top hindi blogs

Sunday, July 27, 2014

हर सुबह की शाम होती है, लेकिन हर शाम के बाद सुबह भी आती है ---


रोजमर्रा की भाग दौड़ की ज़िदगी से हटकर यदि कुछ दिनों  के लिये भी आप शहर से दूर किसी पर्वतीय स्थल पर चले जाएं , तो तन और मन मे नई ऊर्ज़ा और स्फूर्ति का संचार हो जाता है 


पर्वतों की रानी मसूरी मे एक सुहानी सुबह , धुंध भरी ! वृक्ष भी जैसे मिलकर हमारा मनोरंजन करने के लिये तैयार थे !  




लेकिन शाम का धुंधलका सूर्य और बादलों के साथ आंख मिचौली खेलता हुआ , पर्वतीय धरा पर अपना रंगई जादू बिखेर रहा था ! 




पर्वतों मे कुछ ही दिन का आराम और सुबह की सैर , और रास्ते मे खोखे की चाय , जीवन को असली आनंद से भर देती है ! 




इस छोटे से स्तूप को अक्सर हम मिस कर जाते थे ! लेकिन देखिये तस्वीर मे कितना भव्य लग रहा है ! 





ये टेढ़े मेढ़े पहाड़ी रास्ते हमे बताते हैं कि जिंदगी कभी सीधी नहीं चलती ! इसमे ना जाने कितने मोड़ , उतार चढ़ाव और पड़ाव आते हैं !   




हमारे लिये तो हर यात्रा एक हनीमून जैसी होती है ! फिर आपकी शादी को तीन दिन हुए हों या तीस साल , क्या फर्क पड़ता है ! यह फोटो एक नवविवाहित युग्ल द्वारा ली गई है ! 




इस वृक्ष ने हमे सिखाया कि कैसे हर विपरीत परिस्थिति का सामना करते हुए अपने अस्तित्व को कायम रखा जा सकता है ! बहारें फिर भी आती हैं , फिर भी आयेंगी , बस हौसला बनाये रखना आवश्यक होता है ! 





अब पहाड़ी पर्यटक स्थलों पर भी ध्यान दिया जा रहा है ! यह अच्छी बात है ! 





दिल को सकूं पहुंचाती एक और सुहानी शाम ढलने वाली है !  




अगली भोर ने फिर अपनी सुंदरता बिखेर दी ! 




यहाँ मौसम भी घड़ी घड़ी अंगडाई लेता है ! कभी धूप कभी छाँव ! यही तो खूबसूरती है मसूरी की ! 




शहर मे ही घना जंगल हो तो वायु भी शुद्ध ही होती है ! बस इसे अशुद्ध ना कर दें , यह हमारा फ़र्ज़ है ! 





एक पैरामिलिट्री फोर्स के गेट के पास से मसूरी का यह नज़ारा बड़ा मनमोहक होता है ! कुछ देर तक निहारने के बाद जब हमने एक ज़वान से फोटो लेने का अनुरोध किया तो उसने बड़े प्यार से कहा कि सर मैं तो कब से इंतज़ार कर रहा था कि आप मुझे फोटो खींचने के लिये कहें ! फिर उसने धड़ाधड़ कई फोटो खींच डाले ! शायद उसे हम मे अपने माँ पिता नज़र आ रहे थे !  





हर सुबह की शाम होती है ! लेकिन हर शाम के बाद सुबह भी आती है ! यही संदेश देती हुई इस शाम के सुनहरे नज़ारे को आँखों मे भरकर हमने अगले दिन दिल्ली के लिये प्रस्थान करने की तैयारी की , मन मे एक बार फिर मसूरी आने की तमन्ना के साथ ! 

Thursday, July 17, 2014

दिल्ली गर्मी मे जले और और मुम्बई मे रिमझिम बारिश पड़े ---


यूं तो मुम्बई जाना किसी व्यक्तिगत काम से हुआ था ! लेकिन जब आ ही गए थे तो आम के आम और गुठलियों के दाम वसूलना तो हमे भी खूब आता है ! इसलिये काम के साथ साथ हमने मुम्बई के मित्रों से भी मिलने की सोची ! लेकिन बारिश के मौसम मे हमारे साथ साथ मुम्बईकारों की भी शायद हिम्मत नहीं पड़ी मिलने मिलाने की ! इसलिये यह काम इस बार अधूरा ही रहा ! हालांकि हमारे पास भी वक्त कम ही था ! 

दिल्ली की गर्मी से त्रस्त जब हम मुम्बई पहुंचे तो बारिश धीमे धीमे ऐसे हो रही थी जैसे इन्द्र देवता थककर कूल डाउन वॉक कर रहे हों जैसे हम पार्क मे आधा घंटा ब्रिस्क वॉक करने के बाद करते हैं ! बाद मे टैक्सी मे बैठने पर टैक्सी वाले ने भी बताया कि एक दिन पहले जम कर बारिश हुई थी जो मुम्बई मे एक सीजन मे केवल तीन बार होती है ! एक तो हो गई थी , बाकी दो का इंतज़ार था ! उस दिन के अखबार मे भी "मुम्बई पानी पानी" जैसे खबरें छपी थीं ! लेकिन गर्मी से परेशान हम दिल्ली वालों को तो यह बारिश पत्नी से भी ज्यादा प्यारी लग रही थी ! 

मुम्बई मे लगातार बारिश होने से यहाँ घरों की दीवारें अक्सर काली पड़ जाती हैं !  सड़कों पर भी गीला गीला अहसास रहता है , लेकिन यहाँ की ज़मीन ज्यादा रेतीली नहीं है जिसकी वज़ह से मकानों और कपड़ों पर धूल नहीं जमती ! लेकिन एक बात ने विशेष तौर पर हमारा ध्यान आकृषित किया ! यहाँ ज्यादातर घरों / मकानों मे बालकनी नहीं होती ! उसकी जगह पर खिड़की मे ग्रिल लगाकर कपड़े सुखाने का इंतज़ाम किया जाता है ! यह बात हम दिल्लीवालों को नहीं भाती ! हमे खुले मे बैठने की बड़ी आदत है ! 

वैसे तो मुम्बई का अधिकांश भाग पुराना सा ही लगता है और कहीं से भी विकसित देश जैसा नहीं लगता ! लेकिन पवई क्षेत्र मे बना हीरानन्दानी आवासीय क्षेत्र का कोई ज़वाब नहीं ! यहाँ आकर एक मुद्दत के बाद किसी विकसित देश जैसा अनुभव हुआ ! बहुमञ्ज़लीय सुन्दर इमारतों के पीछे पहाड़ियों का दृश्य जैसे गज़ब ढा रहा था ! 



मुम्बई आने से पहले हमने फ़ेसबुक पर अपने आने की सूचना इसलिये दी थी ताकि यदि संभव हो तो एक ब्लॉगर मिलन का आयोजन किया जा सके ! लेकिन बारिश , हमारी व्यस्तता और सही संपर्क ना होने से यह संभव ना हो सका ! वैसे भी कुछ एक लोगों को छोड़कर आजकल लगभग सभी आभासी दुनिया मे ज्यादा व्यस्त रहने लगे हैं ! लेकिन सभी विषमताओं के बावज़ूद हमने समय निकालकर एक कार्यक्रम बना ही लिया , मालाड मे रहने वाले श्री हरिवंश शर्मा जी से मिलने का ! देर रात तक उनके घर पर और इस बीच घर के पास मौजूद बीच पर बारिश मे भुट्टा खाते हुए हम चार नौज़वानों ने खूब लुत्फ उठाया !  



आजकल सभी छोटे बड़े शहरों मे मॉल कल्चर खूब पनप रहा है ! सर्दी , गर्मी , या हो बरसात , मॉल्स मे हर समय युवा दिलों की भरमार रहती है ! अधिकतर लोग तो आयु मे भी युवा होते हैं , लेकिन कुछ हमारे जैसे तन से प्रौढ़ लेकिन मन से युवाओं के युवा लोग भी नज़र आ जाते हैं ! 



दिल्ली मे भी मॉल्स मे सिनेमा हॉल होते हैं लेकिन ऐसे नहीं जैसे यहाँ देखे ! हॉल की आखिरी दो पंक्तियों मे रिकलाइनिंग सोफे लगे थे जिन्हे आप सीधे बैठने की पोजीशन से पूरा लेटने की मुद्रा तक एड्जस्ट कर सकते हैं ! यानि आप अपनी कमर के हिसाब से आगे पीछे करते हुए घड़ी घड़ी पोजीशन बदल सकते हैं ! अच्छी बात यह लगी कि यदि फिल्म बोर हो तो आप चैन की नींद सो सकते हैं ! 



दिल ना माने मगर आना भी था ! वो तो समय रहते हमने पहले से ही टैक्सी बुक करा दी थी , वर्ना ऐसी बारिश मे ट्रेन पकड़ना बड़ा मुश्किल पड़ता ! मीटर से डेढ़ गुना किराया तय कर हमने टैक्सी वाले को पहले ही खुश कर दिया था ! लेकिन उसे भी यह आभास नहीं था कि उसके साथ क्या होने वाला था ! एक तो उसकी पचास साल पुरानी फिएट जो अस्सी साल की बुढिया की तरह ज़र्ज़र हालत मे थी, उस पर बारिश का कहर ! सामने वाले शीशे मे भी एक ही वाईपर जिसे वह एक खटका दबाकर एक बार चलाता और बंद कर देता ! शायद एक बार से ज्यादा चलना उसके बस का ही नहीं रहा होगा ! एक समय तो सड़क पर कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था !    

वैसे तो मुम्बई की सड़कें अधिक बारिश के कारण आर सी सी से बनाई गई हैं , इसलिये दिल्ली की तरह एक बारिश पड़ते ही गड्ढे नहीं बन जाते ! लेकिन कई जगह पानी की निकासी सही ना होने से हाईवे पर भी पानी भर जाता है , जिससे ट्रैफिक जाम हो जाता है ! हमारे इलाहाबादी ड्राईवर भैया की गाड़ी भी एक दमे के रोगी की तरह मुश्किल से सांस लेती हुई धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी ! हमारी ही उम्र का भैयन भी हमको अंक्ल कहता हुआ बार बार डरा रहा था कि गाड़ी अब बंद हुई और तब बंद हुई ! हमने देखा कि मुम्बई मे मेहनत मज़दूरी करने वाले लोग किसी भी पढ़े लिखे दिखने वाले व्यक्ति को अंकल कहकर ही बुला रहे थे, भले ही उम्र मे वो उससे छोटा हो ! 
अब हाल यह होने लगा था कि हमे डर लगने लगा था कि पता नहीं ट्रेन मिलेगी या नहीं ! हम तो यह सोच कर डर रहे थे कि पता नहीं कैसे स्टेशन पहुंचेंगे और टैक्सी वाला यह सोचकर डर रहा था कि अब वापस कैसे जाउंगा ! अब उसे यह विचार भी सताने लगा था कि उसने कम पैसे मे क्यों हाँ भर दी जबकि वह पहले ही डेढ़ गुना चार्ज कर रहा था ! वह यह सोचकर परेशान था कि आज तो बारिश मे नुकसान हो गया और हम यह सोचकर कि यदि ट्रेन छूट गई तो विमान का टिकेट लेने मे कितने का नुकसान होगा ! इस बीच वह हनुमान का जाप किये जा रहा था कि कहीं टैक्सी बंद ना हो जाये और हम भगवान को याद कर रहे थे कि कहीं ट्रेन ना छूट जाये ! अंत मे दोनो की प्रेयर काम आई और ना गाड़ी रुकी और ना ही ब्रेक फेल हुआ जिसका डर था ! हम समय से पहले ही स्टेशन पहुंच गए थे ! हमने भी उसका ध्यान रखते हुए उसे १०० रुपये ईनाम मे दिये और चल पड़े अपनी मंज़िल की ओर ! 

अब यहाँ बैठे है झेलते हुए दिल्ली की गर्मी !

Wednesday, July 9, 2014

मनुष्य अपने मित्रों से जाना पहचाना जाता है ---


जो ख़ुशी में इतराये ना ,
ग़म से कभी घबराये ना !
ऐसे शख्स का संग भी ,
सत्संग जैसा होता है !

जो ख़ुशी में बुलाये ना ,
ग़म में साथ निभाए ना !
ऐसे शख्स का याराना ,
नादानों जैसा होता है !


जो दिल की बात बताये ना,
दिल की लगी को भुलाये ना !
ऐसे शख्स से दिल लगाना ,
आत्मघात जैसा होता है !




Thursday, July 3, 2014

जब ताई कै चढ़ ग्या ताप -- एक शुद्ध हरयाणवी हास्य कविता !


आज फोकस हरयाणा टी वी चैनल पर एक छोरी को हरयाणवी में समाचार पढ़ते देखकर बहुत हंसी आई ! पहले तो समझ ही नहीं आया कि वो भाषा कौन सी बोल रही थी। फिर स्क्रॉल पर लिखा हुआ पढ़ा तो जाना कि वो तो हरयाणवी बोल रही थी।  उसकी हरयाणवी ऐसी थी जैसे कटरीना की हिंदी ! खैर , उसे देखकर हमें भी जोश आ गया और  ठेठ हरयाणवी में एक हास्य कविता लिख डाली । अब आप भी आनंद लीजिये :


ताई बोल्ली , ऐं रे रमलू
तेरै ताप चढ़ रह्या सै ?

रमलू बोल्या , ना ताई ,
ताई बोल्ली --  रे भाई ,

देखे तू तै बच रह्या सै
पर मेरै चढ़ रह्या सै !

पाहयां में मरी सीलक सी चढ़ गी ,
ज्यां तै हाडां में निवाई  बन गी !

पेडू में दर्द सै , कड़ में बा आ ग्या ,
अर चस चस करैं सै सारे हाथ पां !

पांसुआ में चब्बक चब्बक सी हो री सै ,
मात्थे की नस तै , पाटण नै हो री सै ।

देखे रे छाती में तै हुक्का सा बाज्जै सै !
साँस कुम्हार की धोंकनी सा भाज्जै सै !

काळजा भी धुकड़ धुकड़ कर रह्या सै ,
ऐं रेमेरा तै हलवा खाण नै जी कर रह्या सै !

रमलू बोल्या  री ताई ,
तू मतना करै अंघाई ।

घी ख़त्म हो रह्या सैतू लापसी बणवा ले ,
अर पप्पू की माँ तै पाँह दबवा ले ।

काढ़ा पी ले अर सौड़ ओढ़ कै लोट ज्या  ,
फेर देख यो ताप क्योंकर ना छोड़ ज्या !

ताई बोली , पाँ तै बेट्टा तेरा ताऊ दबाया करै था ,
इसे करड़े हाथां तै दबाता, जी सा आ जाया करै था। 

दिल्ली जात्ता तै मेरी ताहीं गाजरपांख लको कै ल्याया करै था ।
अर देखे जीमण जात्ता ना,  तै बावन लाड्डू खा जाया करै था !

आज तै तेरे ताऊ की याद घणी सतावै सै, 
ऐं रे मुए तू क्यों मन्नै बात्तां में लगावै सै !

पर देख तेरे ताऊ के नाम का चमत्कार ,
उस नै याद कर कै ए उतर ग्या बुखार !

बेट्टा मर्द बीर का तै सात जनम का हो सै साथ,
तू पराई लुगाई कैड़यां कदै मतना उठाइये आँख !

आच्छा माणस वो हो सै जो सदाचारी हो सै  ,
जो पराई औरत कै हाथ न लगावै, वोए ब्रह्मचारी हो सै। 

गीता में लिखा सै , बेट्टा , गीता में।  





नोट : इस कविता में शुद्ध हरयाणवी शब्द इस्तेमाल किये गए हैं।  समझ में न आये तो हम बता देंगे।



Wednesday, June 25, 2014

मसूरी की सैर पर एक कवितामयी चित्रकथा ----


दिल्ली की गर्मी की मज़बूरी ,
ऐसे मे याद आ गई मसूरी ! 
मोदी प्रभाव कहें या यू पी सरकार की समझदारी ,
दो घंटे मे तय हो गई मुज़फ़्फरनगर तक की दूरी !



आठ बजे थे नाश्ते का क्या वक्त था, 
ढाबे पर खाना भी कहाँ उपयुक्त था ! 
खटिया पर बैठ चाय पीना भला लगा , 
शायद ढाबे वाला भी मोदी भक्त था ! 






मसूरी मे सुबह का मौसम सुहाना था,
अपने हाथों मे वक्त का ख़ज़ाना था ! 
सुबह की सैर पर हमे हुआ ये अहसास, 
धुंध से आए हैं इक धुंध मे जाना था ! 




यूं पहाड़ों की जिंदगी ज़रा सुस्त होती है , 
लेकिन पहाड़ियों की चाल चुस्त होती है ! 
हम दो किलोमीटर पैदल चले तो जाना,
कि खोखे की चाय भी बड़ी मस्त होती है ! 



दिन मे मस्ती का चाव छा गया , 
दिल मे साहस का भाव आ गया ! 
डरते डरते पहली बार हमने भी , 
कमर कसी और हवा मे समा गया ! 





शाम को जब सांझ होने को आई , 
आसमान मे थी काली बदली छाई ! 
रंग बिरंगे रंगों ने फिर आसमां मे , 
आधुनिक कला की कलाकृति बनाई ! 





सूरज ने जब पर्वतों पर अंतिम किरणें डाली , 
फैल गई किसी पहाडिन के गालों सी लाली !
दूर किसी चोटी पर बज उठी एक बांसुरिया ,   
और चहकने लगी चिड़ियाँ भी डाली डाली ! 





मॉल की दुकान पर सजी थी मिठाईयां , 
रंगों की छटा लिये ज्यों पंजाबी लुगाईयां ! 
छोटे मोटे पतले लम्बे खाते पीते हंसते , 
मस्ती करते पकड़े बच्चों की कलाईयाँ ! 





हमारा नव विवाहित जोड़ी सा गर्म खून था , 
हम पर भी फोटो खिंचवाने का ज़ुनून था ! 
ना कजरा ना गजरा ना पायल ना सिन्दूर ,
भई आखिर ये हमारा पचासवां हनीमून था ! 




इन वादियों ने देखे होंगे जाने कितने सावन , 
इस मौसम मे गुजरे होंगे जाने कितने यौवन ! 
कहीं वक्त की मार ठूंठ न कर दे इस वादी को, 
आओ हम मिलकर रखें पर्यावरण को  पावन ! 


Friday, June 13, 2014

दिन अब भाईचारे के आने लगे हैं ----


आज प्रस्तुत है , एक पुरानी ग़ज़ल नये रूप मे : 


अच्छे दिन अपने शायद आने लगे हैं , 
बच्चे वॉट्स एप पर बतियाने लगे हैं !


हाथों मे जब से स्मार्ट फुनवा आ गया है, 
बच्चे मात पिता को  समझाने  लगे  हैं ! 

जब  से  जाना  है  महमां  घर आ गये हैं ,
वो घर  जाने  से  ही  कतराने  लगे  हैं  

खुद की छवि जब से आईने मे दिखी है , 
अपने  साये से हम  कतराने लगे  हैं !  


जिंदगी  भर  काला  धन्धा  करते  रहे  जो ,
स्विस  बैंकों  मे  पैसा  रखवाने   लगे   हैं !  

ज़ालिम पर जब कोई भी ज़ोर ना चला तो , 
उसको ही सज़दा कर घर जाने लगे हैं ! 

गूंगे बहरों की बसती मे भी "तराने" , 
अब तो हम भी प्यार भरे गाने लगे हैं ! 


फ़िक्र  ना  कर  तू  रामा  है  या  है रहीमन,   
दिन  अब  भाईचारे   के  आने  लगे   हैं ! 

Thursday, June 5, 2014

विकास की आंधी ने संस्कारों को चूर चूर कर दिया है ---


रोज शाम होते ही बीवी गुहार लगाती है, 
पार्क की सैर करने के गुण समझाती है !
हार कर एक दिन हमने भी गाड़ी उठाई ,
और पत्नी को संग बिठा, पार्क की ओर दौड़ाई !   
गेट से घुसते ही , फुटपाथ पर कदम रखते ही 
सोचा कि चलो अब काम पर लगा जाये , 
पेट और वेट घटाने को ज़रा तेज चला जाये ! 
तभी गांव याद कर मन मे विचार आया,  
कि यह भी कैसा मुकाम है !
वहां काम पर जाते थे पैदल चलकर,
यहाँ पैदल चलना भी एक काम है !
पार्क मे पैदल चलकर हम केलरिज जलाते हैं, 
लेकिन पैदल चलने के लिये बैठकर कार मे जाते हैं !

लेकिन पार्क का नज़ारा भी अज़ब होता है, 
टहलने वालों मे जिसे देखो वही बेढब होता है ! 
फिट बंदे तो नज़र ही कहाँ आते हैं,
क्योंकि फिट होते हैं आदमी खास,
और खास आदमी फिटनेस पाने, 
पार्क मे नहीं , ए सी जिम मे जाते हैं ! 
और आम आदमी के पास नहीं होता वक्त,  
वो बेचारे तो शाम के वक्त ठेला लगाते हैं !

पार्क मे आने वाले तो होते हैं मिडल क्लास,
और मिडल क्लास ना आम होते हैं ना खास 
उनके पास नहीं जिम के लायक पैसा होता है,
पर पास करने के लिये वक्त ज्यादा होता है ! 
उम्र निकल जाती है जिंदगी को ढोते ढोते,
पहले पालते हैं बच्चे और फिर पोती पोते !  
सेहत की ओर ध्यान ही कहाँ जा पाता है,
घर का भार उठाते उठाते शरीर का भार बढ़ जाता है ! 
फिर घेर लेते है बी पी, शुगर और आरथ्राईटिस,  
और सेहत की हो जाती है टांय टांय फिस ! 
रिटायर होते होते ज़वाब दे जाते हैं घुटने,
इसलिये वॉक के नाम पर पार्क जाते हैं बस टहलने ! 

एक पेड़ के नीचे दस बूढ़े बैठे बतिया रहे थे,
सुनने वाला कोई नहीं था पर सब बोले जा रहे थे ! 
भई उम्र भर तो सुनते रहे बीवी और बॉस की बातें,
दिन मे चुप्पी और नींद मे बड़बड़ाकर कटती रही रातें ! 
अब सेवानिवृत होने पर मिला था बॉस से छुटकारा,
बरसों से दिल मे दबा गुब्बार निकल रहा था सारा !

वैसे भी बुजुर्गों को मिले ना मिले रोटी का निवाला ,
पर मिलना चाहिये कोई तो उनकी बातें सुनने वाला ! 
लेकिन बहू बेटा व्यस्त रहते हैं पैसा कमाने की दौड़ मे , 
और बच्चे कम्प्यूटर पर सोशल साइट्स के गठजोड़ मे !
विकास की आंधी ने संस्कारों को चूर चूर कर दिया है , 
एक ही घर मे रहकर भी परिवारों को दूर कर दिया है ! 

फिर एक साल बाद :
उसी पेड़ तले वही बुजुर्ग बैठे बतिया रहे थे,
लेकिन आज संख्या में आधे नज़र आ रहे थे।
अब वो बातें भी कर रहे थे फुसफुसा कर,
चहरे पर झलक रहा था एक अंजाना सा डर।
शायद चिंतन मनन हो रहा था इसका,
कि अब अगला नंबर लगेगा किसका।
पार्क में छोटे बच्चों की नई खेप दे रही थी दिखाई,
शायद यह आवागमन ही जिंदगी की रीति है भाई।