आज फोकस हरयाणा टी वी चैनल पर एक छोरी को हरयाणवी में समाचार पढ़ते देखकर बहुत हंसी आई ! पहले तो समझ ही नहीं आया कि वो भाषा कौन सी बोल रही थी। फिर स्क्रॉल पर लिखा हुआ पढ़ा तो जाना कि वो तो हरयाणवी बोल रही थी। उसकी हरयाणवी ऐसी थी जैसे कटरीना की हिंदी ! खैर , उसे देखकर हमें भी जोश आ गया और ठेठ हरयाणवी में एक हास्य कविता लिख डाली । अब आप भी आनंद लीजिये :
ताई बोल्ली , ऐं रे रमलू ,
तेरै ताप चढ़ रह्या सै ?
तेरै ताप चढ़ रह्या सै ?
रमलू बोल्या , ना ताई ,
ताई बोल्ली -- रे
भाई ,
देखे तू तै बच रह्या सै ,
पर मेरै चढ़ रह्या सै !
पर मेरै चढ़ रह्या सै !
पाहयां में मरी सीलक सी चढ़ गी ,
ज्यां तै हाडां में निवाई बन गी !
पेडू में दर्द सै , कड़ में बा आ ग्या ,
अर चस चस करैं सै , सारे हाथ
पां !
पांसुआ में चब्बक चब्बक सी हो री सै ,
मात्थे की नस तै , पाटण नै हो री सै ।
देखे रे छाती में तै हुक्का सा बाज्जै सै !
साँस कुम्हार की धोंकनी सा भाज्जै सै !
काळजा भी धुकड़ धुकड़ कर रह्या सै ,
ऐं रे, मेरा तै हलवा खाण नै जी कर रह्या सै !
रमलू बोल्या री ताई
,
तू मतना करै अंघाई ।
घी ख़त्म हो रह्या सै, तू लापसी बणवा ले ,
अर पप्पू की माँ तै पाँह दबवा ले ।
काढ़ा पी ले अर सौड़ ओढ़ कै लोट ज्या ,
फेर देख यो ताप क्योंकर ना छोड़ ज्या !
ताई बोली , पाँ तै बेट्टा तेरा ताऊ दबाया करै था ,
इसे करड़े हाथां तै दबाता, जी सा आ जाया करै था।
इसे करड़े हाथां तै दबाता, जी सा आ जाया करै था।
दिल्ली जात्ता तै मेरी ताहीं गाजरपांख लको कै ल्याया करै था ।
अर देखे जीमण जात्ता ना, तै बावन लाड्डू खा जाया करै था !
आज तै तेरे ताऊ की याद घणी सतावै सै,
ऐं रे मुए तू क्यों मन्नै बात्तां में लगावै सै !
पर देख तेरे ताऊ के नाम का चमत्कार ,
उस नै याद कर कै ए उतर ग्या बुखार !
बेट्टा मर्द बीर का तै सात जनम का हो सै साथ,
तू पराई लुगाई कैड़यां कदै मतना उठाइये आँख !
आच्छा माणस वो हो सै जो सदाचारी हो सै ,
जो पराई औरत कै हाथ न लगावै, वोए ब्रह्मचारी हो सै।
गीता में लिखा सै , बेट्टा , गीता में।
गीता में लिखा सै , बेट्टा , गीता में।
कविता ताऊ की अनायास दिला दी -ये गाजरपांख का होवे भला?
ReplyDeletegajjarpak
Deleteगाजर का हलवा।
Deleteगाजरपांख के लिये तो मैं कहीं भी जाने तैयार हूँ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (04-07-2014) को "स्वप्न सिमट जाते हैं" {चर्चामंच - 1664} पर भी होगी।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ताऊ की बात ही कुछ और सै ……
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ..
ReplyDeleteकविता के लय-ताल ,प्रस्तुति । जैसे हरयाणा के
ReplyDeleteकिसी गाँव में की गई वर्ताप को कविता के माध्यम
द्वारा चित्रित कर दिया है।
adabhut
ReplyDeleteहलवा छोड़ , तू लापसी बणवा ले ,
ReplyDeleteअर पप्पू की माँ तै , पाँ दबवा ले।
:-) :-)
बहुत खूब !!
सादर
अनु
बहुत मजेदार रचना |
ReplyDeleteहरियाणा म्है बूढे बूढियाँ के सारे मर्ज की एक ही दवाई "हलुवा" सै। भू ताता हलवा "कचोळा" भर के ल्यावै तो सारे दर्द, दु:ख और बिमारी भाग ज्यावैं से। डागदर तो किम्मे लवे-धोरे कोनी लागता। गजब की कविताई, बधाई हो भाई साहब बधाई।
ReplyDeleteमजेदार :-) :-)
ReplyDeleteशुक्र है , पसंद आई भाई ! हम तो डर रहे थे कि पता नहीं कैसी लगेगी ! :)
ReplyDeleteहा हा हा मजेदार
ReplyDeleteरोचक प्रस्तुति ..
ReplyDeleteमजेदार :p
ReplyDeleteताई का ताप ताऊ के अलावा और किस पै उअतरैगा?:)
ReplyDeleteरामराम.
इब ताऊ का कमाल देखन लागरे है सभी ...
ReplyDeleteमज़ा आ गया इस निरम हास्य पे डाक्टर साहब ...
कम समझ आई , पर हंसी फिर भी आई :)
ReplyDeleteचलिये , हम समझा देते हैं :
ReplyDeleteताप = बुखार
पाह्याँ = पैर
सीलक = ठंड
पेड़ू = पेट का निचला हिस्सा
कड़ = कमर
निवाई = हल्का बुखार
पांसु = पसली
कालजा = कलेजा
अंघाई = बदमाशी
लापसी = बिना घी का हलवा
सौड़ = रज़ाई
गाजारपांख = गाजर का हलवा
चीजो = खाने का सामान
इसे पढ़कर लगा हरयाणवी पढ़ना और समझना इतना भी मुश्किल नहीं, बढ़िया हास्य कविता।
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