आदि मानव रहता था ---हरे भरे घने जंगलों में ।
जहाँ था, नीला आसमान ,स्वच्छ वायु, स्वच्छ शीतल नीर के झरने व नदियाँ , हरी भरी वादियाँ , शांत वातावरण ।
कोई भाग दोड़ नहीं , कोई चिंता नहीं, जो मिल गया -खा लिया , भले ही कंद मूल ही सही ।
आधुनिक मानव रहता है ---कंक्रीट के जंगलों में ।
जहाँ प्रदूषित वायु , वाहनों का शोर , पानी की कमी, आसमान या तो दिखाई नहीं देता या दूषित मटमैला, नष्ट होता पर्यावरण ।
उस पर भ्रष्टाचार का बोल बाला, तामसी प्रवर्ति के लोग, तनाव से ग्रस्त , एक दूसरे का गला काटने को तैयार।
खाने को मिलावटी सामान , यहाँ तक की फल और सब्जियां भी ।
घोर कलियुग ।
कौन अधिक सुखी रहा ---आदि मानव या आधुनिक मानव ?
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
दो्नो सुखी
ReplyDeleteदोनो दुखी
सुख एक सापेक्ष अनुभूति है उस की तुलना नहीं की जा सकती।
ReplyDeleteआदि मानव सुखी तो नहीं था .. पर आज का मानव भी सुखी नहीं है .. जब सभ्यता और संस्कृति अपनी चरम पर होती है .. विश्व में कोई धर्म वास्तव में धर्म बना होता है .. तभी पूरी मानव जाति सुखी हो सकती है !!
ReplyDeleteआदि मानव ही सुखी था कम से कम प्रकृति के नजदीक तो था...अब तो बस सब कुछ नकली है...
ReplyDeleteनीरज
इतना कुछ कर के भी आदमी जब सुखी ना हो सका..बल्कि अपने मकड़जाल मे और भी उलझता जा रहा है..ऐसे मे आदि मानव ही भला था...लेकिन सुख तो मन की एक अवस्था है जो कहते हैं संतोषी को ही प्राप्त होती है...
ReplyDeleteदोनो अपने जगह खुश ही है ।
ReplyDeleteभौतिक साधनों के पीछे जितना भी भाग लिया जाए लेकिन शांति ऋषिकेश जैसी जगह पर किसी मनोरम घाट में गंगा के ठंडे पानी में पैर डालकर बस यूहीं खाली बैठे रहने से मिलती है...मेरी बात का यकीन न हो तो कोई भी इसे आजमा कर देख सकता है...हां ये बात दूसरी है कि आदमी का लालच इतना बढ़ता जा रहा है कि आने वाले सालों में यमुना की तरह गंगा का भी हर जगह वैसा ही हाल न हो जाए...
ReplyDeleteजय हिंद...
आदमी भोग-विलास की सुविधाओं का इतना गुलाम बन चूका है कि वो शहर को नहीं छोड सकता...हाँ!...मन-बहलाव के लिए कुछ समय के लिए वो ज़रूर कुछ समय के लिए हरी-भरी वादियों में विचरण करना चाहता है लेकिन फिर जल्द ही उसे शहरों की धुल और प्रदूषण भरी जिंदगी अपनी ओर खींचने लगती है ...सुन्दर चित्र
ReplyDeleteडाक्टर साहब , अगर सरल सा जबाब दूं तो आदि मानव जायदा सुखी था क्योंकि उस जमाने में एम्. बी बी. एस डॉक्टर नहीं थे :)
ReplyDeleteमगर, सवाल ज्यादा सुखी या दुखी का भले ही न हो, लेकिन यह आप और मैं, सभी भली प्रकार से समझ सकते है कि सारी भौन्तिक सुविधाओं के बावजूद भी आज का जीवन नरकीय है ! जैसी आपने कहा " घोर कलयुगी जीवन " !
आधुनिक मानव
ReplyDeleteक्योंकि इसके पास इन्टरनेट है, ब्लागिंग है :-)
आदरणीय डाक्टर साहब बराबर मात्रा में सुख और दुख दोनों आदिमानव के पास भी थे और आधुनिक मानव के पास भी हैं और रहेंगें।
इन्हें कम या अधिक करने का कोई उपाय नही है। बस सुख-दुख के पैमाने बदल सकते हैं। क्वांटिटी नही क्वालिटी बदल सकती है।
प्रणाम स्वीकार करें
मनुष्य की फितरत ही नहीं है कि वह सुखी हो। फक्कड़पन में भी वह दुखी है और राजाशाही में भी दुखी। हमें एक दूसरे का जीवन हमेशा ही आकृष्ट करते हैं।
ReplyDeleteवाह फिर एक अच्छी पोस्ट
ReplyDeleteमुझे तो लगता है की हमें आदि मानव सुखी लगता है और अगर वो कहीं से हमें देख रहा होगा तो उसे हम सुखी नज़र आयेंगे. हमे तो बस अपने आपको छोड़ कर सभी सुखी ही दीखते हैं. बाकी तो राम ही जाने क्योंकि हमारी तो फितरत बदलने वाली नहीं दूसरों से इर्ष्य तो करेगे ही
सुख और दुख का चोली दामन का साथ है ( कोई इस कहावत को विवाद का मुद्दा न बनाये ).
ReplyDeleteएक के बिना दूसरे का एहसास नहीं हो सकता .
कम और ज्यादा को नापना कठिन है
हाँ यह जरूर है की पहले मानव प्रकृति के समीप था आज अपने दैहिक सुख के लिए प्रकृति से खिलवाड़ कर रहा है .
सुख और कुछ ... शायद मन की बातें है डाक्टर साहब .... पुराना मानव दुखी था शायद इसी लिए इस जगह तक पहुँचा ... पर देखो अब भी दुखी है ... आपकी फोटोग्राफी ज़रूर कमाल की है डाक्टर साहब ...
ReplyDeleteबहुत सही लिखा आपने. यही तो विडम्बना है.
ReplyDeleteआप सभी के उन्मुक्त विचार पढ़कर अच्छा लगा।
ReplyDeleteयह सच है आदि मानव प्राकर्तिक वातावरण में रहता था , लेकिन उसके पास आज जैसे संसाधन नहीं थे।
इसलिए आदमी और जानवर में थोडा ही अंतर था।
धीरे धीरे मनुष्य का विकास हुआ , उसकी बुद्धि का विकास हुआ , विज्ञान का विकास हुआ।
और मानव बन गया , आधुनिक मानव।
आधुनिक वैज्ञानिक संसाधनों से परिपूर्ण।
लेकिन यही संसाधन आज मनुष्य के लिए समस्या बन गए हैं।
आज मानव इनका गुलाम बन इनके बस में हो गया है।
आज सब कुछ होते हुए भी हम खुश नहीं रह पाते।
क्योंकि आदमी के पास शांति नहीं है । संतुष्टि नहीं है।
बस एक अँधा धुंध भाग दोड़ है।
सुख और दुख तो सापेक्ष भाव हैं. प्रकृति का नैसर्गिक सुख तो भौतिक अभावजन्य असुविधाये और फिर यदि भौतिक सुविधाओं से लैस तो प्रकृति से कटे हुए प्राकृतिक प्रकोप की आशंकाओं के बीच जीवन.
ReplyDelete.... जिसके पास संतोष है वह सुखी है फ़िर चाहे आदि काल हो या आधुनिक !!!!
ReplyDeleteसच मानो या झूठ इसे तुम
ReplyDeleteगुर सारे जिन्दा रहने के
यह जीवन ही सीखलाता है.
और यह शाश्वत रहा है, चाहे आदि मानव हो या आधुनिक मानव!!
देखा जाये तो दोनों अपनी अपनी जगह सुखी थे/हैं। क्यों कि सुख और दु:ख की परिभाषाएं दोनों के लिए अलग अलग हैं। आदिम मानव बस अपना अपना पेट भर कर सुखी हो जाता था, वहीं आज का मानव रोज नये तरीकों से खुश होता है/खुश होने की कोशिश करता है।
ReplyDeleteगोदियाल साहब और दिगम्बर नासवा जी की टिप्पणी भी एकदम सही है।
॥दस्तक॥|
गीतों की महफिल|
तकनीकी दस्तक
वह दौर दूसरा था-ये दौर दूसरा है..
ReplyDeleteमै तो गांव मै रहता हुं, तो मेरा कहना तो यही है कि आदि मानव कम से कम ताजा हवा का हक दार तो था, आज का फ़रेब तो नही था उस की जिन्दगी मै,बाकी समय के अनुसार दोनो ही दुखी भी हे ओर सुखी भी है
ReplyDeleteआदिमानव ज़रूर बहुत दुखी रहा होगा क्योंकि उसे भीड़, धुआं, मक्कारी बगैहरा से दो चार होने का सौभाग्य नहीं मिला न
ReplyDeleteआधुनिक मानव को लगेगा कि आदिम मानव ज्यादा सुखी था मगर सहज ही कल्पना की जा सकती है कि आदिम मानव के भी अपने दुःख रहे होंगे. जीवन कष्ट प्रद था. आज सभी भौतिक सुख हैं मगर जीना फिर भी कष्ट प्रद है. दरअसल सुख-दुःख के अपने-अपने चश्में होते हैं.
ReplyDeleteमुझे तो लगता है कि...
दुःख का कारण सिर्फ यही है
सही गलत है गलत सही है.
देश-काल के हिसाब से परिवर्तन होते ही रहते हैं!
ReplyDeleteमानव जीवन एक पहेली है...सुख-दुःख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं...ज्ञानी कह गए कि आदमी को एक ही हाल में रहना चाहिए: न दुःख में बहुत दुखी न सुख में बहुत खुश - स्तिथप्रज्ञ...
ReplyDeleteआपने बिलकुल सही कहा , जे सी साहब।
ReplyDeleteसात्विक पुरुष की यही निशानी होती है, जो ख़ुशी में ज्यादा खुश और दुःख में ज्यादा दुखी न हो।
इस पोस्ट में मैंने आधुनिकता के अवगुणों की ओर ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया है।
डा. दराल साहिब, आप सही देख रहे हैं और वर्णन भी सही कर रहे हैं कि कैसे आधुनिक समय में बुराइयां निरंतर बढती ही दिखाई दे रही हैं जैसे जैसे समय आगे बढ़ रहा है...इसे माया का प्रभाव बताया गया, क्यूंकि काल सतयुग से घोर कलियुग की ओर बढ़ते दिखाई देना एक उलटी रील घुमाने समान ज्ञानियों ने जाना (जैसे एक 'अवकास प्राप्त' व्यक्ति अपने भूत में ही अधिकतर खोया रहता है: आगे तो मिट्टी में ही मिलना है जानता है हर कोई :)...किन्तु 'आम', और 'ख़ास', आदमी को भी सत्य को भूल जाने की बिमारी है, जिसका इलाज केवल हर एक के भीतर ही विद्यमान चिकित्सक के हाथ में है तो सही किन्तु वो नटखट है जिसे जानवर की पूंछ में पटाखा लगाने में जैसे मजा आता है :)
ReplyDeleteदराल जी,
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा हैं आपने, मुझे पसंद आया.
दराल जी,
हो सकता हैं आप मेरे विचारों-मेरी सोच से सहमत ना हो. लेकिन मेरे हिसाब से-"पुराने (आदिवासी) लोगो से कही ज्यादा आजकल के (आधुनिक) लोग ज्यादा सुखी हैं."
दराल जी,
सामान्य तौर पर तो आदिवासी लोग ज्यादा सुखी थे लेकिन मेरा मानना हैं कि-"आधुनिक मानव आदिवासी मानव से ज्यादा सुखी था, हैं, और रहेगा." इसका कारण यह हैं कि-"आजकल के लोगो को दुःख-दर्द, तनाव-टेंशन, परेशानियां-पीडाएं, बहुत हैं. यही उनके ज्यादा खुश-सुखी होने का कारण भी हैं."
दराल जी,
पुराने लोगो को दुःख ज्यादा नहीं थे, इसलिए उन्हें सुख का एहसास भी उतना नहीं होता था. सैदेव सुखी रहने वाले को सुख उतना आनंद-मज़ा नहीं देता जितना दुखी-परेशान रहने वाले को सुख आनंद-मज़ा देता हैं.
यानी कि, दराल जी, आजकल के (आधुनिक) लोग ज्यादा सुखी हैं क्योंकि आजकल के लोगो को दुःख-दर्द, तनाव, आदि भी बहुत हैं.
दराल जी, क्या आप मेरे इन विचारों, मेरी सोच से सहमत हैं????
thanks.
www.chanderksoni.blogspot.com
सोनी जी , आपकी बात बिलकुल सही है। आज हमारे पास जो सुख सुविधाएँ हैं, वो किसी पूर्वज के पास नहीं थी। बस फर्क इतना है की हम ऐसे कर्म भी कर रहे हैं जो हमारे लिए दुखों का कारण बन रहे हैं। जैसे दिफोरेस्तेशन, पोल्यूशन, पोपुलेशन, ग्लोबल वार्मिंग, विपंस ऑफ़ मॉस डिस्ट्रक्शन, धर्म, जाति और प्रान्त के नाम पर लड़ाई, भ्रष्टाचार आदि , ये ऐसे अवगुण हैं जो हमने खुद ही बनाये हैं , नेचर ने नहीं।
ReplyDeleteइसलिए आज सब कुछ होते हुए भी बहुत कम इंसान मिलेंगे जो वास्तव में सुखी नज़र आते हैं।
आशा करता हूँ की आप मेरी बात समझ गए होंगे।
इंसान सुख-सुविधाओं का इतना आदि हो चुका है अब अपने लाख चाहने के बावजूद भी इन्हें नहीं छोड़ पाएगा...
ReplyDeleteवैसे मेरे ये विश्वास है कि ऐसी नौबत भी नहीं आए...वो इस बात का प्रयास करता रहेगा :-)