनर, कभी दोनों
खाने पीने का रोज, जुगाड़ हो जाता है .

मिलते हैं सब गले जैसे बिछड़े बरसों के
साल भर का सारा, प्यार उमड़ आता है .

करते हैं बेसब्री से , इंतज़ार फ़रवरी का
एक महीना बिना खर्चे निकल जाता है .

उड़ाते हैं सब चिकन मटन व फिश टिक्का
बोतल कोई दारू की, आधी निगल जाता है .

मचता है शोर तब मयखाने में
जब दीवाना कोई होश खो जाता है .

नेता लोग देते हैं भाषण जोशीले
अपना काम तो कविता से चल जाता है .

लड़ें वो जिनके पास है ज्यादा पैसा
बंदा तो बस मुफ्त में मौज उडाता है .

टल जाएँ चुनाव ग़र सर्वसम्मति से
चीटिंग सी लगती है , लॉस हो जाता है .

रहता है यही एक अफ़सोस 'तारीफ'
चुनाव साल में बस एक बार आता है .

नोट : यह ग़ज़ल पढ़कर हो सकता है , शायद हमें कभी चुनाव का टिकेट न मिले .


36 comments:

  1. डेल्ही में नगर निगम के चुनाव आ रहे है.. कविता पड़कर सोच रहा हूँ की मैं भी चुनाव लड़ ही लूँ....ब्लॉगर झंडा लेकर..खोने को कुछ है नहीं...पाने का लालच नहीं...आप आयेंगे न चुनाव प्रचार करने?

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    1. खाने पीने के बगैर चुनाव लड़ेंगे ! जमानत ज़ब्त करनी है क्या ! :)

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  2. वृन्दावन लाल वर्मा ने अपनी कहानी 'मूंग की दाल'मे कवि महोदय के मुफ्त मे चुनाव जीत कर मंत्री बनने का उल्लेख किया है। आप भी मंत्री बनेंगे हमे बेहद इंतजार है।

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    1. मंत्री से संत्री ज्यादा टिकाऊ होता है । :)

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  3. नोट : यह ग़ज़ल पढ़कर हो सकता है , शायद हमें कभी चुनाव का टिकेट न मिले .

    शायद????? आपको उम्मीद ही नहीं रखनी चाहिए :-)

    लड़ें वो जिनके पास है ज्यादा पैसा
    बंदा तो बस मुफ्त में मौज उडाता है ......fair enough..........
    :-)
    regards
    anu

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    1. जी हम तो नहीं रखते लेकिन पार्टी वाले लड़ा देते हैं ।

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  4. अब खुद ही सोचिये आप की जब एक अपनी संस्था(डीएम्ए) के चुनाव के अन्दर इतना रस है तो दिल्ली विधानसभा और लोकसभा के चुनाव के अन्दर कितना रस नहीं होगा ? :) :)

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    1. जी बिल्कुल , रस तो बरसता है वहां । :)

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  5. पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...

    इस ग़ज़ल को पढ़ कर कौन आपको टिकट नहीं देगा...जबरदस्त ग़ज़ल डाक्टर साहब अब आप हमारी बिरादरी में शामिल हो गए हैं...बधाई

    नीरज

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    1. शुक्रिया नीरज जी । आप शायद होली में व्यस्त थे । :)

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  6. कई मोर्चों पर आप डाक्टर भी हम आम लोगों जैसे ही लगते हैं। आखिर,दिल है हिंदुस्तानी!

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    1. भई दिल से तो आम आदमी ही होते हैं ।

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  7. सारा चक्कर पापी पेट का है, और कहावत भी है, "मुफ्त की शराब तो क़ाज़ी को भी हलाल होती है", और साथ में चिकन, फिश, और मटन टिक्का भी हो जाएँ तो 'सोने में सुहागा'!!! अब हर लड़ाई में थोड़े बहुत सैनिक धराशायी होना तो लाजमी है!!!

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    1. सही कहा ! जो मज़ा मुफ्त में है वह और कहाँ ।

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  8. चुनाव आखिर चुनाव ही हैं कहीं के भी हों :).

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  9. JCMar 21, 2012 05:21 AM
    सारा चक्कर पापी पेट का है, और कहावत भी है, "मुफ्त की शराब तो क़ाज़ी को भी हलाल होती है", और साथ में चिकन, फिश, और मटन टिक्का भी हो जाएँ तो 'सोने में सुहागा'!!! अब हर लड़ाई में थोड़े बहुत सैनिक धराशायी होना तो लाजमी है!!!

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  10. होने वाला है या हो गया ?

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    1. हो भी चुका और होने वाला भी है ।
      लेकिन बहुत पौलिटिक्स है भाई ।

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  11. भारत में चुनाव इसी कायदे के होने लगे हैं। येन केन प्रकरेण किसी पद पर कब्जा किया जाए।

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  12. भारत में चुनाव इसी कायदे के होने लगे हैं। येन केन प्रकरेण किसी पद पर कब्जा किया जाए।

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    1. द्विवेदी जी , चुनाव लड़ने के लिए कोई तो रणनीति बनानी ही पड़ती है ।

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  13. नेता लोग देते हैं भाषण जोशीले
    अपना काम तो कविता से चल जाता है

    सही है सर, बहुत सही रचना लिखी है . दो लाइन मेरी तरफ से

    वो नोटों से वोट हथियाते और कमाते हैं
    हम मुफ्त में कविता सुना घर चले जाते हैं .


    आभार

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    1. मुफ्त में सुनाने वाले जीत भी नहीं पाते हैं । :)

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  14. हकीकत बयान करती हैं यह तीखी रचनाएं भाई जान !

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  15. वाह!!!बहुत बढ़िया कविता सही है सर....चुनाव आखिर चुनाव ही हैं कहीं के भी हो :)

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  16. हमको तो लगता है कि ई सब आपकी कबिताई सुनने का प्रोग्राम ज़्यादा है.चुनावों का क्या है,आये दिन होते ही रहते हैं !

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  17. लड़वाने में जो लुत्फ़ है , लड़ने में कहाँ !

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  18. डॉ.साहब ,
    चुनाव लड़ कर आप क्या करेंगे .
    जब काम,चुनाव लड़ा कर चल जाता है :-))
    जय हो !

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    1. सही कहा अशोक जी . इसलिए हमने छोड़ दिया है चुनाव लड़ना .

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    2. वाह बेहतरीन ....

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  19. ये अफ़सोस कर रहे हैं की चुनाव साल में एक बार आता है ... बार बार आये तो कम से कम माल पूआ तो मिल जाता है ..
    सही कहा आपका टिकट कट ....

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  20. डीएमए के चुनाव में ये आलम, खुदाया!
    आम चुनावों में क्या नहीं होता होगा!!


    आपने तो अच्छी खबर ले ली सर....
    सादर।

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  21. लड़ें वो जिनके पास है ज्यादा पैसा
    बंदा तो बस मुफ्त में मौज उडाता है .
    मजा, चुन ने में है ,चुन वाने में नहीं ,

    खाने में है खिलाने में नहीं ,

    कृपया यहाँ भी पधारें -
    ram ram bhai

    बुधवार, 21 मार्च 2012
    गेस्ट आइटम : छंदोबद्ध रचना :दिल्ली के दंगल में अब तो कुश्ती अंतिम होनी है .

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