top hindi blogs

Tuesday, December 14, 2010

अतिथि तुम कब जाओगे --एक संस्मरण---.

कहने को तो तेरहवीं १३ दिन की होती है लेकिन अपने लिए तो पूरे दिन चली

पिछले चार सप्ताह में परिवार और सम्बन्धियों में चार लोगों का देहांत
इन्ही दिनों के आस पास रिश्तेदारियों में शादियाँ और इतने ही मित्रों का निमंत्रण

जिंदगी में एक साथ ऐसे विरोधाभास का सामना पहले कभी नहीं किया था

लेकिन अब कोशिश करते हैं जीवन की रेल को फिर से पटरी लाने की

प्रस्तुत है , इस अवसर से चुराया एक यादगार अहसास

हरियाणवी लोगों का शोक प्रकट करना भी शोक नहीं होता , विशेष कर किसी बुजुर्ग के देहांत पर एक मिनट से ज्यादा चुप बैठना उनके स्वाभाव में ही नहीं है कभी किसी गाँव में जाकर देखें तो आप हैरान रह जायेंगे

लेकिन हम तो शहर में रहकर ही हैरान हो गए

हुआ यूँ कि पिता जी के देहांत पर गाँव से हमारे एक चाचा जी धमके , अपना फ़र्ज़ समझ कर
ठीक वैसे ही जैसे --अतिथि तुम कब जाओगे --फिल्म में परेश रावल

एक तो ज़नाब अस्थियों के साथ गंगा तक का सफ़र कर आए आते ही बोले --गला ख़राब हो गया बीडी पी पी कर अब तो यह हुक्का पीकर ही ठीक होगा हमने कहा --यहाँ हुक्का कहाँ मिलेगा
बोले फ़िक्र करो , मैं कल लेकर आऊंगा





अब हमारी हालत ऐसी कि काटो तो खून नहीं हमने उन्हें बहुत समझाया कि यहाँ शहर में हुक्का कोई नहीं पीता लेकिन वो कहाँ मानने वाले थे

गाँव क्योंकि दिल्ली में ही है और ज्यादा दूर नहीं है अगले ही दिन पहुँच गए साज़ सामान के साथ

लम्बे पतले , छरहरे बदन के , गोरा चिट्टा रंग , मूंह पर बड़ी बड़ी कटार सी मूंछें, सफ़ेद धोती कुर्ता , उस पर काला बंद गले का कोट , सर पर साफ़ा और आँखों पर काला चश्मा --देखकर एक बार तो विश्वास ही नहीं हुआ कि ये वही चाचा जी हैं या कोई फिल्म स्टार

उधर करीने से सजाया हुआ हुक्का , उपलों की एक टोकरी , एक डब्बा तम्बाखू --आते ही ड्राइंग रूम के साथ वाले बेडरूम में अपना डेरा जमा लिया

घर के पिछले आँगन में आग जला दी गई और शुरू हो गई हुक्के की गुडगुडाहट

इत्मिनान से हुक्का पीने के बाद हुआ ऐलान , उनके नित्य कार्यक्रम का

सुबह बजे चाय , दिन में दो बार खाना --सुबह १० बजे और शाम को बजे

मेहमानों के लिए रखे गए चाय बनाने वाले के लिए विशेष निर्देश --

चाय में चीनी डबल --चाय पत्ती डबल , मात्रा भी डबल जिस समय कहा जाए उसी समय दी जाये --चाय के लिए पूछा नहीं जाए
यदि इन नियमों का उल्लंघन हुआ तो डांट खाने के लिए तैयार रहा जाए

७२ वर्षीय इन चाचा जी से बहुत कम ही गुफ्तगू हुई थी अभी तक
लेकिन इन - दिनों में उनके बारे में बहुत कुछ जानने का अवसर मिला
पढने का शौक है --रामायण , और कई तरह की कथा पुराणों की नई नई पुस्तकें देखकर मैं तो दंग रह गया

ऊंचा सुनते हैं फिर भी पक्के घुमक्कड़ हैं आधी जिंदगी उन्होंने घूमने में ही बिता दी
मैंने कहा --आपके लिए एक सुनने की मशीन ला दूँ
इशारा करके बताया कि काम की बात तो सुन लेता हूँ फालतू सुनकर क्या करूँगा

जहाँ बाकि सब लोग तो रात को चले जाते थे , वहीँ ये चाचा जी रात में अकेले नीचे वाले फ्लोर पर ठाठ से बिस्तर लगाकर सोते थे

जाने कब इस अज़ीबो गरीब पात्र से प्यार सा हो गया

पूरे सप्ताह सब भाइयों ने मिलकर उनकी जो खातिरदारी की ,उसे वे ही नहीं हम भी कभी नहीं भूल पाएंगे

ठीक वैसे ही जैसे फिल्म--- अतिथि तुम कब जाओगे ---में परेश रावल को

अंत में एक लतीफ़ा उनकी तरफ से :

एक हरियाणवी, डॉक्टर से --डॉक्टर साहब दो साल पहले बुखार हुआ था
डॉ : अब क्या हुआ ?
हरियाणवी : कुछ नहीं यहाँ से गुजर रहा था आपने नहाने के लिए मना किया था सोचा आप से पूछ लूँ , अब नहा लूँ क्या ?

नोट : वैसे ये चाचा जी रोज सुबह हमारे उठने से पहले ही ठंडे पानी से नहा धोकर तैयार होकर हुक्का पीते नज़र आते थे

23 comments:

  1. मैंने कहा --आपके लिए एक सुनने की मशीन ला दूँ ।
    इशारा करके बताया कि काम की बात तो सुन लेता हूँ । फालतू सुनकर क्या करूँगा
    ....इससे बढ़िया बात और क्या हो सकती है! मजा आ गया इन दो पंक्तियों में।

    ReplyDelete
  2. हा हा हा! बढ़िया संस्मरण और चुटकुला भी!

    एक समय था जब कोयले की अंगीठियाँ और हुक्के भी आम थे दिल्ली में भी, और हम बच्चों ने भी कभी-कभी छुप-छुप के ठंडा हुक्का गुड़गुड़ाया था,,,और हुक्के के चक्कर में पिताजी के कारण गैस का चूल्हा हमारे संयुक्त परिवार वाले घर में देर से आया, यद्यपि मैंने पहले उसका उपयोग आरम्भ किया... .

    ReplyDelete
  3. शहर में स्थानाभाव के कारण,अक्सर,बुजुर्ग ही हमारे साथ नहीं रहना चाहते। अपनी जड़ों से कटने का जो एक बड़ा नुक़सान हुआ है,वह यह कि हमारे भीतर से हास्य का लोप हो गया है। हास्य ग्रामीण जीवन का सहज हिस्सा है। और, शहर में देखिए। लाफ्टर क्लब की विवशता!

    ReplyDelete
  4. Daral saheb,
    Dukh ke mahaul se bade hi sundar pal nikaal ke laye hain aap.aap ki jindadili kaabile tareef hai.
    post achchhi lagi.

    ReplyDelete
  5. चाचा जी को प्रणाम...मजेदार संस्मरण रहा.याद रहेगा हमें भी.

    ReplyDelete
  6. बजुर्गों के साथ समय व्‍यतीत करने का कोई भी मौका मैं नहीं छोड़ता, बहुत आनंद मिलता है जब उन्‍हें सुनने पर उनके आनंद का अहसास होता है। चाचाजी ने अपना समझा और उनके समय की व्‍यवस्‍था का स्‍मरण कर उन्‍हें निश्चित ही ऐसा लगा होगा कि इस समय घर में किसी बजुर्ग की उपस्थिति शोक को कम करेगी। उनकी यह सादगी वंदनीय है।

    ReplyDelete
  7. डा. दराल जी,
    संस्मरण के साथ चिट्कुला पढ़कर आनद आ गया !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

    ReplyDelete
  8. "तम्बाखू, धूम्रपान आदि सेहत के लिए खराब है" सुन-सुन जब अस्सी के दशक में मैंने पिताजी से पूछा कि उन्होनें सिग्रेट, हुक्का आदि क्यों पीना आरंभ किया तो उन्होंने कहा कि समाज में बुजुर्गों के साथ बैठ हुक्का पीने के लिए निमंत्रण मिलना एक गर्व का विषय समझा जाता था, जिस कारण किसी का "हुक्का पानी बंद किया जाना", यानी समाज से बहिष्कार किया जाना, शर्मनाक माना जाता था

    ReplyDelete
  9. जे सी जी , गाँव में आज भी हुक्का पानी को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है ।
    वैसे धूम्रपान किसी भी रूप में वर्जित ही है ।

    ReplyDelete
  10. .

    डॉ दराल,

    बहुत ही रोचक अंदाज़ में प्रस्तुत किया आपने इस संस्मरण को। चाचा जी व्यय्क्तित्व निश्चय ही प्रभावशाली लगा। उनका सुनाया चुटकुला भी बढ़िया रहा।

    बुज़ुर्ग लोग जानते हैं की कैसे दुःख की घडी में माहौल हल्का रखकर छोटों को सांत्वना दी जाति है।

    चाचा जी को हमारा नमस्ते।

    .

    ReplyDelete
  11. दराल साहब
    आज तो कहने को जी कर रहा है …
    चाचा ज़िंदाबाद !

    ये आपका ही हौसला है कि छाती पर मूंग दलवा कर भी
    इस अज़ीबोगरीब पात्र से प्यार सा हो गया कहते हैं , निभाते हैं ।

    सलाम है आपकी ज़िंदादिली को…

    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    ReplyDelete
  12. … और सलाम है आपकी दरियादिली को…

    ReplyDelete
  13. … और सलाम आपकी सशक्त लेखनी को !

    ReplyDelete
  14. हा हा हा! बढ़िया चुटकुला!
    अभी क्या जल्दी थी पूछने की ???
    चाचा जिन्दाबाद !!!

    ReplyDelete
  15. डॉक्‍टर साहब, हंस हंस कर लोटपोट कर दिया आपने। शुक्रिया।

    ---------
    प्रेत साधने वाले।
    रेसट्रेक मेमोरी रखना चाहेंगे क्‍या?

    ReplyDelete
  16. अरे अरे राजेंद्र जी , कितनी तारीफ कर डाली भाई !
    हरदीप जी , बस यूँ ही , जा रहा था तो पूछ लिया । :)
    ज़ाकिर अली जी , ज़रा सोचिये हम कैसे दम साधे बैठे थे ,मायूसी के दौर में ।

    ReplyDelete
  17. अच्छा लेख और संस्मरण बढ़िया चुटकुला. वैसे हर घर में एक दो बुजुर्ग ऐसे होते हैं वो किसी भी कीमत पर कहीं कोई कोताही पसंद नहीं करते .

    ReplyDelete
  18. डॉ० साहब आप विपरीत परिस्थितियों को न सिर्फ अपने अनुकूल बल्कि दिलचस्प बना लेते हैं ! सचमुच बहुत उर्जा मिलती है आपसे !

    ReplyDelete
  19. DR saheb; is udasi bhare maahol me aap itne sahaj kaise rehte hai...dilchasp prasang, aur isse bhi dilchasp chutkula. waah!!! janab! waah!!! aap lajawaab hai.

    ReplyDelete
  20. "Hooka Sanskriti" bhale hi gaaon mei shaan ki cheej samjhi jaati thi, par aaj kal humare bombay mei har chote mote restaur mei yaha 150-200 rupaye mei mil jaata hai. Aur aaj ka yuva-varg isko gudgudane mei apni shaan samjhta hai.

    ReplyDelete
  21. एक हरियाणवी, डॉक्टर से --डॉक्टर साहब दो साल पहले बुखार हुआ था ।
    डॉ : अब क्या हुआ ?
    हरियाणवी : कुछ नहीं । यहाँ से गुजर रहा था । आपने नहाने के लिए मना किया था । सोचा आप से पूछ लूँ , अब नहा लूँ क्या ?

    हा-हा.. बहुत दिनों बाद हंसा डाक्टर साहब :)

    ReplyDelete
  22. आपका सहज हास्य बोध तारीफे काबिल है। पूरी जाट जाति वाली ये हास्य बोध कायम रहे यही दुआ है। रहा चाचाजी का सवाल। तो ऐसे चाचा जीवन का सही पाठ पढ़ाते हैं। क्या करना है फालतू सुन कर। आधी जिंदगी घुमने में बिता दी। काफी जानने को मिलता है ऐसे लोगो से।

    ReplyDelete
  23. गोदियाल जी , रोहित जी , हास्य कायम रहेगा । बस एक बदली सी छा गई थी , ग़मों की जो अब धीरे धीरे छंट रही है ।

    ReplyDelete