वर्ष 2012 की अंतिम पोस्ट में ब्लॉगिंग का कच्चा चिट्ठा पढ़कर आप अवश्य आनंदित हुए होंगे। एक अच्छी बात यह हुई कि इसी बहाने हमें भी कई अच्छे ब्लॉगर्स से परिचय का अवसर मिला और हमने उनको फोलो करना भी आरम्भ कर दिया। वर्ष 2013 की पहली पोस्ट में हमेशा की तरह गुजरे वर्ष का लेखा जोखा प्रस्तुत है :
गुजर गया फिर एक और साल
छोड़ गया देखो करके क्या हाल,
अन्ना करते ही रह गए ना ना , पर
पॉलिटिक्स में कूद गए केजरीवाल।
केजरी टोपी कईयों की पगड़ी उतार गई
भ्रष्टाचार से फिर भी मानवता हार गई,
पोलियो से हम बचे रहे पूरे साल
पर देश को मुई महंगाई मार गई।
पर देश को मुई महंगाई मार गई।
भुखमरी में छूटे पाकिस्तान से भी पीछे
जनसँख्या में रह गए बस चीन से नीचे,
डीजल पैट्रोल मिले ना मिले,
हम तो अब दौड़ेंगे बी आर टी बसों के पीछे।
राजा रानी की निकली जेल से गाड़ी
खुले घूम रहे हैं अब मिस्टर खिलाडी,
किंग की उड़ान में आ गई फिशर
भला कब तक बचा पाती बियर ताड़ी।
कसाब का आखिर हो गया हिसाब
पर अफज़ल को नहीं मिला ज़वाब,
बना बैठा है वो मेहमान सरकारी
कर रहा जो देश के करोड़ों ख़राब।
कर रहा जो देश के करोड़ों ख़राब।
बसों में घूम रहे दरिन्दे बलात्कारी
लाठियां चला रहे बेरहम अत्याचारी ,
फांसी दो निर्भया के गुनहगारों को
गुहार लगा रही है रुष्ट दुनिया सारी।
सांसों के दंगल में दामिनी हार गई
सांसों के दंगल में दामिनी हार गई
जिजीविषा में लेकिन बाज़ी मार गई,
देकर अपने युवा जीवन की कुर्बानी
लाखों युवाओं की सोच को सुधार गई।
जनता जब सुख चैन से सो पायेगी
बेटियां भी जब सुरक्षित हो जाएँगी,
इंसान में जब इंसानियत जागेगी
नव वर्ष की कामना तभी शुभ हो पायेगी।
वाह वाह,,,बहुत उम्दा.बेहतरीन श्रृजन,,,,बधाई दाराल साहब
ReplyDeleteनए साल 2013 की हार्दिक शुभकामनाएँ|
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recent post - किस्मत हिन्दुस्तान की,
जनता जब सुख चैन से सो पायेगी
ReplyDeleteबेटियां भी जब सुरक्षित हो जाएँगी,
इंसान में जब इंसानियत जागेगी
नव वर्ष की कामना तभी शुभ हो पायेगी।
बहुत बेहतरीन !
दिन तीन सौ पैसठ साल के,
यों ऐसे निकल गए,
मुट्ठी में बंद कुछ रेत-कण,
ज्यों कहीं फिसल गए।
कुछ आनंद, उमंग,उल्लास तो
कुछ आकुल,विकल गए।
दिन तीन सौ पैसठ साल के,
यों ऐसे निकल गए।।
शुभकामनाये और मंगलमय नववर्ष की दुआ !
इस उम्मीद और आशा के साथ कि
ऐसा होवे नए साल में,
मिले न काला कहीं दाल में,
जंगलराज ख़त्म हो जाए,
गद्हे न घूमें शेर खाल में।
दीप प्रज्वलित हो बुद्धि-ज्ञान का,
प्राबल्य विनाश हो अभिमान का,
बैठा न हो उलूक डाल-ड़ाल में,
ऐसा होवे नए साल में।
Wishing you all a very Happy & Prosperous New Year.
May the year ahead be filled Good Health, Happiness and Peace !!!
सुन्दर रचना।
Delete...ठीक है :-)
ReplyDeleteबिल्कुल ठीक है !
Deleteयहाँ भी आपस में ही ! :)
Deleteबहुत सुन्दर दाराल साहब , कविता भी और चर्चा भी आपका आंकलन एकदम सटीक है नव वर्ष की शुभकामनायों सहित
ReplyDeleteयही उम्मीद है कि जो आंदोलन अब शुरू हुआ है वह रुके नहीं .
ReplyDeleteनए साल में समाज में सकारात्मक नए परिवर्तन आयें .
नया साल आप को भी शुभ और मंगलमय हो.
नया साल आया बनकर उजाला,
ReplyDeleteखुल जाए आपकी किस्मत का ताला,
हमेशा आप पर मेहरबान रहे ऊपर वाला.
नया साल मुबारक.
नववर्ष की हार्दिक बधाई
ReplyDeleteतारीखे रो रही हैं, कह रही हैं कि मनुष्य के कुकर्मों का दण्ड मुझे मत दो। मुझे मत बदनाम करो। हो सके तो नए साल में ऐसा कोई काम मत करना जिससे मैं फिर बदनाम हो जाऊं। हम सब संकल्प ले कि 2013 की प्रत्येक तारीख को सुखद बनाएंगे।
ReplyDeleteसही बात है ...पहली बार जन आन्दोलन राजनीति से परे लग रहा है.काश कुछ सकारात्मक परिणाम निकले.
ReplyDeleteनववर्ष शुभ हो.
स्वागत है ....सही सन्देश ,सुंदर ज़स्बे के साथ !
ReplyDeleteशुभकामनायें!
देकर अपने युवा जीवन की कुर्बानी
ReplyDeleteलाखों युवाओं की सोच को सुधार गई।
आपके शब्दों की तारीफ करूँ या दामिनी की इस कुर्बानी पर आंसू बहाऊँ समझ नहीं आ रहा .....!!
अस्किनी या दामिनी या कहूँ उसे अस्मिता आज फिर दाव पर हों ?. आपकी लेखनी का सदा कायल प्रणाम सहित नव वर्ष मंगलमय हो
ReplyDeleteआपकी शुभकामना में हमें भी शामिल मानिए!
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ReplyDeleteबसों में घूम रहे दरिन्दे बलात्कारी
लाठियां चला रहे बेरहम अत्याचारी ,
फांसी दो निर्भया के गुनहगारों को
गुहार लगा रही है रुष्ट दुनिया सारी।
बसों में घूम रहे दरिन्दे बलात्कारी
लाठियां चला रहे बेरहम अत्याचारी ,
फांसी दो निर्भया के गुनहगारों को
गुहार लगा रही है रुष्ट दुनिया सारी।
प्रासंगिक लेखा जोखा देश के हालात का हरारत ज़ज्बात का .शुक्रिया आपकी सद्य टिप्पणियों का
इंसान में इंसानियत जागे ...
ReplyDeleteलिखते अजीब लगता है , मगर सच में अक्सर इंसानियत ही लुप्त मिलती है !
नव वर्ष की बहुत शुभकामनायें !
बसों में घूम रहे दरिन्दे बलात्कारी
ReplyDeleteलाठियां चला रहे बेरहम अत्याचारी ,
फांसी दो निर्भया के गुनहगारों को
गुहार लगा रही है रुष्ट दुनिया सारी।
सांसों के दंगल में दामिनी हार गई
जिजीविषा में लेकिन बाज़ी मार गई,
देकर अपने युवा जीवन की कुर्बानी
लाखों युवाओं की सोच को सुधार गई।
जनता जब सुख चैन से सो पायेगी
बेटियां भी जब सुरक्षित हो जाएँगी,
इंसान में जब इंसानियत जागेगी
नव वर्ष की कामना तभी शुभ हो पायेगी।
आपने सटीक विवेचना की है .प्रकृति में नर और मादा पुरुष और प्रकृति के अधिकार समान हैं इस लिए एक संतुलन है ,प्रति -सम हैं प्रकृति के अवयव ,दो अर्द्धांश एक जैसे हैं .आधुनिक मानव एक
अपवाद है .एक अर्द्धांश को दोयम दर्जे का समझा जाता है उसके विरोध को पुरुष स्वीकार नहीं कर पाता ,उसकी समझ में नहीं आता है वह क्या करे लिहाजा वह प्रति क्रिया करता है .घर में नारी
स्थापित हो तो बाहर समाज में भी हो .इस दिशा में हर स्तर पर काम करना होगा .बलात्कार जैसे जघन्य अपराध तभी थमेंगे .
प्रासंगिक वेदना को स्वर दिया है .
ये कविता नहीं डॉक्टर दोस्त हमारे वक्त का रोज़ नामचा है .
बढियां राउंड अप यह भी ! अच्छे की उम्मीद करें, आयें!
ReplyDeleteडॉ दराल साः को खुला पत्र ---विजय राजबली माथुर
ReplyDeleteवाह सर, अंतिम पंक्तियों ने समा बांध दिया नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें...
ReplyDeleteनयी उम्मीदों के साथ नववर्ष का स्वागत है
ReplyDeleteइंसान में जब इंसानियत जागेगी
ReplyDeleteनव वर्ष की कामना तभी शुभ हो पायेगी।
बस यही अपेक्षा है, नव वर्ष की शुभकामनाएं
आईए उम्मीद करते है
ReplyDeleteकि होकर रहेगी रौशनी
कुहरे में ढकी आज
ये नव प्रभात है ....
अगला साल बस पिछले से अधिक दुखदायी न हो।
ReplyDeleteवाह! लगातार कमाल धमाल कर रहें आप तो!! ईश्वर करे यह हौसला बना रहे और हमे आपसे नये वर्ष में बहुत कुछ पढ़ने को मिले।
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