पुरानी दिल्ली का दिल है --चांदनी चौक । सही मायने में देसी डाउन टाउन । मुग़लों और अंग्रेजों के ज़माने में चांदनी चौक ने बहुत उतार चढाव देखे हैं । वर्तमान में यह क्षेत्र दिल्ली का ट्रेडिंग का सबसे बड़ा गढ़ है । विशेषकर कपड़ों के मामले में , यहाँ के कटरे बहुत मशहूर हैं ।
लेकिन एक चीज़ जो और मशहूर है , वह है यहाँ का खाना ।
कई साल से बड़ा मन था कि एक बार यहाँ घूमकर यहाँ के खाने का मज़ा लिया जाए । आखिर अवसर मिल ही गया जब हम चांदनी चौक के कुलिनरी टूर पर निकल पड़े ।
यहाँ आने के लिए वैसे तो मेट्रो सबसे बढ़िया तरीका है लेकिन हमें तो अपनी गाड़ी में चलने की आदत पड़ी है । कारों के लिए पार्किंग भी मेट्रो स्टेशन के साथ ही बनी है ।
लेकिन अन्दर घुसते ही टिकेट वाले ने बताया कि टिकेट ले लो परन्तु जगह न मिलने पर पैसे वापस नहीं होंगे ।
अन्दर देखा तो यह नज़ारा था ।
अभी हम लौटने ही वाले थे , लेकिन बेसमेंट में किसी तरह पार्किंग मिल ही गई ।
पार्किंग से बाहर निकलते ही यह शिव मंदिर आता है ।
मंदिर के पास वाली पतली सी गली से होकर हम पहुंचे चांदनी चौक की सड़क पर । इसी गली के नुक्कड़ पर यह दुकान नटराज -- १९४० से लोगों को भल्ला और टिक्की खिलाकर लुभाती रही है । एक प्लेट ३०-३५ रूपये ।
दुकान के नाम पर मुश्किल से तीन फुट चौड़ी और आठ फुट लम्बी जगह है ,लेकिन खाने के लिए बहुत मारा मारी रहती है ।
चांदनी चौक में चप्पे चप्पे पर खोंमचे वाले खाने का सामान लेकर बैठे मिलेंगे । कमाल की बात यह है कि सब पर ग्राहक मिल जायेंगे चटकारे लेते हुए ।
सामने यह मिठाई की दुकान २०० साल से भी ज्यादा पुरानी है ।
मीना बाज़ार --यहाँ साड़ियों की सेल हमेशा लगी रहती है । यहाँ कदम कदम पर आपको साड़ियों के दलाल मिलेंगे जो आपको बहुत लुभायेंगे साड़ी देखने के लिए ।
नटराज पर दही भल्ला और आलू की टिक्की का स्वाद लेकर हम चल पड़े दायीं ओर ।
सबसे पहले आता है एक चौक जहाँ यह कट पीस की दुकान बहुत मशहूर है । यहाँ सब तरह के शर्ट पेंट के कट पीस अच्छे दाम पर मिल जाते हैं ।
यहीं से शुरू होती है --नई सड़क । पुरानी दिल्ली की यह नई सड़क इतनी नई भी नहीं लगती । इस पर आगे जाकर किताबों की बहुत सी दुकाने हैं । हमने भी मेडिकल की सभी पुस्तकें यहीं से खरीदी थी ।
इसी बीच एक गली आती है जिसका नाम है --परांठे वाली गली । यह नई सड़क और गुरुद्वारा शीशगंज के बीच पड़ती है ।
इसका प्रवेश मुश्किल से ६ फुट का होगा । दोनों तरफ दुकाने और अत्यंत भीड़ भाड़ --घुसना भी बड़ी हिम्मत का काम है ।
लेकिन गली के अन्दर कई दुकाने हैं जो बीसियों तरह के परांठे वाजिद दाम पर खिलाते हैं ।
आलू परांठा से लेकर काजू और बादाम तथा खुरचन के परांठे ३० रूपये से लेकर ५० रूपये तक मिलते हैं । एक प्लेट में कम से कम दो परांठे लेने पड़ते हैं ।
ये परांठे एक छोटी सी कड़ाही में बनाये जाते हैं , डीप फ्राई करके । थाली में मिलती हैं --आलू की सूखी सब्जी , आलू की तरी वाली भाजी , सीताफल की मीठी सब्जी , चटनी , अचार और हरी मिर्च ।
बेशक , स्वाद बेमिसाल होता है ।
थोडा आगे चलने पर आती है --गली बल्ली मारान । यहीं पर ग़ालिब की हवेली है जिसे पब्लिक के लिए खोला गया है । सोमवार को बंद रहती है । ( इसे यहाँ देख सकते हैं ) ।
चांदनी चौक के पश्चिमी छोर पर बनी है --फतेहपुरी मस्जिद ।
यहाँ से दायें मुड़ने पर बहुत सी खाने की दुकाने हैं जो लोकल नमकीन और कचौड़ी आदि बेचते हैं । साथ ही यहाँ ड्राई फ्रूट्स और खोया भी बहुत बिकता है ।
यह सैनी दी हट्टी है --यहाँ आपको मिलेगा रबड़ी फलूदा --५० रूपये में पूरा गिलास भरकर । इतनी क्रीमी रबड़ी मैंने कभी नहीं खाई जितनी यहाँ मिली । साथ ही छोले बठुरे खाकर और लस्सी पीकर पेट पर हाथ फिराने में बड़ा मज़ा आएगा ।
यहाँ से हमारी वापसी हुई । वापसी में फिर नई सड़क के चौक पर पहुंचे, जहाँ है --टाउन हॉल । यहाँ कुछ समय पहले तक दिल्ली नगर निगम के ऑफिस और निगम पार्षदों की असेम्बली होती थी । अब शिफ्ट होकर नगर निगम के नए भवन सिविक सेंटर में चले गए हैं ।
अब यह हेरिटेज भवन खाली पड़ा नष्ट हो रहा है ।
यह मूर्ती स्वामी श्रधानंद की है ।
इसके सामने हज़ारों कबूतर दाना चुग्गा करते हैं ।
पूर्व की ओर आगे बढ़ने पर आता है --फव्वारा । इसके पीछे जो भवन नज़र आ रहा है वहां कभी सिनेमा हाल होता था । लेकिन अब यह जगह गुरुद्वारा शीशगंज प्रबंधन के अंतर्गत है ।
ऐतिहासिक गुरुद्वारा --शीशगंज । इसके बारे में सब जानते ही होंगे।
और आगे जाने पर यह जलेबी वाला भी एक नुक्कड़ पर बैठा है ।
लेकिन देसी घी की बनी इनकी जलेबी ३०० रूपये किलो मिलती हैं और हमेशा भीड़ लगी रहती है ।
इसका मालिक बैठा बैठा यंत्रवत ऐसे नोट बटोर रहा था जैसे बटोरते बटोरते बोर हो गया हो ।
इसी के सामने सड़क खचाखच भरी हुई । दूर दिखाई दे रहा है --लाल किला ।
और इस तरह पूरा हुआ , हमारा कुलिनरी टूर चांदनी चौक का ।
( यह टूर हमने पिछले साल इन्ही दिनों में किया था। लेकिन पोस्ट का नंबर अभी आ सका। खाने पीने के रेट अब निश्चित ही बढ़ गए होंगे। )
नोट : चांदनी चौक में इतनी भीड़ होती है कि सड़क और यहाँ की गलियों में आदमी कंधे से कन्धा मिलाकर चलते हैं । अपनी जेब का धयान रखिये । बेहतर है जेब में पर्स ही न रखें । घर जाकर दो गोली मेट्रोनिडाजोलऔर एक नोरफ्लोक्सासिन अवश्य खा लें यदि पेट में जगह बाकि हो तो ।
कमाल कर दिया डॉक्टर तारीफ जी! जनता से डॉक्टर कहते हैं फ्राइड मत खाओ! मीठा मत खाओ! आदि आदि और स्वयं!
ReplyDeleteगोलियां जंक फ़ूड पचाने में सहायक हैं? :)
जे सी जी, एलोपेथिक डॉक्टर इतना सख्त प्रतिबन्ध नहीं लगाते।
Deleteहम भी तो जाने कब से ललचा रहे थे, इन राजसी भोजन के लिए।
गोलियां जंक फ़ूड के साथ आए बिन बुलाये मेहमानों के लिए हैं। :)
डॉक्टर साहिब, हम बचपन से नई दिल्ली में ही पले और बड़े हुवे। चांदनी चौक तो हम बचपन से ही जाते रहे हैं। एक समय विग रेस्तरां में पूरी या भठूरे छोले खाने जाया करते थे। फिर दो भाइयों ने अलग अलग रेस्तरां बना लिए, और उसके बाद से वो आनंद आना बंद हो गया! किसी समय घंटेवाले की सख्त मिठाई शान हलवा (?) बहुत प्रसिद्द होती थी। यद्यपि स्वयं मुझे इतनी पसंद नहीं थी, पर कुछेक बार रिश्तेदारों के लिए वो लेने मोतोत साइकल से जरूर गया। परांठे वाले गली में आलू - गोभी अदि के परांठे खाने कुछ वर्ष पहले ही भाई और उसके परिवार के साथ राजीव चौक मेट्रो से भी गया। नै सड़क में किताबों के लिए कई बार खुद के लिए अथवा किसी बच्चे के लिए कई बार गया हूंगा और लंच वहीं किसी दूकान में करते थे।।।।चांदनी चौक में बहुत बार पैदल भी चला हूँ कुछ न कुछ विवाह अदि मौके पर साडी आदि सामान खरीदने।
Deleteचांदनी चोक की सेर तो हमेशा हो ही जाती है ...पहली बार 1980 में गई थी ..तब इतनी भीड़ नहीं होती थी ..और उस टाकिज में मैने भी फिल्म देखि थी ...पिछले दिनों जब दिल्ली गई थी तो गुरूद्वारे की तरफ से उसी में बना रूम मिला था ...पुस्तको वाली गली से मैने भी रेसिपी वाली 2-3 बुक खरीदी थी ..यह होलसेल मार्किट है ..और चांदनी चोक के भल्ले वाली नटराज दुकान से मैने भी भल्ले खाए थे ..स्वाद आज भी मुंह में आ जाता है ..और फिर गोभी के पराठो की तो बात ही क्या थी ... आज की शाम तो डॉ साहेब आपने यु ही रंगीन कर दी ..:)
ReplyDeleteक्या बात है ! इतनी यादें ताज़ा हो गई ! चांदनी चौक से हमारी भी बहुत यादें जुडी हैं।
Deleteवह डाक्टर साहब आज तो बड़ी ही स्वादिष्ट पोस्ट लगा दी आपने -सही मायनों में एक कलिनरी यात्रा पोस्ट!
ReplyDeleteमगर एक अनुरोध भी है ,चांदनी चौक मुझे कुछ ही देर के लिए गाईड करियेगा साथ साथ जब अगली बार हम आयें !
अरविन्द जी , सर्दियों में ही मज़ा है यहाँ घूमने का और खाने पीने का। :)
Delete...मैं तो अकसर फतेहपुरी में 'ज्ञानी दा रबड़ी फलूदा'का जयका लेने पहुँच जाता हूँ...आपकी बताई जलेबी भी खाऊंगा !
ReplyDeleteइसे जलेबा भी कह सकते हैं। :)
Deleteवाह जी वाह !जायका डॉ .दाराल का और साथ में इतनी सारी और जगहों को ज़नाब के आई लेंस ने कैद किया पता नहीं कितनी मर्तबा देखा है यह सब लेकिन कैमरे की नजर से दिल्ली खूब सूरत लगती
ReplyDeleteहै भय पैदा नहीं करती .मेट्रोनिदाजोल और नोर्फ्लुक्सासिन के साथ आपने तिनिंडाजोल /ओर्निदाजोल को क्यों छोड़ दिया ?और साथ ले लेक्टिक एसिड बेसाइलास .
शर्मा जी , इनमे से एक ही काफी है. वर्ना पेट में लड़ाई हो जाएगी. :)
Deleteकौन कौन सी गलियों से गुज़ार दिया आज फिर ... लगता है अभी तक वैसी ही है दिल्ली की गालियाँ ...
ReplyDeleteमज़ा आ गया जी ...
यहाँ तो बनारस जैसी भीड़ भाड़ है!
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