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Thursday, December 23, 2010

दिल्ली की शादियाँ --अंतिम भाग

पिछली पोस्ट में आपने शादियों का एक पिछड़ा हुआ रूप देखा । आजकल शादियों में ऐसी बद इन्तजामी देखने में नहीं आती । क्योंकि आजकल शादियाँ भी एक इवेंट मेनेजमेंट हो गई हैं । बस ऑर्डर बुक कराइए और निश्चिन्त होकर एन्जॉय करिए ।

आज प्रस्तुत है दिल्ली की शादियों के अनेक रूप जो हमने पिछले दो साल में अटेंड की गई शादियों से लिए हैं

)
एक
शादी के कार्ड में लिखा था, बारात
ठीक सात बजे पहुँच जाएगी ।
और शादी की सब रस्में
ग्यारा बजे तक पूर्ण हो जाएँगी ।

भाग दौड़ कर साढ़े आठ बजे
जब हम विवाह स्थल पर पहुंचे
तो देखा , कुछ लोग इधर उधर चक्कर लगा रहे थे
पता चला वे टेंट वाले थे , टेबल चेयर लगा रहे थे ।

हमने पत्नी से कहा , चलिए
वही काम फिर एक बार करते हैं
बाहर गेट पर खड़े होकर ,
बारात का इंतजार करते हैं ।

आधे घंटे बाद एक नवदम्पत्ति आये
हमें देख बड़े प्यार से मुस्कराए ।

लड़का बोला , बेटी की शादी मुबारक हो
हम लड़के वालो की तरफ से आये हैं ।
मैंने कहा बेटा गलत मत समझो
हम भी बारात में ही आए हैं ।

तभी हिलते डुलते एक बुजुर्ग आए
आते ही हम पर चिल्लाये ।
मैंने तो मंत्री जी से फोन करवाया था
आप यहाँ कैसे , ये लॉन तो हमने बुक करवाया था ।

मैंने कहा श्रीमान , तैश में मत आइये
इस पर आप का ही अधिकार है ।
लेकिन जल्दी से टेंट लगवाइए ,
बारात आ चुकी है , बस दुल्हे का इंतजार है ।

2)

आजकल बाराती तो सीधे
विवाहस्थल पर पहुँच जाते हैं ।
और दुल्हे के साथ एक घोड़ी , दो रिश्तेदार
और बाकि बैंड वाले ही रह जाते हैं ।

इधर दूल्हा दुल्हन के पिता मेहमानों का
गेट पर ही मिलकर , करते हैं स्वागत ।
और दूल्हा आये या न आये , अपनी बला से
बाराती घराती सब जमकर, उड़ाते हैं दावत ।

फिर जाते जाते दूल्हा
दिख गया तो बधाई।
वर्ना लिफाफा पिता को सौंप ,
काम तो निपटा ही दिया था भाई ।

शादियों में डी जे का भी ,
इस कदर होता है शोर ।
कि बात करने के लिए भी ,
लगाना पड़ता है जोर ।

वैसे गौर से देखा जाये तो
बात करने की नौबत ही कहाँ आती है ।
तीस आईटम खाओ तो पता चलता है
अभी तो चालीस और बाकि हैं ।

कुछ लोग तो ऐसे अहंकारी
कि बुलाने पर भी नहीं आते है ।
कुछ ऐसे बेशर्म कि बिन बुलाये
टेंट फाड़कर ही घुस जाते हैं ।

फिर दस बीस उड़ाते हैं गुलाब जामुन
और बाकि से भर ले जाते हैं दामन ।

)

इस भीड़ भाड़ में , कौन है अपना कौन पराया
किसने निमंत्रण स्वीकारा , कौन नहीं आया ।
दूल्हा कैसा दिखता है , दुल्हन की कैसी सूरत है
यह न कोई देखता है , न देखने की ज़रुरत है ।

क्योंकि आजकल मेहमानों को वर बधु से
ज्यादा
प्यारा होता है खाना ।
और मेजबानों को मेहमानों से ज्यादा
प्यारा , लिफाफों का आना ।

और इसी आवागमन की शिकार
प्रेम संबंधों की ख्वाइश हो गई है ।
शादियाँ आजकल काले धन की
बेख़ौफ़ नुमाइश हो गई हैं ।

36 comments:

  1. सच है शादियां कालेधन की बेखौफ नुमाइश हो गयी हैं।

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  2. जी हा बिल्कुल सही कहा शादियाँ अब अपनी हैसियत दिखाने का जरिया ज्यादा हो गई है |

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  3. एकदम सच्ची तस्वीर दिखाई है आपने.

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  4. कुछ भी कहें, आजकल की शादी के बहाने हम आम तौर पर तीन-रोटी-दाल खाने वाले भी एक बार दो तीन दिन रेज़ोर्ट में ठहर राजसी खातिरदारी पाने का लाभ उठा चुके हैं!

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  5. दिल्ली की शादी श्रंखला रोचक रही

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  6. सही कहा आपने, शादियां काले धन की नुमाईश का माध्‍यम बन गयी हैं आज।

    ---------
    मोबाइल चार्ज करने की लाजवाब ट्रिक्‍स।

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  7. और इसी आवागमन की शिकार
    प्रेम संबंधों की ख्वाइश हो गई है ।
    शादियाँ आजकल काले धन की
    बेख़ौफ़ नुमाइश हो गई हैं ।
    Ish par ye 4 panktiyaan;
    कहीं मेरे इस शहर में,
    कोई अभागन,
    देह बेच कर भी दिनभर
    भरपेट नहीं जुटा पाती है !
    और कहीं,
    कोई नई सुहागन ,
    दुल्हे को वरमाला पहनाने हेतु,
    क्रेन से उतारी जाती है !!

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  8. गोदियाल जी , सब किस्मत का खेल है । लेकिन इसमें हाथ आदमी का है ।

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  9. ye hee haal hai jee aaj kal.........dikhave ke peeche hee sabhee bhag rahe hai.....
    bahut sunder chitran kiya hai aapne............

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  10. क्योंकि आजकल मेहमानों को वर बधु से
    ज्यादा प्यारा होता है खाना ।
    और मेजबानों को मेहमानों से ज्यादा
    प्यारा , लिफाफों का आना ।

    ha ha ha..
    sach mein bada hi ajeeb maajra hai aaj kal...
    बड़ा मज़ा आया पढ़कर ....
    ek purani kawita...
    हाँ मुसलमान हूँ मैं.. ..

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  11. "शादियाँ आजकल काले धन की
    बेख़ौफ़ नुमाइश हो गई हैं ।"
    जे है पञ्च लाईन
    और वाह क्या कविताई करते हो डाक्टर :)
    गरीब कवियों की रोजी पर रहम खाओ,
    डाक्टरी जब चलती है तो उसीकी खाओ !

    और हाँ ,इधर अजीब चक्कर मैंने भी देखा -बरती सीधे दुल्हिन के दरवाजे पर पहुँच जाते हैं अब जनवासा वगैरह खत्म हुआ क्या ?

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  12. सच्कहूँ डाक्टर साहब, कई बार तो इन शादियों में जाकर अपनी शादी करने का मन करता है....हम तो सस्ते में ही निबट लिए थे....खैर....बखत-बखत की बात सै....पिछली चाचा जी वाली पोस्ट बढ़िया..थी....आप सौभाग्यशाली हैं की दिल्ली में ऐसी अंतरंगता, ऐसी रिश्तों की गर्मी मिली....और हाँ ये जरूर बताइयेगा कि शादियों में बचे खाने का क्या प्रयोग होता है........जय राम जी की....

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  13. बिल्कुल सही कहा.....

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  14. डा. सा: आजकल की सच्ची तस्वीर पेश कर दी है आपने.
    आपका आज का सुझाव सिरोधार्य है.शीघ्र ही उस विषय पर लिखने का प्रयास करूंगा.

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  15. दिल्ली की शादियों में आनंद लेने के नुस्खे :
    * कार्ड में कुछ भी लिखा हो , रात की शादी में ९ बजे से पहले नहीं जाना ।
    * शादी लड़के की हो या लड़की की , सीधे विवाह स्थल पर ही पहुँचिये ।
    * बस खाने पर ध्यान दीजिये , बात करने की कोशिश न करें वर्ना गला पकड़ा जायेगा ।
    * खाने में दाल रोटी ही सेफ है । बाकि की कोई गारंटी नहीं ।
    * निमंत्रण न भी मिला हो । यदि आप में आत्म विश्वास है तो आप किसी भी शादी में जाकर भोजन करके आ सकते हैं । यहाँ कोई किसी को नहीं पहचानता ।
    * अपने समय से आएं , अपने समय से आएं, यहाँ कोई रोक टोक , लोक लिहाज़ की ज़रुरत नहीं है ।

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  16. आज की पोस्ट भी जोरदार है और नुस्खे भी. आगे से इन्ही का पालन होगा.

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  17. हा हा हा , अरविन्द जी , कवि भी कई तरह के होते हैं ।
    एक वो जिन्हें कविता सुनाने के २५०००-५०००० मिलते हैं ।
    दूसरे वो जिन्हें २००० -४००० मिलते हैं ।
    तीसरे वो जिन्हें सुनाने के लिए अपनी जेब से देने पड़ते हैं ।

    हमने ब्लोगिंग इसलिए शुरू की क्योंकि किसी ने बताया कि यहाँ कविता सुनाने का एक पैसा भी नहीं लगता । :)

    योगेन्द्र जी , हिन्दुस्तान में जीवन की पहली अंतिम यात्रा एक बार ही की जाती है ।
    ज़रा याद करें , दिवाली पर मिठाई एक महीने पहले बननी शुरू हो जाती है ।

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  18. बहुत सटीक बात लिखी है ....आज कल यही होता है शादियों में ...जनवासा क्या होता है ? यह लोग भूल ही चुके हैं ...न बारातियों के पास वक्त है और न घरातियों के पास ...अब बाहर से बरात भी कहाँ आती हैं ? सब लोकल ही हो जाता है ..

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  19. अजी हम भी बहुत हेरान थे, दिल्ली की एक शादी देख कर बरात अभी आई भी नही थी कि लोग खाने पर जम कर लगे थे, हमे भी उस तरफ़ ले जाया गया, तो हम ने भी दो तंदुरी रोटी ओर थोडी दाल खा ली, बाद मै पता चला कि बराती ओर घराती सब लगे हे चरने पर, ओप्र बरात अभी आई नही, अजी हमारे जमाने मै सब से पहले बराती खाते थे, फ़िर घराती जिमते थे. चलो हमे क्या,हम तो कार्ड पर साफ़ लिखवा दे गे जो शादी मै आये टिफ़न साथ ले कर आये, ओर शगन हमे € मै ही दे :) मस्त जी धन्यवाद इस लेख के लिये

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  20. अरे सर, आप तो शादियों में भी कविता देख आए :)

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  21. शादियां के सामूहिक उत्सव होने के क़िस्से क़िताबों में सिमटकर न रह जाएं।

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  22. कविता में बहुत ख़ूबसूरती से वर्णित किया आज कल की शादियों को ।

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  23. काजल कुमार जी , कविता तो है ही ऐसी कि हर जगह दिखाई दे जाती है ।

    राधा रमण जी , सामूहिक उत्सव तो अभी भी है । बस फर्क इतना है कि एक पैसा फूंकता है , तमाशा सब देखते हैं ।
    जब तक काला धन रहेगा , ऐसे उत्सव होते रहेंगे ।

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  24. हा हा हा ! भाटिया जी , ये आइडिया बढ़िया रहा कि टिफिन साथ लेकर आयें और आशीर्वाद देकर जाएँ । नोट कर लिया जी हमने भी ।

    वैसे आज से २० साल पहले बरात का इंतज़ार करते करते जब आधी रात हो जाती तो लोग बिना खाए ही चले जाते थे । धन्य है आधुनिक युग कि अब कोई भूखा नहीं जाता ।

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  25. डॉ सा.
    भाटिया सा.का आइडिया बहुत अच्छा लगा |टिफिन
    लेकर आशीर्वाद देने का ;पर जनाब ,आयगा कौन ? तब शा यद बाराती तो छोड़ो ,धाराती भी नही आने वाले ही ही ही ..|बहुत सुंदर शादी का आखो देखा हाल प्रस्तुत किया हे |बधाई |
    वेसे हम भी लिफाफा "पिताजी "को सौप कर आने वालो
    मे शामिल है | .

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  26. हा हा हा ! दर्शन जी , भाटिया साहब ने यह कहा है कि टिफिन साथ लेकर आयें । इसलिए हम तो यही करेंगे । यानि टिफिन लेकर जायेंगे , लेकिन खाली । और भरकर वापस लायेंगे । कैसा लगा आइडिया !

    जहाँ तक लिफाफे की बात है , यह तो एक खूबसूरत मजबूरी है । जब दूल्हा आधी रात तक घोड़ी चढ़ा सड़क पर खड़ा रहेगा तो क्या हम भी सड़क पर खड़े रहें । ना भई ना ।

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  27. ... bahut khoob ... dhamaakedaar post !!!

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  28. वाह वाह क्या शादिओं का बैन्ड बजाया है। बधाई।

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  29. पोस्ट भी जोरदार है और नुस्खे भी, धन्यवाद

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  30. मजा आ गया ।
    जितनी तारीफ़ की जाय कम है ।
    सिलसिला जारी रखें ।
    आपको पुनः बधाई ।

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  31. शादियों के कारण दिल्ली कि घोड़ियाँ भी बिगड़ गईं हैं. टाँगे वाला भी बीच- बीच में रुक घोड़ी के सामने न नाचे तो आगे बढ़ता ही नहीं है!

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  32. मजेदार लेकिन वास्तविक चित्रण आजकल की शादियों का ।
    अभी पूना में मैं भी काले धन के बेखौफ प्रदर्शन वाली शादी में शामिल होकर आया जहाँ मैंने देखा कि उस शाही भोज का वास्तविक आनन्द गिने-चुने मेहमानों से ज्यादा पूरे इवेंट का अरेंज करने वाले सर्वेन्ट ज्यादा मजे से ले रहे थे । वेरायटियों की तो बात ही छोड दें लेकिन खाने की उपलब्ध मात्रा के अनुपात में 40% भी मेहमान नहीं थे ।

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  33. आपको एवं आपके परिवार को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !

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  34. आपकी रचना वाकई तारीफ के काबिल है .
    blog ke madhyam se bahut kuvh kiya jana hai.

    * किसी ने मुझसे पूछा क्या बढ़ते हुए भ्रस्टाचार पर नियंत्रण लाया जा सकता है ?

    हाँ ! क्यों नहीं !

    कोई भी आदमी भ्रस्टाचारी क्यों बनता है? पहले इसके कारण को जानना पड़ेगा.

    सुख वैभव की परम इच्छा ही आदमी को कपट भ्रस्टाचार की ओर ले जाने का कारण है.

    इसमें भी एक अच्छी बात है.

    अमुक व्यक्ति को सुख पाने की इच्छा है ?

    सुख पाने कि इच्छा करना गलत नहीं.

    पर गलत यहाँ हो रहा है कि सुख क्या है उसकी अनुभूति क्या है वास्तव में वो व्यक्ति जान नहीं पाया.

    सुख की वास्विक अनुभूति उसे करा देने से, उस व्यक्ति के जीवन में, उसी तरह परिवर्तन आ सकता है. जैसे अंगुलिमाल और बाल्मीकि के जीवन में आया था.

    आज भी ठाकुर जी के पास, ऐसे अनगिनत अंगुलीमॉल हैं, जिन्होंने अपने अपराधी जीवन को, उनके प्रेम और स्नेह भरी दृष्टी पाकर, न केवल अच्छा बनाया, बल्कि वे आज अनेकोनेक व्यक्तियों के मंगल के लिए चल पा रहे हैं.

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