यह दीवाली भी चली गई । और रह गए दीवाली के आफ्टर इफेक्ट्स और साइड इफेक्ट्स ।
उपहार :
* दफ्तर के बड़े बाबू का हुआ बड़ा खराब मूढ़ दीवाली पर।
दीवाली से एक महीना पहले फर्टाइल सीट से हो गया ट्रांसफर।
दीवाली के उपहारों की संख्या १०% रह गई घटकर।
* दीवाली गिफ्ट्स का हाल भी ब्लॉग पोस्ट पर टिप्पणियों जैसा होता है ।
एक हाथ दे , एक हाथ ले ।
* जो माल कभी नहीं बिकता , वो दीवाली पर आसानी से निकल जाता है ।
बस पैकेजिंग सुन्दर होनी चाहिए ।
* दीवाली गिफ्ट्स तभी तक सुन्दर लगती हैं , जब तक पेपर में लिपटी रहती हैं ।
उसके बाद खोदा पहाड़ , निकला चूहा ।
बधाईयाँ :
पहले देते थे लोग बधाईयाँ मिलकर
अब बनाकर भेज देते हैं मोबाइल पर
ग्रुप एस एम् एस ।
दीवाली पर जगमगाहट :
दीवाली से पहले
दीवाली की सुहानी संध्या
दीवाली के बाद
दीवाली से अगले दिन की वीरानी भोर
जाने कितनी सांसें समय से पहले ही थम जाएँगी ।
जब साफ़ हवा में सांस ले सकें
वो सुबह जाने कब आएगी ?
क्यों नहीं मना सकते हम दीवाली बिना शोर शराबा और प्रदूषण के ?
कुछ इस तरह ।
आखिर लक्ष्मी जी को भी तो यही पसंद है ।
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आप की बातें काबिले ग़ौर हैं. जो लक्ष्मी जी को पसंद है, वोह अक्सर मोहमाया मैं मस्त इंसानों को पसंद नहीं आता.
ReplyDeleteडा. साहिब, आपने एकदम सही लिखा,,,और चित्र - थोड़े ही सही किन्तु फिर भी - सही बयान कर रहे हैं लक्ष्मी पूजा अथवा काली पूजा (बंगाल में दिया गया नाम) के पहले और बाद के दृश्य - माँ काली और गौरी के (प्रकाश और अन्धकार के) मिले-जुले खेल अथवा लीला के...ज्ञानी शायद तभी कह गए, "चार दिनों की चाँदनी / फिर अंधियारी रात"...
ReplyDeleteऊर्जा की कमी से जूझते देश में बिजली की बेतहाशा फ़िज़ूलख़र्ची भी एक राष्ट्रीय जुर्म है ।
ReplyDeleteलक्ष्मी जी को तो कमाऊ ऊत पसंद है जी, येन केन प्रकारेण जो धन ले आए।
ReplyDeleteदीवाली की राम राम
डॉ. साहेब आपने तो चंद लफ्जों मे पूरी दिवाली का सारांश निकाल दिया
ReplyDeleteडॉ ज़माल साहब , जितना पैसा हम पटाखों और आतिशबाजी पर खर्च करते हैं , उससे कम ही बिजली पर होता होगा । फिर भी , दिए और मोमबत्ती तो हैं न , रौशनी के लिए ।
ReplyDeleteइस वर्ष फिर प्रदूषण की मात्रा ज्यादा रही ।
ललित जी , हमने तो सुना था कि लक्ष्मी धन लाती है । हालाँकि धन पाने की लालसा करना भी मोह माया का ही हिस्सा है । ज़रा मासूम जी की बात पर गौर फरमाएं ।
'योगेश्वर भगवान् विष्णु' की अर्धांगिनी, मायावी लक्ष्मी, का वाहन सांकेतिक भाषा में उल्लू को दर्शाया गया है - अनादि काल से प्राचीन किन्तु ज्ञानी हिन्दुओं द्वारा,,,समय के प्रभाव से किन्तु वर्तमान में मूर्ख व्यक्ति को 'उल्लू' कहा जाने लगा है (भारत में, किन्तु पश्चिम में उसे बुद्धिमान!) जबकि सभी को पता है कि वो ही ऐसा पक्षी है जो अँधेरे में देख पाता है जबकि अधिकतर अन्य प्राणियों को देखने के लिए (सूर्य अथवा दीपक के) प्रकाश की आवश्यकता होती है!
ReplyDeleteआप की बातें काबिले ग़ौर हैं.
ReplyDeleteसभी विचारणीय बातें हैं.....
ReplyDeleteये सब तभी सही होगा जब हम स्वयं समझेंगे...वरना यूँ ही प्रदूषण वाली दिवाली बनती रहेगी!मेरा तो ये मानना है की इसे दीपों का त्योंहार ही रखना चाहिए..पटाखे बिलकुल बंद कर दें और बिजली भी बचाएं तो सही मायनो में दीपावली मने.... दीवाली की राम राम
ReplyDeleteसन्देश देती अच्छी पोस्ट ...
ReplyDeleteजब साफ़ हवा में सांस ले सकें
ReplyDeleteवो सुबह जाने कब आएगी ?
स्वच्छ और सुन्दर पोस्ट
विचारणीय पोस्ट्……………वैसे हम तो बिना प्रदूषण के ही मनाते है दिवाली।
ReplyDeleteविचारणीय पोस्ट्
ReplyDeleteha ha ha mast
ReplyDeletemaza aa gaya
mai bhi patakhe nhi fodta
उपहारों की चुटकियाँ सारी मजेदार रहीं .....
ReplyDeleteदफ्तर के बड़े बाबू का हुआ बड़ा खराब मूढ़ दीवाली पर।
दीवाली से एक महीना पहले फर्टाइल सीट से हो गया ट्रांसफर।
@दीवाली के उपहारों की संख्या १०% रह गई घटकर।
हा...हा...हा.....उसे दिवाली तक ट्रांसफर रुकवा लेनी चाहिए थी न ....
दीवाली गिफ्ट्स का हाल भी ब्लॉग पोस्ट पर टिप्पणियों जैसा होता है ।
एक हाथ दे , एक हाथ ले ।
चलिए एक दुसरे के टेस्ट का तो पता चलता है .....
@ जो माल कभी नहीं बिकता , वो दीवाली पर आसानी से निकल जाता है ।
बस पैकेजिंग सुन्दर होनी चाहिए ।
बिलकुल .....पता होते हुए भी लोग बेवकूफ तो बन ही जाते हैं न ....?
@ दीवाली गिफ्ट्स तभी तक सुन्दर लगती हैं , जब तक पेपर में लिपटी रहती हैं ।
उसके बाद खोदा पहाड़ , निकला चूहा ।
जरुर आपके साथ हुआ होगा इस बार ......
@ पहले देते थे लोग बधाईयाँ मिलकर
अब बनाकर भेज देते हैं मोबाइल पर
ग्रुप एस एम् एस ।
जी इधर भी काफी एस ऍम एस आये ....व्यस्तता के बीच बड़ी मुश्किल से सभी को लौटा पाई..
अंत में ....पर्दों के बीच मिसेज दराल को ढूंढती रही अगर उन्हीं का घर है तो ....
लगा तो कुछ ऐसा है ......
विचारणीय पोस्ट्
ReplyDeleteहरकीरत जी , पोस्ट के मर्म को आपने सही पहचाना ।
ReplyDeleteहमने तो नकली गिफ्ट्स लेना और देना बहुत पहले छोड़ दिया है ।
बस दूर से ही तमाशा देखते हैं --लोग पैसा फूंकते हैं , हम देखते हैं ।
जी हाँ , निवास तो लक्ष्मी जी का ही है ।
बढिया लगी गिफ्ट की बात। हमने तो पाल्यूशन फ्री दीपावली मनाई। शुभकामनायें।
ReplyDeleteसर जी , बिल्कुल सही सूक्त वाक्य है ,सर मगर ये बात लोगों की समझ में कहां आती है , सर गांव इन मामलों में अब भी ठीक हैं वहां धमाके और धुएं की जगह प्रकाश फ़ैला होता है क्या खूब सुहाता भी है
ReplyDeleteबहुत अच्छा किया निर्मला जी ।
ReplyDeleteसही कह रहे हैं झा जी । अब तो हम भी सोचते हैं कि दिवाली पर कहीं निकल जाया करेंगे ।
बहुत सही आकलन!
ReplyDelete`दीवाली के उपहारों की संख्या १०% रह गई घटकर।'
ReplyDeleteमहंगाई जो बढ़ गई :)
विचारणीय बातें हैं, पर हम तो सुधर ही नहीं सकते अगर सुधरना होता तो अब तक सुधर गए होते
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद,आपका हास्य-बोध अपने शबाब पर पाया।
ReplyDeleteदिवाली पर हो रही फिजूलखर्ची...भ्रष्टाचार...प्रदूषण को अपने में समेटे हुई आपकी ये पोस्ट काफी कुछ सोचने पर मजबूर करती है...
ReplyDeleteआपके फोटो तो कमाल के हैं डा. साहब ... चिंता भी वाजिब है .... तर्क भी गज़ब के हैं .... हमारी तरफ से आपको और परिवार को दीपावली की हार्दिक मंगल कामनाएं ....
ReplyDeleteदीवाली से पहले तवादला नहीं होना चाहिये थाबडा दुख हुआ जानकर । उपहारों की व उपकारों की संख्या तो धीरे धीरे कम होती जानी है। हमारे इधर बोला जाता है लै पपडिया दै पपडिया । पैकिंग ही देखते है लोग । बंधी मुटठी लाख की
ReplyDelete"' जो माल कभी नहीं बिकता , वो दीवाली पर आसानी से निकल जाता है ।
ReplyDeleteबस पैकेजिंग सुन्दर होनी चाहिए ""
बहुत सटीक बात कहीं है .... सामयिक प्रस्तुति....आभार
बृजमोहन श्रीवास्तव जी , दुःख किस बात का । ऐसे अफसर ही तो देश को घुन की तरह खाए जा रहे हैं ।
ReplyDeleteराधारमण जी , हास्य का प्रयास तो रहता है लेकिन उपयुक्त अवसर कम ही आ पाते हैं ।
हर एक बात को पढने के बाद मन सोचने पर विवश हो गया ....सुंदर पोस्ट
ReplyDeleteसर आपको एक बार फिर तकलीफ दूंगा । कृपया मेरे लेख की अन्तिम लाइन पढने का कष्ट करें
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
ReplyDeleteहम तो बिल्कुल प्रदूषणरहित दीवाली मनाकर उसपर लेख भी लिख चुके!
घुघूती बासूती
Samast vichar anukarneey hain .Jo is baar palan na kar sake ho vey agle varsh manne ka sankalp len to behtar hai.
ReplyDeleteडाक्टर साहब क्या आप I.P.Extn. के प्रिंस सोसाइटी में निवास करते हैं. आपकी बालकनी से दिख रहे द्रश्य कुछ जाने पहचाने से लग रहे हैं. वैसे तस्वीरें शानदार हैं.
ReplyDeleteडॉ. साहब,मैंने आज दोपहर ही इस ब्लॉग पर एक टिप्पणी छोड़ी थी जो नहीं दिख रही है। कोई आपत्तिजनक बात नहीं थी,फिर कैसे डिलीट हुई,कहना मुश्किल है। उसमें मैंने लिखा था कि पिछले दो हफ्ते से मैं चित्रकथा ब्लॉग खोलने की कोशिश करने पर पाता हूं कि याहू का कोई सर्च रिजल्ट पेज खुल जाता है जिस पर लिखा आता है कि जो लिंक आप ढूंढ रहे हैं,वह मौजूद नहीं है। कृपया देखें कि यह क्या माजरा है।
ReplyDeleteराधारमण जी , वह टिप्पणी दूसरी पोस्ट पर दिखाई दे रही है ।
ReplyDeleteडा.साहिब, दीवाली के अवसर पर एक अन्य ब्लॉग पर दी गयी टिप्पणी (nov. 7) मैं आपकी सूचना और विचार करने हेतु यहाँ भी दे रहा हूँ:
ReplyDelete"यह पृथ्वी ही स्वयं दीवाली के पटाखों में 'अनार' समान है, जो लगभग सभी टीवी पर यदाकदा देखते हैं और पहचान सकते हैं जब कहीं ज्वालामुखी विस्फोट होता है (जैसा हाल में आइसलैंड में हुआ और अभी भी इंडोनेशिया में चालू है)...हम भारतवासी वर्तमान में भाग्यवान हैं कि प्रत्यक्ष रूप में यहाँ कोई ज्वालामुखी नहीं है यद्यपि हमें मालूम है कि गर्म और पिघली चट्टानों के हिमालय के नीचे करीब में ही होने के कारण हिमालय के निकटवर्तीय क्षेत्रों में कभी-कभी बड़े-बड़े भूकंप आते रहते हैं,,,जो भारी जान-माल कि हानि के कारण रहे हैं,,,और दक्षिण भारत की भूमि में पाई जाने वाली अनुमानित लगभग साढ़े छह करोड़ वर्ष पहले बनी चट्टानों का स्रोत ज्वालामुखी में ही माना जाता है,,,जो इस प्रकार हिमालयी क्षेत्र से जुड़ा है...अनुमान है कि पृथ्वी ही आरम्भ में आग का गोला थी! यह चमत्कार ही है कि कुछेक लाख वर्षों से इतने विभिन्न प्रकार के सुन्दर-सुन्दर, अस्थायी ही सही, प्राणियों को पाल-पोस रहा है यह बम का गोला! कोई अनुमान कि क्यूँ?"
@ विचारशून्य
ReplyDeleteभाई कुछ बातों में मिस्ट्री बनी रहे तो क्या बुराई है । जैसे आपने अपने नाम और फोटो में बना रखी है ।
वैसे दुनिया बहुत बड़ी नहीं रही अब ।
जे सी जी , ताकि फिर से सब काल के ग्रास में समा सके। बाकि तो आप ही बताइये ।
आपका अनुमान कुछ हद तक सही प्रतीत होता है! प्राचीन ज्ञानी ('हिन्दू') भी इस निर्णय पर पहुंचे लगते हैं कि अनंत प्रतीत होते भौतिक ब्रह्माण्ड की रचना (और उसके प्रतिरूप अथवा प्रतिबिम्ब समान, सूक्ष्म रूप धारी मानव की दृष्टि में अनंत अथवा विराट पृथ्वी की भी) शून्य (ध्वनि ऊर्जा, और स्थान और काल) से 'क्षीरसागर मंथन' (आकार में निरंतर बढ़ते तारामंडल यानि गैलेक्सी) द्वारा - गुरु बृहस्पति (जुपिटर) की देखरेख में - विषैले वातावरण से आरंभ कर अंततोगत्वा चार चरण ('ब्रह्मा के चार मुख'?) में देवताओं (सौरमंडल के सदस्यों?) को अमृत बनाने में सफल हो समाप्त हुई (चक्र पूरा कर फिर से शून्य),,,
ReplyDeletevaise भी सत्यम शिवम् सुंदरम 'शिवजी' यदि 'अपना तीस्र्रा नेत्र खोल दें' यानि वातावरण में उपस्थित ओज़ोन में छिद्र बड़ा हो जाए तो पृथ्वी पर व्याप्त जीवन पल भर में भस्म हो जाये कभी भी! फिर sampoorn लीला कैसे देख पायेगा कोई?
'लीला' अथवा 'माया' की यदि बात करें तो उस पर की गयी मेरी एक टिप्पणी भी प्रस्तुत है:
ReplyDelete'भारत' किसी समय योगियों, ऋषियों, सिद्धों, आदि का देश रहा है जो 'परम सत्य' निराकार आदि शक्ति को जाने जो काल से परे है: अजन्मा और अनंत परमात्मा कहा जाता है,,, और 'माया' को 'सत्य' जो सूर्य (जिसका सार मानव शरीर में, 'माटी के पुतले' में, पेट में जाना गया) और पृथ्वी (जिसका सार 'तीसरे नेत्र' के स्थान पर जाना गया, और 'आज्ञा चक्र' कहा गया) आदि अन्य ग्रहों के घूमने द्वारा जनित काल के साथ सम्बंधित है और जिसका आभास हमें अपनी पांच मायावी इन्द्रियों के माध्यम से होता है - किसी को कम तो किसी को अधिक,,,और यद्यपि वो सब प्राणियों के भीतर विद्यमान है, किन्तु किसी एक समय किसी-किसी विशेष व्यक्ति में एक छठी इन्द्रिय की उपस्तिथि का एहसास सर्वाधिक होता है, (जिसे आत्मा कहा गया)...
प्राचीन ज्ञानियों द्वारा 'माया' अथवा 'मिथ्या जगत' शब्दों का उपयोग संकेत करता है कि भौतिक संसार/ अनंत ब्रह्माण्ड और उस पर आधारित जीवन वर्तमान में किसी मायावी फिल्म जगत समान बनावटी समझा गया है,,,
उपरोक्त पृष्ठभूमि को ध्यान में रखे बिना, हम आम व्यक्तियों का मानवी कार्य कलापों, जो प्रकृति द्वारा चालित हैं (ग्रहों के माध्यम से, जैसा ज्ञानियों, प्राचीन खगोलशास्त्रियों ने जाना), और उनमें कमी की चर्चा पर 'गहराई' में जाने का प्रयास करना शायद सही नहीं होगा क्यूंकि वो गंतव्य पर नहीं पहुंचा पायेगा, जैसा 'त्रिशंकु' की कहानी के माध्यम से भी समझाया गया है (अकेले विश्वामित्र मुनि उसे स्वर्ग तक पहुंचा नहीं पाए!)...
मना सकते हम दीवाली बिना शोर शराबा और प्रदूषण के
ReplyDeleteहमने भी प्रदूषण रहित दिवाली ही मनाई ...!
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