दिल्ली में दिसंबर जनवरी के महीने कड़ाके की सर्दी के महीने होते हैं। इन दिनों सारे गर्म कपडे जो महीनों से बिस्तरबंद कैद में पड़े रहते हैं , स्वतंत्रता की सर्द हवा खाते हुए हमें गर्मी का अहसास देने के लिए कैद से छूट जाते हैं। यही समय शादियों का भी होता है। हालाँकि इस वर्ष शादियों का साया बहुत ही कम समय तक रहा। लेकिन शादियों में वे कपड़े बहुत इज्ज़त पाते हैं जिनका बाकि समय कोई विशेष योगदान नहीं रहता। आखिर कुछ तो फर्क होता ही है आम और खास में, फिर वो कपड़े हों या पहनने वाला। इत्तेफ़ाक देखिये कि दोनों ही आम, सारी जिंदगी पिसते रहते हैं जबकि खास कभी कभी ही कष्ट करते हैं , अपनी सुरक्षा के घेरे से निकलने का।
दिल्ली में सर्दी तो अत्यधिक होती है लेकिन बस एक या डेढ़ महीने। इसलिए गर्म कपड़े बाहर कम और अन्दर ज्यादा रहते हैं। एक बार खरीद लीजिये तो चलते भी बरसों हैं। लेकिन पहनने का अवसर कम ही आता है। यदि गर्म कपड़ों को देखें तो , हजारों की कीमत के सूट साल में एक या दो बार ही पहने जाते हैं। महिलाओं की साड़ियों की बात करें तो स्थिति और भी भयावह होती है। उनकी भारी साड़ियों का नंबर तो अक्सर जिंदगी में एक बार ही आता होगा। जब भी किसी शादी में जाना होता है तो हम तो अपना एक आरक्षित सूट निकाल लेते हैं, लेकिन श्रीमती जी के सामने यही सवाल आ उठता है कि क्या पहना जाये। अमुक साड़ी तो वहां पहनी थी, दोबारा कैसे पहन सकते हैं। हम समझाते हैं कि भाग्यवान जब हमें ही याद नहीं तो किसी और को क्या याद होगा। इस पर उनका वही नारीवादी नारा होता है कि आप तो मेरी ओर देखते ही कहाँ हैं। इस विषय में हो सकता है कि महिलाओं का नजरिया अलग हो क्योंकि उनकी पैनी नज़र से एक दूसरे का पहनावा और मेकअप बच नहीं सकता। शुक्र है कि पुरुष इस ओर कोई ध्यान नहीं देते , इसलिए जो भी पहन लो , सब चलता है।
वैसे किसी को याद रहे या न रहे , लेकिन एक बात तो अवश्य है कि किसी मित्र के यहाँ दूसरी शादी में जल्दी ही जाना पड़े तो कपड़ों का ध्यान रखना आवश्यक हो जाता है, क्योंकि आजकल वीडियो और फोटो में देखकर यह पता चलना स्वाभाविक है कि आपने क्या पहना है। हालाँकि यहाँ भी पुरुषों को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि सबके सूट लगभग एक जैसे ही होते हैं। वैसे भी अधिकांश पुरुष पहनावे के मामले में काफी लापरवाह होते हैं। या तो सूट ठीक से प्रेस नहीं होगा, या टाई नहीं पहनी होगी। सही मायने में सूटेड बूटेड पुरुष आम शादियों में कम ही नज़र आते हैं।
हम तो पिछले पांच वर्ष से विशेष अवसरों के लिए एक ही सूट सुरक्षित रखे हुए हैं। छोटे मोटे से ब्रांडेड सूट को अरमानी समझ कर पहनते हैं, फिर कमीज़ भी ऐसी पहनते हैं जिसे कहीं और नहीं पहन सकते। टाई पहनते ज़रूर हैं लेकिन गाँठ बांधनी आज तक नहीं आई। ज़रुरत पड़ने पर श्रीमती जी या बच्चों से बंधवा लेते हैं। हमें तो टाई गले में फंदा सा लगती है लेकिन शादियों में पहनना पड़ता है। हालाँकि सरकारी सेवा में रहते हुए सूट पहनने की आदत सी ही नहीं रहती। वैसे भी एक डॉक्टर का काम ही ऐसा होता है कि सूट पहनने की न ज़रुरत होती है , न यह संभव होता है।
यह फोटो चलने से पहले श्रीमती जी ने अपने नए सैमसंग मोबाईल से लिया है। अब इसमें पीसा की मीनार जैसा इफेक्ट आ रहा है तो यह कैमरे की गलती नहीं है। इस फोन का 5 मेगा पिकसल कैमरा तो वास्तव में बड़ा अच्छा है। लेकिन अभ्यास करना पड़ेगा जो हमें कराना भी पड़ेगा। वर्ना कुछ का कुछ हो सकता है।
अगली पोस्ट में देखिएगा शादियों में खाने की बर्बादी पर एक टिप्पणी।
डॉक्टर साहब,
ReplyDeleteआदमियों का सूट-बूट तो ठीक, लेकिन कितनी भी सर्दी क्यों ना हो, महिलाएं शादी आदि समारोहों में शॉल या स्वेटर पहनने से क्यों गुरेज़ करती हैं...
जय हिंद...
(:(:(
DeletePRANAM.
अरे भाई , फिर 10 -20 हज़ार की साड़ी और 50-60,000 के गहने कैसे दिखाई देंगे ! :)
Deleteउनके गर्मी ही सर्दी लगने नहीं देती।
ओये होए ...खुशदीप जी का कमेन्ट तो हमने देखा ही नहीं था ....
Deleteखुशदीप जी औरतों को पुरुषों की नजरों से गर्मी चढ़ जाती हैं इसलिए उन्हें स्वेटर या शाल की जरुरत नहीं पड़ती .....:))
हा हा हा हा सही कहा बहना ...:)..:P
Delete
ReplyDeleteहीरे का मोल जौहरी ही जानता है। खैर, बड़े हैड-पम्प ( सौरी हैंडसम :)) लग रहे है आप मिसेज (डाo) दराल द्वारा उतारी गई तस्वीर में :)
जबरदस्त लग रहें हैं
ReplyDeleteपीसा की मीनार जैस इफेक्ट लाना कोई खेल नहीं है :):) रोचक पोस्ट
ReplyDeleteसंगीता दीदी से सहमत हूँ ... ;-)
Deleteये भी खूब रही। :)
Deleteपीसा का भी अपना ही अलग सौंदर्य है :).
ReplyDeleteआगे से जब भी यूं बन ठन कहीं जाए तो एक काला टीका जरूर लगवा लें नज़र का ... खुदा झूठ न बुलवाए ... हुज़ूर फब रहे है इस सूट मे !
ReplyDeleteवो जो स्वयं विलुप्तता मे चला गया - ब्लॉग बुलेटिन नेता जी सुभाष चन्द्र बोस को समर्पित आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
Deleteआभार शिवम्।
Deleteपुरुषों के पास रंग होते ही कहां है, नॉट लगानी डाक्टरों की परेशानी है शायद?
ReplyDeleteये हुई न सही नारीवादी बात। :)
Deleteनॉट लगाना सर्जन्स को तो आता है, जैसे हमारी धर्मपत्नी को।
इस लिए बस ऐसे ही मिल जुल कर काम चला लेते हैं जी। :)
ऐसे ना कहिए डॉ साब ....हम बेचारे रेडीमेड वाले कहाँ जाएँगे
ReplyDelete:)
शादी के बाद आदमी की मीनार ही हो जाता है .गुरुत्व केंद्र स्थाई तौर पर बदल जाता है .बगलिया लोगों को कनखियों से देखना पड़ता है .रेस्तरा में टेबिल पर बैठा युवक /अधेड़ /मर्द नाम का प्राणि
ReplyDeleteयदि किसी महिला के साथ है और इधर उधर उसकी नजर बे -चैनी से दौड़ रही है ,समझिये वह महिला उसकी पत्नी है .सड़क पर बी वह आगे होगा ,महिला पीछे .
बढ़िया पोस्ट .सर्दी से दास्ताने शादी तक .
सर्दियों में ही तो कपडे पहनने का मज़ा आता है अन्यथा गर्मियों में शादी में सम्मिलित होना बहुत परेशानी भरा रहता है.
ReplyDeleteलगता है भाभीजी एक कुशल फ़ोटोग्राफ़र हैं वर्ना सीधी मीनार को पीसा की मीनार बनाना हंसी खेल नही है. आप भी जंच रहे हैं.
ReplyDeleteरामराम.
ओहे होए ....!!
ReplyDeleteबड़े हीरो सिरों लग रहे हैं ......:))
आप तो हमारी और देखते ही कहाँ हैं ...
आप न देखते हों पर औरतें ये जरुर देखती हैं किसने क्या पहना .....:))
क्या पुरुषों ने क्या पहना है , यह भी देखती हैं ? :)
Deleteआदरणीय डॉ साहब आप आज उतने ही तरोताजा लगते हैं जितने आप .........की उम्र में लगते रहे . भगवान आपको नज़र न लगाये
ReplyDeleteइस खूबशूरत फोटो के लिए डाक्टरनी साहब का शुक्रिया अदा कीजिये,,,,,,
ReplyDeleterecent post: गुलामी का असर,,,
एक महीने की सर्दी और सर्दी के लिये ढेरों कपड़े का हाल ऐसा ही है जैसे दुनिया भर के तमाम देर अपने पास इत्ता हथियार इकट्ठा किये हैं जिससे न जाने कित्ते बार दुनिया निपट जाये। बाजार बड़ा स्मार्ट है- वह आपसे सब खरीदवा लेता है।
ReplyDeleteवैसे आप स्मार्ट लग रहे हैं यह हम भी कहे देते हैं।
अनूप जी , अपना तो वो हाल है कि दादा खरीदे , पोता बरते। :)
Delete@ साड़ियों की बात करें तो स्थिति और भी भयावह होती है...
ReplyDeleteपंगा न करो तो बेहतर है :)
शुभकामनायें आपको ...
महिलाएं सब समझती हैं। :)
Delete:-)))....
ReplyDeleteअब क्या कहें? वैसे पुरुषों को बहुत आसानी रहती है.... एक काली पैंट के साथ ४/५ शर्ट्स तो आराम से चल सकतीं हैं..सूट के बारे तो आपने बता ही दिया है... तक़रीबन एक से रंग होते हैं...
महिलाओं की मुसीबत कौन समझेगा भला.... :( :P
~सादर!!!
जी हमें सहानुभूति है। :)
DeleteSo good thought!!!!!
ReplyDeleteI am so happy to see this blog .
manasvipr
sahi aur manoranjak.......
ReplyDeleteह्म्म्म सही कहा। हम शादी में क्या पहने? पहले वही पहना था ये सवाल जरुर मन में उठता है। और सबसे बड़ी बात जो आप भी मानेंगे पत्नी सुंदर-सुंदर साड़ियाँ पहनती किसके लिये है? पति के लिये न? :) बस हमारा क्या है जैसे तैसे काम चला लेते हैं अब बीस हज़ार खर्च करें या दस पति खुद के लिये ही तो करते हैं :(
ReplyDeleteजब से बंगलोर आकर रह रहे हैं, कपड़ों की संख्या बहुत कम हो गयी है..
ReplyDeleteहा हा हा हा बहुत खूब डॉ साहेब ....आप पीसा की मीनार में भी खूब जम रहे है ...
ReplyDeleteशुक्रिया डॉ .साहब आपकी टिपण्णी का .अमरीका में 12%फेट से लेकर 0.5 %फेट वाला दूध रहता है ,फेट फ्री भी .दूध क्योंकि केन में रहता है 1-3 लिटर की कभी रेट पे गौर नहीं किया अलबत्ता फ्रिज
ReplyDeleteमें लो फेट भी रहता था हमारी वजह से तब जब हम स्वास्थ्य सचेत थे .
ईद मुबारक .ईद -उल -मिलाद हो या दिवाली मिठाई के डिब्बे कई बार बदल जाते हैं ऐसा ही टिप्पणियों के साथ कई बार हो आजाता है वजह होती है ज्यादा लेखन और टिपियाना .आभार आपका डॉ
ReplyDeleteसाहब
आप उत्प्रेरक बन आते हैं .
शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .
ReplyDeleteमुबारक गणतंत्र .
आप सभी को गणतंत्र दिवस की बधाई और शुभकामनायें।
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई...६४वें गणतंत्र दिवस पर शुभकामनाएं...
ReplyDeleteआप तो वैसे ही बहुत हैंडसम है डॉ सहाब :) फिर फोटो चाहे जैसे लिया गया हो :)
ReplyDeleteअब इतने सारे सही लोगो ने सही टिप्पणी कर दी है तो हम क्या कह सकते हैं। हां हमें भी आज तक टाई की गांठ बांधने में परेशानी होती है। जिसका ये असर होता है कि या तो हम कोट पहन के जाते नहीं...औऱ जाते हैं तो अक्सर टाई बेचारी अदंर की जेब में मुड़तुड़ के पड़ी रहती है।
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