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Saturday, February 13, 2010

वो वैलेंटाइन डे कब आएगा---? एक सोच ---

आज वैलेंटाइन डे पर दो रचनाएँ --पसंद आपकी।

गत वर्ष इसी दिन :

अपनी काम वाली बाई ,
जब दस बजे तक न आई।
तो मैडम को गुस्सा आया,
उसका मोबाईल मिलाया।
वो बोली ,
बीबी जी , हम तो आज
वैलंटाइन डे मना रहे हैं।
हमारे पतिदेव हमें
एक रोमांटिक फ़िल्म दिखा रहे हैं।
स्ल्म्दौग करोडपति ---

पत्नि बोली, तुम्हे उसमे
रोमांस नजर आता है?
वो बोली नही,
चांस नजर आता है।
करोड़पति बनने का,
मालूम है नही बनने का,
पर ख्वाब देखने में क्या जाता है।
और इस तरह कामवाली तो
सिनेमा घर में बैठी ,
वैलंटाइन डे मनाती रही ,
और घरवाली बेचारी घर में
झाडू पोछा लगाती रही।

जय हो।


इस वर्ष :



वो वैलेंटाइन डे कब आएगा---?

ये कैसी भेड चाल है, ये कैसा भ्रम जाल?
क्यों अपनी चाल को भूल कर , हंस चला कौव्वे की चाल।
अपना फ़र्ज़ , अपनी संस्कृति को क्यों छोड़े जाते हो,
वैलेंटाइन तो याद है, पर खून के रिश्तों को तोड़े जाते हो!

क्यों भूल गए न ,
भूल गए न उस जननी को,
सर्व कष्ट हरनी को,
जो हर नाजों नखरे उठाती है,
राजा कह कर बुलाती है ,
फ़िर बेटा चाहे जैसा हो।
दो प्यार के मीठे बोल , 
और दो पल अपनों का साथ ,
ग़र उसे भी मिले तो कैसा हो!

क्यों भूल गए न ,
भूल गए न उसको जो जन्म दाता है ,
पूरे परिवार का बोझ उठाता है ! 
ख़ुद एक कोट में जीवन काटे ,
पर आपको ब्रांडेड वस्त्र दिलवाता है।
ख़ुद झेले डी टी सी के झटके ,
पर आपको नैनो के सपने दिखलाता है।
फ़िर अपनी नई वैलेंटाइन की अकड़ में ,
क्यों भूल गए उसको ,
जीवन के पतझड़ में?

और भूल गए न ,
भूल गए न ,
कलाई पर बहन की राखी का नर्म अहसास ,
भूल गए भाई भाई के खून के रिश्ते की मिठास,
और भूल गए धरती माँ, वो सूर्य , वो आकाश ,
और मैला कर दिया न गंगा मैया को।

मैली हुई गंगा मैया और मैले पवन के झोंके,
फ़िर भी आप खुश हैं ,
अपनी नई वैलेंटाइन के साथ होके !

अरे वैलेंटाइन तो हैं
मातपिता और भाई बहन का प्यार ,
और वैलेंटाइन हैं ये पाँच तत्व ,
जो हैं जीवन के मूल आधार ।
पर वो वैलेंटाइन डे कब आएगा ,
जब मानव को इन सबसे होगा प्यार?

वो वैलेंटाइन डे कब आएगा---?

29 comments:

  1. पहले वाली कविता बहुत ज़ोरदार रही.... बेचारी...कामवाली के चक्कर में.... अपना घर बेतरतीब हो गया... और वो वैलेंटाइन डे ही मनाते रहे.... बहुत मजेदार कविता....

    दूसरी वाली कविता ने तो मन के तार हिला दिए.... एक एक पंक्ति दिल में उतर गयीं.....


    आज वैलेंटाइन का दिन तो सीटिया बाजों का दिन होता है.... सारे लाखैरे, आवारे, और लम्पटों का दिन है .....

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  2. डाक्साब दिल जीत लिया आपने।सच मे पता नही कब वो दिन आयेगा?

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  3. अरे वैलेंटाइन तो हैं
    मात- पिता और भाई बहन का प्यार ,
    और वैलेंटाइन हैं ये पाँच तत्व ,
    जो हैं जीवन के मूल आधार ।
    पर वो वैलेंटाइन डे कब आएगा ,
    जब मानव को होगा इन सबसे प्यार?

    वो वैलेंटाइन डे कब आएगा---?


    बहुत सुंदर लिखा आपने .. ये दिन अवश्‍य आएगा !!

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  4. दो अलग अलग दृश्य .... एक हास्य व्यंग से भरपूर दूस्र कुछ गहरी संवेदनाएँ लिए ....
    पर दोनो ही रंग बहुत अच्छे लगे डा दराल ..... मज़ा आ गया ...... सच में प्यार किसी दूसरे को भूलने का नाक नही है बल्कि अपनो की यादों को हमेशा दिल में सॅंजो कर रखने का नाम है ...

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  5. सबसे पहले तो हास्य-व्यंग्य विधा पर कलम चलने के लिए आभार.
    पढ़कर मजा आया.'स्ल्म्दौग करोडपति' --- को अलग रंग से दिखाने से अलग कविता का एहसास होता है इसलिए यह उसी रंग में रहता तो ठीक था.
    अच्छे विचार.सुंदर पोस्ट.

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  6. Daral sahab dono hi kavitaayein kamaal ki lagin..
    bahut khoob..

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  7. अब तो घड़ी का कांटा उल्टा घूमे तो ही शायद वह दिन आए..

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  8. अरे वैलेंटाइन तो हैं
    मात- पिता और भाई बहन का प्यार ,
    और वैलेंटाइन हैं ये पाँच तत्व ,
    जो हैं जीवन के मूल आधार ।
    पर वो वैलेंटाइन डे कब आएगा ,
    जब मानव को होगा इन सबसे प्यार?

    वो वैलेंटाइन डे कब आएगा---?
    Bahut sundar prastuti..
    Bahut badhai..

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  9. बस एक शब्द -जोरदार

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  10. excellent ji excellent.
    bahut badhiyaa likhaa hain aapne.
    dono poems bahut hi shaandaar rahi.
    waise, agar bhaj-bhaj mandli or bhagwaa-dhaari naa hote to v'day kaa mazaa do-gunaa ho jaataa.
    thanks.
    www.chanderksoni.blogspot.com

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  11. पर वो वैलेंटाइन डे कब आएगा ,
    जब मानव को होगा इन सबसे प्यार?
    बेहतरीन सवाल ,उम्दा पोस्ट ,जय हो....

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  12. तीनो रंग बहुत अच्छे लगे पहला व्यंग तो लाजवाब है बधाइ

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  13. बहुत सुन्दर

    हमारी तो फोन नही लगाती बाई को
    हमी से करवाती है सारे काम

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  14. दोनों ही कविताएँ बहुत सुन्दर!

    "और इस तरह कामवाली तो
    सिनेमा घर में बैठी ,
    वैलंटाइन डे मनाती रही ,
    और घरवाली बेचारी घर में
    झाडू पोछा लगाती रही।"

    भाई कभी हमारे यहाँ ऐसा हो जाये तो झाड़ू पोछा तो हमें ही लगाना पड़ता है।

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  15. डाक्टर साहब, बहुत अच्छी कवितायेँ और वो भी अलग अलग भाव में. आज रिश्तों की डोर इतनी ढ़ीली होती जा रही है उसे जितना ही खींचो अपने ही हाथ लहुलुहा होते है. ये तो ब्लॉग पर लिख कर हम अपने दिल की बात कह देते हैं वर्ना कहाँ जाओ, किससे कहो, कौन सुनेगा. चलो इसी बहाने कुछ तनाव कम रहेगा तो दिल दुरुस्त रहेगा

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  16. अंतिम रचना युवा पीढ़ी का मार्गदर्शन कर रही है

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  17. डा. आज के दिन के लिए दो कविताएं और दोनों ही अलग अलग मूड की । दूसरी कविता नहीं शायद बहुत बडा सच है
    अजय कुमार झा

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  18. अरे सर डा. के बाद साहब लगाना तो छूट ही गया चलिए अब दागदर बाबू लिख देता हूं
    अजय कुमार झा

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  19. वर्मा जी और अवधिया जी , हाल तो सब का यही होता है । बस कुछ लोग आप की तरह स्वीकारने में शरमाते हैं। हा हा हा !
    झा बाबू, कहीं आप दागदार बाबू तो नहीं लिखना चाह रहे थे ना। : )

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  20. वेलेंटाइन-डे की शुभकामनायें !
    बहुत बढ़िया लिखा है आपने ! इस उम्दा पोस्ट के लिए बधाई!

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  21. जब मानव को होगा इन सबसे प्यार?

    वो वैलेंटाइन डे कब आएगा---?

    बहुत सुंदर लिखा आपने

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  22. 'आधुनिक जीवन के सत्य' का सही, बढ़िया वर्णन डा. दराल साहिब!
    प्राचीन ज्ञानी कह गए कि कलियुग की अच्छाई केवल यह है कि वो सत्य युग को लौटा कर लाता है अपने बाद...और उम्मीद पर ही दुनिया कायम है :)

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  23. मार्मिक विचार व्यक्त किये हैं आपने, यह रचना मेरे विचार से ब्लाग जगत की अमर रचनाओं में से एक होनी चाहिए ! प्यार के स्वरूपों को याद दिला, आपने हिला दिया ! आप जैसे लोग अपने परिवार और आसपास के माहौल के लिए एक खुशबू हैं ! निस्संदेह आज की दुनियां में आप जैसे लोग दुर्लभ हैं !

    आपके संवेदनशील ह्रदय और आपके माता पिता को प्रणाम ,

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  24. डॉक्टर साहब ,,,
    रचनाएं दोनों बहुत अच्छी और पठनीय हैं
    जहां पहली रचना में हास्य-रस का समावेश है
    वहीं दूसरी रचना में एक आह्वान समाहित है
    इस संजीदा नज़्म में
    हमारी बरसों पुरानी नेक संस्कृति , सुसभ्यता
    और हमारी अमीर परम्परा के दर्शन होते हैं
    आज इसी तरह के चिंतन की बड़ी आवश्यकता है
    आपकी पाकीज़ा सोच को प्रणाम .

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  25. मुफलिस जी , सही फ़रमाया । आज हम पाश्चात्य सभ्यता की ओर अंधाधुंध दोड़े जा रहे हैं। और अपने संस्कारों को भूले जा रहे हैं। अपने बुजुर्गो का सम्मान करना , उनसे शिक्षा ग्रहण करना और ज़रुरत में उनकी देखभाल करना हमारा परम कर्तव्य है, जिसे हम भुलाते जा रहे हैं।
    आज इसी सोच को बरक़रार रखना ज़रूरी है। आभार।

    सतीश जी , आपकी टिपण्णी ने हमारा दिल खिला दिया ।
    आपने सही ग्रहण किया है, मूल भाव को। साधुवाद।

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  26. आप अपनी लेखनी से चारों उजाला करते रहे ब्लागिग की सार्थकता इसी में है आप इसी तरह कहते रहे हर बात आपका अन्दाज सबसे निराला है।

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  27. दोनों कविताएँ बहुत बढ़िया बन पड़ी हैं

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