ब्लॉगिंग शुरू किये हुए चार साल पूरे होने को आये. एक जनवरी २००९ को ब्लॉग बनाकर पहली पोस्ट नव वर्ष की शुभकामनाओं पर डाली थी . देखते देखते , पोस्ट लिखते लिखते , टिप्पणियों का इंतजार करते करते और टिपियाते हुए कब चार साल गुजर गए , पता ही नहीं चला. इस बीच जीवन की उपलब्धियों में ब्लॉगर नाम का शब्द भी जुड़ गया. इन चार सालों में मानव प्रवृति और मानसिकता के बारे में बहुत कुछ सीखने को मिला. लेकिन कुछ समय से ब्लॉगिंग में काफी परिवर्तन देखने को मिल रहा है. हालाँकि यह बदलाव हर ३-४ साल में होना स्वाभाविक ही लगता है. तथापि, समय के साथ फेसबुक जैसी सोशल साइट्स का लोकप्रिय होना, ब्लॉगिंग के लिए घातक सिद्ध हो रहा है. लेकिन सिर्फ फेसबुक को दोष देना ही सही नहीं है. और भी ग़म हैं ज़माने में , जो ब्लॉगिंग में बाधा पहुंचाते हैं .
तुम न जाने किस जहाँ में खो गए :
ब्लॉगिंग को सबसे बड़ा धक्का लगा डॉ अमर कुमार की असामयिक मृत्यु से. उनकी टिप्पणियों का कोई तोड़ नहीं होता था. हमारा तो अभी परिचय ही हुआ था की तभी वे इस दुनिया को छोड़ कर चले गए. उनकी कमी ब्लॉगजगत में कभी पूरी नहीं हो पायेगी. कुछ समय पहले श्री चंदर मोलेश्वर प्रसाद जी को भी काल ने हमसे छीन लिया . हिंदी का एक ज्ञाता विद्वान हमसे हमेशा के लिया छिन गया. उधर ब्लॉगिंग के तकनीकि स्तंभ माने जाने वाले और हर दिल अज़ीज़ श्री पाबला जी को पुत्र शोक होने से जैसे ब्लॉगिंग की रीढ़ ही टूट गई . हालाँकि फिर भी पाबला जी बड़ी हिम्मत से मौजूद हैं ब्लॉगिंग में.
हम तो हैं परदेश में , देश में निकला होगा चाँद :
कुछ मित्र ऐसे हैं जो स्वदेश की गलियां तो छोड़ गए लेकिन ब्लॉगिंग के जरिये देश की माटी से हमेशा जुड़े रहे . लेकिन फिर दुनियादारी में ऐसे फंसे की ब्लॉगिंग भूल गए . इनमे सबसे ज्यादा जो नाम याद आता है वह है अदा जी का. कनाडा के ओटवा ( हिन्दुस्तानी में ओटावा ) शहर में रहने वाली अदा जी ( मञ्जूषा ) ने हमेशा धुआंधार और बेबाक ब्लॉगिंग की . लेकिन फिर शायद फिल्म निर्माण के कार्य में ऐसी फंसी की ब्लॉग से गायब ही हो गईं. उधर ब्लॉगिंग के नंबर एक माने जाने वाले और नए ब्लॉगर्स का सदा प्रोत्साहन करने वाले श्री समीर लाल जी की उड़न तश्तरी की उड़ान में अचानक काफी कमी आ गई . एक समय था जब हर पोस्ट पर १०० से ज्यादा टिप्पणियां सिर्फ उन्ही के ब्लॉग पर आती थी. अब कहीं नहीं आती. कहीं ये टिप्पणियां ही तो नहीं जो ब्लॉगिंग में इंधन का काम करती हैं. इनके अलावा दीपक मशाल की जब से शादी हुई है , तबसे उन्होंने लगभग ब्लॉगिंग छोड़ दी है. आखिर शादी है ही ऐसी चीज़ की बस नमक तेल लकड़ी याद रहती है. हालाँकि यु एस में इनका प्रयोग शायद ही होता हो. और भी कई दोस्त हैं जिनका उत्साह कम हो गया है. जब से हम दुबई होकर आए हैं , तब से दुबई वाले श्री दिगंबर नासवा जी अचानक गायब हो गए .हम तो हैरान थे , पर फिर पता चला नासवा जी की माताजी नहीं रही। विदेश में रहकर अपनों से बिछुड़ने का दर्द और भी ज्यादा महसूस होता है। ऑस्ट्रेलिया में रहने वाली बबली उर्फ़ उमा चक्रवर्ती चार पंक्तियों में सदा किसी को ढूंढती रहती थी . शायद उनको वो मिल गया और नाता जोड़ लिया , इसलिए ब्लॉगिंग से नाता तोड़ लिया.जर्मनी में रह रहे राज भाटिया जी को क्या शिकायत है ब्लॉग से , यह तो पता नहीं चला लेकिन फेसबुक पर जर्मनी के फोटो दिखाकर हमें खुश करते रहते हैं.
छोड़ आए हम वो गलियां :
अब देश में भी ब्लॉगिंग के चाँद लुप्त होते जा रहे हैं . एक बार हमने श्री चन्द्र मोहन गुप्त की लापता होने की खबर ब्लॉग पर डाली थी . तब पता चला था की ट्रांसफर होने की वज़ह से ब्लॉगिंग से दूर हो गए हैं . एक दो बार छुट्टियों में पोस्ट लिखने के बाद उन्होंने तौबा कर ली और शायद अपने काम में ही व्यस्त हो गए.
नोयडा के खुशदीप सहगल ने हमारे साथ ही ब्लॉगिंग शुरू की थी और प्रतिदिन एक पोस्ट नियमित रूप से लिखते थे . उनका जुनून देखकर कई बार हमने उन्हें टोका भी, लेकिन जुनून कहाँ ख़त्म होता है. फिर एक दिन अचानक वो जुनून ख़त्म हो गया . जब बच्चों के बोर्ड के एग्जाम पास हों तो यही सही भी लगता है. आखिर , ब्लॉगिंग ही तो जिंदगी नहीं. दिल्ली के अनेक ब्लॉगर ऐसे हैं जो या तो सामूहिक ब्लॉग्स चलाते थे , या स्वयं ही ब्लॉग्स का समूह चलाते थे . लेकिन अब सब बंद हो चुका . हमें तो सामूहिक ब्लॉग्स का औचित्य ही समझ नहीं आया. और एक दो से ज्यादा ब्लॉग्स का भी . अविनाश वाचस्पति जी अस्वस्थ रहते हैं , ब्लॉगिंग छोड़ अब फेसबुक के स्वामी बन गए हैं . अजय कुमार झा का ब्लॉगिंग जोश ठंडा पड़ गया है, लेकिन फेसबुक पर सारा आक्रोश निकाल रहे हैं . ( भाई अभी एक भयंकर रोग से निज़ात पाकर स्वस्थ हुए हैं . उन्हें स्वस्थ और दीर्घायु के लिए शुभकामनायें ). राजीव तनेजा ने एक बार हमारे जन्मदिन पर हमारे ब्लॉग की सारी पोस्ट्स पर टिप्पणियां देकर एक कीर्तिमान सा स्थापित कर दिया था. लेकिन हम उनके गज भर लम्बे हास्य व्यंग पर हमेशा उन्हें टोकते रहते थे . उन्होंने तंग आकर ब्लॉग पर लिखना ही छोड़ दिया और अब फेसबुक पर दो दो लाइना लिख कर चिढाते रहते हैं .
इंजिनियर सतीश सक्सेना जी के गीत हमेशा लोकप्रिय रहे . लेकिन अब उनकी तान और गान भी कम ही सुनाई देती है. आखिर पारिवारिक जिम्मेदारी तो सर्वप्रथम होनी ही चाहिए।
आदरणीय निर्मला कपिला जी अस्वस्थ और अजित गुप्ता जी व्यस्त रहने के कारण अब ब्लॉगिंग से दूर हो गई हैं, हालाँकि अजित जी ने फिर से समय निकालना शुरू कर दिया है। हरकीरत हीर जी की पोस्ट कितनी भी दर्दीली हो लेकिन उनकी टिप्पणियां हमेशा चुटकीली होती थी. लेकिन अब न पोस्ट आती है, न टिपण्णी .
दानिश ( डी के मुफलिस ) की शानदार ग़ज़लें अब पढने को नहीं मिलती.
हमने पहली पोस्ट ३ जनवरी २००९ को लिखी थी जिसपर बस एक टिप्पणी आई थी-- अनुरागी अनुराग ने भी नव वर्ष पर उसी दिन कविता लिखी थी जो उनकी सिर्फ तीसरी पोस्ट थी. उसके बाद न अनुराग दिखे , न उनका राग. यह भी एक रहस्य बन कर रह गया. हमें ब्लॉगिंग में लेकर आए श्री अशोक चक्रधर जी . लेकिन हमें इस चक्कर में फंसा कर उन्होंने अपनी चकल्लस ही बंद कर दी। अन्य कवि मित्रों में राजेश चेतन जी , अलबेला जी , योगेन्द्र मोदगिल जी ने मंच के आगे ब्लॉगिंग को तुच्छ समझ त्याग दिया। भई ब्लॉगिंग से रोजी रोटी तो नहीं चल सकती ना.
याद किया दिल ने कहाँ हो तुम :
याद किया दिल ने कहाँ हो तुम :
हम लगभग १०० से ज्यादा मित्रों को फोलो करते हैं , पढ़ते हैं और टिप्पणी का भोग लगाने का प्रयास भी करते हैं . लेकिन जब पोस्ट ही न आए तो हम कहाँ जाएँ टिपियाने. सुलभ सतरंगी रंग बिरंगी दुनिया के इंद्रजाल में पैर ज़माने की कोशिश में लगे हैं , सुनीता शर्मा जी ने लगता है इमोशंस पर ज्यादा कंट्रोल कर लिया है . इसलिए अब कभी कभी ही विदित करती हैं। ताऊ रामपुरिया के ब्लॉग पर पढ़ा था -- यहाँ सब ज्ञानी हैं , यहाँ ज्ञान मत बाँटिये. हमने उनकी एक न सुनी तो उन्होंने ही सुनाना बंद कर दिया. मुफलिस जी की तर्ज़ पर सब खूब झूमते थे , लेकिन उन्होंने तर्ज़ बयां करना ही बंद कर दिया. अजय कुमार अपनी गठरी लेकर जाने कहाँ खो गए . राजेश उत्साही का उत्साह भी ठंडा पड़ गया लगता है. ज्योति मिश्रा की P: D: आदि हमें कभी समझ नहीं आती थी लेकिन अब वो ही नहीं आती. सुशील बाकलीवाल जी ने रिकोर्ड तोड़ ब्लॉगिंग की और फिर अचानक सन्यास ले लिया . एम् वर्मा जी के ज़ज्बातों को कैसे ठेस लगी , यह समझ न आया. डॉ अनुराग अब दिल की बातें किसी को नहीं बताते, सीक्रेट रखते हैं. मिथलेश दुबे का बेबाक अंदाज़ शायद लोगों को हज़्म नहीं हुआ, इसलिए सलीम के साथ चुप हो गए. डॉ मनोज मिश्र को शायद ज्येष्ठ भ्राता ने कह दिया -- अपना काम करो भाई , क्यों समय व्यर्थ करते हो , उसके लिए मैं हूँ ना. :). शरद कोकस अब रात में ३-४ बजे नहीं उठते. शायद देर से उठने की आदत पड़ गई है. हमें लगा मासूम भाई को शायद समझ आ गया की ये दुनिया इतनी मासूम नहीं है. इसलिए लिखना बंद कर दिया। वो तो बाद में पता चला कि भाई तो बड़ी गंभीर बीमारी से निजात पाकर संभले हैं। खुदा उन्हें सलामत रखे। ऐसे नेक बन्दों की बहुत ज़रुरत है। डॉ मुकेश सिन्हा ने क्यों राजनीति छोड़ दी , यह बात समझ के परे है.
व्यस्त हो गए हैं या अस्त व्यस्त -- यह बात तो मित्र लोग स्वयं ही बताएँगे :
पिट्सबर्ग में ठण्ड बढ़ गई लगती है , इसलिए अनुराग शर्मा जी अब कभी कभार ही लिखते हैं . अली सा ने पता नहीं क्यों, कहानियों की सारी किताबें कबाड़ी को बेच दीं लगती हैं . अब बस फेसबुक पर संतोष त्रिवेदी जी को टिप्पणी का प्रसाद चढाते हैं. :) संजय भास्कर अब बाल बच्चों में व्यस्त हो गए हैं . राकेश कुमार जी के प्रवचन सुने हुए मुद्दतें हो गई .( उम्मीद करता हूँ , स्वास्थ्य सही है ) . दर्शन कौर जी के दर्शन अब दुर्लभ हो गए हैं. हालाँकि फेसबुक पर दर्शनों की झड़ी लगी रहती है. :). रोहित कुमार कभी कभी ही बिंदास मूड में आते हैं. कुश्वंश जी , वंदना अवस्थी दुबे , रश्मि रविजा, महेंद्र मिश्रा ने भी लिखना कम कर दिया है.
बीकानेर के भाई राजेन्द्र स्वर्णकार की पोस्ट हमेशा स्वर्ण की तरह ही चमकती है लेकिन आजकल सोने की तरह ही बहुत महंगे हो गए हैं :) महफूज़ अली ने अब ब्लॉग पर डोले दिखाना बंद कर दिया है . लेकिन फेसबुक पर नापसंद लोगों का मूंह तोड़ने को तैयार रहते हैं . :)
बीकानेर के भाई राजेन्द्र स्वर्णकार की पोस्ट हमेशा स्वर्ण की तरह ही चमकती है लेकिन आजकल सोने की तरह ही बहुत महंगे हो गए हैं :) महफूज़ अली ने अब ब्लॉग पर डोले दिखाना बंद कर दिया है . लेकिन फेसबुक पर नापसंद लोगों का मूंह तोड़ने को तैयार रहते हैं . :)
हम से है ज़माना :
इस बीच कई नए ब्लॉगर्स का प्रवेश हुआ जो इस विधा को ससम्मान आगे बढ़ा रहे हैं . उत्तरांचल की राजेश कुमारी जी , काजल कुमार के कार्टून्स , अनु जी के ड्रीम्स और एक्सप्रेशंस, प्रेरणा अर्गल की कल्पनाएँ , गोदियाल जी का अंधड़ , और द्विवेदी जी की अदालत अभी भी खूब चल रही है . संदीप पंवार का सफ़र जारी है, पल्लवी सक्सेना जी अपने अनुभव बखूबी बाँटती रहती हैं , अशोक सलूजा जी की यादें , रचना दीक्षित जी की सन्डे के सन्डे साप्ताहिक रचनाएँ , वंदना जी के अहसास , धीरेन्द्र जी की काव्यांजलि , संगीता स्वरुप जी के हाइकु और लघु कवितायेँ , रश्मि प्रभा जी की प्रभावशाली रचनाएँ अभी भी मन मोह रही हैं . वीरेन्द्र शर्मा ( वीरुभाई जी) के जानकारी पूर्ण स्वास्थ्य सम्बन्धी लेख एकदम ताज़ी जानकारी से परिपूर्ण होते हैं .काजल कुमार जी के ताज़ा और सटीक कार्टून हालात पर गहरी चोट करते हुए भी मनोरंजक होते हैं। लेकिन कुमार राधारमण जी जो पहले दिन में दो तीन लेख लिखते थे , अब दो तीन दिन में लिखते हैं . वाणी शर्मा जी की ज्ञानवाणी और नीरज गोस्वामी जी की पुस्तकों की खोज भी दिल लुभाती रही हैं. डॉ जाकिर अली रजनीश की वैज्ञानिक बातें काफी ज्ञानवर्धक रही . अंजू चौधरी और शाहनवाज़ भी नियमित हैं . रमाकांत सिंह जी की एंट्री अभी हाल में ही हुई है.
पंडित अरविन्द मिश्र जी का ट्रांसफर होने से ब्लॉग से दूरियां बढ़ गई हैं लेकिन फेसबुक पर हींग और फिटकरी दोनों लगाते रहते हैं। फिर रंग तो आएगा ही . :). संतोष त्रिवेदी जी तो फेसबुक और अख़बारों की सुर्ख़ियों में छाये रहते हैं, इसलिए ब्लॉग पर अब ज्यादा माथा पच्ची नहीं करते. लेकिन देवेन्द्र पाण्डेय जी एक बहादुर इन्सान की तरह डटे हुए हैं अपना कैमरा संभाल कर. शिखा वार्ष्णेय जी हमेशा की तरह ब्लॉग पर और अब फेसबुक पर भी नियमित रूप से सुन्दर लेखों के साथ नज़र आती रहती हैं. श्री रूप चंद शास्त्री जी भले ही सम्मान समारोह में आहत हुए हों , लेकिन पूरी श्रद्धा से ब्लॉगिंग में अपनी सेवा दे रहे हैं. शिवम् मिश्रा महापुरुषों की विभिन्न तिथियों पर हमें याद दिलाना कभी नहीं भूलते. केवल राम का भी गंभीर लेखन जारी है चलते चलते. शेर खान ब्लो ललित शर्मा ने छत्तीसगढ़ छान मारा और बड़े रोचक अंदाज़ में विस्तार से सारा हाल बयाँ करके महत्त्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं . शायद अकेले हैं जो ब्लॉग और फेसबुक , दोनों पर सक्रीय हैं. अत्यंत गुणवान और क्रातिकारी विचार रखने वाले श्री विजय माथुर जी के विचारों को लोग कम ही समझ पाते हैं. इसलिए वे अब ब्लॉग पर कम और फेसबुक पर ज्यादा नज़र आते हैं.
न तुम हमें जानो , न हम तुम्हे जाने :
आश्चर्य की बात है की इन चार सालों में हम कई धुरंधर माने जाने वाले ब्लॉगर्स से कभी रूबरू नहीं हो पाए. श्री ज्ञान दत्त पाण्डेय, अनूप शुक्ल जी , रवि रतलामी जी , अजित वडनेरकर , कविता वाचकनवी जी, सुमन , गिरिजेश राव समेत कई ऐसे ब्लॉगर्स हैं जिनसे या तो कभी आदान प्रदान नहीं हुआ या न के बराबर . एक दो ब्लॉगर ऐसे भी रहे जिनसे ब्लॉग नाता टूट गया. ब्लॉग पर नाता बनाये रखने के लिए पारस्परिक सम्मान, विश्वास और समझ बूझ की आवश्यकता होती है. डॉ दिव्या श्रीवास्तव के साथ ब्लॉग सम्बन्ध विच्छेद होना कभी कभी अखरता है.
यहाँ दो नाम विशेष रूप से ज़ेहन में आते हैं . बंगलौर में रहने वाले रेलवे में काम करने वाले प्रवीण पाण्डेय की टिप्पणी भले ही चंद शब्दों में सिमटी रहती है , लेकिन लगभग हर ब्लॉग पर नियमित रूप से और सबसे पहले हाज़िर होते हैं. कम शब्दों में पोस्ट का सार देना भी एक कला है. दूसरे ब्लॉगर हैं दिनेश 'रविकर' गुप्ता जी जिनके काका हाथरसी जैसे छक्के रुपी टिप्पणियां बहुत से ब्लॉग्स पर देखी जा सकती हैं. हर टिप्पणी में तुरंत एक कविता छाप देना भी एक अद्भुत गुण है. हालाँकि ब्लॉगिंग में इतना समय और ऊर्जा लगाना हैरत में डाल देता है. लेकिन आजकल उनकी अनुपस्थिति ही हैरान कर रही है।
विशेष:
एक और नाम जिनके बगैर पोस्ट अधूरी रहेगी , वो हैं श्री जे सी जोशी जी. सेवा निवृत इंजीनियर जे सी जी अब आध्यात्मिक अध्ययन में लगे हैं और इस लोक से बाहर परलोक का रहस्य समझने में संलग्न हैं. स्वयं कोई पोस्ट नहीं लिखते लेकिन कुछ चुनिन्दा ब्लॉग्स पर अपने ज्ञान का प्रकाश फैलाकर ब्लॉग को रौशन करते हुए अपना योगदान देते हैं.लेकिन पिछली चार पोस्ट्स पर उनकी अनुपस्थिति चिंता में डाल रही है। अभी तक इ मेल का ज़वाब भी नहीं आया। आशा करता हूँ कि सकुशल होंगे।
सम्मान समारोह और ब्लॉगर मिलन :
इस बीच दो बार ऐसा हुआ की ब्लॉगर्स के लिए विशेष सम्मान समारोह आयोजित किये गए. जैसा की ऐसे में अक्सर होता है , ये समारोह भी विवादित रहे. वैसे भी सभी को खुश करना बड़ा मुश्किल होता है. लेकिन हमारे लिए तो यह भी एक विडम्बना ही रही की इनके आयोजक और कर्ता धर्ता श्री रविन्द्र प्रभात जी से सपने में भी कभी मुलाकात / वार्तालाप नहीं हुई. हालाँकि अनेक ब्लॉगर्स से समय समय पर मुलाकातें होती रही जिनमे श्री समीर लाल जी , राज भाटिया जी , अरविन्द मिश्रा जी , वीरुभाई जी , ललित शर्मा जी , सतीश सक्सेना जी और खुशदीप सहगल से मुलाकात अन्तरंग रही. दिगंबर नासवा जी और पी सी रामपुरिया जी से एक शादी में मिलना सुखद रहा. वैसे फोन पर अनेक मित्रों से बात चीत होती ही रहती है. अभी हाल ही में छत्तीसगढ़ के श्री राहुल सिंह जी से फोन पर बात हुई लेकिन किसी कारणवश मुलाकात का अवसर न मिल सका.
और इस तरह पूर्ण हुआ यह ब्लॉग पुराण . इसमें शामिल किये गए नाम वे हैं जिन्हें हम जानते हैं . बेशक , और भी बहुत से ऐसे ब्लॉगर्स होंगे जिनका बड़ा नाम होगा, लेकिन हम नहीं जानते. मित्रों में कुछ और नाम भी छूट गए होंगे , कृपया बिना बुरा माने स्वयं ही याद दिला दें.
नोट : वर्ष की इस आखिरी पोस्ट को कृपया हास्य व्यंग के रूप में ही लें , भले ही इसमें सच्चाई दिखाई दे।
और इस तरह पूर्ण हुआ यह ब्लॉग पुराण . इसमें शामिल किये गए नाम वे हैं जिन्हें हम जानते हैं . बेशक , और भी बहुत से ऐसे ब्लॉगर्स होंगे जिनका बड़ा नाम होगा, लेकिन हम नहीं जानते. मित्रों में कुछ और नाम भी छूट गए होंगे , कृपया बिना बुरा माने स्वयं ही याद दिला दें.
नोट : वर्ष की इस आखिरी पोस्ट को कृपया हास्य व्यंग के रूप में ही लें , भले ही इसमें सच्चाई दिखाई दे।
दराल साहब, आपने अपने चार साल का निचोड यहाँ दिखाया है, इस पोस्ट को लिखने में अब तक की अपकी सबसे ज्यादा मानसिक मसक्कत करनी पडी होगी।
ReplyDeleteमेरे चार पसन्दीदा ब्लॉगर है पहला नाम वीरेन्द्र शर्मा जी, दूसरे संजय अनेजा जिनका नाम यहाँ मुझे नहीं दिख रहा है।, तीसरे रविकर जी, और चौथे भी पहले नाम की तरह बीमारियों के ज्ञाता है उनका नाम डाक्टर दराल है।
शुक्रिया संदीप।
Deleteडाक्टर साहब,
ReplyDeleteसोच रहा था कि इन दिनों ब्लॉग जगत में, अपनी गैर/कम हाज़िरी के लिए भारी कामकाज और भारी व्यस्तता वाली सफाई दूंगा पर आपने वो मौक़ा भी छीन लिया :)
हमेशा की तरह इस बार भी स्पाम ने मेरी टिप्पणी को हर लिया है ! सो टिप्पणी दोबारा चिपका रहा हूं !
Deleteसफाई का काम हमने कर दिया। :)
Deleteबाप रे ! बस, आभार ही व्यक्त कर सकता हूँ डा0 साहब !
ReplyDelete...गजब है डॉक्टर साहब ! ई ब्लॉगर- इनसाइक्लोपीडिया निकला !
ReplyDeleteहमें मशहूर करने का शुक्रिया
मुझे लगता है कि आपने प्रवीण शाह जी को गलती से मिस कर दिया है या आप वहाँ गए नहीं.
Delete.
.और हाँ,लगातार नारी-लेखन को लेकर चर्चा में रहने वाली रचना सिंह जी और आराधना 'मुक्ति'जी का ज़िक्र करना भी आप भूल गए !
.
.कुछ वजहों से कुछ लोग हमसे भी कट गए या हम उनसे कट गए,लेकिन किसी के प्रति द्वेष-भाव नहीं है !
आपकी पोस्ट में अपना मंतव्य रखने के लिए माफ़ी चाहूँगा .
संतोष जी , इस आपा धापी की जिंदगी में वही याद आए जिनसे गुफतगू होती रहती है। इसीलिए डिस्क्लेमर लगाया था कि कई अच्छे ब्लॉगर छूट गए होंगे। यह सूचि पारस्परिक सम्बन्धों पर ही आधारित है। बेशक प्रवीण शाह और मुक्ति जी का काफी नाम सुना है। दोनों सक्रीय बेहतरीन ब्लौगर हैं।
Deleteजोरदार सर्वेक्षण.
ReplyDeleteमेरा दिल्ली प्रवास आकस्मिक रूप से अल्प रहा, लेकिन नये साल में आप से रूबरू होने का अवसर बनेगा, शुभकामनाओं सहित.
♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
♥नव वर्ष मंगबलमय हो !♥
♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥
# बीकानेर के भाई राजेन्द्र स्वर्णकार की पोस्ट हमेशा स्वर्ण की तरह ही चमकती है लेकिन आजकल सोने की तरह ही बहुत महंगे हो गए हैं
:)
ज़र्रानवाज़ी का शुक्रिया ...
आदरणीय डॉक्टर भाईसाब टी एस दराल जी !
आपके अपनत्व के लिए आभारी हूं
मेरी एक राजस्थानी रचना की पंक्तियां
पूछो कांई सवाल मालकां
है खोटा ही हाल मालकां
सस्तों सस्तों रहयो आदमी
महंगा रोटी-दाल मालकां
:)
... तो हम तो महंगे नहीं हैं , बस कभी व्यस्त , कभी अस्त-व्यस्त वाली स्थिति है ।
आपकी पोस्ट्स पढता भी रहता हूं ...बहुत बार हाज़री रजिस्टर में दस्तखत रह जाते हैं
:))
इतने श्रम और प्यार से सबको याद करते हुए लिखी गई इस पोस्ट के लिए शत शत नमन !!
नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
रोजी रोटी का हाल समझते हैं राजेन्द्र जी . इस व्यस्तता से ही अस्त व्यस्त होते हैं। :)
Deleteआभार आपका .
वाणी शर्मा गीत मेरे पर भी नजर आती हैं :)
ReplyDeleteआपने याद रखा , अच्छा लगा !
इन दिनों ब्लोगिंग कम हुई है सभी की ...
अगले कई कई वर्षों के लिए शुभकामनायें !
अच्छी विवेचना प्रस्तुत की है आपने!
ReplyDeleteहम भी गोल हो जायेंगे एक दिन!
क्योंकि दुनिया गोल है!
गज़ब ...
ReplyDeleteअब नियमित होना ही पड़ेगा !
शुभकामनायें आपको..
डॉ दराल साहब नहीं बड़े भाई साहब प्रणाम . आपने याद किया ह्रदय से आभार . एक लम्बी सूचि विद्वानों की जिसके बीच संवाद और तानाबाना सदा लिखने की प्रेरणा देता है. आपके लेखन संग सुझाव का अंदाज़ सदा भाता है.आपके लेखन की गरिमा का कायल हूँ .सुन्दर लोगो के साथ याद करने के लिए शुक्रिया . नव वर्ष की शुभकामना .शुभ प्रभात
ReplyDeleteरमाकांत जी , लेखन में अलग अलग प्रयोग करते रहना चाहिए।
Deleteशुक्रिया, शुभकामनायें आपको भी .
गजब की परिकल्पना टाईप पोस्ट लिख मारी भाई साहब :)
ReplyDeleteढेर सारी शुभकामनाएं, स्नेह बनाए रखें।
'tarif' karoon kya 'uski' jisne 'apko' banaya 'type' kahne ko 'dil' karta hai.....kah diya........
ReplyDeleteyunke 'tau' to blog-jagat me kam sai.....but aap bhi to chhote 'tau' barabar hi laggao hainge.........
pranam.
हा हा हा हा हा !
Deleteप्रणाम।
balak ko pranam'.....kya tippani koi itti bari galti kar di hamne...
Deletegar kuch 'choti munh bari baat kah di ho to' kan hazir hai kantap laga diya jai.......
pranam.
सबको लपेट लिया, हमे क्यों छोड़ दिया।
ReplyDelete2012 जाते जाते भी दिल तोड़ दिया।।
अरुण जी , अंतिम पंक्तियों में यही गुजारिश की थी।
Deleteब्लॉग पर मिलते रहिये , दिल से दिल मिलने लगेंगे। :)
सलाम आलेकूम दराल साहब, हम तो आज भी रोजाना ब्लांगिग कर रहे हे, हां यह बात अलग हे कि हम लिख नही पा रहे, बाल्कि आप लोगो का लिखा सब को दिखा रहे हे... यहां देखे...http://blogparivaar.blogspot.de/ बाकी ब्लागिंग मे मजा भी नही रहा, पहले सब मिल कर एक दुसरे को प्रोतसाहन देते थे, मेरी हिंदी की गलतियो पर सब प्यार से समझाते थे, फ़िर धीरे धीरे बहुत से टांग खिंचू चले आये, ओर हर रोज कोई ना कोई एक दुसरे पर बिन बात कीचड ऊछालते हे, तो हमे तो ऎसी आदत नही सो हम चुपचाप पतली गली से निकल आये, लेकिन कहते हे लागी छुटे ना... तो हम आज भी आप सब के बीच तो मोजुद हे अपने **ब्लाग परिवार** के संग,बहुत सुंदर लेख लिखा आप ने सब को सलाम, नमस्ते... हम वेफ़ा हर्गिज ना थे, पर हम वफ़ा.....
ReplyDeleteभाटिया जी , हम अक्सर आप को ब्लॉग्स पर मिस करते हैं। लोगों की चिंता करने की ज़रुरत नहीं है।
Deleteदराल साहब पहले तो चार वर्ष पूर्ण होने पर बधाई। हमने भी अपना अकाउण्ट छान मारा तो पाया कि पहली पोस्ट हमारी भी 4जनवरी 2009 को ही लगी थी। मैं तो एक ही चाल से चल रही हूं। बीच में एकाध महिना कुछ धीरे हुई थी। लेकिन अब नियमितता रहेगी। आपने तो सभी का स्मरण करा दिया।
ReplyDeleteपहले लापता लोगों की सूची देख हमें लगा हमारा ज़िक्र तो होगा नहीं यहाँ....फिर पता लगा "हमसे है ज़माना ":-)
ReplyDeleteआपकी पोस्ट के विषय चयन की दाद देनी पड़ेगी....मेरी तरफ से एक ब्लॉग का ज़िक्र जोड़ लीजिये वो है सलिल वर्मा जी का " चला बिहारी ब्लॉगर बनने...आप शायद भूल गए....
शुक्रिया इस पोस्ट का आपकी मेहनत कमाल की है
सादर
अनु
ps- happy 4th anniversary of your blog....happy blogging
सलिल वर्मा जी एक बेहतरीन ब्लौगर हैं। लेकिन जैसा कि मैंने पहले भी कहा कि इसमें उन्ही को शामिल किया है जिनसे कभी न कभी ब्लौग पर रूबरू हो चुके हैं।
Delete
ReplyDeleteवह जो इश्क था वह जुनून था,
यह जो हिज्र है ये नसीब है,
यहाँ किसका चेहरा पढ़ा करूं,
यहाँ कौन इतना करीब है,
मैं किसे कहूं मेरे साथ चल,
यहाँ सब के सर पे सलीब है,
तुझे देख कर मैं हूँ सोचता,
तू हबीब है या रकीब है,
तेरा शहर कितना अजीब है,
कोई दोस्त है, न रक़ीब है,
तेरा शहर कितना अजीब है...
डाक्टर साहब, पहले तो ब्लागिंग के उपलब्धिपूर्ण चार साल पूरे करने के लिए बहुत बहुत बधाई...जहां तक मैं ब्लागिंग में खालीपन महसूस
करता हूं तो उसके कई कारणों में प्रभावशाली एग्रीगेटर्स का एक साथ पटल से गायब होना, ऊर्जावान ब्लागरों के उत्साह में कमी, फेसबुक का
वर्चस्व आदि शामिल हूं...लेकिन साथ ही ये भी मानता हूं कि जब तक अजय कुमार झा जैसे ओजस्वी और ब्लागिंग के प्रति निष्ठ योद्धा कैटेलिस्ट की भूमिका निभाते रहे, ब्लागिंग में जोश बना रहा...लेकिन कुछ व्यक्तिगत कारणों और स्वास्थ्य की वजह से अजय भाई ब्लागिंग से दूर रहे तो ब्लागिंग में भी ठंडापन आ गया...ज़रूरत है एक बार फिर उसी जज़्बे को लौटाने की...मैं अभी शहर से बाहर हूं...वापस आकर अजय भाई से बात करूंगा...क्या कुछ किया जा सकता है, इस बारे में...
एक बार आपको फिर बधाई...
जय हिंद...
खुशदीप -- एक संतुलन बनाये रखना ज़रूरी है। आखिर निज़ी जिंदगी में और भी बहुत सी जिम्मेदारियां होती हैं। इसलिए नियमित लेकिन सीमित ब्लॉगिंग ही बेहतर है।
Deleteसुन्दर प्रस्तुति,
ReplyDeleteजारी रहिये,
बधाई !!
सुंदर विश्लेषण। आप सिर्फ अपने में मगन नहीं रहे,पूरी शिद्दत से जिया ब्लॉगिंग को आपने,ऐसा यह आलेख पढ़कर निश्चित रूप से कहा जा सकता है।
ReplyDeleteफेसबुक पर भी लोग परेशान हैं। जिन्हें काफी लाइक्स और टिप्पणियां मिलती हैं,किन्हीं कारणों से यह कुछेक दिन न मिलें या कम मिलें,तो लोगबाग इस विषय पर पोस्ट लगाना नहीं चूकते। हम ब्लॉग जगत में भी ऐसी कई पोस्टें देख चुके हैं।
फेसबुक और ट्विटर इन दिनों बेहद लोकप्रिय हैं और हाल की कई क्रांतियों का श्रेय भी इन्हें दिया जाता है। ब्लॉग अपेक्षाकृत गंभीर पाठकों के लिए है। मुझे खुशी है कि इस मंच ने मुझे आप समेत कई लेखकों से परिचय कराया।
आज आप ग़ौर करेंगे,अधिकतर अख़बारों के संपादकीय पन्नों के आलेखों का साइज भी काफी छोटा हो गया है। नीतिकार कहते हैं कि लोग ज्यादा पढ़ना नहीं चाहते। संभव है,फेसबुक और ट्विटर ऐसी ही मानसिकता से आगे बढ़ रहे हों।
मैं समझता हूं कि जल्दी ही लोगों का भ्रमजाल टूटेगा और ब्लॉग फिर से अपनी गति पकड़ पाएंगे।
राधारमण जी , फेसबुक टी 20 है , ब्लॉगिंग टेस्ट मैच है। :)
Deleteडाक्टर साहब,
ReplyDeleteचार वर्ष की उपलब्धि ब्लॉग जगत में बधाई हो !
मै तो हमेशा पढ़ती हूँ आपकी पोस्ट, लेकिन टिप्पणी हमेशा करना बहुत
कम कर दिया है कारण बिना अपेक्षा सबको पढ़ा जा सके !
टिप्पणियां बहुत सारा समय खा जाती है !
जी सही कहा। लिखने में काफी समय लग जाता है। पढने के लिए भी समय होना चाहिए।
Deleteब्लॉगिंग से मोह भंग की जो मूल वजह है उसे कहना समझदारी के खिलाफ़ समझ लेने से भी हिन्दी ब्लॉगिंग पर बुरा असर पड़ा है. हिन्दी ब्लॉगिंग छोड़कर जाने वालों में से कुछ ने इस विषय पर खुलकर भी बहुत कुछ कहा है.
ReplyDeleteदेखिये -
http://blogkikhabren.blogspot.in/2012/12/blog-post_28.html
डाक्टर साहब, आपने सभी टीस को इस पोस्ट द्वारा बडे चुटीले अंदाज में व्यक्त किया है. इस अंदाज में कोई आप जैसा हास्य कवि ही लिख सकता है, बहुत बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteवैसे आपकी शिकायत पर ताऊ की अध्यक्षता में एक समिति का गठन कर दिया गया है. जांच रिपोर्ट आते ही कारण और निवारण रपट प्रस्तुत कर दी जायेगी.:)
रामराम.
:)
Deleteनही जानता कैसे बन जाते हैं, मुझसे गीत-गजल।
ReplyDeleteजाने कब मन के नभ पर, छा जाते हैं गहरे बादल।।
ना कोई कापी या कागज, ना ही कलम चलाता हूँ।
खोल पेज-मेकर को, हिन्दी टंकण करता जाता हूँ।।
देख छटा बारिश की, अंगुलियाँ चलने लगतीं है।
कम्प्यूटर देखा तो उस पर, शब्द उगलने लगतीं हैं।।
नजर पड़ी टीवी पर तो, अपनी हरकत कर जातीं हैं।
चिड़िया का स्वर सुन कर, अपने करतब को दिखलातीं है।।
बस्ता और पेंसिल पर, उल्लू बन क्या-क्या रचतीं हैं।
सेल-फोन, तितली-रानी, इनके नयनों में सजतीं है।।
कौआ, भँवरा और पतंग भी इनको बहुत सुहाती हैं।
नेता जी की टोपी, श्यामल गैया, बहुत लुभाती है।।
सावन का झूला हो, चाहे होली की हों मस्त फुहारें।
जाने कैसे दिखलातीं ये, बाल-गीत के मस्त नजारे।।
मैं तो केवल जाल-जगत पर, इन्हें लगाता जाता हूँ।
क्या कुछ लिख मारा है, मुड़कर नही देख ये पाता हूँ।।
जिन देवी की कृपा हुई है, उनका करता हूँ वन्दन।
सरस्वती माता का करता, कोटि-कोटि हूँ अभिनन्दन।।
बहुत सुन्दर कविता।
Deletebadhaaii 4 saal blog jagat me rehnae ki aur nirantar blogpost par apnae vichaar daenae ki
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ReplyDeleteडॉक्टर साहब सबसे पहले तो ब्लॉगिंग के चार वर्ष आनन्द में व्यतीत करने के लिए बधाई!! वस्तुतः यह पोस्ट सुक्ष्म सर्वेक्षण और अथक परिश्रम का फल है। एक कवि हृदय इन्सान ही इतना गहन अध्ययन कर सकता है। इस कार्य के लिए बहुत ही बधाई!!
ReplyDeleteमुझे बड़ी प्रसन्नता हुई जब अपना नाम यहाँ नहीं देखा, सन्तुष्टि है कि कोई विशेष उल्लेखनीयता नहीं है अतः न किसी के लिए समस्या बना हूँ और न किसी के विरह का कारण बनुंगा!! यह उपलब्धि तो और भी विशेष है।
भाई, आपकी सारगर्भित और विस्तृत टिप्पणियां अन्य ब्लॉग्स पर यदा कदा पढता रहता हूँ। यदि यह लिस्ट किसी सम्मान समारोह के लिए होती तो आपका नाम निश्चित ही बहुत ऊपर होता। लेकिन हम बस करीब 100 ब्लॉग्स को ही फोलो कर पा रहे हैं, और ये ही हमें भी फोलो करते हैं। समय की सीमा विस्तार में बाधा उत्पन्न करती है। लेकिन बेशक अब कुछ नए ब्लॉग्स से परिचय होने वाला है। इसके लिए हमें लेखन से समय निकालकर पाठन क्रिया में लगाना होगा। आभार और शुभकामनायें।
Deleteinteresting...
ReplyDeleteडॉ.साहब ,बहुत-बहुत मुबारक हो ऐसी प्यारी पोस्ट के लिए ..खूब दिल से याद किया है सबको और खूब प्यार भी लुटाया है
ReplyDeleteसब पर ....सिवाय मेरे ...बहुत खोजने पर ही अपना नाम अपनी यादों की तरह ही धुंधला सा पाया ...वैसे आप ने ठीक
ही किया अपने पास है ही क्या...सिवाय अपनी गुजरी यादों के ??? सब के नाम चमक रहे थे बस एक हम ही ..:-)))
चलो ये भी आप की पोस्ट में हमारा एक रिकार्ड बना है कि मुझ जैसा कोई नही ....आप ने याद दिलाया तो हमें याद आया
कि ह्म् जैसा बुढा वहाँ कोई नही...पर ये दिल तो बच्चा है ???:-)) खुश रहें और स्वस्थ रहें !
इतनी लम्बी पोस्ट और इतनी मेहनत पर .....इतनी लम्बी टिप्पणी का तो हक आप का भी बनता है|
शुभकामनायें| आने वाले नव-वर्ष के लिए आप सब परिवार को और इस पोस्ट पर टिप्पणी देने वालो को भी .....
हा हा हा ! अशोक जी , लगता है आपके नाम पर काला रंग चढ़ा ही नहीं। इसलिए अब हमने सबसे अलग अपनी पसंद का रंग लगा दिया है जो स्वीकार भी हो गया। :)
Deleteबुजुर्गों का आशीर्वाद बना रहे , बस यही दुआ करते हैं।
आपको भी नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें।
बड़े श्रम से इतनी ख़ूबसूरत पोस्ट लिखी है, करीब करीब सारे नाम जाने-पहचाने दिखे, यानी कि हमभी काफी लोगो को को पढ़ते हैं
ReplyDeleteब्लॉग्गिंग करते करते चार साल पूरे करने के लिए बहुत बहुत बधाई. आपने इस पोस्ट में बहुत मेहनत कर चार साल का ब्लॉग्गिंग का इतिहास ही समेट लिया. पुराने साथियों के बिछुडने का दुःख तो होता है. ब्लोगिंग के माध्यम से ऐसा लगता है कि हम सब एक परिवार के सदस्य हों और एक दुसरे से जुड़ा महसूस करते हैं. बस ब्लोगिंग बंद मत करियेगा यूँ ही लिखते रहिये. बहुत शुभकामनायें सुंदर लेखन के लिये नए वर्ष में और आने वाले अनेक वर्षों के लिये.
ReplyDeleteपहले तो नामों की भीड़ में अपना नाम नज़र ही नहीं आया .पर अभी अभी अपना नाम भी दिख गया कि "कुश्वंश जी , वंदना अवस्थी दुबे , रश्मि रविजा, महेंद्र मिश्रा ने भी लिखना कम कर दिया है."
ReplyDeleteऔर आपकी मेहरबानी से इस साल लिखे गए अपने पोस्ट्स की गिनती भी कर डाली :)
इस साल 59 पोस्ट लिख डाली है। यानि हर महीने औसतन तकरीबन पांच पोस्ट ..ये कम है? :):)
ओह ! रश्मि जी , हम तो बस 'मन का पाखी' फोलो करते हैं। :)
Deleteज्यादा से ज्यादा निरंतरता ज्यादा ज़रूरी है। बनाये रखिये।
अच्छा!!! आपने सचमुच बड़ी मेहनत की है , जितने ब्लौग फौलो करते हैं सबका लेख-जोखा किया है।
ReplyDeleteपर ख़ुशी है कि आप मेरा "अपनी उनकी सबकी बातें' फौलो नहीं करते पर उस पर नियमित कमेन्ट करते हैं। बहुत बहुत शुक्रिया :)
यानि गलती पकड़ी गई ! :)
Deleteआपकी इस पोस्ट के माध्यम से ब्लॉग जगत की पूरी जानकारी मिल गयी, आभार।
ReplyDelete....आपका नाम तो पहले ही आना चाहिए था !
Deleteवाह ! आपकी इस पोस्ट से ब्लॉग जगत की स्थिति का बढ़िया ज्ञान हुआ | आभार :)
ReplyDeleteसंतुलित शब्दों में विस्तृत चर्चा।
ReplyDeleteहमारे लिए खुशी की बात यह है कि हम आपके दिल में रहते हैं।..आभार।
दाराल साहब,,,ब्लोगिंग के चार साल पूरा करने बहुत२ बधाई,शुभकामनाए,आपके चार साल के ब्लोगिंग इतिहास में अपने को पाकर मै तो धन्य हो गया,इतने सारे पुराने साथियों के साथ मुझे याद रखा,,आभार,,,,,,
ReplyDeleteनिर्बाध आप इसी तरह लिखते रहे,और हम पढ़ते रहे,,,,,
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recent post : नववर्ष की बधाई
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ReplyDeleteडॉ .साहब आप आकर हमारी पोस्ट को पूर्णता /सार्थकता /मान्यता दिलवातें हैं .इधर एक बुजुर्गवार श्री पुरुषोत्तम पाण्डेय जी भी संस्मरण शैली में कसावदार सत्य कथाएँ लिख रहें हैं इनका ब्लॉग है
ReplyDeleteजाले .
और डॉ .तारीफ़ सिंह दराल साहब को आप कैसे भूल गए जो एक बेहतरीन इंसान हैं सिर्फ ब्लोगर नहीं हैं .भले व्यंग्य विनोद के पिटारे हैं . मेडिकल सुप्रिनटेनडेंट (M.S.) का पद भार संभाले हैं दिल्ली के
एक नाम चीन अस्पताल में .ब्लोगिंग
का चस्का पालें हैं .
नया साल लाये तंदरुस्ती और मस्ती आपके गिर्द .
वाह, गजब लिखा है! सबसे सफाई ले ली आपने.
ReplyDeleteनव वर्ष की अग्रिम शुभकामनाएँ.
घुघूतीबासूती
सबसे पहले तो आपको ब्लॉगिंग के चार साल पूरे करने की बधाई। बिना फ़ालतू के पंगे लिये अपने मन की बात कम शब्दों में कहने में आपको महारत हासिल है। आपका हास्य बोध भी गजब का है।
ReplyDeleteडा.अमर कुमार और चंद्रमौलेश्वरजी का असमय साथ छोड़ जाना बहुत खलता है। आपने आज उनकी याद फ़िर से दिला दी। सच कहें तो आपकी पोस्ट पढ़ने के पहले मुझे आज सुबह-सुबह डा.अमर कुमार याद आये। पाबलाजी के बच्चे की असमय मौत बहुत दर्दनाक हादसा था। वे जल्दी अपने दुख से उबर सकें।
आपने चार साल की ब्लॉगिंग के बारे में अच्छा लिखा। कई लोगों की फ़िर से याद दिला दी। हमको ब्लॉगिंग का धुरंधर बताया। इसके लिये सोचते है आभार कह ही दें।
मैं पिछले आठ साल से ज्यादा समय से ब्लॉगिंग के इलाके में हूं। हमसे पहले शुरु हुये रवि रतलामी जी ही अब नियमित ब्लॉगिंग में जमें हैं। बाकी लोग कम-ज्यादा होते हुये इधर-उधर या फ़िर न जाने किधर-किधर हो लिये हैं। आशा है कि वे फ़िर लौटेंगे।
मुझे लगता है कि फ़ेसबुक और ट्विटर कभी ब्लॉगिंग की जगह नहीं लिख सकते। ये तुरंता माध्यम आपकी अभिव्यक्ति को उतनी खूबसूरती से सहेज नहीं सकते। आप इस तरह का लेख फ़ेसबुक और ट्विटर पर नहीं लिख सकते। फ़ेसबुक और ट्विटर फ़ास्ट फ़ूड की तरह हैं। हमने साल भर पहले लिखा था -हम ब्लॉग, फ़ेसबुक और ट्विटर तीनों का उपयोग करते हैं। समय कम होता है तो फ़ेसबुक/ट्विटर का उपयोग करते हैं लेकिन जब भी मौका मिलता है दऊड़ के अपने ब्लॉग पर आते हैं पोस्ट लिखने के लिय- जैसे आज आये! :)
हमको रविरतलामी जी ने साल में सौ ब्लॉग पोस्ट (बिना रिठेल किये) लिखते रहने का लक्ष्य दिया था। पिछली पोस्ट मिलाकर ( अभी साल के तीन दिन बाकी हैं) हमने इस साल 76 पोस्ट लिख डाली माने सम्मान सहित उत्तीर्ण हो गये।
आपको एक बार फ़िर से बधाई!
पोस्ट से सम्बंधित सम्पूर्ण और सारगर्भित शानदार टिप्पणी के लिए दिल से आभार अनूप जी। ब्लॉगिंग में चार साल बिताने के बाद लगता है कि मात्रा के बजाय गुणवत्ता ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। इसलिए भले ही सप्ताह में एक बार लिखा जाये, लेकिन नियमित और बढ़िया लिखने का प्रयास रहना चाहिए। ब्लॉगिंग ने निश्चित ही सोच को विस्तार दिया है। समय का आभाव हमेशा रहता है, समय की सीमायें हैं और रहेंगी। इसलिए एक ही ब्लॉग पर लिखने का प्रयास करते हैं।
Deleteवाह लिख डाला डाक्टर ने ..हम मसूबे ही बांधते रह गए .....कितने भूले बिसरे नाम आपने लिए .
ReplyDeleteडाक्टर साहब ये ज़िंदगी भी न बड़ी कुत्ती चीज है लोगों से क्या क्या नहीं छुड़वा लेती ये तो "दो कौड़ी " की ब्लागिंग हैं!
आपने साबित कर दिया कि आपका प्रोफेसन चाहे कुछ भी हो आप एक सच्चे ब्लॉगर हैं {मेरी तरह :-) } ....
कितने मेरे अपने भी छूट गए और गए तो फिर से नहीं लौटे ..जैसे कसम खा ली हो ये नामुराद(यानी मैं) जब जाएगा तभी वापसी होगी उनकी ..मगर मुई ये ऐसी लगी कि अब छूटती नहीं मानों उन्ही का इंतज़ार कर रही हो .......क्या वो आयेगीं? :-)
कभी कभी यही फख्र होता है कि चलो उनसे मेरा नाम तो जुडा जो आजीवन जुड़ा ही रहेगा ....कम से कम मेरे जीवन तक तो जरुर ही ..
आपकी इस पोस्ट ने देखिये मुझे भावुक कर दिया ..भूली बिसरी चंद उम्मीदे चंद फ़साने याद आये ....तुम याद आये साथ तुम्हारे गुजरे ज़माने याद आये ! कुछ ब्लॉग हिस्टोरियन हैं जिन्हें यह सब फ़साना पता है !
आज ही सोच रहा था वे जो चले गए वे कहाँ लौट के आये -कुश ,घोस्ट बस्टर, लवली कुमारी, आज ही इनकी बेइंतिहा यादें आयी हैं!
पता नहीं कहाँ गए ये लोग और किस हालत में हैं -गेम रोज़गार ने इन्हें हमसे दूर किया या फिर और कुछ समझ में नहीं आता ...
बाकी तो कई मित्र अपने नक्चढ़ेपन के साथ मुझसे ही दूर नहीं हुए ब्लागिंग से भी किनारा कर रहे हैं -आ जाओ भाई हम विनती करते हैं!
क्या लिखें कितना लिखें आपने जो दर्द छेड़ दिया ....और इस गम को गलत करने का कोई साथ और साधन भी नहीं है पास ....
इस बेकसिये हिज्र में मज्बूरिये नुक्स हम उन्हें पुकारें तो पुकारें न बने ......हमें दिव्या श्रीवास्तव जी के लिए भी बहुत खेद है,प्रतिभाशाली और पढी लिखी होकर भी उन्होंने रेटरिक का दामन थाम लिया-एक प्रतिभा का देखते देखते अवसान! आई एम सारी फार यू दिव्या जी !
आपने एक और बहुत उल्लेखनीय नाम नहीं लिया -अल्पना वर्मा जी का -कभी वे बहुत सक्रिय थीं अब कम हो गया है उनका लिखना -उनसे आज भी उम्मीदें कायम हैं ! बाकी संतोष त्रिवेदी की बात मेरी समझी जाय -और आपने तो विचारों की एक ट्रेन दौड़ा ही दी है -आज नींद नहीं आयेगी !
ओह ! अरविन्द जी , इतनी भावुक प्रतिक्रिया ! कभी कभी हम दोनों की सोच बिल्कुल एक हो जाती है। :)
Deleteयह सच है कि ब्लॉग्स पर मिले लोगों से एक रिश्ता सा बन जाता है। आखिर यह कम्युनिकेशन की बात है जो आजकल एक ही छत के नीचे रहते हुए घर वालों में भी कम होता जा रहा है। ऐसे में जिनसे रोज गुफतगू होती है उनसे दिल का नाता जुड़ना स्वाभाविक ही है। दिल में भी तो चार चैंबर होते हैं ना , जिनमे से एक तो दोस्तों के लिए आरक्षित रहता है। जीवन की भाग दौड़ में कुछ लोगों का पीछे छूट जाना भी लाजिमी है। इसीलिए कहते हैं , लाइफ़ हैज टू गो ओन।
हमें भी श्री जे सी जोशी जी की काफी समय से कोई खबर न मिलने से अजीब सा महसूस हो रहा है। जिनसे कभी मिले नहीं , लेकिन ब्लौग पर एक अटूट सा रिश्ता बन गया था। इ मेल के अलावा कोई संपर्क भी नहीं होने से यह रिश्ता आखिर आभासी होने का प्रमाण दे ही देता है। खुदा खैर करे।
अल्पना वर्मा जी का काफी नाम सुना है लेकिन कभी संपर्क नहीं हुआ। यहाँ हमारी भी सीमायें या यूँ कहिये कमी सी है जो मित्रों का दायरा सीमित है। इस पोस्ट का एक फायदा यह हो रहा है कि अच्छे ब्लॉगर्स के बारे में और पता चल रहा है। जिनसे नाता टूट गया , उनके मामले में बस पहल करने की बात है जो कभी कभी हम नहीं कर पाते ।
आज नींद नहीं आएगी --- तो आप आ जाइये , सांपला जहाँ आज एक हास्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया है जिसमे हम मुख्य अतिथि रहेंगे। बाकि मिलने के बाद। :)
@अरविन्द मिश्र जी ,अच्छा लगा आप ने मेरा नाम याद रखा.वर्ना ब्लॉगजगत एक फिल्मजगत की तरह है जहाँ जब तक नज़र के सामने रहें तब तक लोग याद रखते हैं..ज़रा सा ओझल हुए कि लोग भी भूल गए.[और वैसे भी ब्लॉग्गिंग के सागर में मैं कहाँ कोई उल्लेखनीय नाम !]
Deleteआभार आप का.
अल्पना जी ,
Deleteडाक्टर साहब ने अभी अभी कहा कि दिल के चार चैंबर होते हैं तो फिर वहां अतिशय प्रियजनों को अकोमोडेट करना इतना भी मुश्किल नहीं है :-) बहुत शुभकामनाएं -फिर से पहले जैसी ही ब्लागिंग पर लौटिये -साईंस ब्लागर्स को आपका इंतज़ार है! नए वर्ष के नए रिज्योलुशन में प्लीज एक यह भी रहे!
चार वर्ष सफलतापूर्वक पूर्ण करने पर आपको बहुत बहुत हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ... आपने इस पोस्ट में पूरे चार वर्षों के अनुभव संजो दिए हैं ... पारिवारिक व्यस्तता के कारण ब्लॉग में बहुत ही कम लिख पाया हूँ मगर ब्लागजगत से दूरी नहीं है . लिखने में जो कमी आई है इस कमी को जल्दी दूर करने की कोशिश करूँगा . आभार
ReplyDeleteअभी अभी पता चला कि दामिनी नहीं रही। दिल दुःख से भर गया। इतनी बहादुर लड़की जिसने बड़े साहस के साथ विपरीत परिस्थितियों का सामना किया , आखिर जिंदगी की जंग ह़ार गई। जहाँ उसके साथ हुए अत्याचार से मानवता शर्मसार है, वहीँ उसके अदम्य साहस के आगे देश नतमस्तक है। दामिनी का बलिदान बेकार नहीं जायेगा। यह आज की युवा पीढ़ी को नई दिशा दिखायेगा। ईश्वर उसे अपने चरणों में स्थान दे।
ReplyDeleteआपसे सहमत हूँ, यह बलिदान बेकार नहीं जाना चाहिए!
Deleteडॉ सा'ब, आपने याद किया, मन भर आया
ReplyDeleteकोशिश करता हूँ एक बार फिर ब्लॉगिंग में सक्रिय होने की
डॉ साहेब ..अपने चार अमुल्य साल ब्लोगिग को देने के लिए धन्यवाद ...पिछले दिनों पी सी ने बहुत टाईम ख़राब किया ..इस कारण कोई भी लिखे हुए लेख पोस्ट नहीं कर पाई जबकि कई कविताये लिखी हुई रक्खी थी ..आपकी पोस्ट पर मेरे 'दर्शन ' हो गए यही मेरे लिए बहुत बड़ी बात है ....धन्यवाद !
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत तरीके से आपने तमाम ब्लागरों की अनुपस्थित को रेखांकित किया ,मै आपको याद आया इस सम्मान के लिए शुक्रिया |
ReplyDeleteसर मैं गायब नहीं हूँ ,बस थोड़ा आना कम हो गया है , कोशिश करूंगा की पुनः शिकायत का मौक़ा न मिले |
पाबला जी , दर्शन जी , अजय कुमार जी - व्यक्तिगत व्यस्ताओं से समय निकालने को ही शौक कहते हैं।
Deleteअपने शौक अवश्य पूरे करते रहें . शुभकामनायें।
ये भी खूब रही..
ReplyDeleteबीतें साल का अच्छा ज्ञानवर्धन हुआ आपकी पोस्ट पढ़कर..
नववर्ष सबके लिए मंगलमय हो यही शुभकामना है ..
अच्छा खासा लेखा जोखा दे डाला आपने ..हमें भी याद रखने का शुक्रिया. फेसबुक आदि से ब्लॉग्गिंग में कमी तो आई है. परन्तु लिखने वाले आज भी लिख ही रहे हैं, और लिखते ही रहेंगे.
ReplyDeleteवो क्या है न ..अपना तो जीना यहाँ मारना यहाँ, इसके सिवा जाना कहाँ :).
बहुत शुक्रिया इस यादगार पोस्ट का.
.
ReplyDelete.
.
डॉ० साहब,
एक ही पोस्ट में इतने सारों का ,गजब लेखा जोखा खोल रख दिया है आपने... इस बात पर आपसे सहमत कि फेसबुक २०-२० है और ब्लॉगिंग टेस्ट क्रिकेट...
आभार!
...
बहुत ही रोचक तरीके से प्रस्तुत किया है यह लेखा -जोखा!
ReplyDeleteकाफी समय के बाद ब्लोग्स खोल कर पढ़े। आपकी पोस्ट पढने के बाद मेरी आँखों के सामने कई चेहरे आ गए जिनसे रूबरू मुलाकात कभी नहीं हुई जो रिश्ता बना वो ब्लॉग्गिंग के जरिये ही बना . भावनात्मक प्रस्तुति
ReplyDeleteचार साल का लेखा जोखा को प्रस्तुत करने का अंदाज बेहद पसंद आया |
ReplyDeleteसर क्या कहूं...अपन पूरी तरह से अस्तवय्सत इंसान हैं. ये हमें पता था..आपने जाना क्योंकि आप डागडर बाबूं हैं....हम तो वैसे भी महीने में तीन से पांच पोस्ट ही लिखते रहे हैं शुरु से तभी तो शतक मारने में लगभग ढाई साल लग गए...पिताजी के अवसान के बाद लगभग तीन महीने पूरी तरह से दूर हो गया था ब्लागिंग से...हालांकि उन दिनों अखबार निकालने का इरादा बना रहा था. .वरना अपनी स्पीड वही है मीने में तीन से पांच पोस्ट वाली....और ये भी मजेदार है कि दिल्ली में होते हुए भी आपसे रुबरु नहीं हो पाया हूं...जबकि लोगो से मिलना औऱ सुनना मुझे अच्छा लगता है...ये काम मीडिया में होकर भी नहीं कर पा रहा हूं इसका दर्द सालता है..रोजी रोटी मीडिया में अपने मनपसंद का काम न होने दे रही है ये सोच कर परेशान भी होता हूं....रह गई बाद बिंदास बोलने की...तो हर पोस्ट में बिंदास ही रहता हूं...अगर कहीं कमी नजर आए तो जरुर कहें....अब चाहे समाज को लताड़ लगानी हो या अपने यारों को....अपन ऐसा करते रहते हैं भले ही पेशेवर जिदंगी में इसका बहुत खामियाजा भूगता है..आज भी वही झेला है...देखिए तीन घंटे पहले ही एक आंदोलन से लौटा हूं और ब्लाग पर हूं....इतफाक देखिए जिस आंदलोन से लोटा हूं वो दामिनी के घर के पास चल रह है वो भी दारु का ठेका बदं करने को लेकर..आंदोलन महिलाओं ने शुरु किया है...पर कोई इसको कवर नहीं कर रहा ...ये बी विंडबना है..इसलिए सोचता हूं कि मीडिया की नौकरी छोड़कर अखबार ही निकाला जाए बेहतर होगा..पर अब अखबार में वो ताकत नहीं रहती जो टीवी में हैं..करें क्या समझ नहीं पाता ..मेरी तरह कई लोग मजबूरी में खड़े हैं बस मैदान छोड़ कर नहीं भाग रहे...फिर भी देखिए ब्लाग पर आया हूं...अक्सर टिप्पणियां तो करता हू...पर कभी कभी इतने ब्लाग पढ़ जाता हूं कि आप जैसे नियमित पढ़े जाने वाले ब्लाग पर ही टिप्पणी करनी रह जाती है औऱ बाकी कई जगह टिप्पणी कर देता हूं। तो मेरे लिए ब्लागिंग वनडे भी है टी-20 भी औऱ टेस्ट..भी..
ReplyDeleteरोहित जी, अपने बिंदास अंदाज़ में लगे रहिये। अभिव्यक्ति से दिल को सकूं मिलता है। हालाँकि रोजी रोटी पहले आती है। शुभकामनायें।
Deleteशुभ भावना ,शुभकामना लिए आई है आपकी पोस्ट ,सानंद रहें सेहत मंद रहें कुछ नया करें 2013 में यही शुभेच्छा है .आभार आपकी सद्य टिप्पणियों का .
ReplyDeleteभागीरथ प्रयास की लिए सादुवाद ... कई ऐसे मित्र जो लंबे सफर में छूटने लगे थे आपने याद दिला दिए आज ...
ReplyDeleteआपको ४ वर्षों का सफर मुबारक ... ऐसे ही ये सफर आगे भी चलता रहे ... संबंध आत्मीयता के बने रहें ... आपने मुलाक़ात का एक मौका तो खो गया पर दुबारा मिलेंगे ये विश्वास जरूर है ... ब्लोगिंग में अभी बहुत दम है ...
सभी को नव वर्ष की मंगल कामनाएं ...
ठीक है जी, सच को भी हास्य मान लेते हैं :)
ReplyDeleteपर आपने विहंगम दृश्य उत्पन्न कर दिया .
वाह पूरा वहीखाता ही सामने रख दिया....
ReplyDeleteनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।।।
नमस्कार डाक्टर साहब . आपने तो सभी ब्लोगरो का तेल निकाल दिया . बहुत मजा आया पढकर . २००६ से मैंने ब्लॉग पढ़ना शुरू किया और २००८ मे अपना ब्लाग भी बनाया .फिर मैंने अपने बेटे माधव पर भी एक ब्लॉग बनाया पर मुझे लिखने मे नहीं पर ब्लॉग पढ़ने मे ज्यादा आनंद आता था . कई धुरंधर ब्लोगरों के ब्लोग का नियमित पाठक बना . रवीश का "कस्बा" , अविनाश का "मोहल्ला " समीर लाल का "उदंताश्तारी " आदि ब्लोगों ने खूब धूम मचाई . पर हिन्दी ब्लोगिंग की उम्र बहुत छोटी निकली और फेसबुक के प्रचलित होते ही सारे ब्लोगर धीरे धीरे कर लुप्त होते गए . आप जैसे ही कुछ अच्छे ब्लोगर ही बचे है .
ReplyDeleteनए साल मे यही कामना है कि हिन्दी ब्लोगिंग का वो पुराना दौर (२००६-२०१० ) वापस आ जाए.
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
आशा तो है कि ये फेसबुक का बुखार जल्दी ही उतर जायेगा .
Deleteउम्दा लिखने का अवसर मिले तो लिखते रहना चाहिए। यह व्यक्ति की सोच में निखार लाता है।
मंगलमय नव वर्ष हो, फैले धवल उजास ।
ReplyDeleteआस पूर्ण होवें सभी, बढ़े आत्म-विश्वास ।
बढ़े आत्म-विश्वास, रास सन तेरह आये ।
शुभ शुभ हो हर घड़ी, जिन्दगी नित मुस्काये ।
रविकर की कामना, चतुर्दिक प्रेम हर्ष हो ।
सुख-शान्ति सौहार्द, मंगलमय नव वर्ष हो ।।
ख़ूबसूरत....ख़ूबसूरत....ख़ूबसूरत बहुत ही रोचक अंदाज़ प्रस्तुति का.....डाक्टर साहब
ReplyDelete....आपने हमे भी जगह दी इस सम्मान के लिए आपका बहुत -२ शुक्रिया |
@ संजय भास्कर
धन्यवाद डॉ साहब। वैसे मैं ब्लाग्स ('क्रांति स्वर','विद्रोही स्व-स्वर मे','कलम और कुदाल'।'जनहित मे'लगातार सक्रिय हूँ और श्रीमती जी के ब्लाग 'पूनम वाणी' की टाईपिंग भी खुद ही करता हूँ। शायद विवादों से बचने के कारण ब्लाग्स पर टिप्पणियाँ देने से संकोच करता हूँ इसीलिए आपने ऐसा निष्कर्ष निकाला होगा।
ReplyDeleteसुंदर है,वाह-वाह,खूब बढ़िया जैसे लच्छेदार शब्द मेरे पास नहीं हैं और लोगों को इनकी ही ख़्वाहिश रहती है अतः टिप्पणी देने से बचने लगा हूँ।
डॉ दराल साः को खुला पत्र ---विजय राजबली माथुर
ReplyDeleteप्रणाम सर ... बस ऐसे ही स्नेह बनाएँ रखें !
ReplyDeleteओह ,पांच साल पुरानी पोस्ट और मैंने आज पढ़ी .आपने मुझे छोटी कविताओं और हाइकु के माध्यम से याद रखा इसके लिए आभार .आप मेरे ब्लॉग बिखरे मोती को ही फॉलो करते हैं इस लिए मेरी थोड़ी बड़ी कविताओं को आपकी नज़रें इनायत नहीं मिल पायीं .
ReplyDeleteमेहनत से तैयार की गयी इस पोस्ट के लिए बधाई .
जी हाँ , बिखरे मोती ब्लॉग को तो बहुत पढ़ते रहे हैं। अब बंद सा हो गया है पढ़ना। लेकिन फिर कोशिश करते हैं।
Deleteपूरी ब्लाग डाक्यूमेंट्री बना डाली आपने। इस साल कुछ नई उठा पटक की जाए तो कैसा रहे?
ReplyDeleteरामराम
तरोताजा हो लिए फिर......एक बार विराट सम्मेलन प्लान किया जाये... ताऊ तो है ही लट्ठ लिए अपने साथ...
ReplyDeleteकुछ करने की ज़रुरत तो है। देखते हैं , क्या संभव हो पाता है।
ReplyDeleteकमाल की.पोस्ट
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