दिल्ली का पुराना किला , प्रगति मैदान और दिल्ली चिड़ियाघर के बीच मथुरा रोड पर बना है। इसे पांडवों का किला भी कहते हैं। दिल्ली के विभिन्न नामों में से एक इन्द्रप्रस्थ शहर इसी जगह पर बसा था। १५३३ में हुमायूँ ने यहाँ एक शहर का निर्माण किया जिसे बाद में शेर शाह सूरी (१५३८ -१५४५ ) ने तोड़ कर मौजूदा किले की प्राचीर और भवनों का निर्माण किया। १५५५ में हुमायूँ परसिया से लौटकर आया और १५५६ में देहांत तक यहीं रहा था।
इस किले में तीन द्वार हैं ---एक उत्तर की तरफ , जिसे तलाकी दरवाज़ा कहते हैं ---दूसरा दक्षिण की ओर , हुमायूँ दरवाज़ा --और पश्चिम की ओर ये मुख्य द्वार जिसे बड़ा दरवाज़ा कहा जाता है ।
प्रवेश द्वार --बड़ा दरवाज़ा
प्रवेश करते ही बायीं ओर ये कोठरियां नज़र आती हैं, जिन्हें हाल ही में मरम्मत कर नया रूप दिया गया है। दस साल पहले जब देखा था तब यह अपने मूल रूप में नज़र आता था , एक खँडहर जैसा । लेकिन मरम्मत करने से बदली शक्ल को देखकर थोडा दुःख सा हुआ।
यहाँ तलाकी दरवाज़े के पास का ये हिस्सा पुराना था ---इस चित्र में दोनों ओरिजिनल।
बस लाल रंग का स्वेटर कुछ ज्यादा ही चमक रहा था ।
और यह किले के मध्य पार्क और एक पेड़ , जिसके बारे में अंत में। पीछे दायीं तरफ --शेर मंडल।
दूर जो भवन नज़र आ रहा है, वह शेर शाह मस्जिद है, जिसका नाम है --किला -ए- कुहना ।
इसे शेर शाह सूरी ने १५४१ में बनवाया था । यह लोदी काल से मुग़ल काल की ओर जाते समय का बदलाव दर्शाता है। इसके मध्य में एक बड़ा नमाज़ हाल है, जिसमे पांच आर्चड द्वार हैं , साइड और पिछले हिस्से में खिड़कियाँ और आखिर में पिछले कोनो पर टावर बने हैं। सामने बना टैंक नमाज़ से पहले हाथ धोने के लिए इस्तेमाल होता था।
किला-ए -कुहना
इस भवन का नाम शेर मंडल है। इसको हुमायूँ लायब्रेरी के रूप में इस्तेमाल करता था। दूसरी मंजिल पर सजा धजा एक सेन्ट्रल हाल है जहाँ बैठकर हुमायूँ अध्यन करता था । ६ दिशाओं में बने खुली बालकनी नुमा झरोखों को देखकर तो किसी का भी मन कर सकता है , यहाँ बैठकर मैदान की हरियाली को निहारने का ।
शेर- मंडल
लेकिन कहते है की इसी भवन की सीढ़ियों से गिरकर १५५६ में हुमायूँ की मौत हुई थी।
एक दृष्टि इस तरफ से भी। सामने पेड़ के पास नज़र आ रही है, भारतीय संस्कृति और संस्कारों की बनी गठरी।
ये बिना पत्तियों के पेड़ , मानो सुर में सुर मिलाते हुए इन खँडहर हो गई दीवारों से, जिनका अब पुनर्निर्माण चल रहा है।
ये नज़ारा है , हुमायूँ दरवाज़े की ओर जाने वाले रास्ते का।
और अब अंत में आते हैं, उसी पेड़ के पास जो हमने शुरू में देखा था। इस पेड़ से लटकती लताएँ ऐसे लगती हुई , जैसे कुम्भ के मेले में आये साधुओं के सर की जटाएं हों।
क्या आप बता सकते हैं इस पेड़ का नाम ?
और इन लटकती बेलों का क्या काम है ?
इसका ज़वाब मुझे मिला , दिल्ली सैर को आये एक केरल के युवक से ।
लेकिन ज़वाब आप ही दें तो कितना अच्छा लगेगा।
नोट : पुराना किला के साथ ही है , पुराना किला झील, जिसका आनंद आप चित्रकथा पर उठा सकते हैं।
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"एक दृष्टि इस तरफ से भी। सामने पेड़ के पास नज़र आ रही है, भारतीय संस्कृति और संस्कारों की बनी गठरी। "
ReplyDeleteबढ़िया चित्रण डा० साहब, मैं भी आपके लेख में यही ढूंढ रहा था की कहीं पर आपने इन दुरात्माओ का भी कोई उल्लेख किया अथवा नहीं, आखिर मुझे मिल ही गया !:)
इस पर एक लेख बहुत पहले मैंने भी लिखा था उसकी एक झलक यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ ;
अब आप पूछोगे कि इतना गलत ख़याल आपके दिमाग में कैसे आया ? तो जनाब, आपको बताता चलू कि पिछले सन्डे को बच्चो को घुमाने चिडियाघर ले गया था,( काफी समय से नहीं गए थे इस लिए) लौटते में, समय था इसलिए पुराने किले का रुख किया, मगर अफ़सोस कि उस पर दुरात्माओं ने कब्जा जमा लिया है! उन्हें देख, मेरी बेटी ने सवाल किया, पापा, ये ऐसे क्यों बैठे है, हिल-डुल भी नहीं रहे? मैंने कहा, बेटा रिसेसन चल रहा है न,, लगता है ये लोग भूखे है, इसलिए .............. ..........................भगवान् इनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे !
itni vistrit
ReplyDeleteaur vivran-bhari jaankari...
padhte-padhte yooN lagaa
k maiN bhi hooN waheeN...
aap ke saath hi
anyway...
very nicely illustrated write .
C O N G R A T S !!
बहुत अच्छी जानकारी दी आपने दराल साहब! चित्र भी सभी चित्ताकर्षक हैं!
ReplyDeleteदिल्ली तो कई बार जाना हुआ है किन्तु इस किले को देखना का कभी सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ। अबकी कभी दिल्ली जाना हुआ तो अवश्य देखेंगे।
हम तो बरसों पहले गए थे, आपने वापस घुमा दिया। लेकिन मेरे एक बात समझ नहीं आती है कि इस किले में कोई कमरे वगैरह नहीं है क्या? आखिर राजा-रानी रहते कहाँ होंगे?
ReplyDeleteअच्छी ऐतिहासिक जानकारी
ReplyDeleteडॉक्टर साहब आपने हमारी एक इच्छा पुरी की,
ReplyDeleteपु्राना किला के सबंध मे जानकारी दी,
आभार
इस पुराने किले में मैं जब भी गया हूँ, यहाँ एक अजीब सम्मोहन के घेरे में खुद को पाया. ये वही जगह है जहाँ से समूचा दिल्ली का इतिहास खुद ब खुद ब्यान हो जाता है.
ReplyDeleteइसके नीचे दबे हुए पुराने किले पांडवो का प्रवास न जाने कैसी कैसी ऐतिहासिक दास्ताने समेटे हुए है.
जीर्णोद्वार से पहले यहाँ से कुछ चीजे को शोधकार्य के लिए ले जाया गया था. पता नहीं कैसी रिपोर्ट आई उसकी. जो भी हो यहाँ डर भी बहुत लगता है. दिल्ली के नए चौरे सड़कों की चाहरदीवारी के बीच अवस्थित यह पुराना किला एक ऐसा हेरिटेज है जो इतिहास प्रेमियों को सैकड़ो किताबे लिखने लिए आग्रह करता है.
पहली बार 2002 में जब अकेले इस क्षेत्र का भ्रमण किया था, तब ही एक किताब लिखने का ख्याल आया था. आपने सभी चित्र अच्छे लिए हैं.
दराल साहब.
ReplyDeleteनमस्ते
आपने बहुत अच्छी रोचक जानकारी दी है . फतो भी बढ़िया लगे. आभार
त्रुटी सुधार - फतो की जगह कृपया फोटो पढ़े
ReplyDeleteआभार
बहुत सुंदर चित्र , बढिया विवरण भी .. कुल मिलाकर अच्छी पोस्ट !!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया वर्णन!
ReplyDeleteकहना चाहूँगा कि अनादिकाल से 'भारत' ने, नादबिन्दू/ शिव-शक्ति (सती का भौतिक 'अष्टभुजाधारी दुर्गा' रूप) के काशी में केन्द्रित निवासस्थान के कारण, 'विदेशियों' को अध्यात्मिक परंपरा के कारण चुम्बक समान खींचा है...'शेर मंडल' ही 'श्री यन्त्र (मंडल)' का नमूना है - 'प्राचीन हिन्दू' और उसके बाद वैदिक काल के पतन के बाद अपनाये गए 'बौद्धिक' तांत्रिक परंपरा का एक रहस्यमय नमूना...
डॉ साहब फोटोज में आपकी तस्वीर भी भली आयी है।
ReplyDeleteबहुत पहले देखा था काफी टूटा फूटा था
ReplyDeleteअच्छा चित्रात्मक वर्णन
गोदियाल जी , आपकी बात सही है।
ReplyDeleteज़माना बदल गया है। पहले भी ऐसा होता था लेकिन खुले आम नहीं। आजकल यही बदलाव सबसे ज्यादा आया है की लोगों ने शर्माना छोड़ दिया है । लेकिन कंजर्वेटिव परिवारों के लिए उलझन भरी स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
हालंकि दिल्ली जैसे बड़े शहर में सहन शक्ति काफी बढ़ गई लगती है।
अजित जी , पुराना शहर सारा मिट चुका है , वक्त की गर्द में । बस यही अवशेष बचे हैं।
सोचकर अजीब सा तो लगता है ।
उपयोगी जानकारी!
ReplyDeleteधन्य हो गये!
आखिरी फोटो में दिखाए गए पेड़ के बारे में किसी ने नहीं बताया।
ReplyDeleteचलिए हम ही बता देते हैं। यह पेड़ पाम टरी है। नीचे लटकती इसकी शाखाओं को काटने से एक द्रव्य का रिसाव होता है , जिसे ताड़ी कहते हैं। जी हाँ , वही ताड़ी जो शराब की तरह नशे के लिए पी जाती है, कुछ राज्यों में ।
सुंदर,ऐतिहासिक और सजीव पोस्ट,बधाई सर जी.
ReplyDeletemujhe aapki yeh post bahut hi pasand aayi hain.
ReplyDeletepost padhte waqt aisaa lag raha tha, maano hum sach main hi kilaa dekh/ghoom rahe hain.
bahut hi important or historical jaankaari di hain aapne.
dhanyawaad.
(puraane ko bachaane ke liye marammat/naveenikaran ati-aavashyak hain. isliye aisaa karnaa nihaayati hi jaroori hain.
dukh to hota hain, lekin marammat ke abhaaw main jab puraani cheez hi nahi rahegi tabb shaayad hame jayaadaaa dukh hogaa.)
again thanks.
www.chanderksoni.blogspot.com
सर, जितने सुन्दर चित्र हैं उतना ही विवरण भी... ५ साल दिल्ली में रह के भी कभी कहीं घूमने ना जा पाया सिवाय लालकिला, कुतुबमीनार और अक्षर धाम के.. सारे पार्क बाहर से ही देखे हैं चाहे वह नेहरु पार्क हो या मुग़ल गार्डन... लेकिन आपने आज भ्रमण करा ही दिया... बहुत बहुत आभार..
ReplyDeleteये जिस पेड़ की आप बात कर रहे हैं ऐसे ४-५ पेड़ नेशनल इन्स्टीटयूट ऑफ़ इम्म्युनोलोजी (एन.आइ.आइ.), जहाँ मैंने रिसर्च की में भी है लेकिन कभी कोई नाम नहीं बता सका..
जय हिंद..
डा. दराल साहिब ~ मैं हजारों बार पुराना किले के पास से ही गुजरा हूँ - भीतर जाने की कभी न तो इच्छा हुई न मौका ही बना...इस कारण मुझे आपके द्वारा ही 'शेर- मंडल' की उपस्तिथि का पता चला :)
ReplyDeleteऔर यद्यपि आपने केवल छह दिशाओं का चर्चा किया, "६ दिशाओं में बने खुली बालकनी नुमा झरोखों को देखकर...आदि", इन्टरनेट पर मैंने जाना कि यह आठ भुजा वाला है (औक्टागोनल)...और क्यूंकि मुझे अस्सी के दशक में गौहाटी, असम, की भिन्न- भिन्न पहाड़ियों पर स्तिथ कामाख्या मंदिर के साथ-साथ नवग्रह मंदिर भी देखने का संयोग प्राप्त हुआ, जहाँ आठ छोटे शिवलिंग आठ दिशाओं में हैं और एक बड़ा वाला इनके केंद्र में...और उत्तर-पूर्वी प्रदेशों में मुझे कुछेक विचित्र 'आध्यात्मिक' अनुभव भी प्राप्त हुए...जिसने मुझे, शायद मेरी जींस के कारण (उत्तर दिशा में, जहाँ 'तलाकी द्वार' है, पार्वती के प्रदेश/ पहाड़ी शहर शिमला में पैदाइश के कारण?), 'हिला के रख दिया' :) और मैंने ये भी जाना कि प्रगति मैदान के पास 'भैरों रोड (मार्ग)' का नाम भी 'सत्यम शिवम् सुंदरम' वाले शिव के सहस्त्र नामों में आरंभिक काल के नाम पर है :)
एक बात और: ताड़ी केरल, छत्तीस गढ़, आदि कई प्रदेशों में अधिक प्रचलित है...और मेरी ससुराल छत्तीस गढ़ में होने पर मुझे वहां कभी- कभी 'सल्फी' चखने का मौका भी मिला - ताड़ी को धूप में कुछ घंटों तक रखने के पश्चात ही उसमें 'नशा' भर जाता है...और नशीली वस्तुएं शिव, भोलेनाथ/ भूतनाथ शिव और उनके अन्य भूत मित्रों के साथ जुडी हैं अनादिकाल से "हिन्दू मान्यता" के अनुसार :)
जे सी साहब, शुक्रिया जानकारी को विस्तृत करने का। आप ठीक कह रहे हैं , शेर मंडल में आठ ही दिशाएँ होंगी।
ReplyDeleteहाँ, यहाँ प्रगति मैदान के पास एक भैरों मंदिर भी है , जहाँ शराब बांटी जाती है।
भारतीय संस्कृति की यही तो खूबी है की यहाँ हर तरह की मान्यताओं का आदर किया जाता है।
डॉक्टर साहब,
ReplyDeleteआपको पता है आर्किओलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के बीच झगड़ा हो गया है...एएसआई वाले कह रहे हैं कि मेडिकल काउंसिल वालों ने डॉक्टर दराल को किडनैप कर अच्छा नहीं किया है...एक पुरातत्ववेत्ता को मेडिकल साइंस के टंटों में उलझा कर अच्छा नहीं किया है...लेकिन डॉक्टर साहब आप एमसीआई हो या एएसआई, ऐसा ही गजब का काम करते...हां घर जाने से पहले गिलास ज़रूर छोड़ जाते हैं...वरना
वो घऱ में एक टीचर साहब नाम के भी एक शख्स होते हैं...अपना गिलास किसी ओर से शेयर होता देख नाराज़ नहीं हो जाएंगे...
(डॉक्टर साहब कुछ ज़्यादा बिज़ी होने की वजह से कमेंट देने में रेगुलर नहीं हो पा रहा हूं...आप तो मेरी बात समझ ही सकते हैं...)
जय हिंद...
समझते हैं भाई, तभी तो बिना फल की आशा किये कर्म किये जा रहे हैं।
ReplyDeleteऔर हाँ ए एस आई वालों ने नहीं किडनेप किया , हम खुद ही उनके जाल में फंस गए।
डॉक्टर दराल साहिब ~ ज्ञान का विस्तार ऐसे ही होता है: बात से बात निकलती है; जैसे 'शेर मंडल' से (शायर का नाम आम तौर पर पढ़ा भी तो याद नहीं रहता, साठ साल की हद पार वालों में विशेषकर, जो 'एएसआई' के अंतर्गत जैसे आ जाते हैं :) बकौल जगजीत सिंह (के गले), "बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी..." (और नादबिन्दू की तो अनंत तक पहुँच गयी, और मंत्र से तो प्राचीन चिकित्सक यानि डॉक्टर दूर से भी लोगों का इलाज करने में सक्षम थे :)...
ReplyDeleteकविता/ शेर के माध्यम से मानव जीवन के सार की झलक मिलती है, इस लिए लगभग '८९ से उत्तरपूर्व से लौटने के बाद टीवी पर मैं कुछेक कवियों और शायरों के चेहरों से वाकिफ हो गया...एक बार २-एसी से मुंबई से दिल्ली लौटते वक़्त बॉलीवुड के माध्यम से प्रसिद्धि प्राप्त शायर, निदा फाजली, और उनके साथ किसी लेखक को साइड बर्थ पर निकट ही देखा...उनको जगजीत सिंह के बारे में बात करते भी सुना किन्तु पंगा नहीं ले पाया, क्यूंकि उनकी कोई भी रचना मुझे उस वक़्त याद नहीं आ रही थी, में अधिक से अधिक यही कह सकता था कि मैं उनका नाम जानता हूँ! ...कलियुग में, कहते हैं, भगवान् का नाम लेना ही काफी है :)
साक्षात घूम लिया हमने भी आपके साथ पुराने किले को ........... पेड़ का नाम तो पता नही .......... पर आपके चित्र बहुत कमाल के हैं .......... सुलझे हुवे गाइड की तरह आपने पूरा नक्शा खैंच दिया .......... बहुत बहुत आभार डाक्टर साहब .......
ReplyDeleteअभी अभी आपकी टिप्पणी से पता च्ला वो पेड़ पाम ट्री है ........ धन्यवाद ..........
ReplyDeleteइस ऐतिहासिक धरोहर के दर्शन करवाने के लिये धन्यवाद ।
ReplyDeleteहमेशा की तरह एक अच्छी पोस्ट. आजकल घूमना कुछ ज्यादा ही हो रहा है.पर अच्छा है हमारी मेहनत कम हो जाती है घर बैठे सब जगह घूमना हो जाता है. पेड़ का नाम मुझे तो पाम ही पाता था पर आगे आपने बता दिया आभार
ReplyDeleteआदरणीय दराल जी..... ऐतिहासिक जानकारी से परिपूर्ण यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी.....
ReplyDeleteनोट: लखनऊ से बाहर होने की वजह से .... काफी दिनों तक नहीं आ पाया ....माफ़ी चाहता हूँ....
डराल साहिब आपने तो इतने विस्तार से ऐतिहासिक जानकारी दे दी अब आपको मेहमानवाजी के लिये तैयार रहना पडेगा तस्वीरें देख कर इस जगह को देखने की उतसुकता बढ गयी। धन्यवाद
ReplyDeleteडा. दराल साहिब ~ "...कितना पुराना - कितना नया..." से याद आया कि सन '८३ (?) में, मैं जब सीढियां चढ़ 'नबग्रह मंदिर' पहुंचा तो पुजारी ने मुझे बताया कि वो मंदिर स्वयं ब्रह्मा ने बनाया था! मेरे चेहरे के भाव पढ़ उसने सफाई दी कि यद्यपि मंदिर बार-बार बना होगा किन्तु अनादि काल से उसकि बनावट में कोई परिवर्तन नहीं किया गया...और, उन्होंने वहाँ ज्योतिषियों का प्राचीन शहर, प्रागज्योतिषपुर, बसाया जहां इस शास्त्र को विद्यार्थियों को उन्होंने स्वयं सिखाया...
ReplyDeleteहमेशा की तरह बहुत खुब........ महाकुम्भ हरिद्वार के लिए विजट करे
ReplyDeleteGanga Ke Kareeb
http://sunitakhatri.blogspot.com
Aapne to ek guide kee tarah ghar baithe hamara,sachitr bhraman kara diya!
ReplyDeleteइस जानकारी भरी पोस्ट को शायद मैंने पहले भी पढ़ा था लेकिन ना जाने क्यों बिना टिपियाए ही वापिस चला गया था...:-(
ReplyDeleteइस पोस्ट को फिर से पढवाने के लिए आभार...
आज ना जाने कौन सी बात है जो मुझे एक सिरे से आपकी सभी पोस्टों को पढ़ने और उन पर टिपियाने के लिए प्रेरित कर रही है :-)
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