कहते हैं , हँसना और गाल फुलाना एक साथ नहीं होता। लेकिन लगता है कवियों के जीवन में ये प्रक्रियाएं साथ साथ ही चलती हैं। तभी तो ख़ुशी हो या ग़म, एक कवि का धर्म तो कविता सुनाना ही है। विशेषकर हास्य कवियों के लिए यह दुविधा और भी महत्त्वपूर्ण होती है। भले ही दिल रो रहा हो, लेकिन हास्य कवि को तो श्रोताओं को हँसाना होता है। यही उसका कर्म है , यही कवि धर्म है।
कुछ ऐसा ही हुआ गत सप्ताह। सांपला सांस्कृतिक मंच, हरियाणा में एक हास्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया था जिसमे हमें मुख्य अतिथि बनाया गया था। लेकिन उसी दिन सुबह ही पता चला कि बहादुरी के साथ जीवन संघर्ष कर रही दामिनी की सिंगापुर में मृत्यु हो गई थी। अचानक यह खबर सुनकर एक पल को ऑंखें नम हो गईं। ऐसा लगा जैसे अचानक कुछ ढह सा गया। उस दिन शाम को ही तो कवि सम्मेलन में जाना था। भला ऐसे में हँसना हँसाना क्या उचित होता। आयोजक को फोन किया तो पता चला कि सारी तैयारियां हो चुकी थी , इसलिए स्थगित करना संभव नहीं था। हमने भी सम्मिलित होने का वचन दिया था, इसलिए अब पीछे नहीं हटा जा सकता था। आखिर भारी मन से हमने प्रस्थान किया।
कवि सम्मेलन में एक से बढ़कर एक धुरंधर कवि अलग अलग राज्यों से आए हुए थे। साथ ही सांपला के क्षेत्रिय निवासियों में भी कई लोग थे जिन्हें कविता का शौक था। इनमे से कई तो डॉक्टर ही थे। रात 8 बजे शुरू हुआ कार्यक्रम आधी रात के बाद ढाई बजे तक चला। हैरानी की बात थी कि कड़ाके की ठण्ड के बावजूद , रात 2 बजे तक एक भी श्रोता पंडाल छोड़कर नहीं गया और सब तन्मयता से कवितायेँ सुनते रहे। हालाँकि हमें तो इतनी देर तक बैठे रहने की आदत नहीं थी लेकिन 6 घंटे कब गुजर गए, पता ही नहीं चला।
कवियों की सबसे बड़ी खूबी यह होती है कि उन्हें देखकर यह पता नहीं लगाया जा सकता कि यह कवि हास्य रस का है या वीर रस का , या फिर श्रृंगार या प्रेम रस का। एक दम शांत सा दिखने वाला कवि मंच पर माईक के सामने आते ही जब दहाड़ने लगता है तब उसके ओजस्वी होने का अहसास होता है। इसी तरह साधारण सा इन्सान दिखने वाला बंदा जब हर वाक्य पर हास्य की फुलझड़ियाँ छोड़ता है तब उसकी असाधारण प्रतिभा का बोध होता है। किसी को हँसाना बड़ा मुश्किल काम है। वास्तव में यह एक गंभीर काम है। हम तो पहले से ही मानते आए है कि जब लोग हँसते हैं तब वे अपना तनाव हटाते हैं। और जो लोग हंसाते हैं, वे दूसरों के तनाव मिटाते हैं। इस तरह हँसाना वास्तव में एक परोपकार का कार्य है। और एक कला भी है जो सब के पास नहीं होती ।
ज्यादातर कवि सम्मेलन अक्सर रात में ही आयोजित किये जाते हैं। समाप्त होते होते आधी रात से भी ज्यादा गुजर जाती है। फिर खाना और अक्सर 3-4 बजे प्रस्थान। ज़ाहिर है, कवियों की जिंदगी खतरों और मुश्किलों से भरी होती है। रात में सडकों पर ड्राईव करना खतरे से खाली नहीं होता, विशेषकर दूर दराज़ के क्षेत्रों में। 2009 में हुए एक सड़क हादसे में श्री ओम प्रकाश आदित्य समेत कई जाने माने प्रसिद्द कवियों को जान से हाथ धोना पड़ा था। जिन कवियों की डिमांड ज्यादा रहती है , वे विशेष अवसरों पर लगभग रोज़ाना कवि सम्मेलनों में हिस्सा लेते हैं। ऐसे में नींद भी पूरी नहीं हो पाती होगी। बेशक, इनसे होने वाली कमाई ज्यादातर कवियों के लिए बहुत अहमियत रखती है। कई कवियों की तो रोजी रोटी ही कवि सम्मेलनों से चलती है। लेकिन निसंदेह , समाज में कवियों का योगदान न सिर्फ मनोरंजन के लिहाज़ से बल्कि सामाजिक चेतना जागरूक करने में भी महत्त्वपूर्ण होता है।
आजकल सभी कवि सम्मेलन हास्य कवि सम्मेलन ही कहलाते हैं। हालाँकि सभी कार्यक्रमों में कविगण मिश्रित रस के ही होते हैं। लेकिन सभी कवि अपनी विधा की कविता के साथ हंसाने में भी सफल रहते हैं। इसी से पता चलता है कि लगभग सभी कवि विनोदी स्वाभाव के होते हैं। दूसरे शब्दों में यदि आप विनोदी स्वाभाव के हैं तो आप भी कवि हो सकते हैं। एक तरह से कवि हमें जिंदगी को सही मायने में जीना सिखाते हैं। अक्सर कवियों की हाज़िरज़वाबी तो कमाल की होती है। मंच पर भी एक दूसरे पर फब्तियां कसते रहते हैं। लेकिन सब इसे हास परिहास के रूप में ही लेते हैं। हालाँकि कभी कभार मामला हद से गुजर जाता है।
सांपला हास्य कवि सम्मेलन में सभी कवियों से मिलकर बहुत अच्छा लगा। हमारे लिए तो यह एक नया अनुभव था। मंजे हुए कवियों के बीच बैठकर बिना हूट हुए कविता आदि सुनाकर हमने भी अपना निशुल्क योगदान दिया। वापसी में कई अन्य कवियों को दिल्ली बस अड्डा छोड़कर हम सुबह साढ़े पांच बजे जब घर पहुंचे तो घर में एंट्री मुश्किल से ही मिली। आखिर यह भी कोई वक्त होता है घर आने का !
अंत में एक सवाल : यदि कवि सम्मेलनों का आयोजन दिन में किया जाये तो क्या बुराई है। इससे सभी को सुविधा रहेगी, विशेषकर कवियों की मुश्किलें कम हो सकती हैं। या शायद बढ़ भी सकती हैं।
नोट : हमें सुनने के लिए कृपया यहाँ चटका लगायें।
कवि सम्मेलन के मुख्य आयोजक भाई अंतर सोहिल का आभार प्रकट करते हुए, उन्हें एक अत्यंत सफल आयोजन पर बधाई देता हूँ।
अंत में एक सवाल : यदि कवि सम्मेलनों का आयोजन दिन में किया जाये तो क्या बुराई है। इससे सभी को सुविधा रहेगी, विशेषकर कवियों की मुश्किलें कम हो सकती हैं। या शायद बढ़ भी सकती हैं।
नोट : हमें सुनने के लिए कृपया यहाँ चटका लगायें।
कवि सम्मेलन के मुख्य आयोजक भाई अंतर सोहिल का आभार प्रकट करते हुए, उन्हें एक अत्यंत सफल आयोजन पर बधाई देता हूँ।
पेशेवर कवि जैसा अंदाज है।
ReplyDeleteराम राम
शुभकामनायें आदरणीय ||
ReplyDeleteदिन में कवि सम्मेलन हो तो श्रोता कम आयेंगे!
ReplyDeleteदिन में किए जा सकते हैं।
ReplyDeleteबहुत लाजबाब ! वैसे डाक्टर साहब शायद शाम या रत का वक्त कवि सम्मलेनो के लिए इसलिए उपयुक्त माना गया है क्योंकि उस वक्त तक मंडियों में टमाटर लगभग बिक चुके होते है। :)
ReplyDeleteहा हा हा ! शायद इसीलिए हम बच गए। :)
Deleteएक कवि सम्मेलन में मैंने पास बैठे एक साथी कवि से पूछा -- भाई ये रात में कवि के ऊपर सारी लाईट डाली जाती है जबकि श्रोताओं पर अँधेरा रहता है, ऐसा क्यों । कवि बोला , वो इसलिए ताकि जब आप लोगों को बोर करें और वे टमाटर और अंडे फेंकें तो निशाना सही लगे। और श्रोताओं पर अँधेरा इसलिए होता है ताकि आप पहचान न सकें कि किसने फेंका है। मैंने कहा - फिर तो आप भी संभल कर बैठिये , क्योंकि यदि निशाना चूक गया तो !
दिन में श्रोताओं का टोटा पड जायेगा जी
ReplyDeleteकिसी को दुकान की चिंता रहेगी, किसी को मरीजों की, किसी को छुट्टी नहीं मिलेगी तो कोई गॄहकार्य से ही फुरसत नहीं पा सकेगा।
आपका हार्दिक आभार
प्रणाम
बात तो सही है। परन्तु बेचारे कवियों के बारे में सोचकर लग रहा था। हालाँकि दिन में कवि मित्र भी रोजी रोटी कमाने में व्यस्त होते हैं।
Deleteरात का वक्त सभी के लिये थोडा फ़ुरसत का रहता है, समय की कोई सीमा नही रहती, दिल करे सुबह तक कार्यक्रम में बैठे रहो. अब कवियों को अलस भोर घर में इंट्री ना निले तो इसमें कोई क्या करे?:)
ReplyDeleteवैसे आपको तो एंट्री मिल ही गयी भले मुश्किल से मिली हो पर हम जैसे श्रोताओं को भी तो घर में एंट्री लेनी पडती है, और वो एंट्री दो चार लठ्ठ खाए बिना नही मिलती.:)
रामराम.
इसका भी बताएं एक उपाय
Deleteजब कवि सम्मेलन में जाएँ,
तो ताई को भी साथ ले जाएँ।
और लाठिया घर छोड़ आयें। :)
राम राम भाई।
I endorse the idea of organizing kavi sammelan and mairrages in day time only! Kaavya DIwas instead of kavya yamini!
ReplyDelete'Laugh and the World will laugh with you.weep and you weep alone.'यह एक बहुत पुरानी कहावत है और आपने लोगों की खुशहाली के लिए इसे पूरा किया।
ReplyDeleteस्वामी विवेकानंद का अपहरण
एक बढ़िया सम्मलेन के आयोजन के लिए आयोजकों एवं आपको बधाई ! ऐसे आयोजन होते रहें ...
ReplyDeleteदराल सर, अगर हर डॉक्टर आपकी तरह हंसी की डोज़ बांटने लगे तो दुनिया बिना दवाइयों के खुद ही स्वस्थ और खुशहाल हो जाएगी...
ReplyDeleteवैसे दिन में कवि बंधुओं को गला सूखने की शिकायत ज़्यादा हो सकती है...
जय हिंद...
गले की बात पर हमने भी सवाल किया था। :)
Deleteसभी जो कह रहे हैं उससे सहमत हूँ दिन में संभव नहीं क्यूंकि दिन में वो कवि जिनका काम कवि समेलन के अलावा और भी कुछ है उनके लिए दिक्कत हो जाएगी और श्रोता भी कम आयेंगे।
ReplyDeleteचित्र में आप कवि के भाव में बहुत अच्छे लगे,,,बधाई दाराल साहब,,,
ReplyDeleterecent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...
सफल आयोजन के लिये हमारी ओर से भी बधाई..
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज शनिवार (12-1-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
बढ़िया रिपोर्ट ... रात और दिन का विकल्प खुला रहना चाहिए ॥
ReplyDeleteवाह वाह , क्या बात है सर , आखिरी वाला पोज़दार फ़ोटो जबरजोर लगा हमें तो
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ReplyDeleteकसाव दार रिपोर्ट कवि सम्मलेन की .श्रोताओं के प्रति प्रति -बद्धता कलाकार का पहला धर्म होता है .भले वह किसी निजी त्रासदी से गुजर रहा हो .निर्भया का जाना तो एक राष्ट्रीय त्रासदी था .लिंक भी खोला लेकिन बफरिंग से आजिज़ आ गए हैं .
यु ट्यूब पर गाड़ी रुक रुक कर ही चलती है। :)
Delete✿♥❀♥❁•*¨✿❀❁•*¨✫♥
♥♥सादर वंदे मातरम्♥♥
♥✫¨*•❁❀✿¨*•❁♥❀♥✿
कवियों का योगदान न सिर्फ मनोरंजन के लिहाज़ से बल्कि सामाजिक चेतना जागरूक करने में भी महत्त्वपूर्ण होता है।
सही कहा आपने ...
कविराज भाईजी डॉ. दराल जी
:)
बधाई कवि सम्मेलन में शानदार प्रस्तुति के लिए ...
और आभार बिना लिफाफा लिए घर-वापसी के लिए !
:) ऐसे उदार बड़े दिल वाले कवियों के नाम प्रायः आयोजकों को कंठस्थ हुआ करते हैं ...
आपका काव्य-पाठ सुन कर आनंद आया !
हार्दिक मंगलकामनाएं …
लोहड़ी एवं मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर !
राजेन्द्र स्वर्णकार
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तो कब बुला रहे हैं बीकानेर ? :)
Deleteबधाई स्वीकारें डॉ,साहब !
ReplyDeleteबाकि चटका लगा के सुनते है अब ....बधाई तो पक्की हो गई ..:-))
शुक्रिया अशोक जी .
Deleteday-night kaisaa rahegaa ??
ReplyDeleteसुनने के बाद ....डॉ, आप जैसा मिले तो ..क्या बात है ......सेहत की सेहत और हंसी की मिले सौगात है!
ReplyDeleteमुबारक हो !
शुभकामनायें आदरणीय
ReplyDeleteरात ही ठीक है कवियों ओर श्रोताओं को भागने में भी आसानी होगी ... हाहा ..
ReplyDeleteबधाई इस सफल आयोजन की ... ओर शुभकामनाएं ... लोहड़ी की बधाई ...
आपने हंसाकर श्रोताओं को सेहतमंद बनाया बाकी दिन में तो करते ही हैं. अभी सुनना बाकी है.
ReplyDeleteलोहड़ी, मकर संक्रान्ति और माघ बिहू की शुभकामनायें.
सर जी मछली जब कांटे में आ जाती है तब वह पानी में ही होती है .कांटे से मुक्त होने के लिए वह मचलती ज़रूर है लेकिन जहां तक पीड़ा का सवाल है निरपेक्ष बनी रहती है मौन सिंह की तरह .मछली के
ReplyDeleteपास प्राणमय कोष और अन्न मय कोष तो है ,मनो मय कोष नहीं है .पीड़ा केंद्र नहीं हैं .शुक्रिया ज़नाब की टिपण्णी के लिए .
बधाई डॉक्टर साहब.....
ReplyDeleteकवि सम्मलेन दिन में करवाएं...मैडम की ब्यूटी स्लीप में खलल अच्छी बात नहीं...
:-)
सादर
अनु
:)
Deleteअब इतनी बातें बता दी गई हैं तो मेरे लिेए तो कुछ कहना नहीं रह गया..वैसे बीकानेर का बुलावा आए तो एक महीने पहले से ही प्रोग्राम की खबर करके रखिएगा...कविता सुनने के बहाने बीकानेर घूमना भी हो जाएगा....
ReplyDeleteएक अच्छे कवित सम्मलेन की बहुत बधाई , हँसाना सचमुच मुश्किल काम है !
ReplyDeleteबधाई डॉक्टर साहब...सफल आयोजन के लिये हमारी ओर से भी बधाई..!!!
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