आखिर कछुए की चाल चलते हुए हमने भी सीमा रेखा को छू ही लिया ।
पिछली पोस्ट में हमने शादियों में व्यर्थ होने वाले खाने के बारे में चर्चा की ।
आइये अब देखते हैं शादियों का एक और रूप । यदि शादी में बदइन्तजामी हो जाए तो क्या हाल होता है । प्रस्तुत है आँखों देखी , ऐसी एक शादी का आँखों देखा हाल :
एक शादी में हमने , देखा अज़ब नज़ारा
बरात में न जाने कैसे , शहर पहुँच गया सारा ।
जब खाना खुला पौने ग्यारा , तो ऐसी अफ़रा तफ़री मची
कि पलक झपकते ही प्लेट , और न चम्मच एक बची ।
खाने की तलाश में लोग , खानाबदोश से भटक रहे थे
एक प्लेट में तीन तीन मिलकर , खाना गटक रहे थे ।
एक बेचारा तो लिए हाथ में , खाली फ़ॉर्क घुमा रहा था
दूसरा किस्मत का मारा , सीधे डोंगे में ही खा रहा था ।
लोग भोजन के नवीनतम आविष्कार कर रहे थे
गुलाब जामुन को उछाल , सीधे मूंह में धर रहे थे ।
अस्तित्त्व के इस संघर्ष में ,उस दिन ऐसी नौबत आई
जीवन में पहली बार हमने भी , आइसक्रीम हाथ से खाई ।
क्रमश:---
दराल साहेब,
ReplyDeleteशादी में ढेर सारी स्टाल्स पर खाने में बहुत मज़ा आता है।
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति..
खाने की तलाश में लोग , खानाबदोश से भटक रहे थे
ReplyDeleteएक प्लेट में तीन तीन मिलकर , खाना गटक रहे थे ।
................बहुत खूब, लाजबाब !
लोग किस हद तक मंदी की मार झेल रहे है आपके उपरोक्त व्यंग्य काव्य से झलक रहा है डा० सहाब ! :)
ReplyDeletehaath se icecream khai
ReplyDeletedaral sir bahut bahut badhai...:D
मुझे लगता है न सिर्फ दिल्ली में बल्कि हर शहर की शादियों में आज कल यही हाल रहता है.यदि हम अनुशासन में रहें तो ऎसी स्थिति से निपट सकते हैं.खुद भी खाने का मज़ा ले सकते हैं और बाकी लोग भी.
ReplyDeleteसादर
aajkal ki shaadiyon mein yehi haal hai/...
ReplyDeletemere blog par bhi kabhi aaiye
Lyrics Mantra
ha ha ha..
ReplyDeletebada hi mazedaar haal bayan kiya hai aapne...amooman yahi haal sab jagah hote hain...
अस्तित्त्व के इस संघर्ष में ,उस दिन ऐसी नौबत आई
ReplyDeleteजीवन में पहली बार हमने भी , आइसक्रीम हाथ से खाई ।
हा हा बहुत ही मजेदार चित्र खींचा है....
बहुत अच्छी श्रृँखला है इसी तरह लिखते रहे ।
ReplyDeleteहा हा अच्छी कमेंट्री और व्यथा कथा सुनायी और वाह की कविताई !
ReplyDeleteहा..हा..हा..बफैलो सिस्टम का दर्द बड़ी कुशलता से बयान किया आपने।
ReplyDeleteदिल्ली की शादी श्रंखला रोचक लग रही है कृपया क्रम बनाये रखें .... मजेदार
ReplyDeleteसर बफर की जगह पंगत प्रथा(जमीन पर बैठकर पत्तल में खाना परोसा जाता है) अच्छी होती है उसमें इस तरह की झंझट तो नहीं रहती की खाने के लिए संघर्ष करना पड़े ....
ReplyDeleteदिल्ली में ऐसी शादियाँ करीब २० साल पहले होती थी । तब बरात के आने तक खाना नहीं खुलता था । ऐसे में बरात के लेट होने पर सारा इंतजाम गड़बड़ा जाता था ।
ReplyDeleteआजकल बरात के आने का इंतजार नहीं करते । खाना चलता रहता है , बरात आये न आये ।
दूसरा, खाने के लिए स्नेक्स की इतनी वेराइटी होती है कि असली खाने की naubat ही नहीं आती ।
इसका दिलचस्प वर्णन अगली पोस्ट में ।
पण्डे जी , मिस्र जी , शायद आप बुफे सिस्टम की बात कर रहे हैं ।
ReplyDeleteपंगत में बैठकर खाए हुए तो ३० साल हो गए । अब तो यहाँ गाँव में भी बुफे सिस्टम ही होता है ।
बुफ़े भी हो तो लोगो को थोडा ध्यान से खाना चाहिये, बीच बीच मे घुस घुस कर लाईन को नही तोडना चाहिये, एक बार जितना खाना हो ले ले, हर पांच मिंट बाद लाईन मे घुसना..... तोबा तोबा
ReplyDeleteभगवान् बचाए ...शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteआज कल तो कई बार बारात के आने से पहले ही आधे लोग खा कर घर भी पहुच जाते है और बुफे होने के बाद ही एक बार में ही सारे खाने के आइटम प्लेट में भर लेते है एक के ऊपर एक जैसे दुबारा खाना मिलेगा ही नहीं और एक लम्बी डकार लेने के बाद कहते है की खाना बेकार था |
ReplyDeleteयुगल जोड़ी को सारे मेहमान बस इतना बता रहे हैं
ReplyDeleteजीवन अफरा-तफरी है प्रायोजित प्रोग्राम दिखा रहे हैं
बहुत ही बढ़िया,
आभार..
mazedar khaka kheecha aapne.........
ReplyDeleteये शादियां न हुई, ब्लॉगर की पोस्ट लिखने का मसाला हो गयीं।
ReplyDeleteबहुत बढिया।
---------
आपका सुनहरा भविष्यफल, सिर्फ आपके लिए।
खूबसूरत क्लियोपेट्रा के बारे में आप क्या जानते हैं?
डा .सा :आपने दिल्ली का हवाला दिया है लेकिन सब जगह एक ही हाल है.नक़ल की होड़ा -होडीऔर व्यर्थ का दिखावा ही इसकी जड़ में है. शायद आपको भी याद होगा -जब ज्योत्रदित्य सिंधिया की शादी हुयी थी ,उन्ही दिनों दिल्ली के ही पास शायद गुडगाँव में ही एक शादी सी.पी.एम्.कार्यालय में मार्क्स -एंजिल के चित्रों के समक्ष अध्यापक -अध्यापिका ने मात्र ५ फल ,५ फूल के लें -देन तथा गिने -चुने लोगों के बीच की थी.दरअसल शादियों में सादगी ही होनी चाहिए.
ReplyDelete... bahut badhiyaa ... rochak post !!!
ReplyDeleteमाथुर साहब , आजकल दिखावे की होड़ सी हो गई है लोगों में । शायद इसके लिए जिम्मेदार है आसानी से इकट्ठा किया हुआ काला धन ।
ReplyDeleteशादियों के कुछ और अवगुण अगली पोस्ट में लेकर आ रहा हूँ ।
sjeev vrnan . jeevnt !
ReplyDeleteयदि सब एकसा सोचने और करने लगें तो जीवन नीरस हो जायेगा: हर समय, शायद कुम्भ के मेले जैसे, गंगा के किनारे सभी माला जपते दिखाई पड़ें (१२ साल के बृहस्पति के चक्र में जमा होने के स्थान पर)...
ReplyDeleteबूफ़े में बफेलो बन जाते हैं लोग ।
ReplyDelete.
ReplyDeleteअस्तित्त्व के इस संघर्ष में ,उस दिन ऐसी नौबत आई
जीवन में पहली बार हमने भी , आइसक्रीम हाथ से खाई ।
Quite interesting !
.
दराल सर,
ReplyDeleteसेंचुरी की बधाई, जल्दी ही डबल सेंचुरी भी लगे...
वैसे शादी में कई लोगों की प्लेट को लबालब भर लेने की आतुरता भी देखने वाली होती है...
एक बार गुल्ली और मक्खन भी एक शादी की दावत में गए...
वहां गुल्ली एक प्लेट में दाल-रोटी लेकर खाने लगा...
मक्खन ने ये देखा तो आकर झट से गुल्ली को एक धौल जमाई और बोला...
कंजर दे पुतर, घर वी दाल खाईं ते एथे आके वी दाल ही खा रया वें, तैणू ओ कुकड़ (चिकन) ते शाही पनीर नज़र नहीं आ रया...
जय हिंद...
तभी मैं सोचूं कि इस बार तस्वीर कहां गई। हाथ में आइसक्रीम जो लगी थी!
ReplyDeleteहा हा हा ! खुशदीप , शाही पनीर और चिकन तक तो ठीक है । लेकिन कॉन्टिनेंटल की तरफ नज़र उठा कर नहीं देखना । जाने कितनी दिन पहले बन कर तैयार की गई हों ।
ReplyDeleteराधारमण जी , वहां की तस्वीरें नहीं दिखा सकता था । वैसे यह वर्णन एक डॉक्टर्स पार्टी का है ।
डॉ साहेब आपकी कविता पड़कर मुझं 'राजू श्री वास्तव
ReplyDeleteकी वो फेमस कविता याद आ गइ| जिसमे उसने खाने का
रोचक किस्सा प्रस्तुत किया हे | आगे की स्टोरी सुनने की अभिलासा हे |आभार |
इस लाजवाब और लजीज पसंद को सलाम। बहुत सुन्दर टिप्पणी है आपकी । Majedar tha.
ReplyDeleteThanks
Domain For Sale
ये बात तो आप भी मान ही गए की आपको उंगलियाँ चाटनी पड़ ही गयीं
ReplyDeleteदर्शन जी , आगे की कविता राजू श्रीवास्तव से भिन्न है , हालाँकि हास्य व्यंग के रूप में ही है ।
ReplyDeleteहा हा हा ! रचना जी , सही पकड़ा आपने ।
लेकिन यह अस्तित्त्व के संगर्ष का ही फल था ।