वक्त बदल जाता है । हालात बदल जाते हैं। और कई बातें , कई रिवाजें वक्त की परतों के नीचे दब कर रह जाती हैं।
ऐसा ही है , होली मनाना । जी हाँ , होली अलग अलग राज्यों में अलग अलग तरीके से मनाई जाती है।
ब्रिज की होली को कौन नहीं जनता।
लेकिन हरयाणवी होली ! शायद आपको नहीं मालूम होगा की कैसे मनाई जाती थी हरियाणा में होली।
यह उन दिनों की बात है जब न मोबाइल थे , न गाड़ियाँ।
न कलर टीवी, न कंप्यूटर।
लेकिन होली तब भी खेली जाती थी।
बस हमने बचपन में कभी होली नहीं खेली।
सोच सकते हैं क्यों ?
क्योंकि उन दिनों हरियाणा और दिल्ली के गावों में बच्चे होली नहीं खेलते थे ।
हैं न अचरज में डालने वाली बात।
आइये आज आपको परिचित कराते हैं , हरियाणा में होली कैसे खेली जाती थी , सातवें और आठवें दशक में ।
* होली का खेल बसंत पंचमी के दिन से शुरू हो जाता था। यानि अगले ४० दिन तक होली खेलते थे । लेकिन सिर्फ बहुएं । घर की बहु अपने जेठों पर पानी डालती थी , जहाँ भी अवसर मिलता था । यह सिलसिला पूरे फागुन चलता था ।
* अगर घर में बटेऊ ( दामाद ) आ जाता था , तो उसकी तो श्यामत आ जाती थी।
*होलिका दहन वाले दिन सभी औरतें एकजुट होकर , गीत गाती हुई , विशेष रूप से बनाये गए गोबर के उपले और कंडे लेकर होली में डाल कर आती थी।
* दुलैन्ह्ड़ी वाले दिन असली होली होती थी। लेकिन यह सिर्फ देवर और भाभी के बीच खेली जाती थी।
एक मैदान या खाली पड़े खेत में सब लोग इकट्ठा होते थे । मोहल्ले के सभी लड़के पानी की बाल्टी लेकर तैयार , और बहुएं ( भाभियाँ ) दूसरी तरफ कोल्ह्ड़े लेकर तैयार ।
देवर भाभी पर पानी डालने की कोशिश करता और भाभी उसे कोल्ह्ड़ा मारने की कोशिश करती । इस तरह भाग दोड वाला खेल होता था , जिसमे देवरों की पिटाई खूब होती थी।
* बाकि सब लोग बस दूर खड़े तमाशा ही देखते थे ।
* उन दिनों गुलाल कोई नहीं जनता था ।
* एक और विशेषता : होली पर पटाखे छुडाये जाते थे , दिवाली पर नहीं ।
शुक्र है हम बड़े हुए , गाँव से बाहर निकले और हमने होली मनाना सीखा --रंग और गुलाल से ।
तो बताइये कैसी लगी आपको यह जानकारी।
Saturday, February 27, 2010
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BAHUT SUNDR SANSAMARAN DR.SAHEB,AAPKO AUR POORE PRIVAAR KO HOLI KEE SHUBHKAMNA.
ReplyDeleteare waah Daras sahab...ye to bahut hi anokhi jaankaari de di aapne..ham to kabhi soch bhi nahi sakte the...ki holi mein patakhe..
ReplyDeletehairaani ki baat hai..sach much Bharat vividhtaaon ka desh hai..
aapka bahut bahut aabhar..
बिलकुल नयी जानकारी ! आपका बहुत शुक्रिया !
ReplyDeletegalati ho DARAL SAHAB naam likhne mein ..kaan pakad kar uthak baithak kar rahe hain..1...2...3..4...5..6...7...8...9....bas ab nahi kar sakte..
ReplyDeleteदराल जी यह कोल्ह्ड़े वाली होली तो हम ने भी देखी है , लेकिन हम्बच्चे थे इस लिये बच गये, वर्ना एक कोल्ह्डा काफ़ी था हमारे लिये, बहुत मजेदार ओर बिस्तार से लिखा आप ने हरियाणवी होली को.
ReplyDeleteधन्यवाद
धमाल होली का मूल तत्व है और सभी जगह विद्यमान भी।
ReplyDeleteएक नई जानकारी मिली...धन्यवाद!!
ReplyDeleteये रंग भरा त्यौहार, चलो हम होली खेलें
प्रीत की बहे बयार, चलो हम होली खेलें.
पाले जितने द्वेष, चलो उनको बिसरा दें,
गले लगा लो यार, चलो हम होली खेलें.
आप एवं आपके परिवार को होली मुबारक.
-समीर लाल ’समीर’
daraal ji,
ReplyDeleteaapne bahut hi anokhi or gyaanvardhak jaankaari di hain.
main to is sambandh main kuch jaantaa hi nahi tha, ekdum anjaan tha main.
bahut hi badhiyaa jaankaari di aapne, iske liye dhanyawaad.
thanks.
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agar aap buraa naa maane, to ek baat puchhu??? =
ReplyDeletedaraal ji, aapne holi kyon nahi kheli??
jaisaa ki aapne kahaa ki-"gaao main holi devar-bhabhi or jeth-devraani ke beech kheli jaati thi."
to kyaa aap kisi ke jeth, devar yaa daamaad nahi thae??? aap holi is roop main bhi khel sakte thae??
daraal ji, please meri uprokt sawaal-baat kaa buraa mat maananaa. agar aapko buraa lagaa ho to kripyaa mujhe apnaa chhotaa bhai maante huye maaf kar denaa.
sorry and thanks.
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अच्छी जानकारी
ReplyDeleteसुन्दर और रोचक पोस्ट
Pahali bar jana aisa bhi hota tha....dhanywad!!
ReplyDeleteAapko spariwar holi ki shubhkaamnae!
Sadar
जो प्रश्न मेरे मन में उठे थे वो मुझसे पहले अन्य साथियों ने पूछ लिए, और उनका जवाब मिल ही जायेगा,,,अज्ञानता के लिए माफ़ी मांगते हुए अब मुझे केवल यह पूछना रह गया कि यह 'कोल्ह्ड़ा' क्या होता है ?
ReplyDelete...होली के अदभुत नजारे प्रस्तुत किये हैं,बधाई,होली की हार्दिक शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteअरे वाह , आज तो कई सवाल आ गए ।
ReplyDeleteसोनी जी , हमने होली सिर्फ बचपन में नहीं खेली क्योंकि होली बच्चे नहीं खेलते थे ।
बड़ा होने पर इस लिए नहीं खेली , गाँव की होली, क्योंकि अपनी कोई भाभी ही नहीं थी।
यानि हम तो जन्म से ही ताऊ रहे । ये बात फिर कभी । जेठ को होली खेलने का हक़ नहीं होता ।
जे सी साहब , कोल्ह्ड़ा ---कपडे को लपेटकर रस्सी की तरह बना लिया जाता है। यूँ कहिये मोटी रस्सी। इसकी मार एक हंटर जैसी होती है। लेकिन मोटा होने की वज़ह से निशान नहीं पड़ता ।
Wah.. rochak jankari sir..
ReplyDeleteइस बार रंग लगाना तो.. ऐसा रंग लगाना.. के ताउम्र ना छूटे..
ना हिन्दू पहिचाना जाये ना मुसलमाँ.. ऐसा रंग लगाना..
लहू का रंग तो अन्दर ही रह जाता है.. जब तक पहचाना जाये सड़कों पे बह जाता है..
कोई बाहर का पक्का रंग लगाना..
के बस इंसां पहचाना जाये.. ना हिन्दू पहचाना जाये..
ना मुसलमाँ पहचाना जाये.. बस इंसां पहचाना जाये..
इस बार.. ऐसा रंग लगाना...
(और आज पहली बार ब्लॉग पर बुला रहा हूँ.. शायद आपकी भी टांग खींची हो मैंने होली में..)
होली की उतनी शुभ कामनाएं जितनी मैंने और आपने मिलके भी ना बांटी हों...
हो न फिर फसाद , मजहब के नाम पर
ReplyDeleteकेसर में हरा रंग मिले ,इस बार होली में !
डा. दराल साहिब ~ धन्यवाद्! दिमाग क्यूंकि उड़ने लगता है, मैं सोच रहा था यह कुछ चाय वाले 'कुल्हड़', या तेली के 'कोल्हू' से जुड़ा होगा :)
ReplyDeleteटीवी के माध्यम से बरसाने में भी ऐसी ही होली खेलते दिखाई जाती है...जिसके पृष्ठभूमि की भावना द्वापर युग की (हिन्दुओं के मानस पटल पर पक्के काले, या कृष्ण' रंग समान अनंत काल से छाई) कौरव-पांडव की कहानी के माध्यम से समझी जा सकती है,,,
'पंचभूत' अथवा 'पंचतत्व' समान, 'पाँचों पांडवों' की पत्नी थी 'सती द्रौपदी' (और 'सती' सत्ययुग के शिव की अर्धांगिनी थी, और त्रेता के राम की 'सीता' समान भी :) , जबकि (दुष्ट) कौरव, दुशासन और दुर्योधन आदि रिश्ते में उसके देवर लगते थे और सदैव पिटाई के हक़दार :)
इशारा समझो और बुरा न मानो, होली है! (और मैं शरद जी के ब्लॉग पर कह चुका हूँ कि होली तो 'कृष्ण' खेल गए चीनी/जापानी को पीला रंग कर, अमेरिकेन को लाल, अँगरेज़ को सफ़ेद, अफ़्रीकां को काला, आदि आदि, जिसमें उन्होंने जोड़ा कि हम हिन्दुस्तानी हर रंग में रंगे हैं :)
हरयाणा में होली की परम्परा की रोचक जानकारी मिली!
ReplyDeleteआप तथा सभी ब्लॉगर मित्रों को होली की शुभकामनाएँ!
बच्चे वैसे भी शुरू में होली से डरते हैं :)
ReplyDeleteहोली की शुभकामनाएँ
आपको तथा आपके समस्त परिजनों को होली की सतरंगी बधाई
ReplyDeleteआपको तथा आपके समस्त परिजनों को होली की सतरंगी बधाई
ReplyDeleteye jankari to bahut hi badhiya lagi............holi ki hardik badhayi.
ReplyDeleteहोली की रंगभरी शुभकामनाएँ स्वीकार करें!
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को होली पर्व की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
ReplyDeleteहोली की बहुत-बहुत शुभकामनायें.
ReplyDeleteहरियाणा में होली पर एक अन्य प्रथा भी थी जिसमें लोग फाग गाते हुए निकलते थे. जिसमें एक बहुत बड़े बांस से बहुत लंबा कपड़ा बंधा होता था. एक बड़े साइज़ का डमरू (इसे डोअरू कहते थे) होता था उसे बेंत से बजाया था. उनके पास एक बहुत बड़े साइज़ की ढपली भी रहती थी जिसकी थाप बहुत सुहाती थी, यह मैंने राजस्थान की होली में भी देखी है...लेकिन यह सब अब नहीं दिखाई देता..
ReplyDeleteबिलकुल नयी जानकारी ! आपका बहुत शुक्रिया !
ReplyDeleteDactar saheb mujhe hamesha aapke blog mein aane ke liye ek pahad laanghna padta hai ..koi vijet ka blog hai wahan jakar fir bach gear laga kar aana pdta hai...aisa kaahe hein baba...?????
ReplyDeleteआपको और आपके प्रियजनों को होली की रंगारंग शुभकामना...!!!
काजल जी , यह जानकारी तो मेरे लिए भी नई है। हालाँकि रीति रिवाजें हर १०० किलोमीटर की दूरी पर बदल जाती हैं।
ReplyDeleteअदा जी , ऐसा तो नहीं होना चाहिए। पूछते हैं किसी जानकार से ।
शुभकामनायें।
वाह डा. साहब बहुत सुंदर बातें पता चलीं और चूंकि आपकी शैली दिलचस्प है इसलिए मजा डबल हो गया ..आभार और होली की मुबारकबाद
ReplyDeleteअजय कुमार झा
इस बहाने हम्ने सब जगह की होली खेल ली । बधाई ।
ReplyDeleteआपको सपरिवार होली की ढेरो बधाईयाँ और शुभकामनाएँ
ReplyDeleteहरियाणे की होली में देरी से शरीक होने के लिए माफ़ी...
ReplyDeleteमेरी बहन की शादी हिसार में हुई है...एक बार मैं भी फंस गया था वहां...पूछो मत होली पर क्या दुर्गति हुई थी मेरी...
लेकिन वो होली शायद मेरे जीवन की सबसे यादगार होली थी...
जय हिंद...
अरे!...वाह...ये तो आपने बहुत बढ़िया जानकारी दी...
ReplyDeleteवैसे पहले भी थोड़ा-बहुत पता था हरियानी होली के बारे में...एक बार पिट जो चुका था :-)