लेकिन हम इसे अपने ही हाथों नष्ट किये जा रहे हैं। इंसान की लालच की प्रवर्ति इतनी बढ़ गई है की वह इस बेशकीमती खजाने को मिटाने पर तुला है।
अब ज़रा इस तस्वीर को देखिये ।
कितने खूबसूरत है ना ये फूल। फूल होते ही हैं ऐसे की देखकर मन गद गद हो जाये।
फूलों का योगदान भी देखिये कितना है हमारे जीवन में । हर अवसर पर प्रयोग में आते हैं फूल।
पुष्प की अभिलाषा ---यह कविता बचपन में पढ़ी थी । कितनी सार्थक है।
एक ज़माना था जब दिल्ली के चांदनी चौक में जैन मंदिर के आगे से जाते हुए स्वर्ग का अहसास होता था । क्योंकि वहां बनी दसियों फूलों की दुकानों से इतनी गज़ब की खुशबू वातावरण में फैली रहती थी की बस मज़ा आ जाता था।
लेकिन आज यह देखकर बड़ा दुःख होता है की अब फूलों में सिर्फ रंग रह गए हैं । खुशबू न जाने कहाँ गायब हो गई है।
न गेंदे में , न गुलाबों में ही खुशबू आती है।
विकास की ये कैसी इंतहा हो गई
जाने कहाँ खो गई खुशबू गुलाबों की।
क्या आपको भी कभी ऐसा लगा है , फूलों को देखकर ?
क्या इसमें भी इंसान का हाथ है ?
क्या लौट पायेगी गुलाबों की खुशबू ?
आप ही दे सकते हैं इसका ज़वाब ।
क्या करें.... अब तो आदमी का बौन्साई हो चुका है.... इंसान भी हाइब्रिड हो चुका है... तो यह पौधे और फूल क्या चीज़ हैं.... ? इंसान ने अपनी इंसानियत खो दी है.... और इंसानों की वजह से फूलों ने अपनी खुशबु....
ReplyDeleteयह रासायनिक खाद के कारण है।
ReplyDeleteMaaf kijiyga kai dino busy hone ke kaaran blog par nahi aa skaa
ReplyDeleteहर रंग को आपने बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteडाक्टर साहब आपकी चिन्ता बिल्कुल जायज है, हमें जल्द ही इसके लिए कुछ कदम उठाने चाहिए ।
ReplyDeleteडा. साहिब, आपके द्वारा प्रस्तुत फोटो में फूलों के रंग चमक रहे है सफ़ेद, लाल और पीला!...दिल खुश हो गया! गनीमत है कि अभी रंग मिटने शुरू नहीं हुए फूलों से: क्यूंकि शायद आदमी ने अभी नहीं सीखा रंग चुराना!
ReplyDeleteबिरला मंदिर के समीप, रिज पर मुफ्त में प्राप्त टेसू के फूलों से होली के रंग बना हम बचपन में पिचकारी में भर रंगते थे दोस्तों को...तब भी बड़े, 'शैतान', लड़के गाढ़े पेंट चेहरा पर लगा होली का मजा बिगाड़ दिया करते थे क्यूंकि वो आसानी से छूटते नहीं थे...
होली की शुभकामनाएं!
बहुत सही कह रहे हैं आप .. आपको रंग बिरंगी होली की शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteहर कोई क्विक मनी और फास्ट मनी का दीवाना है डा० साहब ! क्या करे, अब अगर मैं धोनी, सचिन का पड़ोसी होता, उनका क्लासमेट होता और भले ही कहीं चाहे क्लास वन आफिसर ही क्यों न होता, क्या मेरे घर वाले उन्हें / उनकी शानोशौकत देख-देख कर मुझे चैन से जीने देते ? यही कहानी इन पुष्पों की भी है!
ReplyDeleteहोली की शुभकामनाएं!
सही कहा , जे सी साहब। कम से कम रंग तो हैं। यानि होली तो बढ़िया मना ही सकते हैं। फिर रंगों का भी जीवन में अपना महत्त्व है। तभी तो राजस्थानी लोगों की पोशाक इतनी रंग बिरंगी होती है। ताकि रेगिस्तान में भी खुशियाँ छाई रहें।
ReplyDeleteमहफूज़ भाई , ठीक कहा आपने , शायद ये हाइब्रिड ही होते हैं।
लेकिन वो गुलाबों की भीनी भीनी खुशबू बहुत याद आती है।
ऐसा नई प्रजातियों , रासायनिक उर्वरकों और पर्यावरण प्रतिकूलता के कारण भी हो रहा है.जहाँ तक महक की बात है , शहरों में तो शायद ही संभव हो लेकिन गावं के पुरानें परम्परागत गुलाब के फूलों में अभी महक है डॉ साहब.
ReplyDeleteविचारणीय पोस्ट .
mahfooz se sahmat hun..........jab insaan insaan na raha to phir.........??
ReplyDeleteमहफूज़ ठीक कह रहे हैं , और इस सबका जिम्मेवार इंसान ही है !होली की शुभकामनायें !
ReplyDeleteसही कहा है आपने अब शायद ही लौट कर आये शहर के इन फूलों की खुश्बू। डा. मिश्र जी ने सही कहा है
ReplyDeleteअब तो कागज के फूलों में सेंट लगा कर मन बहलाना पड़ेगा!
ReplyDeleteविकास की ये कैसी इंतहा हो गई
ReplyDeleteजाने कहाँ खो गई खुशबू गुलाबों की।
कुछ हमने छीन ली कुछ तुमने छिन ली
परफ्यूम बन गई खुशबू गुलाबों की.
दराल साहब पहले यह फ़ुल बाग की शोभा बढाते थे, मोसम के हिसाब से उगते थे, लेकिन आज कल यह व्याप की नजर से उगते है, बन्द हालो मै, जहां इन्हे क्रतिय्म रोशनी ओर रासान खादो से बे मोसम उगाया जाता है, ओर नकली मै असली खुशबु कहां होगी जी
ReplyDeleteसभी ग़ुलाबों में
ReplyDeleteन पहले महक थी और न अब है!
सच्चे ग़ुलाबों में महक पहले भी थी,
आज भी है
और हमेशा रहेगी!
--
मिलने का मौसम आया है!
"रंग" और "रँग" में से किसमें डूबें?
हो... हो... होली है!
--
संपादक : सरस पायस
बाघ ख़तम हो रहे है ! क्योंकि उनके सहज जीवन में अनावश्यक हस्तक्षेप किया गया !यही हाल फूलों का है धनियाँ का है और मनुष्यों का भी !खुशबु ही तो जाती है पहले ,फिर रंगों के भुलावे में जीता है आदमी !बहुत सुंदर विषय
ReplyDeleteउठाया है आपने ! बधाई ! होली की रंग बिरंगी और सुगंधमई बधाई !
भाई जी अगर खुशबु ही गायब है तो रंगीन जिवंत फूलों में क्या मज़ा, जो मजा उसमें वही मज़ा कम्पुटर स्क्रीन में आपके पेश किये रंगीन फूलों में भी.
ReplyDeleteआज के पढ़े- लिखे इंसानों की डिक्सनरी में प्रगति की परिभाषा में शायद इसका भी कोई उत्तर मिल जाये.
सभी पढ़े-लिखों से गुजारिश है कि उत्तर खोजने और बिन महक के फूलों को प्रगति से जोड़ने के पुख्ता भ्रामक तथ्य प्रस्तुत करें.....
चन्द्र मोहन गुप्त
Holee kee anek shubhkamnayen!
ReplyDeleteबहुत कुछ लुप्त हो रहा है प्राकृति से ..... ये इंसान की दौड़ है या भूख .... पता नही ...
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को होली की बहुत बहुत शुभ-कामनाएँ ....
आप सभी को ईद-मिलादुन-नबी और होली की ढेरों शुभ-कामनाएं!!
ReplyDeleteइस मौके पर होरी खेलूं कहकर बिस्मिल्लाह ज़रूर पढ़ें.
विकास की ये कैसी इंतहा हो गई
ReplyDeleteजाने कहाँ खो गई खुशबू गुलाबों की।
....लाजबाब !!!!!
सचमुच विकास की दौड में प्रकृति लुप्त हो गयी है हर जगह बनावट है जहां प्रकृति है वहां भी कंक्रीट अपने पैर पसार रही है कभी किसी फूल को या हरियाली को देखकर कितना अच्छा लगता है।आपकी चिन्ता लाजमी है save natures
ReplyDeletewish u a happy Holi
Fir ham sugandh kaise lengen.
ReplyDelete*********************
रंग-बिरंगी होली की बधाई.
आज कल तो हर चीज़ नकली और मिलावटी ये तो बस फूल ही हैं
ReplyDeleteआपको व आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें
happy holi ji.
ReplyDeletethanks.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
अपने स्वार्थ के चलते पुष्प पल्लवन भी एक धंधा बन चुका है...कम समय में ज्यादा से ज्यादा कमाई करने के चक्कर में इन्हें यूरिया और ना जाने कौन-कौन सी रासायानियक खादों से पोषित किया जा रहा है...जिससे यकीनन इनकी फसल(हाँ!...अब इसे फसल ही कहा जा रहा है...एक नकदी फसल)ज्यादा होने लगी है लेकिन इनकी कोमलता...इनकी खुशबु...जाने कहाँ खो गई है...मेरे ख्याल से इस सब के लिए हम खुद ही जिम्मेवार हैं...अपनी शान दिखाने के लिए हम इनका बेतरतीब तरीके से और बेदर्दी से इस्तेमाल कर रहे हैं...आप खुद ही देखी कि आज से दस-पन्द्रह साल पहले आपके इलाके में फूलों की दुकाने कितनी थी...और अब कितनी हैं? बाज़ार में जितनी ज्यादा जिस चीज़ की मांग होती है..उसकी पूर्ती भी उसी अनुपात में की जाती है...इसलिए फूलों की कहीं ना कहीं इस शोचनीय हालत के लिए हम खुद भी गुनहगार हैं
ReplyDeleteI have taken quite a few of these workshops, and have been quite pleased with
ReplyDeleteall of them. Photographs are very important for event management companies; hence many opportunities are
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