आजकल एक पुराना हिंदी फ़िल्मी गाना बहुत याद आता है --
मैं ढूंढता हूँ जिनको , रातों को ख्यालों में
वो मुझको मिल सके ना , सुबह के उजालों में।
कुछ यही हाल हिंदी ब्लॉगिंग का हो रहा है। अभी ललित शर्मा जी की पोस्ट पढ़कर यही अहसास हुआ कि वास्तव में सभी जाने माने ब्लॉगर जिन्हें हम ब्लॉग पर ढूंढते ही रह जाते हैं , वे तो सारे के सारे फेसबुक पर बुक्ड और हुक्ड हैं। और हम खामख्वाह यहाँ माथाफोड़ी( यह एक राजस्थानी लफ्ज़ है ) कर रहे हैं। एक तो वैसे ही एक पोस्ट लिखने में घंटों ख़राब हो जाते हैं, फिर पढने वाले भी जब ज्यादा नहीं मिलते तो लो कॉस्ट बेनेफिट रेशो देखकर दम ख़म ही ख़त्म सा हो जाता है। दूसरी ओर फेसबुक पर देखिये। हर घड़ी एक पोस्ट -- नहीं अपडेट। आप जितने चाहो फ्रेंड्स बना लो , जितने चाहो अपडेट्स पढ़ लो। पढने के लिए भी कहाँ गज भर लंबे लेख होते हैं। बस एक या दो पंक्तियाँ , या वो भी नहीं। खाली तस्वीर से भी काम चल जाता है। और अपडेट करने के लिए भी न समय चाहिए , न विचार -- कहीं भी कुछ देखा , फोटो खींचा , और अपडेट कर दिया अपने मोबाइल से। और आपकी पोस्ट/ अपडेट पहुँच गया तुरंत आपके हजारों फ्रेंड्स के पास। अब आपके हज़ार दोस्तों में से सौ पचास तो अवश्य निठल्ले बैठे ही रहते होंगे , जो तुरंत या तो लाइक का चटका लगा देंगे , या एक दो तुके बेतुके शब्द टाइप कर एंटर दे मारेंगे। और कुछ नहीं तो स्माइली तो रेडीमेड मिलती ही है।
यह लाइक करने का खेल भी बड़ा दिलचस्प है। आपको बस इतना करना है कि अपडेट के नीचे लाइक इंग्लिश में कहाँ लिखा है, यह ढूंढना है। दिग्गज फेस्बुकिये इसे वैसे ही पहचान लेते हैं जैसे एक टाइपिस्ट बिना देखे कीबोर्ड की कीज को पहचान लेता है। इसके बाद तो दे दनादन लाइक करते जाइये। हो गया आपका सैकड़ों मित्रों के साथ सोशलाइजिङ्ग। यदि --न बोले तुम , न मैंने कुछ कहा -- वाली तर्ज़ पर वार्तालाप करना है तो चैट का ऑप्शन बड़े काम का है। इसके लिए आपको कहीं जाने की ज़रुरत भी नहीं है। खुद ही चैट में दिलचस्पी रखने वाला आपको आपकी वॉल पर नज़र आ जायेगा। आपको तो बस उसका ज़वाब देना है। इसके बाद आप जितनी भी उजूल फ़िज़ूल बातें करना चाहें , बस लिखते जाइये और चैट करते रहिये। विश्वास रखिये , आप कुछ भी लिख सकते हैं -- आपके और आपके मित्र के सिवाय कोई नहीं देख पायेगा, यह निश्चित है। वैसे यह जानते हुए भी कि जिस सुन्दर सी दिखने वाली लड़की की फोटो को देखकर आप रोमांचित और रोमांटिक हो कर चैट करते हुए अनाप सनाप लिखते जा रहे हैं , वह लड़की नहीं बल्कि कोई अधेढ़ उम्र का शैतान या कोई विकृत दिमाग का मालिक बुड्ढा भी हो सकता है , आप चैट का मज़ा लेने से बाज़ नहीं आते। यही फेसबुक की खूबी है जो अच्छे अच्छों को ज़मूरा बना देती है।
फेसबुक की एक ओर खासियत है। यहाँ आपको पता चलता रहता है कि कौन कब क्या कर रहा है। कभी पता चलता है कि फलां फलां तो सोने चला गया , कभी पता चलता है कि अमुक अभी अभी सोकर उठा है। यहाँ तक कि कौन किस के साथ बैठा है , क्या खा रहा है -- यह सभी अपडेट होता रहता है। यह अलग बात है कि इन सब बातों से आपको क्या फर्क पड़ता है। लेकिन यदि आपको फर्क नहीं पड़ता तो आप मित्र कैसे ! और इस तरह फ्रेंड -- अन्फ्रेंड हो जाते हैं। कमाल की साईट है भाई ये फेसबुक भी। लोगों को जीने का अजीबो ग़रीब तरीका सिखा रही है।
एक और बात जो फेसबुक में खास है , वह है अलग अलग पोज में नित नए फोटो खींचकर स्टेट्स पर डालकर चेहरे को तरो ताज़ा रखना। आत्ममुग्ध होना तो किसी भी इन्सान के लिए स्वाभाविक प्रवृति है। फेसबुक ने यह अवसर मुफ्त में दिया है जहाँ आप नित नए फोटो डालकर ,अपने मियां मूंह मिट्ठू बनने के इल्ज़ाम से बचते हुए सेल्फ प्रोमोशन कर सकते हैं। विशेषकर कवियों के लिए तो यह सुविधा बहुत काम की है क्योंकि हींग लगे ना फिटकरी और रंग भी खूब जम जाता है।
लेकिन यहाँ भी लेन देन का व्यापार धड़ल्ले से चलता है। यानि आपके स्टेटस को लोग तभी लाइक करेंगे , जब आप उनको करेंगे। यहाँ भी टिप्पणियों का उतना ही महत्तव है जितना ब्लॉग पर। लेकिन यहाँ उनकी संख्या बढ़ाना बड़ा आसान है। स्टेटस पर ही चैट करते जाइये , आपके स्टेटस पर सैंकड़ों टिप्पणियां इकठ्ठा हो जाएँगी। अब इससे आपको संतुष्टि मिलती है तो फेसबुक को धन्यवाद दीजिये। वैसे भी फेसबुक ने लाखों लोगों को रोजी रोटी प्रदान कर रखी है।
हमारे देश की राजनीति में दल बदलना न कोई गुनाह है , न कोई शर्म की बात। यह अलग बात है कि अब इस पर अंकुश लगा हुआ है। लेकिन यहाँ तो वह डर भी नहीं . यानि आप जब चाहें , ब्लॉगिंग छोडकर फेस्बुकिया सकते हैं। आखिर हिंदी का विकास और प्रोत्साहन तो वहां भी हो ही रहा है।
छोडो कल की बातें , कल की बात पुरानी।
नए दौर में बोलेंगे, हम मिलकर बेजुबानी।
जय जय फेसबुक। जय जय फेसबुक।
नोट : यह पोस्ट सर्व साधारण के सन्दर्भ में लिखी गई है। इसका किसी व्यक्ति विशेष से कोई सम्बन्ध नहीं है।
नोट : यह पोस्ट सर्व साधारण के सन्दर्भ में लिखी गई है। इसका किसी व्यक्ति विशेष से कोई सम्बन्ध नहीं है।
बढ़िया लिखा है ..अच्छा लगा पढ कर।
ReplyDelete"लीजिये सब से पहला लाइक हमारा ... और सब से पहला कमेन्ट भी ... और हाँ रेडीमेड स्माइल साथ मे फ्री ... फ्री ... फ्री ... :)"
ReplyDeleteअभी अभी यह कमेन्ट आपके फेसबूक प्रोफ़ाइल पर दिये गए इस पोस्ट के लिंक पर दे कर आ रहा हूँ ...
यहाँ के लिए ...
"बढ़िया प्रस्तुति ... बेहद उम्दा पोस्ट ... वाह बहुत खूब ..." से काम चलाइए ... :)
हा हा हा ! यानि डबल मेहनत हो गई। :)
Delete".....एक तो वैसे ही एक पोस्ट लिखने में घंटों ख़राब हो जाते हैं, फिर पढने वाले भी जब ज्यादा नहीं मिलते तो लो कॉस्ट बेनेफिट रेशो देखकर दम ख़म ही ख़त्म सा हो जाता है। "
ReplyDelete:) :)
...फेसबुक अपनी जगह, ब्लॉगिंग अपनी जगह !
ReplyDelete.
.अच्छी नेटवर्किंग और ताजा रिपोर्टिंग फेसबुक से ही संभव है।ब्लॉगिंग अपेक्षतया गंभीर कर्म है ।
आपका अध्ययन सही है। लगता है , हमें भी दल बदलना पड़ेगा। ये ब्लॉगिंग की लत छूटनी मुश्किल है लेकिन फेसबुक छुडवा सकता है। जैसे सिग्रेट छोड़ने के लिए लोग निकोटिन की गोलियां चूसते हैं। :)
Deleteबहुत ही रोचक लेख.:)
ReplyDeleteसब दिन रहते न एक समान.इसलिए ब्लॉग जगत के भी दिन बदलेंगे.
"यह पोस्ट सर्व साधारण के सन्दर्भ में लिखी गई है। इसका किसी व्यक्ति विशेष से कोई सम्बन्ध नहीं है।"
ReplyDeleteये बढिया डिस्कलेमर लगाया..खैर हमको तो फ़ेसबुक का स्पेलिंग भी नही पता.:)
रामराम.
हां, एक बात और..इसका मतलब आप 11 जनवरी से अभी तक फ़ेसबुकिया रहे थे क्या?:)
ReplyDeleteरामराम
हमारे दोनों कमेंट गायब हैं? क्या हुआ? मोडरेशन लगा दिया क्या?
ReplyDeleteरामराम
लगता है एक बार में एक ही टिप्पणी की व्यवस्था है? अगली करते ही पिछली अपने आप हट जाती है.
ReplyDeleteरामराम.
तो ताऊ , फेसबुक की ऐ बी सी डी सीख लीजिये ना। आजकल कंप्यूटर लिट्रेट होने के साथ फेसबुक लिट्रेट होना भी अनिवार्य है। :)
Deleteहम पहले सप्ताह में दो पोस्ट ठेलते थे। अब सोच रहे हैं -- काहे मित्रों को ज्यादा कष्ट देना है -- एक ही काफी है। :)
ज्यादा लम्बी अनुपस्थिति से गूगल आपको पहचानना बंद कर देता है। इसलिए टिप्पणी को गुप्त बक्से में बंद कर देता है। :)
Ram Ram Dacter babu....satya vachan...
ReplyDeletejai baba banaras....
" एक तो वैसे ही एक पोस्ट लिखने में घंटों ख़राब हो जाते हैं, फिर पढने वाले भी जब ज्यादा नहीं मिलते तो लो कॉस्ट बेनेफिट रेशो देखकर दम ख़म ही ख़त्म सा हो जाता है।"वाक्यांश से सिद्ध होता है कि जो लोग ब्लाग लेखन वाह-वाही बटोरने मात्र के लिए करते हैं उनके लिए फेसबुक पीड़ादायक है। ठीक भी है-'जाकी रही भावना जैसी,प्रभू तिन्ह मूरत तीन तैसी।'
ReplyDeleteफेसबुक और फेसबुक ग्रुप्स तो ब्लाग-पोस्ट पर विजिट बढ़ाने मे खासे कारगर सिद्ध हुये हैं बशर्ते कि ब्लाग पोस्ट जनहित मे हो तो।
माथुर जी , वाह वाही तो फेसबुक पर ही ज्यादा मिलती है। वह भी झटपट। इस से तो कष्ट दूर होना चाहिए।
Deleteवाहवाही के ख़्वाहिशमंद लोग वाहवाही न मिलने पर हताश व निराश हो सकते हैं परंतु यदि उद्देश्य वाहवाही न बटोरना होकर केवल जनहित हो तो कहीं भी कोई फर्क नहीं पड़ता है। स्वार्थी और चापलूस लोगों की राय पर किसी लेखक को क्यों निर्भर करना चाहिए?ब्लाग और फेसबुक की वरीयता या श्रेष्ठता का झगड़ा ही क्यों?जिस प्रकार 'चाकू-knife'एक डॉ के हाथ मे सर्जक है लेकिन एक डाकू के हाथ मे जानलेवा तो दोष 'चाकू' का नहीं उसके प्रयोग कर्ता का होगा ठीक उसी प्रकार ब्लाग/फेसबुक के उपयोगकर्ता की मानसिकता पर सदुपयोग/दुरुपयोग निर्भर है न कि किसी की श्रेष्ठता और किसी की निकृष्टता पर। लेखक की शब्दावली नहीं उसके चरित्र पर ध्यान दें।
Deleteबात की बात कि बेबात की फिक्र ---विजय राजबली माथुर
Deleteबेहद रोचक पोस्ट है ज्यादातर ब्लोगेर्स का हाल यही है.
ReplyDeleteक्या करें दराल साहब ई-सामाजिकता के इस युग में यह सब व्यवस्था का भाग है। आपने रचना प्राडक्शन हाउस तो खोल लिया अब उसे जन समर्पण या मार्केटिंग कैसे करें? यही ब्लॉगर के फेस-बुक पर होने का प्रमुख कारण है। जब वहाँ शो-रूम सजाना है तो पी आर ओ भी करना होगा, उपस्थिति भी दर्शानी होगी सो वहां स्टेटस अपडेट रखकर शोरूम का रंग-रोगन ठीक रखना मजबूरी है। यह सब इस युग की व्यवस्था का हिस्सा है। :)
ReplyDeleteबिल्कुल सही फ़रमाया है। यह जीवन ही सब माया है। :)
Deleteप्रभावशाली ,
ReplyDeleteजारी रहें।
शुभकामना !!!
आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
आर्यावर्त में समाचार और आलेख प्रकाशन के लिए सीधे संपादक को editor.aaryaavart@gmail.com पर मेल करें।
फेस बुक और ब्लोगिग में अंतर है,फेसबुक में ज्यादात्तर फेस देखकर लाइक करते है
ReplyDeleteब्लोगिंग में लेखन और शिष्टाचार के कारण कमेंट्स मिलते है,,,,,
recent post: मातृभूमि,
डॉ.साहब ..आज बड़े ज़ोर से हाय मचाई है ..
ReplyDeleteआज फिर किसी की बेरुखी याद आई है..:-)))
पर ये सच्चाई है !
याद आने पर भी ना आए, तो दुहाई है दुहाई है
Deleteकिस किस को पुकारें , जाने कितने हरजाई हैं। :)
सच में पर आपको सच बताउं कि फेसबुक पर आधे से ज्यादा लाइक बिना पढे सिर्फ फोटो देखकर मिलते हैं
ReplyDeleteसही कहा। हालाँकि , कई बार यह भी पता नहीं होता कि फोटो असली है या नकली। :)
Deleteब्लोग्स की महत्ता कम नहीं हुई है, हाँ लिखने वाले जरूर कम हो गए हैं.
ReplyDeleteलेकिन वो सब कहीं नहीं गए, बल्कि फेसबुक पर जमे हैं।
Deleteआलू-गोभी की सब्ज़ी बनाई है...चाय पतीली पर चढ़ा दी है...झुमरी तलैया पहुंच गए हैं...
ReplyDeleteअभी तो फेसबुक पर ऐसे अपडेट्स भी देखे जा सकते हैं...
आने वाला सीनेरियो ये भी हो सकता है...
सुहागरात है घूंघट उठा रहा हूं मैं...
और आगे से कमेंट आए...अपडेट देते रहिए, हम जागे हुए हैं...
सौ बातों की एक बात...फेसबुक फास्टफूड है, थोड़ा ही खाना अच्छा, ज़्यादा से हाज़मा ख़राब हो सकता है।
जय हिंद...
हा हा हा ! यही हो रहा है।
Deleteब्लॉगिंग सिग्रेट की लत जैसी है, लेकिन फेसबुक का चस्का स्मैक एडिक्शन से कम नहीं।
सच बात है, खोयी खोयी दुनिया सा लगता है फेसबुक..
ReplyDeleteऔर तो और फेसबुक में पहले लोग आपको सब्सक्राइब करते थे (याने जो आपकी वाल देखना/पढना चाहते हैं और मित्र नहीं हैं )अब blog से प्रभावित होकर उनको भी फोलोवेर का नाम मिल गया है....अच्छा लगा :-)
ReplyDeleteसादर
अनु
फेसबुक इस्तेमाल तो हम भी खूब करते हैं, लेकिन अपनी वाल पर भी अपनापन सा नहीं लगता... जबकि ब्लॉग अपना लगता है.... वैसे भी, चाहे आप फेसबुक पर हलका-फुलका स्टेटस लिखें या गंभीर पोस्ट, उसके उम्र ज़्यादा नहीं होती.... जबकि ब्लॉग पर पुराने से पुराने लेख पर भी पाठक आते रहते हैं... कुछ लेखों पर तो नए लेखों से भी ज़्यादा...
ReplyDeleteफिर अपने पास तो छोटी-छोटी बातों के लिए भी ब्लॉग है - 'छोटी बात' और फोटो शेअर करने के लिए भी ब्लॉग है 'तिरछी नज़र', चैटिंग पर अपने को कभी इंट्रस्ट रहा ही नहीं.... बताइए और क्या चाहिए भला? :-)
सही कहा .
Deleteब्लॉग पोस्ट की उम्र अनंत होती है। अच्छी पोस्ट को लोग साल भर बाद भी ढूंढ निकलते हैं। जबकि फेसबुक पर चंद घंटों बाद ढूंढना मुश्किल हो जाता है।
बहुत बारीक आब्जर्वेशन है डाक साब ,और भी मन से है आनंद आ गया !
ReplyDeleteफेसबुक ब्लोगिंग का पर्याय नहीं हो सकता. दोनों का उपयोग भी अलग ही है. लेकिन यह बात भी ठीक है कि आजकल ब्लोगिंग में लोगों की रूचि जरुर कम हो रही है.
ReplyDeleteब्लॉग पोस्ट की उम्र अनंत होती है सही कहा आपने, आपसे सहमत.
ReplyDeleteब्लॉगिंग फ़ेसबुक का बाप है।
ReplyDeleteआपकी सद्य टिपण्णी का आभार .
ReplyDeleteडॉ साहब आपने दिल की बात कह डाली इसके बाद भी ब्लॉग एक सशक्त माध्यम है और फेस बुक ......? चंद शब्द पुरे मनःस्थिति को बयां करने में कभी कभी असमर्थ होते हैं . और तो डेट और अप डेट जो शुरू ही नहीं हुआ वो पूरा कहाँ होगा .....छोटे वाक्य से एक डायलाग याद आया फिल्म चोर मचाये शोर ....तेरी माँ को ..................अपनी माँ कहूँ .[ डेनी डेंगजोप्पा ]
ReplyDeleteफेसबुक भूले बिसरे गीतों की तरह बिछड़ों को मिला देता है .कोंग्रेस की तरह है .प्लेटफोर्म हैं जहां एक दिन में सैंकड़ों ट्रेन आवाजाही करती हैं .बढ़िया प्रस्तुति .
ReplyDelete.
ReplyDelete.
.
हाँ, काफी लोग निकल लिये ब्लॉगिंग से फेसबुक की ओर... पर अगर गंभीरता से सोचें तो नतीजा यही निकालेंगे कि फेसबुक न भी होता तो ये लोग नहीं रूकते ब्लॉगवुड में... ज्यादा से ज्यादा 'लाईक' पाना ब्लॉगिंग नहीं है... ब्लॉगिंग है अपने मन, अपनी विचार प्रक्रिया को अपने पाठक के सामने जस का तस रख देना... 'लाईक' और 'अनलाइक' से परे की चीज है यह...
...
बेशक।
Deleteब्लॉगिंग एक खेल नहीं है। आपके लिखे हुए को दुनिया पढ़ सकती है और यह अमिट होता है। इसलिए एक जिम्मेदारी भी रहती है।
फेसबुक के अपडेट्स की आयु बहुत ही कम है जबकि ब्लॉग की पोस्ट महीनो बाद भी लोग पढ़ते हैं। जिनके पास सुनियोजित तरीके से हर पहलु को समेटते हुए अपनी बात कहनी होगी उनके लिए तो ब्लॉग ही एकमात्र जगह है।
ReplyDeleteaap facebook par bhi aaiye.
ReplyDeletepar blogging mat chhodiyegaa.
thanks.
facebook fakebook hain.
ReplyDeleteor
blogging jogging.
yaani mind ki or vichaaron ki achchhi exercise ho jaati hain.
blogs par bahut kuch jaanane / seekhne ko mil jaataa hain.
देख लीजिए फेसबुक की खूबी है जो अच्छे अच्छों को ज़मूरा बना देती है :)
ReplyDeleteशब्दशः सहमति...........फेसबुक लोगों से जुड़ने का माध्यम बने पर खुद को खो देने का नहीं, इस बारे में विचार किया जाना आवश्यक है | इसीलिए अगर ई -सामाजिकता ओढनी भी है तो नियत समय दिया | ब्लॉग पर अर्थपूर्ण पढना लिखना अधिक होता है |
ReplyDeleteसही कहा मोनिका जी। फेसबुक सामाजिक तौर पर जुड़ने का एक माध्यम तो है लेकिन उसका सार्थक उपयोग भी होना चाहिए। अभी यह मुश्किल से 20 % ही हो रहा है।
Deleteहम तो यूं भी डरे बैठे हैं इसलिए फेसबुक पर रहते हैं। कोई कुछ कहे तो दरवाजा भी बंद किया जा सकता है परंतु ब्लॉगिंग पर गालियां भी खाएं और डरते भी रहे। डरने से अच्छा फेसबुक ही है।
ReplyDeleteडरने की कौनो बात नहीं। लेकिन ब्लॉग पर नियमित और एक निश्चित अवधि के बाद ही पोस्ट डालना सही रहता है ताकि बर्न आउट इफेक्ट ना आए।
Delete"...हज़ार दोस्तों में से सौ पचास तो अवश्य निठल्ले बैठे ही रहते होंगे"
ReplyDeleteआपने मुस्कुराने पर मजबूर कर दिया :-)
:)
Deleteहम भी आपके साथ मुस्करा लेते हैं।
पक्की analysis है, निस्सदेह। लेकिन क्या करें, बदलता वक़्त, बदलती मानसिकताएं ..
ReplyDeleteफेसबुक और ब्लोगिंग में हल्का फुल्का और गंभीर जितना अंतर है . कम शब्दों में कही जाने वाली बात फेसबुक पर और विस्तार से कहे तो ब्लोगिंग में !
ReplyDeleteदोनों की अपनी सीमायें !
फ़ेसबुक फ़ास्ट फ़ूड की तरह है। रोचक और चटपटी। ब्लॉगिंग पूरा खाना-पीना है। फ़ेसबुक मुन्ना भाई एम.बी.बी.एस. के हास्टल के कमरे की तरह है- शुरु होते ही खतम सा हो जाता है। ब्लागिंग में मामला अभी तो ये अंगड़ाई है वाला बना रहता है।
ReplyDeleteयह भी एक मिथक है कि फ़ेसबुक से जुड़ने के कारण लोग ब्लॉगिंग से कट गये। जब फ़ेसबुक नहीं था तब भी अच्छे-खासे लिखने वाले ब्लॉग लिखना कम कर रहे थे। पहले ब्लॉगिंग में वे लोग आते थे जिनको अपनी बात कहने का और कोई मंच नहीं मिलता था। आज तमाम खलीफ़ा लेखक किसी न किसी माध्यम से ब्लॉग से जुड़ रहे हैं।
आपके फ़ेसबुक स्टेटस पर मैं इतनी लम्बी टिप्पणी कभी नहीं करता। जबकि ब्लॉग पर इससे भी लम्बी टिप्णियां करता रहता हूं। :)
अनूप जी , बात समय की है। यदि पर्याप्त समय है तो फेसबुक पर मस्ती करें और ब्लॉग पर चुस्ती दिखाएँ। कुश्ती भी कर सकते हैं। :)
DeleteVaise to dono ka apna mahatv hoga tabhi blog wale bhi facebook pe jaa rahe hain ... Par sach kahoo to jo maza blog ka hai ... Chootta nahi ... Facebook ... Khansi jukhaam aur bloging ... Shugar ki bimari ...
ReplyDeleteअपन तो दोनो पर ही दन दनादन रहते हैं डा साहब । फ़र्क एक बहुत बडा ये महसूस हुआ है कि फ़ेसबुक आनी जानी है ब्लॉग साइट पर शाश्वत सी कहानी है , आज भी , कल भी और उसके बाद भी । लेकिन ये बात बिल्कुल ठीक है कि फ़ेसबुक ने ब्लॉगिंग के प्रवाह को धीमा तो जरूर ही किया है
ReplyDeleteदाराल साहब बहुत ही सामायिक और उम्दा लेख और खोजी भी. ब्लॉग का कोई विकल्प नहीं हो सकता. फेसबुक तो शायद बूढ़े लम्पटों के लिए है और युवा लड़के लड़कियों के लिए भी जिनके पास आपस में मिलने जुलने के सस्कार निभाने का बिलकुल समय नहीं होता. उन्हें उस में मस्त रहने दीजिये और आप ब्लॉग में मस्त रहिये .
ReplyDeleteफेस बुक अब एक आलमी कुनबा बन गया है लेकिन इसके दुरूपयोग भयावह हैं .दामन में दाग लगा बैठे ,फेसबुक पे धोखा
ReplyDeleteखा बैठे .शुक्रिया आपकी टिपण्णी के लिए हमारे लेख को मान्यता दिला जाती है आपकी टिपण्णी .
सही है ब्लाग की ताकत अब फेसबुक की ओर मुड रही है।
ReplyDeleteसहमति....
ReplyDeleteबिलकुल सत्य कहा है सर जी आपने..
ReplyDeleteअपना-अंतर्जाल
एचटीएमएल हिन्दी में
अब आपने जो कहा और लिखा हम उसे यहाँ भी चिपका ही देते हैं :) वैसे मैं मोनिका शर्मा जी बात से पूर्णतः सहमत हूँ जो मैं कहना चाह रही थी उन्होने कह दिया।
ReplyDeleteकुछ भी हो मुझे तो फ़ेसबुक उतना पसन्द नहीं, न ही चैटिंग....मेरी समझ से नेट का उपयोग भी समझदारी से और जितनी जरूरत हो उतनी ही करनी चाहिए... हाँ समय न कट रहा हो या बेकार समय हो तो कोई बात नहीं.....सटीक सामयिक अभिव्यक्ति...
ReplyDelete
ReplyDeleteसत्य-वचन और सत्य कथन पर
रच डाली है एक रचना प्यारी से
लोग तो अब भी भाग रहें है,
सुनने को अपनी वाह-वाही
इसी लिए सूनी हो गई गालियाँ ब्लॉग की
और लग गए ताले
पोस्टों पर ,
हुआ टिप्पणी का आभाव,
अब मिलते नहीं यहाँ
अपने ही जानने वाले ||....:)
सचमुच बड़े दुःख की बात है।
Deleteबात नुं है डॉक्टर साहब के हम तो ब्लॉगिंग में ही रमें हुए हैं। भरपेट संतुष्टि इसी से मिलती है। पोस्ट पर हिट तो बराबर आ जाती है पर कमेंट कमेंट की कमी फ़ेसबुक के कारण हो गयी। ब्लॉगर्स अपनी एनर्जी एवं टाईम वहीं खपा देते हैं तब ब्लाग के लिए एनर्जी और टाईम बचता नहीं है। ब्लागर्स भी बेचारे क्या करें।
ReplyDeleteमैं तो फ़ेसबुक और अन्य सोशियल साईट्स को "खुंटी" मानता हूँ अपने ब्लॉग के लिंक चेप आता हूँ। एक दिन तो फ़ेसबुक पर 100 से उपर ग्रुप में लिंक चेप दिए तो फ़ेसबुक ने नाराज होकर मेरे ब्लाग के लिंक को ही स्पैम कर दिया।
सबकी अपनी अपनी माया है। आखिर जय हो ब्लॉगिंग की ही रहेगी। नया नौ दिन पुराना सौ दिन।
फेसबुक की लत बड़ी मीठी लगती है। तभी लोग इससे चिपके रहते हैं।
Deleteसही कहा -- ब्लॉगिंग दा ज़वाब नहीं।
फेसबुक ने बहुत से ब्लोगर्स की गतिविधि पर प्रभाव डाला है .... लेकिन मुझे तो ब्लोगस पढ़ना ही अच्छा लगता है ।
ReplyDeleteडाक्टर साहब अपन भी फेसबुक पर हैं. पर पूरी गंभीरता के साथ ब्लाग पर रहने हैं। फेसबुक हमारे ज्यादा इस काम आती है कि कौन सा शख्स क्या कर रहा है ये पता चलता रहता है. इसलिए हम मजबूरी में अपना प्रोफाइल भी अपडेट कर देते हैं। ब्लागिंग पर हमारी सक्रियता पहले जैसी है यानि महीने में चार से पांच पोस्ट। उलटा हम तो कुछ ज्यादा सक्रिय होने की तैयारी में हैं।
ReplyDeleteरोहित जी , बुखार में टाइम पास करने के लिए हम भी फेसबुक पर पहुँच गए . सच मानिये टाइम पास का अच्छा साधन है ये। लेकिन संतुष्टि तो ब्लॉग पर ही मिलती है।
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