इस वर्ष हम नई दिल्ली की शताब्दी मना रहे हैं । नई दिल्ली का निर्माण कार्य १९११ में आरम्भ हुआ था । वैसे तो दिल्ली का इतिहास ५००० साल से भी ज्यादा पुराना है । पांडवों से लेकर मुग़ल सल्तनत और फिर अंग्रेजों के आधीन रहकर दिल्ली ने बहुत उतार चढाव देखे हैं ।
लेकिन आज जहाँ एक ओर पुरानी दिल्ली और कई पुरातत्व स्मारक हमारे इतिहास की धरोहर हैं , वहीँ आधुनिक विकास में भी दिल्ली ने अभूतपूर्व और अतुल्य उन्नति की है ।
प्रस्तुत है , इस कड़ी में पहली किस्त :
मनुष्य की प्रकृति रही है कि वह अपनी ज़रुरत पूरी करने के लिए निरंतर प्रयासरत रहा है ।
लेकिन जो पहले ज़रुरत होती है , वह बाद में आदत बन जाती है और अंत में लत बनकर मनुष्य को अपने वश में कर लेती है ।
अब देखिये , सुबह उठते ही अख़बार के साथ चाय की लत , शाम को टी वी देखने की लत और एक ब्लोगर के लिए समय मिलते ही कंप्यूटर की लत ।
कंप्यूटर भी बिना इंटरनेट के ऐसा हो जाता है जैसे बिना पेट्रोल के गाड़ी ।
अभी पिछले दिनों कुछ ऐसा ही हुआ हमारे साथ । हुआ यूँ कि पिछले महीने हमारा टेलीफोन का बिल नहीं मिल पाया । दीवाली की वज़ह से हमें भी ख्याल नहीं आया । पता तब चला जब एक दिन पाया कि फोन डेड पड़ा है । वैसे भी लेंड लाइन पर निर्भरता अब बिलकुल ही ख़त्म हो गई है ।
लेकिन असली शॉक तो तब लगा जब देखा कि उससे जुड़ा नेट कनेक्शन भी डेड हो गया है ।
अब सोचिये एक ब्लोगर के लिए इससे बड़ा शॉक और क्या हो सकता है ।
खैर , पता चलते ही हमने फ़ौरन डुप्लीकेट बिल बनवाया । लेकिन इत्तेफाक से जमा करने में कई दिन लग गए ।
आखिर किसी तरह समय निकालकर चेक जमा कर ही दिया ।
वैसे भी यहाँ बिल जमा करना भी हमारे लिए तो एक उपलब्धि जैसा ही लगता है ।
और फिर लगे इंतजार करने कनेक्शन रीकनेक्ट होने का । डर तो यही था कि चेक दो दिन में क्लियर होगा , फिर एक सप्ताह बाद जाकर कनेक्शन शुरू होगा ।
वैसे भी जिस फोन के बिल पर पता अंग्रेजी में लिखा हो --PPGIP EXT ( पतपरगंज आई पी एक्सटेंशन ) और उसका हिंदी में अनुवाद हो --पप्गिप एक्सटेंशन और तारीफ सिंह का अनुवाद टैरिफ सिंह हो , उनसे और उम्मीद भी क्या की जा सकती है ।
जिस दिन चेक जमा किया , हमने श्रीमती जी को अपनी दुविधा बताई तो वो बोली -अरे आपको कैश जमा करना चाहिए था । तब जल्दी शुरू हो जाता ।
बहुत अफ़सोस हो रहा था कि अब वीक एंड पर बहुत बोर होना पड़ेगा , बिना ब्लोगिंग के । आखिर लत जो पड़ गई है ।
लेकिन फिर दिल नहीं माना और आशा के विपरीत मन में आस लिए हमने नेट खोल ही लिया ।
और यह क्या , नेट तो चालू था । यानि चेक जमा करने के ४-५ घंटे के अन्दर फोन और नेट दोनों चालू हो गए थे ।
हम हैरान रह गए , टेलीफोन विभाग की तत्परता देखकर ।
पहली बार हमें भी विश्वास हुआ कि समय बदल गया है ।
सचमुच विकास जोरों पर है ।
एम् टी एन एल की इस उपलब्धि पर मैं इस विभाग को और दिल्ली वालों को बधाई देता हूँ ।
अब तो हम भी कह सकते हैं --दिल्ली है मेरी जान , दिल्ली है मेरी शान ।
नोट : शताब्दी वर्ष के उपलक्ष में दिल्ली में अनेक कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं । हमसे जुड़े रहिये , आपको घर बैठे दिल्ली दर्शन कराते रहेंगे ।
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मुबारक हो भाई जी !
ReplyDeleteसमय के साथ बदलाव आना ही है ....
शुभकामनायें !
अब तो हम भी कह सकते हैं --दिल्ली है मेरी जान , दिल्ली है मेरी शान ।
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको इस पोस्ट के लिए और दिल्ली के लिए किये जा रहे आपके सार्थक प्रयास के लिए ...
यह दिल्ली दर्शन .....अच्छा लगा पढ़कर .....!
ReplyDeleteइस पोस्ट से यह सीख मिलती है कि आशा के विपरीत काम कर ही लेना चाहिए :)
ReplyDeleteअग्रिम धन्यवाद दिल्ली-दर्शन कराने हेतु।
ReplyDeleteये कौरब कहाँ दिल्ली का विकास होने देंगे , डा० साहब ! कल पीर किसी ने पूर्वी दिल्ली में लाक्ष्यागृह को आग लागा दी :) ! वैसे आपका सर्कैस्म अच्छा लगा पढ़कर :):)
ReplyDelete...दूसरी तरफ एअरटेल को देखिये, वो बिल भेज कर लास्ट डेस से पहले ही फोन करने बैठ जाते हैं कि आपका पैसा नहीं आया. आप कहें तो वे किसी को चैक लेने आपके घर भी भेज देते हैं. दूसरी तरफ, MTNL फ़ोन काट कर संतुष्ट हो जाता है. लेकिन अगर 4-5 घंटे में फ़ोन चालू हो गया तो हो सकता है कि MTNL को अभी बंद होने में कुछ साल और लगें. बड़ा दुख होता है यह लिखते हुए... क्योंकि इस तरह के संस्थान आपके और मेरे जैसे करदाताऔं के पैसे से बनाए गए हैं.
ReplyDeleteलेकिन बिल का भुगतान करने गए लोगों को यूं दुत्कार कर लाइनें लगवाते हैं कि शायद यह दुनिया का अकेला धंधा करने वाला ऐसा संस्थान होगा जिसे पैसे लेने में भी मौत आती है. अभी भी इसे सुधरने में बहुत समय लगेगा, अगर आज भी कोशिश शुरू कर दे तो.
डेस=डेट
ReplyDelete15 दिसंबर को कलकत्ता से हटा कर दिल्ली को देश की राजधानी बनाने के 100 साल पूरे हो रहे हैं...इसी विषय पर ट्रेड फेयर में दिल्ली पैवेलियन में पूरे 100 साल का सफ़रनामा दिखाया गया है...दुर्लभ फोटो और जानकारी के साथ...डॉक्टर साहब मौका लगे तो ज़रूर देखिएगा...
ReplyDeleteजय हिंद...
चलिए कहीं तो मौसम खुशगवार हुआ .. वरना हर जगह और हर तरह के बिल जमा करने में हालत खराब हो जाती है ..
ReplyDeleteअच्छा लगा यह दिल्ली दर्शन ..
बधाई हो सभी को।
ReplyDeleteNice post .
ReplyDeleteब्लॉगर्स मीट वीकली (18)
http://hbfint.blogspot.com/2011/11/18-indira-gandhi.html
बहुत बढ़िया लगा! दिल्ली की बात ही कुछ अलग है और मुझे दिल्ली शहर से बेहद लगाव है क्यूंकि मुझे पहली नौकरी दिल्ली में मिली थी और मैं करीब तीन साल थी !
ReplyDeleteबदलती हुई दिल्ली मुबारक हो :-)
ReplyDeleteअधिकतर जनता जिस मनोवृत्ति की होती है,उसे देखते हुए सरकारी संस्थाएं समय से बहुत आगे मालूम पड़ती हैं।
ReplyDeleteदिल्ली में आ रहे बदलाव की झलक तो आपने दे ही दी है ... टेलीफोन विभाग ठीक से काम करने लगा है .. और भी कई विभाग कर रहे हैं ...पर दिल्ली के दिल में जो बस्द्लाव आए हैं आशा हैउनके बारे में भी आप लिखेने ...
ReplyDeleteसुखद आश्चर्य मुझे भी हो रहा है आपकी पोस्ट पढकर ...अगर ऐसा है तो वाकई विकास हो रहा है.बरहाल आपको बधाई जल्दी नेट रिकानेक्ट हो जाने की.
ReplyDeleteदिल्ली तो बदलनी ही चाहिए क्योंकी राजधानी जो ठहरी , देश का चेहरा है दिल्ली .हमें भी बहुत प्यार है दिल्ली से क्यों न हो आखिर दिल से बनी है दिल्ली क्यों है न दराल साहब.आभार
ReplyDeleteजी अली जी , यह भी कह सकते हैं कि कभी उम्मीद नहीं छोडनी चाहिए ।
ReplyDeleteमाथुर जी , दिल्ली दर्शन का सिलसिला शुरू हो चुका है ।
गोदियाल जी , यह बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण हादसा था । आज सारा दिन इसी में लगे रहे ।
काजल कुमार जी , बदलाव तो आ रहा है , भले ही धीरे धीरे । अब कुछ लोग अदब से भी बात करने लगे हैं । लेकिन सभी नहीं । अभी भी ऐसे हैं जो बोलते हैं --ठंडा खा !
ReplyDeleteखुशदीप जी , कल ही देख कर आए हैं । जल्दी ही रिपोर्ट पेश करूँगा । वैसे दिल्ली के १०० साल एच टी पर भी खूबसूरती से पेश किये जा रहे हैं ।
नासवा जी , अभी तो दिल्ली में जश्न का माहौल चल रहा है । अगली कई पोस्ट इसी पर रहेंगी । आनंद लीजियेगा ।
शुक्रिया कुश्वंश जी । दिल्ली सब के दिलों में बसी रहनी चाहिए ।
कम्प्यूटीकरण का युग है तो पलक झपकते काम होंगे हीं। यदि नहीं हुआ तो समझों ’ह्यूमन एरर’ है :)
ReplyDeleteहमें भी BSNL पर ही भरोसा है, और वो बेहतर सर्विस दे भी रहे हैं।
ReplyDeleteहम तो शामिल हो आए 16 नवंबर को दिल्ली हाट में, आगे की खबरें यहां आ कर लेते रहेंगे.
ReplyDeleteबधाई हो आपको जो आपका internet connection 4-5 घंटे मेन ही चालू होगया वेरना सही कहा है आपने की बिना नेट के computar बिलकुल बिना पेट्रोल की गाड़ी है। और हम ब्लॉगर के लिए तो जैसे नेट न हो तो दुनिया ही ख़तम सी लागने लगती है। हर बार की तरह बढ़िया और जानकारी वर्धक पोस्ट क्यूंकि यह जानकर बहुत अच्छा लगा कि विकार जारी है।
ReplyDeleteबधाई हो आपको जो आपका internet connection 4-5 घंटे मे ही चालू होगया वरना सही कहा है, आपने कि बिना नेट के computar बिलकुल बिना पेट्रोल की गाड़ी है। और हम ब्लॉगर के लिए तो जैसे नेट न हो तो दुनिया ही ख़तम सी लागने लगती है। हर बार की तरह बढ़िया और जानकारी वर्धक पोस्ट क्यूंकि यह जानकर बहुत अच्छा लगा कि विकास जारी है।
ReplyDeleteसही कहा प्रसाद जी । कम्प्यूटर्स के आने से विकास में तेजी आई है ।
ReplyDeleteमनोज जी , प्राइवेट कम्पनियाँ पैसा कमाने के चक्कर में उलटे सीधे धंधे करने लग जाती हैं ।
राहुल जी , आपसे मिलना न हो सका । लेज्किन आपको यहाँ की ख़बरें देते रहेंगे ।
शुक्रिया पल्लवी जी और शास्त्री जी ।
LOL I can very well understand how it bad it feels when net is not working.
ReplyDeleteI'd love to know more about Delhi from u :)
"प्रकृति परिवर्तनशील है", इस कारण मानवीय व्यस्थाओं को भी बदलना तो पड़ता ही है, भले ही वर्षों की गुलामी के कारण अधिकतर बदलना नहीं चाहते... प्रसन्नता हुई जान कर कि कम्प्यूटरीकरण के कारण टेलीफोन विभाग सुधर रहा है... आपको बधाई!
ReplyDeleteज़माना सचमुच फास्ट हो गया है डॉ साहब ......हम आपके दिल्ली दर्शन के मुन्तजिर रहेगें !
ReplyDeleteमैंने निम्नलिखित टिप्पणी आपके पोस्ट पर डाली थी... किन्तु अभी देखा तो वो नदारद थी...सभी किन्तु कट नहीं जातीं!
ReplyDeleteइसका कारण कोई तकनीकी खराबी हो तो कोई बात नहीं, फिर भी देख लीजिये यदि यह ठीक हो सकता हो...
किन्तु यदि आप डिलीट कर रहे हैं तो मुझे तो कुछ इस में आपत्तिजनक नहीं लगा था...हो सकता है उछ आपको लगा हो, क्यूंकि 'पसंद अपनी अपनी / ख़याल अपना अपना"......
JC
"प्रकृति परिवर्तनशील है", इस कारण मानवीय व्यस्थाओं को भी बदलना तो पड़ता ही है, भले ही वर्षों की गुलामी के कारण अधिकतर बदलना नहीं चाहते... प्रसन्नता हुई जान कर कि कम्प्यूटरीकरण के कारण टेलीफोन विभाग सुधर रहा है... आपको बधाई!
@ JC said
ReplyDelete"प्रकृति परिवर्तनशील है", इस कारण मानवीय व्यस्थाओं को भी बदलना तो पड़ता ही है, भले ही वर्षों की गुलामी के कारण अधिकतर बदलना नहीं चाहते... प्रसन्नता हुई जान कर कि कम्प्यूटरीकरण के कारण टेलीफोन विभाग सुधर रहा है... आपको बधाई!
हाँ...अब लगता है...
ReplyDeleteसमय बदल गया है ।
सचमुच विकास जोरों पर है ।
@ Jyoti Mishra said...
ReplyDeleteज्योति , दिल्ली दर्शन जारी है । अगली , और अगली पोस्ट में --