नव वर्ष अब आने ही वाला है, नई आशाओं के साथ। लेकिन यदि गुजरे वर्ष पर एक नज़र डालें तो क्या कुछ बदला है ? आप स्वयं ही देख लीजिये ।
प्रस्तुत है , पिछले साल महंगाई पर लिखी एक कविता , जो आज भी उतनी ही ताज़ी लगती है ।
एक् सुबह जब हमने अखबार उठाये
हैडलाइंस पढ़कर मन ही मन मुस्कराए।
लिखा था,महंगाई दर शून्य से नीचे चली जा रही है
हमने सोचा मतलब, मंदी की मार में कमी आ रही है।
खुश होकर पत्नी से कहा,
देखो, सावन की काली घटा चढी है, कुछ चाय पकोडे खिलाओ
पत्नी बोली, टोकरी खाली पड़ी है, पहले सब्जियाँ खरीदकर लाओ।
आज लगती है यहाँ मंडे की मंडी
सब्जियां मिलती हैं वहां सबसे मंदी।
तो भई मन में पकोडों की तस्वीर बनाये
हम चल दिए मंडी की ओर थैला उठाये।
मंडी जाकर जब हमने नज़र घुमाई
और फूल सी फूलगोभी नज़र आई।
तो मैंने सब्जीवाले से पूछा, भैया गोभी क्या भाव ?
वो बोला १५ रूपये
मैंने पुछा, किलो ? वो बोला जी नहीं, पाव।
ये सुनकर हम तो झटका खा गए
आसमां से जैसे, धरा पर आ गए।
फिर शर्माए से बोले,
अच्छा बीन्स का रेट बतलाओ
वो बोला, ये भी १५ में ले जाओ।
मैंने पूछा,
क्या आज सारी सब्जियां १५ रूपये पाव हैं ?
वो बोला जी नहीं, यह १०० ग्राम का भाव है।
सब्जियों का रेट सुन मन हिम्मत खोने लगा
उधर अपनी आई क्यु पर भी शक होने लगा।
इसी उधेड़बुन में हमें, हरे हरे नींबू नज़र आ गए
लेकिन अपुन तो वहां भी चक्कर खा गए।
साहस बटोरकर कहा,बस इनका रेट और बतला दो
वो खीजकर बोला बाबूजी , अब कुछ ले भी तो लो।
अच्छा चलो आप , २५ के ढाईसौ ले जाइए
मैंने कहा भाई, मुझे तो बस ५ ही चाहिए।
बाबूजी, इतने कम में कैसे काम चलेगा
५ ग्राम में तो एक टिंडा भी पूरा नहीं चढेगा।
अब हम समझे,
सब्जीवाला तो शोर्टकट मार रहा था,
पर अपनी तो इज्ज़त उतार रहा था।
अब तो हम मन ही मन बड़े शर्मिंदा थे,
क्योंकि ये भी जान चुके थे,कि वो नींबू नहीं टिंडा थे।
फिर भी इज्ज़त तो बचानी थी
इसलिए जिद भी दिखानी थी।
सो अकड़कर कहा, मुझे तो पांच टिंडे ही चाहिए
२५ रूपये लेकर वो बोला,मुझे क्या , ले जाइए।
मैंने महंगाई को जमकर कोसा,
मन ही मन हिसाब लगाकर सोचा।
भई पांच रूपये का मिला एक टिंडा !
अरे ये टिंडा है या,शतुरमुर्ग का अंडा।
एक दूकान से तो हम , बिना भाव पूछे ही वापस आ गए
वहां रखे प्याज़ देखकर ही , आँखों में आंसू आ गए ।
फिर बस कुछ अदरक, धनिया, आलू, टमाटर
और मटर की छोटी छोटी पोटलियाँ बनवाकर।
जब घर पहुंचे तो पत्नी बोली
ये क्या, खाली पड़ी है सारी झोली।
अज़ी सब्जियां खरीदने गए थे,ये क्या उठाकर लाये हैं?
मैंने कहा भाग्यवान,
रूपये तो आपने बस ५०० दिए थे, पर
हमारी सौदेबाजी देखिये,फिर भी पूरे ५० बचाकर लाये हैं।
प्रिये मंडे की मंडी पर,पड़ गई है मंदी की मार
सब्जियां खरीदने को अगले मंडे ,रूपये देना पूरे हज़ार।
भले ही महंगाई दर ढाई अंक नीचे ढह गई है,
लेकिन सब्जियाँ अब केवल दर्शनार्थ रह गयी हैं।
हैडलाइंस पढ़कर मन ही मन मुस्कराए।
लिखा था,महंगाई दर शून्य से नीचे चली जा रही है
हमने सोचा मतलब, मंदी की मार में कमी आ रही है।
खुश होकर पत्नी से कहा,
देखो, सावन की काली घटा चढी है, कुछ चाय पकोडे खिलाओ
पत्नी बोली, टोकरी खाली पड़ी है, पहले सब्जियाँ खरीदकर लाओ।
आज लगती है यहाँ मंडे की मंडी
सब्जियां मिलती हैं वहां सबसे मंदी।
तो भई मन में पकोडों की तस्वीर बनाये
हम चल दिए मंडी की ओर थैला उठाये।
मंडी जाकर जब हमने नज़र घुमाई
और फूल सी फूलगोभी नज़र आई।
तो मैंने सब्जीवाले से पूछा, भैया गोभी क्या भाव ?
वो बोला १५ रूपये
मैंने पुछा, किलो ? वो बोला जी नहीं, पाव।
ये सुनकर हम तो झटका खा गए
आसमां से जैसे, धरा पर आ गए।
फिर शर्माए से बोले,
अच्छा बीन्स का रेट बतलाओ
वो बोला, ये भी १५ में ले जाओ।
मैंने पूछा,
क्या आज सारी सब्जियां १५ रूपये पाव हैं ?
वो बोला जी नहीं, यह १०० ग्राम का भाव है।
सब्जियों का रेट सुन मन हिम्मत खोने लगा
उधर अपनी आई क्यु पर भी शक होने लगा।
इसी उधेड़बुन में हमें, हरे हरे नींबू नज़र आ गए
लेकिन अपुन तो वहां भी चक्कर खा गए।
साहस बटोरकर कहा,बस इनका रेट और बतला दो
वो खीजकर बोला बाबूजी , अब कुछ ले भी तो लो।
अच्छा चलो आप , २५ के ढाईसौ ले जाइए
मैंने कहा भाई, मुझे तो बस ५ ही चाहिए।
बाबूजी, इतने कम में कैसे काम चलेगा
५ ग्राम में तो एक टिंडा भी पूरा नहीं चढेगा।
अब हम समझे,
सब्जीवाला तो शोर्टकट मार रहा था,
पर अपनी तो इज्ज़त उतार रहा था।
अब तो हम मन ही मन बड़े शर्मिंदा थे,
क्योंकि ये भी जान चुके थे,कि वो नींबू नहीं टिंडा थे।
फिर भी इज्ज़त तो बचानी थी
इसलिए जिद भी दिखानी थी।
सो अकड़कर कहा, मुझे तो पांच टिंडे ही चाहिए
२५ रूपये लेकर वो बोला,मुझे क्या , ले जाइए।
मैंने महंगाई को जमकर कोसा,
मन ही मन हिसाब लगाकर सोचा।
भई पांच रूपये का मिला एक टिंडा !
अरे ये टिंडा है या,शतुरमुर्ग का अंडा।
एक दूकान से तो हम , बिना भाव पूछे ही वापस आ गए
वहां रखे प्याज़ देखकर ही , आँखों में आंसू आ गए ।
फिर बस कुछ अदरक, धनिया, आलू, टमाटर
और मटर की छोटी छोटी पोटलियाँ बनवाकर।
जब घर पहुंचे तो पत्नी बोली
ये क्या, खाली पड़ी है सारी झोली।
अज़ी सब्जियां खरीदने गए थे,ये क्या उठाकर लाये हैं?
मैंने कहा भाग्यवान,
रूपये तो आपने बस ५०० दिए थे, पर
हमारी सौदेबाजी देखिये,फिर भी पूरे ५० बचाकर लाये हैं।
प्रिये मंडे की मंडी पर,पड़ गई है मंदी की मार
सब्जियां खरीदने को अगले मंडे ,रूपये देना पूरे हज़ार।
भले ही महंगाई दर ढाई अंक नीचे ढह गई है,
लेकिन सब्जियाँ अब केवल दर्शनार्थ रह गयी हैं।
यह कविता तो दस साल बाद भी इतनी ही ताज़ी लगेगी.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना आज भी तरोताजा है .... आभार सर
ReplyDelete......केवल दर्शनार्थ रह गयी हैं............
ReplyDeleteयह केवल सब्जियों पर ही नहीं सर जी, सब पर लागू है-
वैसे शिखा जी सही कह रहीं हैं-यह कविता आज भी ताजी है .
बहुत बढिया जी
ReplyDeleteआदरणीय दराल जी
ReplyDeleteनमस्कार !
.........बहुत बढ़िया रचना
नए साल की आपको सपरिवार ढेरो बधाईयाँ !!!!
ReplyDeleteमैं भी पढते हुए सोच रहा था कि अगले साल ही कौनसी राहत मिल जानी है, पर यहां तो अगले 10 वर्षों तक की बात चल रहीं है ।
ReplyDeleteबढिया बल्कि मजेदार रचना.
नूतन वर्ष आपके लिये शुभ और मंगलमय हो...
कभी प्याज़ को लेकर सरकार रोती थी और आज जनता रो रही है :(
ReplyDeleteआँकड़ों के साथ यह ताजा समाचार तो बहुत रोचक हैं!
ReplyDeleteडा सा ,क्या खूब लिखा है ..".भले ही मंहगाई दर ढाई अंक
ReplyDeleteनीचे ढह गई है |
लेकिन ,सब्जिया अब केवल दर्शनार्थ रह गई है |"
प्याज ,लहसुन ,टमाटर ने तो रुलाया ही है ,आलू जो गरीबो का भोजन था वो भी किसीसे कम नही रहा |अब
तो लगता है की प्याज -आलू गिफ्ट में ही प्राप्त करना पड़ेगा |सुंदर कविता के लिए धन्यबाद |
वाह बहुत ही अच्छी कविता पढाई ये तो हम सभी के दिल से निकली आवाज है या ये कहू की आह है |
ReplyDelete... jay ho !!!
ReplyDeleteआज भी बिलकुल ताज़ी है कविता ....मंडी में सब्ज़ी की तरह ..
ReplyDeleteवाह सर वाह..यही तो आपकी खासियत है। कुछ खरी खरी फिर बड़े आराम से उपचार यानि हास्य व्यंग। उसमें भी बात खरी खरी। सब समझते हुए भी अपने पर ही हंसे आदमी।
ReplyDeleteस्थिती विचित्र है
महंगाई दर नीचे
दाम उपर जा रहे हैं
जाने कौन से
स्कूल के आंकड़े हैं ये
लगा है सब्जियां
दर्शानार्थी तो रहेंगी ही
साथ ही कुछ दिनों बाद
मुंह दिखाई में ही दिखेंगी
इन दिनों रोजमर्रा के जीवन की विसंगतियों ने आपके कवि मन को झंकृत कर दिया है -नायब लिख रहे हैं डाक्टर साहब इन दिनों !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना आज भी तरोताजा है .... आभार सर
ReplyDeleteडा . साहिब, तुरंत kewal हवा-पानी में jeene ki kala dhoondh nikaaliye, kyunki sarkaar ne to haath khade kar diye hain!,,, aur blog vasiyon se bhi saajha kar swarn padak hamse bhi paaiye!
ReplyDeletekahte hain pahle aadmi sun kar hi tript ho jaata tha, kintu majboori hai ki ab khaa kar bhi tript naheen hota :(
note: kewal 0,1,2 (vishnu, brahma, mahesh ke saankhyik pratibimb?) se bani 21.12. 2010, sundar tithi bhi nikal gayi: poorn chandr-grahan ke saath! aur yadi afvaahon ki maanein to 21.12. 2012 bas aayi hi samajho (kam samay shesh rah gaya hai?)!
"jo kaal kare / wo aaj kar / jo aaj kare / wo ab..." aadi, kah gaye gyaani-dhyaani sab!)...
बहुत सुन्दर..नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteडा .सा : यह यथार्थ चित्रण आज भी पूरा का पूरा सटीक है.आपकी काव्याभिव्यक्ति भी आकर्षक होती है.
ReplyDeleteडॉक्टर साहब, बडे प्यार से मंहगाई की क्लास ली है आपने। बधाई।
ReplyDelete---------
साइंस फिक्शन और परीकथा का समुच्चय।
क्या फलों में भी औषधीय गुण होता है?
भले ही महंगाई दर ढाई अंक नीचे ढह गई है,
ReplyDeleteलेकिन सब्जियाँ अब केवल दर्शनार्थ रह गयी हैं।
सबके मन के भाव व्यक्त कर दिए इस कविता में...सब्जियां,अब बस देखने के लिए ही रह गयी हैं.
नूतन वर्षाभिनन्दन।
ReplyDeleteअब तो लगता है की प्याज -आलू गिफ्ट में ही प्राप्त करना पड़ेगा |
ReplyDeleteकुछ दिनों बाद मुंह दिखाई में ही दिखेंगी।
हा हा हा ! दर्शन जी , रोहित जी --हालात तो कुछ ऐसे ही हैं ।
ये साल तो ख़त्म हुआ , अब देखते हैं क्या गुल खिलाता है अगला साल ।
bahut achchi sachchayee likhi hai.
ReplyDeleteएकदम ताज़ा कविता !
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति..
नव वर्ष(2011) की शुभकामनाएँ !
डा साहेब ,नूतन -वर्ष आप और आपके परिवार के लिए
ReplyDeleteमंगलदायक हो | और आपकी लेखनी ईसी तरह हमारा
मार्ग -दर्शन करती रहे |
''कोंन कर सका है बंद रौशनी निगाहों मे |
कोन रोक सका है गंध बीच राहो मे |
हर जाती ' संध्या ' कि अपनी मजबूरी है -
कोनस बाँध सका है नव -वर्ष के आगमन को ?"
हार्दिक शुभ कामनाओ sहित.....|
दोष तो कवि का है जिसने कहा, "अंधेर नगरी, चौपट राजा / टके सेर भाजी, टके सेर खाजा"... सरकार की समझ आया सस्ती भाजी आदि का मतलब खराब सरकार होता है तो उसने सबके दाम बढ़ा कर अच्छी सरकार होना जाना!
ReplyDeleteनव वर्ष २०११ की सबको अनेकानेक शुभ कामनाएं!
हा...हा...हा.....
ReplyDeleteबहुत खूब .....!!
मुझे तो लगा था आप सब्जी लेने कभी जाते ही नहीं ....
पर आपने तो सारे भाव ही लिख डाले .....
नववर्ष की शुभकामनाएं ....!!
हीर जी , आपको सही लगा था ।
ReplyDeleteबस उसी दिन गए थे और सब्जियों के बारे में काफी ज्ञान अर्जित कर लौटे ।
अब तो हम सब्जियां बस शादियों या पार्टियों में ही खाते हैं । :)
एकदम ताजा और गर्म है ये तो.
ReplyDelete(यह आपकी हास्य-व्यंग की उत्कृष्ट रचनाओ में से एक है )
विकास दर के आंकड़े लेकर क्या करेगा आम आदमी!
ReplyDeleteमहगाई ने सबका बुरा हाल किया है अब क्या किया जाये ?
ReplyDeleteनव वर्ष की शुभकामनाये
आप सच कह रहे हैं कि
ReplyDeleteइज्जत बचानी भारी है
इधर
प्याजो की जवानी
एक हिन्दी ब्लॉगर पसंद है
क्या कहें इस महंगाई को ...
ReplyDeleteआदरणीय डॉ टी एस दराल जी
ReplyDeleteसादर प्रणाम
नव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनायें ...कबूल करें
आप को परिवार समेत नये वर्ष की शुभकामनाये.
ReplyDeleteनये साल का उपहार
http://blogparivaar.blogspot.com/
आप को सपरिवार नववर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनाएं .
ReplyDeleteसर्वे भवन्तु सुखिनः । सर्वे सन्तु निरामयाः।
ReplyDeleteसर्वे भद्राणि पश्यन्तु । मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥
सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें, और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े .
नव - वर्ष 2011 की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
-- अशोक बजाज , ग्राम चौपाल
सुदूर खूबसूरत लालिमा ने आकाशगंगा को ढक लिया है,
ReplyDeleteयह हमारी आकाशगंगा है,
सारे सितारे हैरत से पूछ रहे हैं,
कहां से आ रही है आखिर यह खूबसूरत रोशनी,
आकाशगंगा में हर कोई पूछ रहा है,
किसने बिखरी ये रोशनी, कौन है वह,
मेरे मित्रो, मैं जानता हूं उसे,
आकाशगंगा के मेरे मित्रो, मैं सूर्य हूं,
मेरी परिधि में आठ ग्रह लगा रहे हैं चक्कर,
उनमें से एक है पृथ्वी,
जिसमें रहते हैं छह अरब मनुष्य सैकड़ों देशों में,
इन्हीं में एक है महान सभ्यता,
भारत 2020 की ओर बढ़ते हुए,
मना रहा है एक महान राष्ट्र के उदय का उत्सव,
भारत से आकाशगंगा तक पहुंच रहा है रोशनी का उत्सव,
एक ऐसा राष्ट्र, जिसमें नहीं होगा प्रदूषण,
नहीं होगी गरीबी, होगा समृद्धि का विस्तार,
शांति होगी, नहीं होगा युद्ध का कोई भय,
यही वह जगह है, जहां बरसेंगी खुशियां...
-डॉ एपीजे अब्दुल कलाम
नववर्ष आपको बहुत बहुत शुभ हो...
जय हिंद...
हा हा ... महगाई तो आगे ही आगे जायगी ... पीछे आने का क्या कम .... बहुत करार व्यंग है ...
ReplyDelete.... .