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Thursday, November 17, 2011

जब से मशहूर हो गया हूँ ---


कभी कभी सोचता हूँ , एक आम आदमी होना कितना अच्छा है । यूँ तो हम भी भारत सरकार के एक बड़े अफसर हैं । लेकिन निश्चित ही रोजमर्रा की जिंदगी में तो एक आम आदमी ही हैं । इसीलिए जहाँ जी चाहे जा सकते हैं , जो जी चाहे कर सकते हैं । भीड़ में खड़े होकर तमाशा देख सकते हैं । मॉल घूम सकते हैं । पार्क की सैर कर सकते हैं , सब बिना रोक टोक ।

लेकिन जो सेलेब्रिटी बन जाते हैं, चाहे वो टी वी कलाकार हों या फ़िल्मी हस्तियाँ या फिर बड़े नेता जी --क्या वे घूम सकते हैं अपने ही स्वतंत्र देश में स्वछंदता से


कैसा लगता होगा उनको यूँ अपनी ही छवि में कैद होकर रहना । अब यह तो वही बता सकते हैं या फिर कभी हम भी सेलेब्रिटी बने तो पता चलेगा । लेकिन यह इस जीवन में तो संभव नहीं लगता । इसके लिए तो दोबारा ही जन्म लेना पड़ेगा ।


फिर भी कल्पना करने की कोशिश तो कर ही सकते हैं


और कल्पना करने पर देखिये कुछ इस तरह समझ आया :


अपनों से दूर हो गया हूँ
जब से मशहूर हो गया हूँ ।

करते हैं सब यही शिकायत
मैं अब मग़रूर हो गया हूँ ।

देते इसका ज़वाब खुदी को
थक कर अब चूर हो गया हूँ ।

बचने को भीड़ से कहीं भी
अब तो मजबूर हो गया हूँ

लगता है यूँ मुझे, सुखों से
सच में अब दूर हो गया हूँ ।

फीकी "तारीफ" ये हंसी है
ग़म से भरपूर हो गया हूँ ।

नोट : इस चमक धमक के पीछे कितना एकाकीपन , कितनी असुरक्षा की भावना और कितने ग़म छुपे रहते हैं , यह शायद किसी को पता नहीं चलता होगा
भई हम तो आम आदमी ही अच्छे

50 comments:

  1. आम आदमी तो अच्छे हैं ही,हमे यकीन है कि 'खास'होकर भी आप आम आदमी से दूर नहीं होंगे।

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  2. बहुत ही बढि़या ।

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  3. दाराल साहब मशहूर होने पर भी हम आपको अपने से दूर नहीं होने देंगे. आप सेलिब्रिटी बन जाये तो देखे कोई अपना सेलेब्रिटी होने पर कैसा होता है. शुभकामनाएं

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  4. बात तो सही है…………आम ही बनने मे जो सुख है वो और कहीं नहीं।

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  5. वे घूम सकते हैं , पर हम आम लोग ही उनको देखते यूँ करते हैं कि बेचारे तरसने लगे आम ज़िन्दगी के लिए

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  6. सही बात कही है जी, पर डॉ साहिब आप कहाँ 'आम आदमी' हैं.. आप भी खास हैं.

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  7. क्या बुरा आदमी खास हो, सभी के काम का हो।
    रात का हो, दिन का हो, सुबह औ शाम का हो।

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  8. बहुत ही खुबसूरत.....

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  9. करते हैं सब यही शिकायत
    मैं अब मग़रूर हो गया हूँ ...

    बहुत खूब डाक्टर साहब ... इस बहाने छोटी बहर की लाजवाब गज़ल बना दी आपने ... कमाल की गज़ल है और आम आदमी बन के रहने में कितना मज़ा है ...

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  10. जी बिलकुल आम ही अच्छे हैं.खास बनकर अकेले रहने से तो.

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  11. आम बने रहने में खास बात है,
    खास बनना भी कोई बात है?

    अपुन तो आम ही ठहरे और आप आम हैं तभी हमें मिले !

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  12. खास बनकर अकेले रहने से तो अच्छा है आम आदमी ही बने रहना। कम से कम खुल के जीने कि आज़ादी तो है। ... बहुत बढ़िया प्रस्तुति सर...

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  13. आम आदमी होना ज्यादा अच्छा है एक आजाद परिंदे की तरह...

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  14. आम आदमी होना ज्यादा अच्छा है एक आजाद परिंदे की तरह...

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  15. कुछ लोग 'खास' होकर भी 'आम' की तरह होते है

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  16. बेहतरीन प्रस्तुती.....

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  17. सचमुच आम आदमी बने रहने में ही सुकून है...

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  18. आम होना अपने आप में खास है!

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  19. टैक्सी वाले के लिए तो मात्र ग्राहक हैं :)

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  20. अगर आप भीड़ में खड़े होकर तमाशा देख सकते हैं । मॉल घूम सकते हैं । पार्क की सैर कर सकते हैं , सब बिना रोक टोक । तो निश्चय ही आप अभी इतने भी 'बड़े अफ़सर' नहीं हैं :)

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  21. बड़े लोगों की जिंदगी देख कर तो यही लगता है कि हम बड़े सुकून में हैं ...
    वैसे ब्लॉग जगत के लिए आप भी सेलिब्रिटी ही हैं !

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  22. वो सोच रहा था कि वो कभी जंगल का राजा हुआ करता था...
    स्वछंद घूमता था...मांग के नहीं खाता था... और अन्य छोटे मोटे जानवरों से धन्यवाद भी पाता था...

    तकदीर का मारा एक दिन चिड़िया घर पहुँच गया था और मुफ्त का खाना खा बेकार हो गया...
    एक दिन दरवाजा खुला देख, पुराने दिन याद कर, भाग कर जंगल पहुँच गया था!

    किन्तु अब शक्तिहीन पाया अपने आप को... भूख लगी तो फ्री लंच की याद आई... और फिर से चिड़िया घर में लौट आया था :(

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  23. एक आम आदमी की खास बनाने की ललक ! और एक खास आदमी की छटपटाहट !! बहुत सुंदर तरीके से आपने अमली जामा पहनाया हैं --बहुत खूब ? आप तो डॉ साहेब आम ही अच्छे हैं--कम से कम हमें मिल तो जाते हैं ?

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  24. सेलिब्रिटी बनने की बधाई

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  25. हा हा हा ! कुश्वंश जी , हमने तो पहले ही बता दिया था की अगले जन्म तक इंतजार करना पड़ेगा .
    रश्मि जी , यह सिर्फ हमारे देश में ही होता है , पश्चिम में नहीं .
    दीपक जी , खास होकर आम की तरह रहना बड़ा मुश्किल होता है .

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  26. काजल जी , अफसर तो इतने ही बड़े हैं . लेकिन सिर्फ अपने अस्पताल में . सड़क पर तो को घास भी नहीं डालता .
    वाणी जी सुक्रिया . लेकिन ब्लॉगजगत में तो सभी आम होकर भी खास ही हैं.
    अरे अरविन्द जी , यह क्या . खाली शीर्षक पढ़कर ही टिपिया दिए ?

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  27. सही कहा है आपने पर आम व्यक्ति इसे जल्दी नहीं समझ पाता |
    मेरी समझ के अनुसार आम होना ही सही मायने में ख़ास होना है |

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  28. मात्र दृष्टि दोष है, क्यूंकि हर आम के भीतर एक ख़ास होता है और हर ख़ास के भीतर एक आम...
    इसके लिए कृष्ण रुपी डॉक्टर से दिव्य दृष्टि वाला चश्मा लेना जरूरी होता है!

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  29. अपनों से दूर हो गया हूँ
    जब से मशहूर हो गया हूँ ।

    Bahut Khoob!

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  30. सारगर्भित रचना.....

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  31. bahut hi khas si kavita hai....bahut acchi lagi...

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  32. झूठ .....
    मुझे पता है आपने ये कविता कब लिखी थी .....

    जब हंसोड़ दंगल चैम्पियन में प्रथम पुरूस्कार mila tha ....

    :))

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  33. बढ़िया कल्पना है भाई जी !
    वैसे मैं नहीं चाहता कि आपका यह सपना पूरा हो ...मुलाकात में बरसों लगेंगे :-))

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  34. दाराल जी आप भी सेलिब्रिटी बन गए है..... शुभकामनाएं

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  35. अरे नहीं हीर जी ।
    उसके बाद थोड़े मशहूर ज़रूर हुए लेकिन दोस्त तो बहुत बने ।
    यानि हकीकत में तो दोस्तों के करीब ही आए हैं ।

    सतीश भई , यह सपना नहीं बस एक कल्पना है ।
    संजय --कब , कहाँ , कैसे । :)

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  36. अपनों से दूर हो गया हूँ
    जब से मशहूर हो गया हूँ ।

    "आम" ही रहिये...
    लेकिन "आम" में भी "खास"....

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  37. ये मशहूरी बड़ी सख्त होती है जी....हजारों देखने वाले देती है पर अपने अदंर एकांत असुरक्षा इतनी भर देती है कि अपने अंदर झांकना ही नहीं चाहते कई मशहूर लोग....और जब अंदर का एकाकीपन अपने एकांतवास से बोर होकर बाहर आ जाता है तो सहम जाता है..बवाल खड़ा कर देता है...सही जी मशहूर होने की कीमत तो चुकानी ही पड़ती है.....

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  38. @भई हम तो आम आदमी ही अच्छे!
    जी, साधारण बना रहूँ, यह कामना मेरी भी है। कविता भी पसन्द आयी। सेलिब्रिटी की कीमत चुकाना तो और बात है, कई बेचारों को तो सेलिब्रिटी-सुख मिले बिना भी कीमत चुकानी पड़ती है।
    कभी मिलता जुलता कुछ लिखा था। कुछ पंक्तियाँ:

    ईश्वर को साधारण प्रिय है
    बार बार रचता क्यों वरना

    खास बनूं यह चाह नहीं है
    मुझको भी साधारण रहना

    न अति ज्ञानी न अति सुन्दर
    मिल जाऊँ सबमें वह गहना

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  39. एक हेनरी फोर्ड हुआ करता था... उसके बारे में यह मशहूर था कि वो जब घर से बाहार किसी अन्य शहर में जाता था तो सस्ते से होटल में ठहरता था... परेशानी औरों को होती थी ...वे कहते थे, 'आप तो इतने अमीर हो फिर भी सस्ते होटल में क्यूँ ठहरते हो?', तो वो कहता था 'यहाँ मुझे कोई नहीं जानता'!
    वो फिर कहते, 'किन्तु आप अपने घर में भी ऐसे ही रहते हो'! तो उसका उत्तर था 'क्यूंकि वहाँ मुझे सभी ऐसा ही जानते हैं"!

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  40. पुनश्च - उनके यह कहने पर कि आपके बेटे तो किन्तु महंगे होटल में रहते हैं, उनका उत्तर होता था कि उनका बाप अमीर है किन्तु मेरा बाप गरीब था!

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  41. बहुत बढ़िया सर!

    सादर

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  42. कल्पना में भी यथार्थ लिख दिया ..मशहूर होने पर सच ही एकाकी रह जाना पड़ता है .. अच्छी प्रस्तुति

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  43. अपनों से दूर हो गया हूँ
    जब से मशहूर हो गया हूँ ।

    करते हैं सब यही शिकायत
    मैं अब मग़रूर हो गया हूँ ।
    वैसे तो हम सभी ही अपनी छवि की चाकरी करतें हैं लेकिन मशहूरी की कीमत जरा ज्यादा ही चुकानी पड़ती है सरजी !बहुत अर्थ पूर्ण कविता जीवन की झांकी दिखलाती .एक सच से रु -बा -रु करवाती -मशहूरी का दर्द .

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  44. अपनों से दूर हो गया हूँ
    जब से मशहूर हो गया हूँ ।

    करते हैं सब यही शिकायत
    मैं अब मग़रूर हो गया हूँ ।

    शानदार गज़ल सर...
    सादर बधाई..

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  45. बड़ा आदमी भीतर से एक बड़ी कसक लिए होता है- आम जीवन से कट जाने की। तालियों की गड़गड़ाहट जीवन में जब कम होने लगती है,तब भीतर का सन्नाटा और गहरा जाता है। इतना ज्यादा,कि कभी मनोरंजन के लिए जाना जाने वाला व्यक्ति आखिरी क्षणों में अपनी तकलीफ भी शेयर नहीं कर पाता दुनिया से।

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  46. सही कह रहे हैं रोहित जी ।
    बिलकुल सही राधारमण जी । ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जिन्हें देखकर दुःख भी होता है ।

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  47. वर्तमान मशहूर कवियों से कर जोड़ क्षमा याचना करते हुए कहना चाहूँगा की "जहां न पहुंचे रवि / वहाँ पहुंचे कवि", कहावत मानव जीवन के लक्ष्य का सार माना गया है... जो मन की उड़ान और उसकी संभावित पहुँच को दर्शाता है - अनंत, परम सत्य तक भी ...

    और वर्तमान, कलियुग अर्थात काल की निम्नतम मानव क्षमता के युग का सत्य किसी कवि ने ही कहा, "सूर सूर, तुलसी शशि, उडुगन केशवदास/ अबके कवि खाद्योत्सम, जंह तंह करें प्रकाश"...

    तुलसी दास जी ने भी रामायण में राम और हनुमान के चरित्रों के माध्यम से दर्शाया है कि मानव जीवन में कैसे हर कदम में परिक्षा ली जाती है... जब हनुमान जी अकेले ही समुद्र लांघ, लंका दहन आदि के पश्चात लौटे तो राम चन्द्र जी ने उनकी तारीफ करी तो हनुमान जी सत्य जानते हुए उनको बोले कि यह उनकी कृपा से ही संभव हो पाया था, यदि वो उसे शक्ति प्रदान नहीं करते तो उनके लिए यह संभव नहीं हो पाता :)... (योगियों कि मान्यतानुसार, यह दर्शाता है राम के सूर्य का और हनुमान के मंगल ग्रह का क्रमशः प्रतिरूप मनोरंजक कहानियों के माध्यम से दर्शाया जाना प्राचीन 'हिन्दुओं' द्वारा)...

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