top hindi blogs

Thursday, February 18, 2010

कौन अधिक सुखी ---आदि मानव या आधुनिक मानव ?

आदि मानव रहता था ---हरे भरे घने जंगलों में ।


जहाँ था, नीला आसमान ,स्वच्छ वायु, स्वच्छ शीतल नीर के झरने नदियाँ , हरी भरी वादियाँ , शांत वातावरण
कोई भाग दोड़ नहीं , कोई चिंता नहीं, जो मिल गया -खा लिया , भले ही कंद मूल ही सही ।

आधुनिक मानव रहता है ---कंक्रीट के जंगलों में

जहाँ प्रदूषित वायु , वाहनों का शोर , पानी की कमी, आसमान या तो दिखाई नहीं देता या दूषित मटमैला, नष्ट होता पर्यावरण ।
उस पर भ्रष्टाचार का बोल बाला, तामसी प्रवर्ति के लोग, तनाव से ग्रस्त , एक दूसरे का गला काटने को तैयार।
खाने को मिलावटी सामान , यहाँ तक की फल और सब्जियां भी ।
घोर कलियुग

कौन अधिक सुखी रहा ---आदि मानव या आधुनिक मानव ?

31 comments:

  1. दो्नो सुखी
    दोनो दुखी

    ReplyDelete
  2. सुख एक सापेक्ष अनुभूति है उस की तुलना नहीं की जा सकती।

    ReplyDelete
  3. आदि मानव सुखी तो नहीं था .. पर आज का मानव भी सुखी नहीं है .. जब सभ्‍यता और संस्‍कृति अपनी चरम पर होती है .. विश्‍व में कोई धर्म वास्‍तव में धर्म बना होता है .. तभी पूरी मानव जाति सुखी हो सकती है !!

    ReplyDelete
  4. आदि मानव ही सुखी था कम से कम प्रकृति के नजदीक तो था...अब तो बस सब कुछ नकली है...
    नीरज

    ReplyDelete
  5. इतना कुछ कर के भी आदमी जब सुखी ना हो सका..बल्कि अपने मकड़जाल मे और भी उलझता जा रहा है..ऐसे मे आदि मानव ही भला था...लेकिन सुख तो मन की एक अवस्था है जो कहते हैं संतोषी को ही प्राप्त होती है...

    ReplyDelete
  6. दोनो अपने जगह खुश ही है ।

    ReplyDelete
  7. भौतिक साधनों के पीछे जितना भी भाग लिया जाए लेकिन शांति ऋषिकेश जैसी जगह पर किसी मनोरम घाट में गंगा के ठंडे पानी में पैर डालकर बस यूहीं खाली बैठे रहने से मिलती है...मेरी बात का यकीन न हो तो कोई भी इसे आजमा कर देख सकता है...हां ये बात दूसरी है कि आदमी का लालच इतना बढ़ता जा रहा है कि आने वाले सालों में यमुना की तरह गंगा का भी हर जगह वैसा ही हाल न हो जाए...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  8. आदमी भोग-विलास की सुविधाओं का इतना गुलाम बन चूका है कि वो शहर को नहीं छोड सकता...हाँ!...मन-बहलाव के लिए कुछ समय के लिए वो ज़रूर कुछ समय के लिए हरी-भरी वादियों में विचरण करना चाहता है लेकिन फिर जल्द ही उसे शहरों की धुल और प्रदूषण भरी जिंदगी अपनी ओर खींचने लगती है ...सुन्दर चित्र

    ReplyDelete
  9. डाक्टर साहब , अगर सरल सा जबाब दूं तो आदि मानव जायदा सुखी था क्योंकि उस जमाने में एम्. बी बी. एस डॉक्टर नहीं थे :)
    मगर, सवाल ज्यादा सुखी या दुखी का भले ही न हो, लेकिन यह आप और मैं, सभी भली प्रकार से समझ सकते है कि सारी भौन्तिक सुविधाओं के बावजूद भी आज का जीवन नरकीय है ! जैसी आपने कहा " घोर कलयुगी जीवन " !

    ReplyDelete
  10. आधुनिक मानव
    क्योंकि इसके पास इन्टरनेट है, ब्लागिंग है :-)
    आदरणीय डाक्टर साहब बराबर मात्रा में सुख और दुख दोनों आदिमानव के पास भी थे और आधुनिक मानव के पास भी हैं और रहेंगें।
    इन्हें कम या अधिक करने का कोई उपाय नही है। बस सुख-दुख के पैमाने बदल सकते हैं। क्वांटिटी नही क्वालिटी बदल सकती है।

    प्रणाम स्वीकार करें

    ReplyDelete
  11. मनुष्‍य की फितरत ही नहीं है कि वह सुखी हो। फक्‍कड़पन में भी वह दुखी है और राजाशाही में भी दुखी। हमें एक दूसरे का जीवन हमेशा ही आकृष्‍ट करते हैं।

    ReplyDelete
  12. वाह फिर एक अच्छी पोस्ट
    मुझे तो लगता है की हमें आदि मानव सुखी लगता है और अगर वो कहीं से हमें देख रहा होगा तो उसे हम सुखी नज़र आयेंगे. हमे तो बस अपने आपको छोड़ कर सभी सुखी ही दीखते हैं. बाकी तो राम ही जाने क्योंकि हमारी तो फितरत बदलने वाली नहीं दूसरों से इर्ष्य तो करेगे ही

    ReplyDelete
  13. सुख और दुख का चोली दामन का साथ है ( कोई इस कहावत को विवाद का मुद्दा न बनाये ).
    एक के बिना दूसरे का एहसास नहीं हो सकता .
    कम और ज्यादा को नापना कठिन है
    हाँ यह जरूर है की पहले मानव प्रकृति के समीप था आज अपने दैहिक सुख के लिए प्रकृति से खिलवाड़ कर रहा है .

    ReplyDelete
  14. सुख और कुछ ... शायद मन की बातें है डाक्टर साहब .... पुराना मानव दुखी था शायद इसी लिए इस जगह तक पहुँचा ... पर देखो अब भी दुखी है ... आपकी फोटोग्राफी ज़रूर कमाल की है डाक्टर साहब ...

    ReplyDelete
  15. बहुत सही लिखा आपने. यही तो विडम्बना है.

    ReplyDelete
  16. आप सभी के उन्मुक्त विचार पढ़कर अच्छा लगा।
    यह सच है आदि मानव प्राकर्तिक वातावरण में रहता था , लेकिन उसके पास आज जैसे संसाधन नहीं थे।
    इसलिए आदमी और जानवर में थोडा ही अंतर था।

    धीरे धीरे मनुष्य का विकास हुआ , उसकी बुद्धि का विकास हुआ , विज्ञान का विकास हुआ।
    और मानव बन गया , आधुनिक मानव।
    आधुनिक वैज्ञानिक संसाधनों से परिपूर्ण।
    लेकिन यही संसाधन आज मनुष्य के लिए समस्या बन गए हैं।
    आज मानव इनका गुलाम बन इनके बस में हो गया है।
    आज सब कुछ होते हुए भी हम खुश नहीं रह पाते।
    क्योंकि आदमी के पास शांति नहीं है । संतुष्टि नहीं है।
    बस एक अँधा धुंध भाग दोड़ है।

    ReplyDelete
  17. सुख और दुख तो सापेक्ष भाव हैं. प्रकृति का नैसर्गिक सुख तो भौतिक अभावजन्य असुविधाये और फिर यदि भौतिक सुविधाओं से लैस तो प्रकृति से कटे हुए प्राकृतिक प्रकोप की आशंकाओं के बीच जीवन.

    ReplyDelete
  18. .... जिसके पास संतोष है वह सुखी है फ़िर चाहे आदि काल हो या आधुनिक !!!!

    ReplyDelete
  19. सच मानो या झूठ इसे तुम
    गुर सारे जिन्दा रहने के
    यह जीवन ही सीखलाता है.

    और यह शाश्वत रहा है, चाहे आदि मानव हो या आधुनिक मानव!!

    ReplyDelete
  20. देखा जाये तो दोनों अपनी अपनी जगह सुखी थे/हैं। क्यों कि सुख और दु:ख की परिभाषाएं दोनों के लिए अलग अलग हैं। आदिम मानव बस अपना अपना पेट भर कर सुखी हो जाता था, वहीं आज का मानव रोज नये तरीकों से खुश होता है/खुश होने की कोशिश करता है।
    गोदियाल साहब और दिगम्बर नासवा जी की टिप्पणी भी एकदम सही है।
    ॥दस्तक॥|
    गीतों की महफिल|
    तकनीकी दस्तक

    ReplyDelete
  21. वह दौर दूसरा था-ये दौर दूसरा है..

    ReplyDelete
  22. मै तो गांव मै रहता हुं, तो मेरा कहना तो यही है कि आदि मानव कम से कम ताजा हवा का हक दार तो था, आज का फ़रेब तो नही था उस की जिन्दगी मै,बाकी समय के अनुसार दोनो ही दुखी भी हे ओर सुखी भी है

    ReplyDelete
  23. आदिमानव ज़रूर बहुत दुखी रहा होगा क्योंकि उसे भीड़, धुआं, मक्कारी बगैहरा से दो चार होने का सौभाग्य नहीं मिला न

    ReplyDelete
  24. आधुनिक मानव को लगेगा कि आदिम मानव ज्यादा सुखी था मगर सहज ही कल्पना की जा सकती है कि आदिम मानव के भी अपने दुःख रहे होंगे. जीवन कष्ट प्रद था. आज सभी भौतिक सुख हैं मगर जीना फिर भी कष्ट प्रद है. दरअसल सुख-दुःख के अपने-अपने चश्में होते हैं.
    मुझे तो लगता है कि...

    दुःख का कारण सिर्फ यही है
    सही गलत है गलत सही है.

    ReplyDelete
  25. देश-काल के हिसाब से परिवर्तन होते ही रहते हैं!

    ReplyDelete
  26. मानव जीवन एक पहेली है...सुख-दुःख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं...ज्ञानी कह गए कि आदमी को एक ही हाल में रहना चाहिए: न दुःख में बहुत दुखी न सुख में बहुत खुश - स्तिथप्रज्ञ...

    ReplyDelete
  27. आपने बिलकुल सही कहा , जे सी साहब।
    सात्विक पुरुष की यही निशानी होती है, जो ख़ुशी में ज्यादा खुश और दुःख में ज्यादा दुखी न हो।
    इस पोस्ट में मैंने आधुनिकता के अवगुणों की ओर ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया है।

    ReplyDelete
  28. डा. दराल साहिब, आप सही देख रहे हैं और वर्णन भी सही कर रहे हैं कि कैसे आधुनिक समय में बुराइयां निरंतर बढती ही दिखाई दे रही हैं जैसे जैसे समय आगे बढ़ रहा है...इसे माया का प्रभाव बताया गया, क्यूंकि काल सतयुग से घोर कलियुग की ओर बढ़ते दिखाई देना एक उलटी रील घुमाने समान ज्ञानियों ने जाना (जैसे एक 'अवकास प्राप्त' व्यक्ति अपने भूत में ही अधिकतर खोया रहता है: आगे तो मिट्टी में ही मिलना है जानता है हर कोई :)...किन्तु 'आम', और 'ख़ास', आदमी को भी सत्य को भूल जाने की बिमारी है, जिसका इलाज केवल हर एक के भीतर ही विद्यमान चिकित्सक के हाथ में है तो सही किन्तु वो नटखट है जिसे जानवर की पूंछ में पटाखा लगाने में जैसे मजा आता है :)

    ReplyDelete
  29. दराल जी,
    बहुत बढ़िया लिखा हैं आपने, मुझे पसंद आया.
    दराल जी,
    हो सकता हैं आप मेरे विचारों-मेरी सोच से सहमत ना हो. लेकिन मेरे हिसाब से-"पुराने (आदिवासी) लोगो से कही ज्यादा आजकल के (आधुनिक) लोग ज्यादा सुखी हैं."
    दराल जी,
    सामान्य तौर पर तो आदिवासी लोग ज्यादा सुखी थे लेकिन मेरा मानना हैं कि-"आधुनिक मानव आदिवासी मानव से ज्यादा सुखी था, हैं, और रहेगा." इसका कारण यह हैं कि-"आजकल के लोगो को दुःख-दर्द, तनाव-टेंशन, परेशानियां-पीडाएं, बहुत हैं. यही उनके ज्यादा खुश-सुखी होने का कारण भी हैं."
    दराल जी,
    पुराने लोगो को दुःख ज्यादा नहीं थे, इसलिए उन्हें सुख का एहसास भी उतना नहीं होता था. सैदेव सुखी रहने वाले को सुख उतना आनंद-मज़ा नहीं देता जितना दुखी-परेशान रहने वाले को सुख आनंद-मज़ा देता हैं.
    यानी कि, दराल जी, आजकल के (आधुनिक) लोग ज्यादा सुखी हैं क्योंकि आजकल के लोगो को दुःख-दर्द, तनाव, आदि भी बहुत हैं.
    दराल जी, क्या आप मेरे इन विचारों, मेरी सोच से सहमत हैं????
    thanks.
    www.chanderksoni.blogspot.com

    ReplyDelete
  30. सोनी जी , आपकी बात बिलकुल सही है। आज हमारे पास जो सुख सुविधाएँ हैं, वो किसी पूर्वज के पास नहीं थी। बस फर्क इतना है की हम ऐसे कर्म भी कर रहे हैं जो हमारे लिए दुखों का कारण बन रहे हैं। जैसे दिफोरेस्तेशन, पोल्यूशन, पोपुलेशन, ग्लोबल वार्मिंग, विपंस ऑफ़ मॉस डिस्ट्रक्शन, धर्म, जाति और प्रान्त के नाम पर लड़ाई, भ्रष्टाचार आदि , ये ऐसे अवगुण हैं जो हमने खुद ही बनाये हैं , नेचर ने नहीं।
    इसलिए आज सब कुछ होते हुए भी बहुत कम इंसान मिलेंगे जो वास्तव में सुखी नज़र आते हैं।
    आशा करता हूँ की आप मेरी बात समझ गए होंगे।

    ReplyDelete
  31. इंसान सुख-सुविधाओं का इतना आदि हो चुका है अब अपने लाख चाहने के बावजूद भी इन्हें नहीं छोड़ पाएगा...
    वैसे मेरे ये विश्वास है कि ऐसी नौबत भी नहीं आए...वो इस बात का प्रयास करता रहेगा :-)

    ReplyDelete