आज प्रस्तुत है , एक पुरानी ग़ज़ल नये रूप मे :
अच्छे दिन अपने शायद आने लगे हैं ,
बच्चे वॉट्स एप पर बतियाने लगे हैं !
हाथों मे जब से स्मार्ट फुनवा आ गया है,
बच्चे मात पिता को समझाने लगे हैं !
जब से जाना है महमां घर आ गये हैं ,
वो घर जाने से ही कतराने लगे हैं !
खुद की छवि जब से आईने मे दिखी है ,
अपने साये से हम कतराने लगे हैं !
जिंदगी भर काला धन्धा करते रहे जो ,
स्विस बैंकों मे पैसा रखवाने लगे हैं !
ज़ालिम पर जब कोई भी ज़ोर ना चला तो ,
उसको ही सज़दा कर घर जाने लगे हैं !
गूंगे बहरों की बसती मे भी "तराने" ,
अब तो हम भी प्यार भरे गाने लगे हैं !
फ़िक्र ना कर तू रामा है या है रहीमन,
दिन अब भाईचारे के आने लगे हैं !
वाह....
ReplyDeleteगूंगे बहरों की बसती मे भी "तराने" ,
अब तो हम भी प्यार भरे गाने लगे हैं !
बहुत बढ़िया !!!
सादर
अनु
सटीक .... विचारणीय भी
ReplyDeleteये पुरानी नहीं----आज के दौर की शानदार गजल है
ReplyDeleteसुंदर ग़ज़ल
ReplyDeleteफ़िक्र ना कर तू रामा है या है रहीमन,
ReplyDeleteदिन अब भाईचारे के आने लगे हैं !
बहुत बढ़िया बिंदास भाव आभार
समय बड़ा बलवान है डॉ. साहब!
ReplyDeleteसटीक व्यंगात्मक गज़ल।
ReplyDeleteसुन्दर रचना...
ReplyDeleteअरे गज़ब ...एक दम सटीक अभिव्यक्ति।
ReplyDeletebahut badhiyaa hain ji.
ReplyDeletethanks.
हा हा हा हा ....बहुत बढ़िया जी
ReplyDeleteहाथों मे जब से स्मार्ट फुनवा आ गया है,
ReplyDeleteबच्चे मात पिता को समझाने लगे हैं ! ..
वाह ... बहुत ही उम्दा ... हर शेर सच के करीब है ... मज़ा आ गया ग़ज़ल पढ़ के ...