उस दिन हमने भी एक सबक लिया कि कभी भी अंजान लोगों के साथ मिलकर दारू नहीं पीनी चाहिए ।
बचपन से लेकर अब तक और भी कई बातें सीखीं हैं जैसे :
* किसी अंजान व्यक्ति से लेकर कुछ खाना नहीं चाहिए विशेषकर सफ़र में ।
* किसी अंजान व्यक्ति पर आँख मूंदकर विश्वास नहीं करना चाहिए ।
* चापलूसों से सावधान रहना चाहिए विशेषकर जो ज़रुरत से ज्यादा मीठी मीठी बातें कर रहे हों ।
* गाड़ी में किसी को लिफ्ट नहीं देनी चाहिए विशेषकर अकेली महिला को ।
जब से मंच पर आने लगे हैं तब से पब्लिक स्पीकिंग के बारे में कई बातें सीखीं हैं । इसमें सबसे विशेष है कि कभी भी किसी व्यक्ति का मज़ाक इस तरह नहीं उड़ाना चाहिए कि उसे बुरा लगे ।
आखिर मज़ाक और उपहास में अंतर होता है ।
विशुद्ध हास्य में सौम्यता होती है न कि छिछोरापन ।
होली एक त्यौहार है मौज मस्ती का , रंगों उमंगों का , खाने खिलाने का , पीने पिलाने का , हंसने हंसाने का , मिलने मिलाने का और सबको प्यार से गले लगाने का ।
होली मनाने के तरीके भी अलग अलग होते हैं । कहीं रंग गुलाल से मनाई जाती है , कहीं पानी से । कहीं लठमार होली होती है तो कहीं कोलड़ा मार । कहीं कहीं गोबर और कीचड़ में सनकर भी होली खेली जाती है । हालाँकि ऐसी होली हमने कभी नहीं खेली ।
लेकिन इस होली पर कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ जब हमने एक अंजान ब्लोगर के आमंत्रित करने पर उनके ब्लॉग पर हास्य की चंद पंक्तियाँ भेज दीं । अब भले ही वो एक जाने माने ग़ज़लकार , हास्य कलाकार या व्यंगकार हों , लेकिन हमारे लिये वो और उनके लिए हम अंजान ही तो थे ।
फिर हमारे साथ कुछ ऐसा हादसा हुआ जो हम सोच भी नहीं सकते थे कि कोई ऐसा करने की सोच भी सकता है ।
अफ़सोस तो तब हुआ जब कुछ अपने मित्र भी वहां चुस्कियां लेते नज़र आए ।
आखिर एक बार फिर यही समझ आया कि ब्लोग्स पर भी किसी अंजान व्यक्ति पर भरोसा नहीं किया जा सकता ।
वैसे भी इस आभासी दुनिया में अक्सर लोगों की फितरत छुपी ही रहती है ।
नोट : हम जानते हैं कि अक्सर गलती करने वाले को गलती करने का अहसास नहीं होता । न ही अक्सर उसकी ऐसी मंशा होती है । लेकिन गलती से की गई गलती भी गलती ही कहलाएगी ।
बडे काम की हैं ये आपकी सीखें । आभासी ही सही पर ब्लॉग की ये दुनिया है बडी प्यारी ।
ReplyDeleteबडे काम की हैं ये आपकी सीखें । आभासी ही सही पर ब्लॉग की ये दुनिया है बडी प्यारी ।
ReplyDeleteबडे काम की हैं ये आपकी सीखें । आभासी ही सही पर ब्लॉग की ये दुनिया है बडी प्यारी ।
ReplyDeleteआशा जी , इस आभासी दुनिया के रिश्ते और खुशियाँ भी आभासी ही होती हैं .
Deletemae to yae baat shuru sae keh rahee hun par log haen ki blog parivaar chilaatey rahey haen
Deleteरचना जी , आप से सहमत हूँ । आजकल लोगों को खून के रिश्ते निभाने में ही मुश्किल होती है । फिर भला आभासी रिश्तों की क्या बिसात ।
Deleteसही कहा... पता ही नहीं चलता कब कौन आपकी किसी बात को ले नाराज़ बैठा हो...
Deleteजब आप किसी जाने-पहचाने व्यक्ति के साथ आमने-सामने बैठ कर बात कर रहे होते हैं, तो आपको उसके हाव भाव भी देखने का मौक़ा मिलता है, और उसको भी प्रश्नाद्की करने का... और यूं आप अपनी बात को और अच्छी तरह समझने के लिए और अदाहरण आदि भी दे सकते हैं...
उस के विपरीत पत्र में कुछ लिखा, अथवा ब्लॉग में अपने सरल दृष्टिकोण से लिखी टिप्पणी का किन्तु हरेक के अपने अपने अनुभवों के आधार पर बने भिन्न भिन्न दृष्टिकोण से पढने वाला क्या मतलब निकालेगा न पता होने के कारण कई बार ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है जब आप हाथ मलते रह जाते हैं...
पुनश्च - प्रश्नाद्की = प्रश्न आदि
Deleteसही फ़रमाया जे सी जी । आखिर हम सब अपनी फ्रेजाइल इगो के शिकार रहते हैं ।
Deleteहोली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteआपके द्वारा उल्लिखित बातें बचपन से हम भी पालन कर रहे हैं। वस्तुतः बदलते मौसमो के हिसाब से प्रत्येक पर्व निर्धारित किए गए थे। त्वचा के लिए लाभदायक 'टेसू'का रंग स्वास्थ्य रक्षा हेतु ही प्रयुक्त किया गया था। दूसरे प्रकार की होली अस्वास्थ्यकर है।
ReplyDeleteआपके और आपके समस्त परिवार के लिए होली के पवन पर्व पर हार्दिक मंगलकामनाएं।
सभी सबक काम के हैं लेकिन पहले यह बताइये कि यह वाला सबक आपने कब और कैसे सीखा...? वाकई हुआ क्या था ? :)
ReplyDelete* गाड़ी में किसी को लिफ्ट नहीं देनी चाहिए विशेषकर अकेली महिला को ।
..होली की शुभकामनायें।
छोडिये भी पाण्डे जी .
Deleteबस इतना जन लीजिये की मनुष्य सदा ही कुछ न कुछ सीखता रहता है . सीखने की कोई उम्र भी नहीं होती .
हमेशा ही संतुलित बोलना और कर्म करना लाभदायक रहता है।
ReplyDelete"लेकिन इस होली पर कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ जब हमने एक अंजान ब्लोगर के ब्लॉग पर हास्य की चंद पंक्तियाँ भेज दीं । अब भले ही वो एक जाने माने ग़ज़लकार , हास्य कलाकार या व्यंगकार हों , लेकिन हमारे लिये वो और उनके लिए हम अंजान ही तो थे ।
ReplyDeleteफिर कुछ ऐसा हुआ जो हम सोच भी नहीं सकते थे कि कोई ऐसा करने की सोच भी सकता है ।
अफ़सोस तो तब हुआ जब कुछ अपने मित्र भी वहां चुस्कियां लेते नज़र आए । "
हिंट्स तो नहीं ढूढ़ पाया मगर अफ़सोस हुआ यह जानकर डा० साहब ! और सच कहूँ तो यह सब जानने पढने के बाद मेरा भी लेखन से मन उचट सा जाता है ! हास्य-विनोद अपनी जगह है किन्तु पता नहीं क्यों लोग बहुत जल्दी अपनी सीमायें लांघने लगते है और यही वजह है कि मैंने अपनी टिप्पणियों का दायरा भी बहुत सीमित रखा हुआ है ! खैर, आपको एक बार पुन : होली की हार्दिक शुभकामनाये !
गोदियाल जी , लेखन तो अपना शौक होता है . उसे दूसरों की वज़ह से क्यों छोड़ा जाए . लेकिन दूसरों के साथ इंटरएक्ट करने में ज़रूर सावधानी बरतनी चाहिए . यही सीखा है .
Deleteइसी लिए - अपने सिमित जीवन काल में गलती करना - मानव जाति का सम्पूर्ण ज्ञान के आभाव अर्थात अज्ञान के कारण - प्राकृतिक चरित्र माना गया है... "To err is human... "! ...
ReplyDeleteउदाहरणतया, युद्ध के दुष्परिणाम देख कर भी मानव इतिहास तो पढता है, किन्तु उस से सीख नहीं लेता... और इस प्रकार प्रथम महायुद्ध के बाद दूसरा महायुद्ध भी (यूरोप को विशेषकर) झेलना पड़ा... और तत्पश्चात 'यू एन ओ' के रहते भी युद्ध के बाद युद्ध होते जा रहे हैं - अणुबम (ब्रह्मास्त्र) के गलत हाथों में पड़ "गेहूं के साथ घुन भी पिस जाने की संभावना समान" पूरी धरती को हानि की संभावना को देख (और दर्शाते कि मानव अपने को प्रकृति अर्थात भगवान् के सामने सदा असहाय पाता है...:(
थोड़ा देर कर दी है सलाह देने में...!
ReplyDeleteमैंने जो राह पकड़ ली, उसी में चला जा रहा हूँ,बेख़ौफ़ होकर !
संतोष जी , ६ में से कौन सी ? :)
Deleteसही कहा डॉ साहेब आपने ...हम हमेशा यही बाते ध्यान में रखते आए हैं ..
ReplyDeleteसंदर्भ तो नहीं पता .....फिर भी जो सीख ले ली जाए वही बेहतर ...वैसे हर जान पहचान वाला व्यक्ति कभी तो अंजान ही रहा होगा
ReplyDeleteसंगीता जी , जानने के बद तो कोई ऐसी हरकत नहीं कर सकता हमारे साथ . इसीलिए अंजान के साथ सावधानी ज़रूरी है .
Deleteदराल सर,
ReplyDeleteइज्ज़त फिल्म का गाना याद आ गया-
क्या मिलिए ऐसे लोगों से, जिनकी फितरत छुपी रहे, नकली चेहरा सामने आए, असली सूरत छुपी रहे...
इससे निपटने के लिए गुरदास मान ने भी कहा है...
बाकी दियां गला छडो, दिल साफ होना चाहिदा...
जय हिंद..
सोच समझकर क्या चलें ... बिना सोचा समझदार हो सकता है और सोचनेवाला बेवकूफ ... ऐसा भी होता है
ReplyDeleteरश्मि जी , आपने तो सोचने पर मजबूर कर दिया . पर सोचकर भी कुछ नहीं सोच पा रहे .
Deleteशुद्ध हास्य और छिछोरेपन के अंतर को समझ सके लोंग तो बात ही क्या !!
ReplyDeleteरश्मिजी की टिप्पणी विचारणीय है !
क्या हुआ यह तो पता नहीं.परन्तु सीख सोलह आने खरी है.इसलिए गाँठ बाँध ली है.
ReplyDeleteसाफ़ दिल वाले को ही तकलीफ होती है ....!डॉ.साहब !कुछ और सीखने को मिला इसी बहाने !
ReplyDeleteशुभकामनाएँ!
Dr daral
ReplyDeleteYou should have put the link , so that the culprits could have been identified . The sole aim of bloging is to bring awareness ..
By not giving the link you have tried not to make your post controversial but you have also given protection to a wrong person
Think about it SIR
Why should we be so afraid to point out the wrong person and atttitude .
Links help in indentifying and forewarn others
नहीं रचना जी । मैं नहीं समझता कि नाम लेना चाहिए या घटना के बारे में विस्तार से बताना चाहिए । इस विषय में मैं उनकी ज्यादा गलती भी नहीं मानता । निश्चित तौर पर यदि वे मुझे जानते होते तो ऐसा नहीं करते । अफ़सोस इस बात का है कि उन्होंने जानने की कोशिश भी नहीं की ।
Deleteफिर भी आभारी हूँ कि उन्होंने आपत्तिजनक विषय को ब्लॉग से हटा दिया । यहाँ इस पोस्ट का उद्देश्य इस बात पर जोर देना है कि हम स्वयं इस बात का ध्यान रखें कि किसी अंजान व्यक्ति से परिचित व्यक्ति जैसे व्यवहार की अपेक्षा न रखें ।
आखिर अपनी इज्ज़त अपने ही हाथों में होती है ।
वैसे भी अभी बहुत कुछ सीखना है जिंदगी में ।
सही सीख दी है आपने डॉ साहब आभार...किसे के मन के अंदर क्या है, यह किसी को पता नहीं होता। आधे से ज्यादा लोग इस दुनिया में "मुंह में राम बगल में छुरी" लिये चला करते है। समझदारी इसी में है कि जितना हो सके सोच समझ कर ही पहचान बढ़ाएँ।
ReplyDeleteकितना भी सोच-समझ कर चलना चाहें ग़लतियाँ हो ही जाती हैं- बहुत कुछ सीखने को मिला आज!शुभ-कामनाएँ !!
ReplyDeleteबहुत कुछ समझा रही है आपकी पोस्ट ...!!सोच समझ कर चलने में ही भलाई है ....!!
ReplyDeleteयही है दुनिया किस पर विश्वास करें …………कितना ही बचकर चलो कहीं ना कहीं से तो छींट पड ही जाती हैं।
ReplyDeleteहोली तो हो ली
ReplyDeleteपर यह पोटली भर गोलियां
एक एक चमत्कार दिखला रही है
सीख रही हैं
सिखा रही हैं
कैसे होता है अपमान
जब मन का कहना
कोई नहीं मानता मान
तो समझ लीजिए
निकल जाती है
नैतिकता की जान।
हर परिचित एक समय अपरिचित ही होता है। हम उसमें अपने सद्व्यवहार का निवेश करते हैं,दोनों पक्षों को बात जमती है,तो संबंध आगे बढ़ते हैं। लिहाजा,अंजान पर भरोसा कर आपने अपनी परिपक्वता का परिचय दिया। जिसने उसका ग़लत अर्थ निकाला और जो मौज लेने के लिए वहां पहुंचे,ग़लती उनकी रही। औरों की ग़लती के लिए ख़ुद दुखी होने का कोई कारण नहीं। यदि कोई होता भी है,तो यह उसकी संजीदगी की निशानी है,मगर इसे समझने के लिए भी बहुत संवेदनशील मन चाहिए।
ReplyDeleteहम यहां अधिकतर लोगों को उनके ब्लॉग के माध्यम से ही जानते हैं। किसी को व्यक्तिगत रूप से जाने बगैर भी,उसके प्रति एक प्रकार की आत्मीयता का भाव बनाए रखना ही हमारे हाथ में है। पहले एक-दूसरे को अच्छी तरह समझ लें,फिर टिप्पणी की जाए,इस तरह ब्लॉगिंग नहीं हो सकती। जिसकी फितरत छिपी है,छिपी रहे। वह उसकी समस्या है।
पूरे प्रकरण की विडम्बना यह है कि हास्य की पंक्तियां हास्य-कलाकार के उपहास का विषय बनी हैं। यह इस बात का नतीज़ा है कि हम सबके जीवन में बहुत कम हास्य बचा है।
राधारमण जी , आपने बहुत अच्छे विचार व्यक्त किये हैं । बेशक टिप्पणी लेख को देख कर की जाती है न कि लेखक को । लेकिन यहाँ उपहास की पात्र हास्य पंक्तियाँ नहीं बनी बल्कि अपरिचित होना । और जब अनुरोध करने के बाद भी कोई परिचित होना न चाहे तो कोई क्या कर सकता है सिवाय खुद की गलती मानने के ।
ReplyDeleteगाड़ी में किसी को लिफ्ट नहीं देनी चाहिए विशेषकर अकेली महिला को ।
ReplyDeleteहा..हा...हा...ये भी अनुभव लगता है ....
@ आखिर मज़ाक और उपहास में अंतर होता है ।
विशुद्ध हास्य में सौम्यता होती है न कि छिछोरापन ।
शुक्रिया ...कभी कभी हम भी मजाक कर उठते हैं .....:))
कौन हैं ये ग़ज़लकार , हास्य कलाकार या व्यंगकार..?
आप बताये या न बताएं हम तो ढूंढ ही लेंगे ......
हीर जी , अनुभव होने से पहले ही सचेत हो गए । :)
Deleteमज़ाक पर तो कोई पाबन्दी नहीं है ।
उपहास करने वाले को आप नहीं ढूंढ पाएंगे क्योंकि उन्होंने सारे सबूत मिटा दिए ।
गाड़ी में किसी को लिफ्ट नहीं देनी चाहिए विशेषकर अकेली महिला को ।
ReplyDeleteहा..हा...हा...ये भी अनुभव लगता है ....
@ आखिर मज़ाक और उपहास में अंतर होता है ।
विशुद्ध हास्य में सौम्यता होती है न कि छिछोरापन ।
शुक्रिया ...कभी कभी हम भी मजाक कर उठते हैं .....:))
कौन हैं ये ग़ज़लकार , हास्य कलाकार या व्यंगकार..?
आप बताये या न बताएं हम तो ढूंढ ही लेंगे ......
JCMar 9, 2012 04:33 PM
Deleteडॉक्टर साहिब, हरकीरत जी, "...गाड़ी में किसी को लिफ्ट नहीं देनी चाहिए..."
यह अनुभव बहुत पहले हमारे एक विदेश में पढ़े और काम किये पारिवारिक मित्र के साथ कोलकता में हुआ... जब वे एक शाम शहर से दूर अवस्थित फैक्टरी से घर लौट रहे थे, एक स्थान पर एक जोड़े ने उन से लिफ्ट मांगी... जब उन्होंने कार रोकी तो वे दोनों आगे ही बैठ गए - स्त्री बीच में और 'सज्जन' बाहरी ओर...
चौरंगी आने पर उस सज्जन ने उन्हें गाडी थोड़ी देर रोकने को कहा जिससे वो सिगरेट खरीद सके... थोड़ी देर बाद आ, उसने उन पर इल्जाम लगाया कि वो उसकी पत्नी के साथ अभद्र व्यवहार कर रहे थे! उनसे सौ रुपये देने को कहा और धमकी दी कि यदि पैसे नहीं दिए तो वो शोर मचा हंगामा खडा कर देगा! ... उस दिन के अनुभव के बाद उन्होंने (और हमने भी उनसे सुन :) सीख ली कि भविष्य में किसी भी अनजाने व्यक्ति/ जोड़े को लिफ्ट नहीं देंगे...:)
जे सी जी , इस तरह की अनेक घटनाएँ दिल्ली जैसे शहरों में होती रहती हैं । अक्सर अकेली महिला को देखकर कोई भी लिफ्ट देने के लिए लालायित हो सकता है । लेकिन फिर लेने के देने पड़ सकते हैं ।
DeleteJCMar 9, 2012 05:59 PM
Deleteडॉक्टर साहिब, किन्तु कहावत है 'होनी टाली नहीं जा सकती'!
नब्बे के दशक की बात होगी शायद... एक सुबह मैं जब - तब अपने दुपहिये पर - निवास स्थान के निकट ही एक रविवार पास ही के बाज़ार से घर लौट रहा था तो एक स्त्री को बस के पीछे दौड़ और उसे छूट जाने के कारण उस के घबराए चेहरे और मुझे रुकने का संकेत देख मैं रुक गया!!!...
उसे पीछे बिठा, बस का पीछा कर दूसरे-तीसरे स्टॉप पर उसे वो ही बस पकडवा दी! और बस के प्रवेश द्वार पर उसके चेहरे पर आभार के भाव देख ख़ुशी महसूस की...:)
अरे वाह जे सी जी ! आप सही रहे . हमने तो एक बार एक को बिठाया था दुपहिये की पिछली सीट पर, फिर उसने उतरने का नाम ही नहीं लिया . आखिर घर ही लाना पड़ा . :)
Delete:)
Deleteआपके द्वारा सुझाई गई बातों का ध्यान रखने की कोशिश करूँगा.
ReplyDelete.
ReplyDelete.
.
डॉ० साहब,
आपके साथ ऐसा कर दिया किसी ने, आश्चर्य व अफसोस दोनों हैं... चलिये आगे संभल कर रहें... यदि आप करने वाले का नाम बता देते तो बाकी भी सावधान हो जाते... वैसे आपके निर्णय का सम्मान करूंगा।
...
प्रवीण जी , हमें भी इसी बात का अफ़सोस है . लेकिन --
Deleteकरें क्या उनसे हम शिकवा
खता कोई हमीं से ही हुई होगी .
किसी अते-पते के न होने के कारण पोस्ट तो सर के ऊपर से निकल गयी परंतु किस्से के नायक के लिये आपका सम्बोधन काफ़ी आदरणीय लगा। जिस आदर सलाहें उपयोगी हैं। मित्रों की चुस्कियों के बारे में जानकर एक स्थानीय कहावत याद आ गयी, मतलबी यार किसके, चुस्की लगाई खिसके। उन्होने सबूत मिटा दिये और आपने उनका नाम, अब बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना होना चाहे भी तो जाये कौन गली? ऐनीवे, अंत भला तो सब भला! शुभकामनायें!
ReplyDeleteअनुराग जी , इस पोस्ट में दो किस्से हैं . अप कौन से किस्से के नायक की बात कर रहे हैं ? :)
Deleteडॉ. साहब तो आपके परिचित हैं, सो उनकी बात तो नहीं है। मैं तो "अनजान ब्लॉगर" की बात पर ही कंफ़्यूज़्ड हूँ। हाँ, आपकी विनम्रता सराहनीय है। काश मैं भी सीख पाता।
Deleteअंजान ब्लोगर हमारे लिए ही अंजान हैं . वर्ना उन्हें तो दुनिया जानती है .
Deleteउस पर सितम ये की सितमगर को खबर भी नहीं !
विनम्रता इसलिए की हम तो खुद से खफ़ा हैं , उनसे नहीं .
:)
Deleteहा हा हा...
ReplyDeleteदेर आयद दुरुस्त आयद...
बहुत पहले हमने भी यह सीख ले ली थी!
अन्यथा हम भी दर्दे-डिस्को करते रहते थे कुछ इस तरह :
http://raviratlami.blogspot.in/2008/01/blog-post_12.html
है कोई बात जो चुप हूँ
Deleteवर्ना क्या बात कर नहीं आती !
.
ReplyDeleteअब छोड़िए न डॉक्टर भाईसाहब हुआ सो हुआ …
बहरहाल … आपने इस पोस्ट के माध्यम से जितनी सीखें दी हैं … बड़े काम की हैं
(कुछ आभासी रिश्ते मन से जुड़ भी जाते हैं … "प्यार एहसास ही तो होता है !" )
पुनः
स्वीकार करें मंगलकामनाएं आगामी होली तक के लिए …
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♥होली ऐसी खेलिए, प्रेम पाए विस्तार !♥
♥मरुथल मन में बह उठे… मृदु शीतल जल-धार !!♥
आपको सपरिवार
होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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हा हा हा ! शुक्रिया राजेन्द्र जी .
Deleteवैसे हमने पकड़ा ही कहाँ था ! :)
किसी का एक शे'र पढ़िए --
नज़र में ढलके उभरते हैं दिल के अफ़साने
ये और बात है की दुनिया नज़र न पहचाने !
बहुत ही अनुभवी अभिव्यक्ति ... आभासी दुनिया तो वाकई आभासी है ... बस जरुरत है सही गलत के आंकलन करने की .... आभार
ReplyDeleteबहुत काम की बातें बताई आपने सर...
ReplyDeleteसादर बधाई.
पता नहीं ..क्या अर्थ है इस पोस्ट का .... ..ये सब तो सभी जानते हैं.... ’हां बुरा न मानो होली है" तो ठीक है...
ReplyDeleteJCMar 10, 2012 04:44 PM
ReplyDeleteजानने वालों की चर्चा करें तो एक आधुनिक कहावत (अंग्रेजी से हिंदी रूपंतार) के अनुसार -:
# १. "ज्ञानी वो है जो जानता है, और जानता है कि वो जानता है - गुरु मानिए उसे"...
# २. "सीधा सादा वो है जो नहीं जानता है, और जानता है कि वो नहीं जानता - उसे सिखाइए" ...
# ३. "मूर्ख वो है जो नहीं जानता है, और नहीं जानता है कि वो नहीं जानता - वो घृणा के योग्य है, (अर्थात उसे छोड़ दीजिए) "...
प्राचीन 'पहुंचे हुए' हिन्दुओं/ सिद्धों के अनुसार, "गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश...आदि", अर्थात # १ केवल परम ज्ञानी परमेश्वर है, और शेष दोनों निम्न स्तर की पशु रुपी आत्माएं हैं... (जिनका कर्तव्य परम ज्ञान को पाना है, और वो केवल मानव रूप में ही संभव है, और जो आत्मा के काल-चक्र में चौरासी लाख योनियों से गुजरने के पश्चात ही मिलता है)...
नहीं डॉ गुप्ता । सब आप जैसे ज्ञानी नहीं होते । जे सी जी की बातों से सहमत होते हुए यही कह सकते हैं कि हम भी दूसरी श्रेणी में ही आते हैं । बेशक रोज कुछ न कुछ सीखने को मिलता है ।
DeleteJCMar 11, 2012 05:24 PM
ReplyDeleteडॉक्टर साहिब, इतिहासकारों के अनुसार, बेचारे गोस्वामी तुलसीदास जी के - जनता के हित में - राम चरित मानस लिखने का श्रेय उनकी पत्नी को जाता है, क्यूंकि वे पढ़ाई छोड़ उससे खिंचे चले आने पर डांट खाए थे :)... और ज्ञानी-ध्यानी अर्धांगिनी (बेलन-धारी 'घराली' :) को भवसागर पार करने हेतु नाव (चप्पू-धारी खेवट) समान माध्यम कह गए :)...
और, वकील मोहनदास (महात्मा गांधी जी) भी स्वतन्त्रता संग्राम में नहीं उतरते यदि उन्हें भारतीय होने के कारण अफ्रीका में रेल से प्लैटफॉर्म पर बेइज्जत कर न उतार दिया जाता...:(... आदि, आदि...
उपरोक्त तथाकथित 'सत्य घटनाएं' दर्शाती हैं कि कैसे हर 'पहुंचे हुए व्यक्ति' (मानव रुपी आत्मा) के जीवन में कुछ मोड़ ऐसे आते हैं जब उनकी आत्मा जाग उठती है...
और कहा जाता है कि अपनी गलती से तो हर कोई सीख सकता है, किन्तु विद्वान वो होता है जो दूसरों की गलती से भी सीख लेता है... (गीता में योगियों/ सिद्धों द्वारा भी अज्ञान को हर गलती के मूल में कहा गया है, और विशेषकर तीसरे अध्याय में 'कर्मयोग' विषय पर ज्ञान/ उपदेश पढने को मिल सकता है, जो सौभाग्यवश मुझे भी सन '८४ में ही मिला - मुख्यतः पत्नी की डॉक्टरों के वर्तमान तक प्राप्त ज्ञान के अनुसार 'लाइलाज बिमारी' के कारण)...
कहाँ क्या हो गया मित्र..कि आप सा इंसान दुखी नजर आ रहा है....हमारी खता हो तो बतायें...सर कटा लें...
ReplyDeleteदुःख तो हुआ था , लेकिन बस एक पल के लिए .
Deleteबाकि तो आप जानते ही हैं , हम मस्त रहते हैं .
JCMar 11, 2012 10:37 PM
ReplyDeleteसंजय और धृतराष्ट्र की कृपा से हमें भी पता चलता है कि कृष्ण जी अपने प्रिय मित्र अर्जुन को (गीता में, सृष्टि का रहस्योद्घाटन करते उसे) बताते हैं कि सभी को उन्होंने पहले से ही (फ़िल्मी कहानी के लेखक समान!) मार रखा है, इसलिए उसे केवल तीर चलाने की एक्टिंग ही करनी है :)