आज खुशदीप सहगल की पोस्ट पढ़कर मुझसे रहा नहीं गया और आज पोस्ट न लिखने का दिन होते हुए भी ये पोस्ट डाल रहा हूँ।
हमारा देश एक धार्मिक देश है जहाँ विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोग मिलकर रहते हैं।जहाँ भी देखो मंदिर, मस्जिद , गुरद्वारे और गिरिजा घर दिखाई दते हैं। यहाँ तक तो सब ठीक है।
लेकिन यह भी सच है की हम चमत्कारों में बहुत विश्वास रखते हैं। यहाँ तक की बीमारी में भी यदि ठीक नहीं हो रहे तो झाड फूंस, टूणा टोटका , तंत्र मन्त्र में फंसकर अपना नुक्सान करा लेते हैं।
यहाँ तो अभी भी दिल्ली जैसे बड़े शहर में भी ऐसे चमत्कारी डॉक्टर मिल जायेंगे जो मात्र ५१ रूपये में आपकी जिंदगी के सारे कष्ट दूर कर देंगे।
अब आइये आपको दिखाते हैं ऐसे उदाहरण जिससे आपको यकीन हो जायेगा की चमत्कार नाम की कोई चीज़ नहीं होती।
१) करीब १५ साल पुरानी बात है --दिल्ली के पुरानी सब्जी मंडी क्षेत्र में एक मानसिक तौर पर विछिप्त युवक रहता था। वो अक्सर घर छोड़कर निकल जाता और कई दिनों बाद लौट आता। एक बार ऐसा गया की वापस ही नहीं आया। एक दिन आई टी ओ के पास एक युवक की लाश मिली पुलिस को, जिसे उसने उसी युवक के रूप में पहचाना। जब घर वालों को बुलाया तो उन्होंने भी शिनाख्त कर दी। अंतिम संस्कार हो गया।
इतेफाक देखिये , अभी लौटे ही थे की ज़नाब घूमते हुए घर पहुँच गए । अब क्या था , सारे मोहल्ले में खबर फ़ैल गई की चमत्कार हो गया, बंदा जिन्दा हो गया।
खबर फैलते ही सारे मोहल्ले की औरतें पूजा की थाली लेकर घर के आगे लाइन लगाकर खड़ी हो गई, भगवान के अवतार की आरती उतारने के लिए। आखिर पुलिस को बुलाना पड़ा , कंट्रोल करने के लिए।
बाद में पता चला की जिस आदमी का दाह संस्कार कर दिया गया था , वो कोई और था।
२) कुछ साल पहले खबर फ़ैल गई की मुंबई में समुद्र का खारा पानी मीठा हो गया। ये खबर मिलते ही मुंबई की सारी जनता जुहू बीच पर पहुँच गई , पूजा करने के लिए ताकि जितना पुण्य बटोरा जा सके बटोर लिया जाये।
बाद में पता चला की भारी बारिस का पानी समुद्र में मिलने से किनारे का पानी नमकीन की बजाय मीठा लगने लगा था।
३)भारी बारिस के बाद कोल्कता के कई भवनों की दीवारों पर लोगों को साईं बाबा की मूर्ती दिखाई देने लगी।सफेदी वाली दीवारों पर बारिस के बाद किसी की भी शक्ल बन सकती है।
४) दिल्ली में दूध पीने वाले गणेश जी के बारे में तो आज सारी दुनिया जानती है। लाखों लीटर दूध नालियों में बहाकर जाने हमने क्या हासिल कर लिया था हमने ।
५) बड़ोदरा में एक फैस्टिवल में हजारों किलो देसी घी सड़क पर बहाया गया। यह मैंने टीवी पर देखा था।
अब भला इतना महंगा खाने का सामान सड़क पर बहाने से क्या पुण्य मिल सकता है , अपनी तो सोच से बाहर है।
यहाँ बताये गए सभी उदाहरण अख़बारों और टीवी पर दिखाए गए थे।
अब आप ही बताइये की ये विश्वास है या अंध विश्वास !
५) बड़ोदरा में एक फैस्टिवल में हजारों किलो देसी घी सड़क पर बहाया गया। यह मैंने टीवी पर देखा था।
अब भला इतना महंगा खाने का सामान सड़क पर बहाने से क्या पुण्य मिल सकता है , अपनी तो सोच से बाहर है।
यहाँ बताये गए सभी उदाहरण अख़बारों और टीवी पर दिखाए गए थे।
अब आप ही बताइये की ये विश्वास है या अंध विश्वास !
रूढ़ियाँ और अन्धविश्वास
ReplyDeleteलोग अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए फैलाते हैं!
क्यों न पहले हम संकल्प लें कि किसी भी बात पर हम आँख मूंद कर विश्वास नहीं करेंगे. पहले ज्ञान की तराजू पर तौलेंगे फिर यकीं करेंगे.
ReplyDeleteबहुत जरूरी विषय पर आपने ध्यान दिलाया
ReplyDeleteसमाज में अंधविश्वास तो है ही.... पर हम भारतीय हर बात में खुशियाँ खोजते हैं.... व जीवन के मूल्यों को सकारात्मक रूप में देखते हैं....तभी अपने आस्था के मूल्यों को हर चीज़ में देख लेते हैं.... शायद इसीलिए हम चमत्कार में यकीन रखते हैं.... पर अगर यह ज्यादा हो जाये...तो समाज को अलग दिशा में लेके चला जाता है.... इसलिए लोगों का जागरूक होना ज़रूरी है.... और जागरूकता शिक्षा से ही आती है.... शिक्षा से ही अंधविश्वास दूर होगा.... और लोग जीवन के मूल्यों को शिक्षा से ही जोड़ के देखेंगे... फिर...
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी आपकी पोस्ट....
डॉ टी एस दराल जी बहुत सुंदर लिखा आप ने, मै तो आँख मूंद कर क्या आंखे खोल कर भी इस सब पर विशवास नही करुंगा, खुद को भगवान सावित करने के लिये भगवान को इन चोंचलो की क्या जरुरत है,आप का धन्यवाद, इस अति सुंदर लेख के लिये
ReplyDeleteइसे मुर्खता की ही श्रेणी मे रखा जा सकता है।
ReplyDeleteमुरख को समझाय के ज्ञान गांठ को जाए
कोयला होय ना उजरो नौ मन साबुन लगाए
Daral sahab,
ReplyDeletebahut hi accha vishay chuna aapne..ye jabardasti ke chamatkaar karne waalon ki baat bilkul laga hai...lekin kal jo Khushdeep ji ne likha tha agar wo trick photography nahi hai to use ek vishesh ghatna to mana hi jaa sakta hai...haan kuch log ise chamatkaar bhi kah sakte hain...mere jeewan mein kuch adbhut ghatnaayein ghatit hui hai isliye in baaton se inkaar bhai nahi kar paati hun...lekin is tarah parcha chhap kar zabardasti chamatkaar dikhaane waalon par kabhi vishwaas nahi kiya hai na karungi...haan ise haath ki safaaii hi maanti hun...
haan nahi to...!!!
मुझे पुलिस व IMA , दोनों से शिकायत है कि दोनों इस तरफ कान भी नहीं देते जबकि यह सब रोकना इन्हीं की ज़िम्मेदारी है
ReplyDeleteअच्छा विषय उठाया. लोगों के अंध विश्वास का क्या कहा जाये.
ReplyDeleteअंधविश्वास!
ReplyDelete--
कह रहीं बालियाँ गेहूँ की - "वसंत फिर आता है - मेरे लिए,
नवसुर में कोयल गाता है - मीठा-मीठा-मीठा! "
--
संपादक : सरस पायस
महफूज़ भाई , सही कहा आपने की शिक्षित होना बहुत ज़रूरी है।
ReplyDeleteअंधविश्वाशों के शिकार मुख्यत : अशिक्षित लोग ज्यादा होते हैं। लेकिन कभी कभी शिक्षित लोग भी इस भावना में बह जाते हैं।
अदा जी ,यही तो प्रोब्लम है की जहाँ कुछ ऐसा घटित हुआ जो हमारी अपेक्षाओं से परे हो, बस हम विश्वास कर लेते हैं।
काजल कुमार जी , पुलिस बेचारी क्या क्या करे !
हाँ, आई ऍम ए ने ज़रूर अभियान छेड़ा हुआ है , क्वेकरी के विरुद्ध। लेकिन आप तो जानते ही है ना की हम डेमोक्रेसी के भी शिकार हैं।
आज दिल्ली में जितने मान्यता प्राप्त डॉक्टर हैं, उनसे ज्यादा झोला छाप डॉक्टर हैं।
.... अब क्या कहें ये "विश्वास है या अंध विश्वास !" ये तो वही बता सकेंगे जो इन घटनाऒं से रूबरू हुये थे, ...एक बात जरूर कहूंगा टी.वी. मे जो दिखाया जाता है और अखबार मे जो छपता है उस पर भी "आंख खोलकर" विश्वास नहीं किया जा सकता!!!!
ReplyDeleteदराल सर, आपने मेरी पोस्ट की मूल भावना को आगे बढ़ाया, अच्छा लगा...
ReplyDeleteपूरा भारत गणेश जी को दूध पिला रहा था...उस वक्त पत्रकारिता के पुरोधा दिवंगत एस पी सिंह जी ने एक मोची को बुला कर सरफेस टेंशन और कैपिलिएरी एक्शन के जरिए दूध के ऊपर चढ़ने के राज़ में दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया था...
और रही बात श्रद्धा और विश्वास की तो एक पत्थर को क्यों इनसान भगवान मानने लगता है...इसलिए नहीं कि वो वाकई दैवीय शक्ति से चमत्कृत है...बल्कि वो अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए ऐसा करता है...अगर कोई पाप किया है तो वो समझता है कि भगवान को फूल और प्रसाद चढ़ाकर अपने लिए साधुवाद खरीद लेगा...अगर वाकई अच्छा इनसान है तो वो भी स्वार्थवश ऐसा करता है...उसका स्वार्थ सुखद प्रकृति वाला होते हुए भी ये चाहता है कि उसे भगवान से वो शक्ति मिलती रहे जिससे कि वो बुरे कामों से बचा रहे...
जय हिंद...
आज के युग में तो सही गलत में पहचान करना भी मुश्किल हो गया है !!
ReplyDeleteनमस्ते दराल जी,
ReplyDeleteबहुत अच्छा मुद्दा उठाया हैं आपने. निश्चित रूप से लोगो में आपका ब्लॉग पढ़कर जागरूकता आएगी.
इसका तो मेरी नज़र में एक ही हल हैं, और वो हैं =
अंधविश्वास का अंधविश्वास यानी अंधविश्वास पर विश्वास करना छोड़ दीजिये.
क्यों हैं ना सस्ता, सरल, और टिकाऊ हल-समाधान??
नमस्ते दराल जी,
ReplyDeleteबहुत अच्छा मुद्दा उठाया हैं आपने. निश्चित रूप से लोगो में आपका ब्लॉग पढ़कर जागरूकता आएगी.
इसका तो मेरी नज़र में एक ही हल हैं, और वो हैं =
अंधविश्वास का अंधविश्वास यानी अंधविश्वास पर विश्वास करना छोड़ दीजिये.
क्यों हैं ना सस्ता, सरल, और टिकाऊ हल-समाधान??
thanks.
www.chanderksoni.blogspot.com
जिस पोस्ट का आप जिक्र कर रहे हैं यदि उसका लिंक भी दिया होता तो सुविधा होती।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
आज भी हमारे समाज को दकियानूसी खयालात और अंधविश्वास ने इस कदर घेरा हुआ है देख कर अचरझ होता है ....!! वेसे तो कुछ भी कहना आज कल अपराध हो गया है कोई टिपण्णी को लेकर भी बवाल खड़ा हो जाता है ! लेकिन निजीमत है...... जानती हो बहुत लोगो के दिलो में यह बात आती है किन्तु धर्मान्धियो के विरोध का सामना करना बड़ा मुश्किल है आस्था के नाम पर हम जितना दूध मंदिरों में बहा आते है, अगर गरीब भूखे बच्चो को मिल जाता तो क्या वो एक नेक काम नहीं होता ?? क्या वो किसी पूजा किसी इबादत से कम है ??
ReplyDeleteसादर
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
घुघूती बासूती जी,
ReplyDeleteलीजिए लिंक मैं खुद ही दे देता हूं...
http://deshnama.blogspot.com/2010/02/blog-post_19.html
जय हिंद...
लोगों को सचाई से एक बार फिर रूबरू कराने के लिए शुक्रिया सर...
ReplyDelete@खुशदीप भैया.. एस. पी. सिंह को तो नहीं जानता पर ठीक इसी तरह.. जब सारे देश में गणेश जी को दूध पिला रहे थे.. मेरे बाबा ने मोहल्ले भर को इकठ्ठा कर के surface tention का नियम बता कर एक चट्टान, चटनी पीसने वाले सिल के पत्थर और पेन को भी दूध पिला के दिखाया था.. तब कम से कम कुछ लोगों ने तो दूध नहीं बहाया था..
डा. दराल साहिब ~ मैंने अपनी पत्नी के माध्यम से भी ऐसे अनुभव किये...खुशवंत सिंह ने भी एक लेख में दर्शाया था कि कैसे आज आवश्यकता है एक चिकित्सा पद्दति की जिसके द्वारा १००% इलाज मिले...(जो, अफ़सोस, सबको मालूम है असंभव सा लगता है...:(
ReplyDeleteआदमी एलॉपथी में इलाज नहीं पा होमीओपेथी, आयुर्वेदिक आदि इलाज कराता है...ऐसे ही उनका एक पुराना मित्र कई वर्ष बाद उनके घर आया तो उसने बताया कैसे उसने लिखना छोड़ दिया था क्यूंकि आर्थरातिस के कारण उसकी उंगलियाँ मुड गयी थीं...वो उसको अपने पड़ोस में ही एक नैचुरोपेथ के पास ले गए - उसने एक सप्ताह उसे केवल संतरे का रस ही दिया और वो ठीक हो गया और उन्हें बहुत ख़ुशी हुई कि उन्होंने अपने दोस्त का भला किया.
किन्तु एक माह के अंदर ही उन्हें एक और दोस्त वैसा ही मिल गया और उसे भी वो शर्तिया इलाज की गारंटी दे वहीं ले गए...लेकिन इसे भाग्य कह लें कि कुछ और: उनको एक माह संतरे के रस पर रखने पर भी उंगलियाँ टेढ़ी की टेढ़ी रहीं :(
खुशदीप भाई, आपसे पूर्णत : सहमत हूँ।
ReplyDeleteसच मानिये मैंने खुद भी यही प्रयोग कर अपने घर वालों को समझाया था , इसलिए कम से कम हमने तो एक बूँद भी दूध खराब नहीं किया।
सोनी जी , भाई ये इतना आसान नहीं है। यहाँ लोगों की धार्मिक आस्था जुडी रहती है। और आप तो जानते है न की धर्म के नाम पर सदियों से क्या क्या होता आया है। इसलिए जागरूकता पैदा करके ही समय के साथ इन धारणाओं को बदला जा सकता है।
रानी जी , आपने बिलकुल सही फ़रमाया।
जे सी साहब , पैथी कोई बुरी नहीं , लेकिन जहाँ कोई पैथी ही न हो , जैसा आपने इस फोटो में देखा , उन लोगों के पास जाना इलाज़ के लिए , सर्वथा अनुचित है।
दीपक बहुत सही किया । आधुनिक युग में बिना किसी प्रमाण के कोई विश्वास नहीं करना चाहिए।
अंधविश्वासों का अच्छा संकलन किया है आपने -आभार
ReplyDeleteइस पृष्ठभूमि में, और यह ध्यान में रख कि जो भी इलाज आज उपलब्ध है अत्यधिक महंगा हो गया है - 'आम आदमी' की पहुँच के बाहर - अब कोई उसे ५१/= रुपये में ठीक करने का निमंत्रण देगा तो क्यूँ न कोई भी 'दुखी व्यक्ति' झांसे में आ सकता है? और ऐसे में ही ध्यान जा सकता है कि येसु जैसा कोई 'पहुंचा हुआ' हाथ से छू कर के ही ठीक करने में सक्षम हो सकता था: तो आज क्यूँ नहीं, दराल साहिब?
ReplyDeleteइसे प्राचीन ज्ञानियों ने काल का प्रभाव कहा...और सोनिया गाँधी भी 'महाकाल' के मंदिर में गयीं: और उनकी पार्टी जीत गयी!? चमत्कार? या कृष्णलीला का 'घोर कलियुगी अंश': जब खाद्य पदार्थ आदि के दाम आसमान छू रहे हैं और शेष अन्य विरोधी पार्टी की हालत और भी खराब है...ऐसे में 'आम आदमी', जो चारों ओर से अपने को असहाय महसूस करता हो, उसे तो चमत्कार की ही आशा रह जाएगी :) तुलसीदास भी प्रभु राम के माध्यम से कह गए, "भय बिन होऊ न प्रीत."
सही कहा आपने और ऐसे अन्धविश्वासो को ख़त्म करने में ब्लॉग जगत एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है !
ReplyDeleteबिल्कुल सही बात कही महफूज की ने आज कल ऐसे ढोंगी लोगों का शिकार ज़्यादातर अशिक्षित लोग ही हो रहें है..फिर भी आधुनिक भारत का एक रूप सही नही है...ऐसे लोगों से जनसामान्य को बचना होगा...बहुत ही सार्थक चर्चा डॉ. साहब..बहुत बहुत धन्यवाद..
ReplyDeleteआज ही पता चला है की यू के ने उड़न तश्तरी ( यू अफ ओ ) से सम्बंधित एक रिपोर्ट पेश की है , पब्लिक के सामने। उस में अनेकों घटनाओं का जिक्र किया गया है । लेकिन किसी भी घटना का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिल सका है जो साबित कर सके की यू अफ ओ , दूसरी दुनिया से आते हैं।
ReplyDeleteयानि जब तक प्रमाणित नहीं हो जाता तब तक हरेक ऐसी घटना जो अचंभित कर दे , एक चमत्कार ही नज़र आती है।
डा दराल साहिब ~ आपने सही कहा, "...जब तक प्रमाणित नहीं हो जाता तब तक हरेक ऐसी घटना जो अचंभित कर दे , एक चमत्कार ही नज़र आती है..."
ReplyDeleteकुछ घटनाओं का प्रमाण मिल पाना लगभग असंभव है: जैसे सन १९८१, ८ दिसम्बर के दिन गौहाटी में मेरी दस वर्षीया लड़की ने मुझसे आ कर पूछा कि क्या मेरी इम्फाल की फ्लाईट कैंसल हो गयी थी? अभी मैं एअरपोर्ट के लिए निकला भी नहीं था! वहां पहुँचने पर पता चला कि हवाई जहाज तकनिकी खराबी के कारण दिल्ली से उड़ान सही समय पर नहीं भर पाया था, यानि १० बजे जब मेरी लड़की ने मुझसे पूछा था...जब वह देर से पहुंचा भी तो पाईलट ने कहा वो शाम को संभावित धुंध होने के कारण गौहाटी से सीधा दिल्ली लौट रहा है, इम्फाल नहीं जायेगा!
और यूँ उसकी भविष्यवाणी सही हो गयी, जबकि उसने कोई विशेष प्रशिक्षण प्राप्त नहीं किया था मंत्र-तंत्र आदि में! अपनी माँ को भी रसोई में कहा कि आपने पापा को समय से ब्रेक्फास्ट नहीं खिलाया, देख लेना उनकी फ्लाईट कैंसल हो जाएगी!
में अगले दिन जा तो पाया, किन्तु सोचता रह गया कि मेरे उस दिन समय पर नहीं खाने से क्या सम्बन्ध था? यद्यपि मुझे याद आ गया था कि उसी दिन ठीक ३ वर्ष पहले मेरी माँ का स्वर्गवास दिल्ली में ही हुआ था...और तब में भूटान में था,,,जिस कारण मैं जब दिल्ली पहुंचा तो सीधे हरिद्वार चला गया था अपने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ...और मेरे बड़े भाई हिन्दू मान्यतानुसार वार्षिक श्राद्ध आदि का कार्य देख रहे थे...जिस कारण मैंने उस विषय पर सोचा ही नहीं था...
उस लड़की ने बाद में एन आई डी, अहमदाबाद, से कोमुनीकेशन डिज़ाइन का कोर्स किया... और विभिन्न कार्यालयों में प्रिंटिंग मीडिया से सम्बंधित रही है...
ये तो पूरी तरह से अंधविश्वास वाली बात है जिसे ख़त्म कर देने में ही भलाई है! मैं तो इन सब बातों को बिल्कुल नहीं मानती! बहुत ही बढ़िया पोस्ट!
ReplyDeleteदाराल सर जन जागरण जारी रखिये. अन्धविश्वाश बड़ा बाधक है अपने देश में.
ReplyDeleteघनघोर अन्धविश्वास ,मुहिम जारी रखें,संकल्प के साथ.
ReplyDeleteयह है तो विश्वास ही
ReplyDeleteपरन्तु एक नई वैरायटी है।
डा. साहब जानते हैं सबसे कमाल की बात तो ये है कि ऐसे अंधविश्वास न सिर्फ़ अपने देश में बल्कि ..पश्चिमी देशों में भी खूब प्रचलित हैं ..हां मगर ये देसी घी , टनों टन दूध आदि जैसी खाद्य सामग्री को खराब करने वाली बेवकूफ़ी वे नहीं करते , और इसका एक ही इलाज़ है ,...सबको शिक्षित किया जाए ...
ReplyDeleteअजय कुमार झा
जी हाँ, अजय भाई , ये दूसरे देशों में भी होता है।
ReplyDeleteजैसे टोमाटो फैस्टिवल ---शायद ब्राज़ील या स्पेन में होता है। लेकिन वहां पैदावार ज्यादा होती है और खाने वाले कम।
लेकिन यहाँ तो खाने को ही नहीं मिलता फिर बर्बाद करने का क्या मतलब।
मनोज जी और सुलभ , जंग जारी रहेगी। अभी तो और बाकी है।
अपने अनुभव से किसी बात को जानना ही हरेक को सही लगता है..
ReplyDeleteडा.साहब, अंधविश्वास विश्वास से ज्यादा प्रभावी सिद्ध होता है। जैसी घटनाओं का जिक्र अदा जी ने किया है, वे अपनी जगह बिल्कुल सही होंगी क्योंकि ये उनके व्यक्तिगत अनुभव हैं। ऐसे अनुभव मेरे समेत हम में से कईयों के होंगे। लेकिन,जो प्रचार-प्रसार के द्वारा अपने को चमत्कारी सिद्ध कर रहे हैं, वे सभी मजमेबाज और मार्केटिंग परसोनल हैं। जे.सी.साहब जैसे उदाहरण दे रहे हैं तो कौन सी पार्टी के राजनेता ये हथकंडे नहीं अपना रहे हैं? सोनियाजी की पार्टी क्या महज इसीलिये जीत गई कि सोनिया जी ’महाकाल’ के दर्शन कर आईं? और क्या आस्था के स्थानों पर दूसरी पार्टियों के नेतागण नहीं गये, इसीलिये वे पार्टियां चुनाव हार गईं? भगवान को न मानने वाले बहुत से कम्युनिस्ट भी धार्मिक स्थानों पर जाते हैं और कर्मकांड निभाते हैं। हम लोगों को आदत सी हो गई है कि या तो किसी बात को आंख बंदकर मान लेते हैं या नकार देते हैं। तर्क या सार्थक बहस की हमें आदत ही नहीं है।
ReplyDeleteआपकी यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी।
हजारों वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज "गीता" में 'काले अक्षरों' में लिख गए कि हर गलती का कारण अज्ञान होता है...और यह भी हर कोई जानता है कि एक जीवन काफी नहीं है सम्पूर्ण ज्ञान हासिल करने में...किसी ज्ञानी ने यह भी सत्य कहा कि " पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ/ पंडित भया न कोई..."
ReplyDeleteसरल उदाहरण के तौर पर, हमें जब कोई गणित के प्रश्न में अनजाना खोजना होता है तो उसे 'एक्स' (x) कहते हैं: जैसे यदि कहा जाए x-४ = ० (परम भगवान् को शून्य या जेरो माना जाता है :) ...और (x) को विभिन्न संख्या के बराबर मान उसकी सही कीमत तब जान लेते हैं जब उत्तर सही बैठता है, (जैसे यदि १ हो तो १-४ = -३, २-४ = -२, ३-४ - -१, सब गलत होगा किन्तु अंत में ४-४ = ० हमें अनजाने भौतिक भगवान् तक पहुंचा देगा :)
किन्तु यह भी सब जानते हैं कि मानव जीवन की पहेली इतनी सरल नहीं लगती है आम 'अज्ञानी आदमी' को, (जबकि शिव को भोलेनाथ कहा गया प्राचीन ज्ञानी द्वारा): ये एक उलझे हुए धागे के गोले के समान दिखती है जिसे सुलझाने के लिए इतनी खींचा तानी हो चुकी है अब तक कि हर आदमी 'सरकार' को, 'बाबा' को, और यूं किसी न किसी को, जैसे 'सूक्ष्माणु ' को (क्यूंकि भगवान् सूक्ष्म से अनंत तक माना गया है, और अनंत को सांकेतिक भाषा में अरेबिक '8', हिंदी के '४', "ब्रह्मा के चार मुख", को लिटा के दर्शाया जाता है :), दोष दे छूट जाना चाहता है 'सत्य की खोज' से बचने के लिए...किन्तु 'ज्ञानी' यह भी कह गए कि एक बार "आप (आत्मा) इस चक्र में घुस गये तो 'बच्चू' फंसे ही रह जाओगे: इससे आप नहीं बच सकते" :) अब 'आप' पर निर्भर करता है कि आप 'मुन्ना भाई' कि तरह लगे रहना चाहोगे या छूटना :)
सबसे आसान तरीका प्राचीन ज्ञानी के अनुसार निराकार ('कृष्ण') पर 'अपने जीवन की नैय्या' - लहरों की उंच-नीच का भी आनंद लेते - छोड़ देना बताया गया है...
अनेजा जी , ये बात सही है की व्यक्तिगत अनुभव संयोग मात्र भी हो सकते हैं।
ReplyDeleteइसी संयोग से श्रधा उत्पन्न होती है, जो विश्वास में बदल जाती है।
लेकिन आजकल लोग श्रधा का भी दिखावा कर अपने निहित स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करते हैं।
इस मामले में हमारे नेता लोग सबसे आगे हैं, भले ही वो राजनेता हों या धर्म गुरु।
अगली कड़ी में चित्रों सहित पाखंडी गुरुओं और भोली भाली लेकिन बेवक़ूफ़ जनता ---पढना मत भूलियेगा।
अन्धविश्वासों और अन्धविश्वासियों की कमी नहीं है.
ReplyDeleteमुझे भी कुछ अन्धविश्वासों की याद आती है :
1. एक बार के पत्ते पर नाग होने की अफवाह फैली. लोगों ने तोरी खाना छोड़ दिया था.
2. एक बार अफवाह फैली कि गंगा को पियरी चढ़ाना होगा वरना भाई मर जायेगा.
वस्तुत: यह एक सुनियोजित साजिश का ही परिणाम होता है. पर्दाफाश जरूरी है.
सही कहा वर्मा जी ।
ReplyDeleteअफवाह और अंध विश्वास साथ साथ चलते हैं।
ांअंध विश्वास आस्था अफवाह बहुत कुछ के बारे मे सब ने लिख दिया मगर आज खुशी की बात ये है महफूज़ बहुत समझ दार हो गया है कितनी अच्छी बात कही है। शायद खुशदीप की सोहबत का असर है। बहुत अच्छी लगी आपकी पोस्ट धन्यवाद।
ReplyDeleteइसमें कोई शक नहीं कि हम जैसे कुछ लोग जो शायद पहले से ही कुछ अधिक 'जागरूक' हों और सौभाग्यवश आज कम्पुटर से खेल भी पा रहे हों...और, 'बन्दर के हाथ में आई तलवार के समान', 'ब्लॉग' के माध्यम से अपने विचार को कुछ गिने चुने, पढ़े-लिखे, लोगों तक पहुंचा भी पा रहे हैं - 'नक्कार खाने में तूती समान' शायद...अपने को ज्ञानी मान हर कोई बोलना चाहता है - सुनना कोई नहीं चाहता किन्तु :)
ReplyDeleteकिन्तु 'काल' या युग का सत्य यह भी है, डा. साहिब, कि अधिकतर 'आम जनता' दुखी है, परेशान है: नहीं तो किसान गले में फंदा लगा लटक नहीं रहे होते पेड़ों से...और 'नेता' के माथे पर एक शिकन भी नहीं दिखती है - दोष बारिश आदि पर लगा कर 'मस्त'...या इंजीनियरिंग के कुछेक विद्यार्थी आमिर खान की फिल्म से प्रेरित हो कमरे में छत से न लटकते, क्यूंकि ९०% अंक सब नहीं पा सकते,,,और जबकि आमिर खान जैसे करोड़ों कमा रहे हैं और कोई, उनके सौभाग्य वश, उनको छात्रों को उकसाने के दोषी मान अभी फाँसी देने के लिए नहीं कह रहा है :) ...और दूसरी ओर कुछ 'बिगड़े बच्चे' अपने सहपाठी को गोली मार न रहे होते / 'इमानदार पुलिस वाले' को कार के नीचे न रोंद रहे होते...
"जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी" न तो आप लोगों की सोच बदल सकते हैं न अपनी. ये तो वैसे भी लोगों की भावनाओं का खेल है. इसमें क्या शिक्षा क्या अशिक्षा किसी का जोर नहीं चलता. खास कर वो लोग दुनिया में हर तरफ से निराश हो जाते हैं वो ऐसे किस्सों से बलि का बकरा बनते हैं.मैंने तो अच्छे खासे पढ़े लिखे लोगों को इस तरह के जंजाल में फंसते देखा है
ReplyDeleteदराल साहब, नमस्कार।
ReplyDeleteमेरे कहने का अभिप्राय भी ठीक यही था कि व्यक्तिगत अनुभव पर कोई संदेह नहीं होना चाहिये, संशयात्मक तो दिखावा है। व्यक्तिगत अनुभव हर व्यक्ति के संस्कार, परिवेश, परिस्थितियों और बहुत सी बातों का आफ़्टर-इफ़ेक्ट होता है। जे.सी. साहब वाली नेताओं की बात को मेरे द्वारे आगे चलाने का भी मंतव्य यही था कि चतुर-चालाक नेता/अभिनेता/मजमेबाज आम जनता की कमजोरियों को भुनाने में सफ़ल हो जाते हैं। एक बात और, आज तक मुझे एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिला जो किसी शंका या दुख के चलते किसी तांत्रिक के पास गया हो और वहां से उसे यह जवाब न मिला हो कि इन दुखों का कारण ग्रहों का प्रभाव या किसी दुश्मन द्वारा करवाये गये तंत्र-मंत्र हैं। मेरा मानना है कि इन चक्करों में फ़ंसने वाले भावनात्मक रूप से सबल नहीं होते और रस्सी को सांप बताकर ये शातिर लोग इन्हें ठगते हैं।
@जे.सी.साहब:- आप से सौ फ़ीसदी सहमत हूं कि आम जनता दुखी है। साथ ही कहना चाहता हूं कि सुखी तो खास लोग भी नहीं ही होंगे, हां उनके दुख कुछ दूसरी तरह के होंगे। किसी भी काल में सभी सुखी नहीं रहे-इसी का नाम दुनिया है
डा. दाराल, रचना जी और अनेजा जी ~ एक बहुत अच्छा शब्द "संयोग" है जो जब कुछ जवाब नहीं सूझता उपयोग में लाया जाता है :)
ReplyDeleteएक "डॉक्टर" को तो मुझसे अधिक पता होना चाहिए मानव मस्तिष्क के बारे में...जिस मेरी तीसरी लड़की का मैंने जिक्र किया वो तीन वर्ष तक खड़े हो कर नहीं चलती थी, बैठे बैठे ही आगे बढती थी...चिकित्सक, चाइल्ड स्पेसिअलिस्ट, ने कहा था कि उसके अंग सब सही थे किन्तु कुछ बच्चे तीन साल तक नहीं चलते...मुझे मेरी पत्नी कहती रहती थी मैं कुछ उसकी चिंता नहीं करता था...फिर एक दिन छुट्टी वाले दिन मैंने कहा मैं उसे चलाऊँगा! उसे केवल भय है!
मैंने उसको उसके बगल में हाथों के सहारे से खड़ा किया तो भय से वो रोने लग पड़ी और बैठने कि कोशिश कर रही थी! मैं केवल, "नहीं गिरेगी / नहीं गिरेगी", बोलता गया तो कुछ देर बाद उसको विश्वास हुआ और उसका रोना बंद हो गया...उसी क्षण मैंने अपने हाथ थोड़े नीचे कर लिए! वो डरी, बैठने कि कोशिश करी उसने, किन्तु फिर मैंने उसको उपर सीधा खड़ा कर दिया और बोलता रहा "नहीं गिरेगी"...कुछ देर बाद मैं बैठे बैठे ही पीछे दो-एक फुट सरक गया, वो दौड़ कर मेरे पास आ मुझको पकड़ ली! उसी दिन फिर उसका भय गायब हो गया और उसको मुझ पर विश्वास हो गया तो उसी दिन से वो चलने लग पड़ी! उसके दो वर्षीय बेटे को भी मैंने संयोगवश (?) लगभग उस घटना के ३५ वर्ष बाद मुंबई में चलना सिखाया, ऐसे ही उसका भी भय दूर कर के!
जहाँ तक रत्नों के उपयोग का प्रश्न है, मैंने '८० के दशक में एक सरकारी डॉक्टर के तीव्र गैसत्रैतिस का इलाज एक १०० रुपैये के सुच्चे मोती से करके दिखाया - उनकी हस्तरेखा का अध्ययन कर...
मेरी खाना बनाने वाली बेहोश हो सड़क में गिरी कई बारी...३५००/= का टेस्ट बताया गया उसे तो उसने तकलीफ सहने का निर्णय कर लिया...मेंने निज स्वार्थ में ५-६ माह पहले एक रत्न की अंगूठी पहनाई - और उस दिन से वो बेहोश नहीं हुई है (संयोगवश? :) और मेरा खाना अधिक प्रेम से बनाती है अब :)
ऐसे ही कुछ और उदाहरण भी हैं जो शायद काम करते हैं क्यूंकि मैं पैसा नहीं कमाता इस ज्ञान से जो मैंने अध्ययन कर (प्रभु कृपा से, संयोगवश:) प्राप्त किया है - और, अधिक प्रयास सदैव जारी हैं ज्ञानोपार्जन करने के...
इस पोस्ट को पढ़ने के बाद यह तो तय हो गया कि हमारे सभी ब्लॉगर मित्र अन्धविश्वास के सख्त खिलाफ हैं। हम सभी इस माध्यम के द्वारा जनता के बीच व्याप्त अन्धविश्वास को दूर करने का भी प्रयास कर रहे हैं ।मैं विगत कई वर्षों से अन्धश्रद्धा निर्मूलन समिति के साथ
ReplyDeleteजुड़ा हूँ । ऐसे बाबाओ के लिये एक ड्रग ऐंड मैजिकल रेमेडी ऐक्ट बना है जिसमे इन्हे बन्द किया जा सकता है । लेकिन व्यवस्था के छेद सभी जानते है । इस विषय पर विस्तार से विश्लेषण के लिये मैने अपने ब्ळोग " न जादू ना टोना " पर एक लेख माला की शुरुआत की है जिस पर प्रति सोमवार मै एक लेख प्रकाशित करता हूँ । क्रपया उस लेख को अवश्य पढे और जन सामान्य के बीच व्याप्त अन्धविश्वासों को दूर करने की दिशा मे प्रयस करे ।
ReplyDeletehttp://wwwsharadkokas.blogspot.com
agar buraa naa maane to ek baat kahu--
ReplyDelete"aap apne doosre blog main to bilkul post nahi karte hain, lekin is blog main bahut post karte hain. ye kyon??? iss blog ke saath-saath aapko us blog main bhi kuch posts karne chaahiye. aapke do betae (blogs) hain, ek kaa jyada or doosre ka kam karnaa saraasar galat hain. aapko apne dono baeto (blogs) ke saath samaan vyavahaar (posts) karnaa chaahiye."
thanks.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
जे सी साहब , यह मस्तिष्क भी बड़ी अजीब चीज़ है। इसे भी त्रिया चरित्र की तरह पूर्ण रूप से आज तक कोई नहीं समझ पाया। हमें तो खैर कभी समझ ही नहीं आता था। एपिलेप्सी क्यों होती है, इसका कारन आज तक पता नहीं चला । फिर भी इलाज शर्तिया है , लेकिन दवा से, झाड फूंस से नहीं।
ReplyDeleteशरद कोकास जी ने बात का सही निचोड़ निकाला है।
हमें अंध विश्वास के खिलाफ एक मुहीम छेड़नी चाहिए।
हा हा हा ! सोनी जी। बड़ी दिलचस्प बात कही आपने।
ReplyDeleteलेकिन भैया , वो कहते हैं न की एक ही नहीं संभलती फिर दूसरी ---:)।
दरअसल चित्रकथा पर मैं सिर्फ फोटोग्राफ्स लगाता हूँ। मुझे फोटोग्राफी का शौक है।
अंतरमंथन पर लेख लिखता हूँ । हालाँकि यहाँ भी सचित्र वर्णन करता रहता हूँ।
अब क्या करें , इसी चैनल को लोग ज्यादा देखते हैं।
डा. दराल साहिब ~ में आपकी बात अच्छी तरह से समझता हूँ क्यूंकि मैं चिकित्सकों के संपर्क में, उनके मित्र या रिश्तेदार होने के कारण, जान पाया हूं: इसे ही कहते हैं कि "मैंने धूप में बाल सफ़ेद नहीं किये हैं :)" और एक नेत्र रोग विशेषज्ञ रिश्तेदार ने मुझे कभी बताया था कि कैसे उस समय २६ वर्ष से वो केवल आँखें ही देखता आया था और यदि दिल के बारे में कुछ पूछना हो तो में उसकी पत्नी से पूछूं :)
ReplyDeleteशरदजी के ब्लॉग में मैंने अपने विचार संक्षिप्त में रख दिए हैं क्यूंकि मेरी मान्यता है कि जब तक मैं सर्वगुण-सम्पन्न को न जान लूं, मुझे अधिकार है कोई उपदेश देने का यदि में किसी से थोडा अधिक जानता हूँ - और दूसरा व्यक्ति तैयार भी हो मुझे सुनने को,,,और आज तो १६ वर्षीय व्यक्ति भी छूटते ही बोलता है "मैं भगवान् पर विश्वास नहीं करता!" फुल स्टॉप लगा देता है...
मेरा मान्ना तो यही है कि ये सब कोरी ठगबाज़ी है...निरा अंधविश्वास है
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