कभी कभी सोचता हूँ , एक आम आदमी होना कितना अच्छा है । यूँ तो हम भी भारत सरकार के एक बड़े अफसर हैं । लेकिन निश्चित ही रोजमर्रा की जिंदगी में तो एक आम आदमी ही हैं । इसीलिए जहाँ जी चाहे जा सकते हैं , जो जी चाहे कर सकते हैं । भीड़ में खड़े होकर तमाशा देख सकते हैं । मॉल घूम सकते हैं । पार्क की सैर कर सकते हैं , सब बिना रोक टोक ।
लेकिन जो सेलेब्रिटी बन जाते हैं, चाहे वो टी वी कलाकार हों या फ़िल्मी हस्तियाँ या फिर बड़े नेता जी --क्या वे घूम सकते हैं अपने ही स्वतंत्र देश में स्वछंदता से ।
कैसा लगता होगा उनको यूँ अपनी ही छवि में कैद होकर रहना । अब यह तो वही बता सकते हैं या फिर कभी हम भी सेलेब्रिटी बने तो पता चलेगा । लेकिन यह इस जीवन में तो संभव नहीं लगता । इसके लिए तो दोबारा ही जन्म लेना पड़ेगा ।
फिर भी कल्पना करने की कोशिश तो कर ही सकते हैं ।
और कल्पना करने पर देखिये कुछ इस तरह समझ आया :
अपनों से दूर हो गया हूँ
जब से मशहूर हो गया हूँ ।
करते हैं सब यही शिकायत
मैं अब मग़रूर हो गया हूँ ।थक कर अब चूर हो गया हूँ ।
बचने को भीड़ से कहीं भी
अब तो मजबूर हो गया हूँ ।
बचने को भीड़ से कहीं भी
अब तो मजबूर हो गया हूँ ।
लगता है यूँ मुझे, सुखों से
सच में अब दूर हो गया हूँ ।
फीकी "तारीफ" ये हंसी है
ग़म से भरपूर हो गया हूँ ।
नोट : इस चमक धमक के पीछे कितना एकाकीपन , कितनी असुरक्षा की भावना और कितने ग़म छुपे रहते हैं , यह शायद किसी को पता नहीं चलता होगा ।
भई हम तो आम आदमी ही अच्छे ।
फीकी "तारीफ" ये हंसी है
ग़म से भरपूर हो गया हूँ ।
नोट : इस चमक धमक के पीछे कितना एकाकीपन , कितनी असुरक्षा की भावना और कितने ग़म छुपे रहते हैं , यह शायद किसी को पता नहीं चलता होगा ।
भई हम तो आम आदमी ही अच्छे ।
आम आदमी तो अच्छे हैं ही,हमे यकीन है कि 'खास'होकर भी आप आम आदमी से दूर नहीं होंगे।
ReplyDeleteबहुत ही बढि़या ।
ReplyDeleteदाराल साहब मशहूर होने पर भी हम आपको अपने से दूर नहीं होने देंगे. आप सेलिब्रिटी बन जाये तो देखे कोई अपना सेलेब्रिटी होने पर कैसा होता है. शुभकामनाएं
ReplyDeleteबात तो सही है…………आम ही बनने मे जो सुख है वो और कहीं नहीं।
ReplyDeleteवे घूम सकते हैं , पर हम आम लोग ही उनको देखते यूँ करते हैं कि बेचारे तरसने लगे आम ज़िन्दगी के लिए
ReplyDeleteबहुत बढ़िया !
ReplyDeleteसही बात कही है जी, पर डॉ साहिब आप कहाँ 'आम आदमी' हैं.. आप भी खास हैं.
ReplyDeleteक्या बुरा आदमी खास हो, सभी के काम का हो।
ReplyDeleteरात का हो, दिन का हो, सुबह औ शाम का हो।
बहुत ही खुबसूरत.....
ReplyDeleteकरते हैं सब यही शिकायत
ReplyDeleteमैं अब मग़रूर हो गया हूँ ...
बहुत खूब डाक्टर साहब ... इस बहाने छोटी बहर की लाजवाब गज़ल बना दी आपने ... कमाल की गज़ल है और आम आदमी बन के रहने में कितना मज़ा है ...
जी बिलकुल आम ही अच्छे हैं.खास बनकर अकेले रहने से तो.
ReplyDeleteआम बने रहने में खास बात है,
ReplyDeleteखास बनना भी कोई बात है?
अपुन तो आम ही ठहरे और आप आम हैं तभी हमें मिले !
खास बनकर अकेले रहने से तो अच्छा है आम आदमी ही बने रहना। कम से कम खुल के जीने कि आज़ादी तो है। ... बहुत बढ़िया प्रस्तुति सर...
ReplyDeleteआम आदमी होना ज्यादा अच्छा है एक आजाद परिंदे की तरह...
ReplyDeleteआम आदमी होना ज्यादा अच्छा है एक आजाद परिंदे की तरह...
ReplyDeleteकुछ लोग 'खास' होकर भी 'आम' की तरह होते है
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुती.....
ReplyDeleteसचमुच आम आदमी बने रहने में ही सुकून है...
ReplyDeleteआम होना अपने आप में खास है!
ReplyDeleteटैक्सी वाले के लिए तो मात्र ग्राहक हैं :)
ReplyDeleteअगर आप भीड़ में खड़े होकर तमाशा देख सकते हैं । मॉल घूम सकते हैं । पार्क की सैर कर सकते हैं , सब बिना रोक टोक । तो निश्चय ही आप अभी इतने भी 'बड़े अफ़सर' नहीं हैं :)
ReplyDeleteबड़े लोगों की जिंदगी देख कर तो यही लगता है कि हम बड़े सुकून में हैं ...
ReplyDeleteवैसे ब्लॉग जगत के लिए आप भी सेलिब्रिटी ही हैं !
वो सोच रहा था कि वो कभी जंगल का राजा हुआ करता था...
ReplyDeleteस्वछंद घूमता था...मांग के नहीं खाता था... और अन्य छोटे मोटे जानवरों से धन्यवाद भी पाता था...
तकदीर का मारा एक दिन चिड़िया घर पहुँच गया था और मुफ्त का खाना खा बेकार हो गया...
एक दिन दरवाजा खुला देख, पुराने दिन याद कर, भाग कर जंगल पहुँच गया था!
किन्तु अब शक्तिहीन पाया अपने आप को... भूख लगी तो फ्री लंच की याद आई... और फिर से चिड़िया घर में लौट आया था :(
एक आम आदमी की खास बनाने की ललक ! और एक खास आदमी की छटपटाहट !! बहुत सुंदर तरीके से आपने अमली जामा पहनाया हैं --बहुत खूब ? आप तो डॉ साहेब आम ही अच्छे हैं--कम से कम हमें मिल तो जाते हैं ?
ReplyDeleteसेलिब्रिटी बनने की बधाई
ReplyDeleteहा हा हा ! कुश्वंश जी , हमने तो पहले ही बता दिया था की अगले जन्म तक इंतजार करना पड़ेगा .
ReplyDeleteरश्मि जी , यह सिर्फ हमारे देश में ही होता है , पश्चिम में नहीं .
दीपक जी , खास होकर आम की तरह रहना बड़ा मुश्किल होता है .
काजल जी , अफसर तो इतने ही बड़े हैं . लेकिन सिर्फ अपने अस्पताल में . सड़क पर तो को घास भी नहीं डालता .
ReplyDeleteवाणी जी सुक्रिया . लेकिन ब्लॉगजगत में तो सभी आम होकर भी खास ही हैं.
अरे अरविन्द जी , यह क्या . खाली शीर्षक पढ़कर ही टिपिया दिए ?
सही कहा है आपने पर आम व्यक्ति इसे जल्दी नहीं समझ पाता |
ReplyDeleteमेरी समझ के अनुसार आम होना ही सही मायने में ख़ास होना है |
मात्र दृष्टि दोष है, क्यूंकि हर आम के भीतर एक ख़ास होता है और हर ख़ास के भीतर एक आम...
ReplyDeleteइसके लिए कृष्ण रुपी डॉक्टर से दिव्य दृष्टि वाला चश्मा लेना जरूरी होता है!
अपनों से दूर हो गया हूँ
ReplyDeleteजब से मशहूर हो गया हूँ ।
Bahut Khoob!
सारगर्भित रचना.....
ReplyDeletebahut hi khas si kavita hai....bahut acchi lagi...
ReplyDeleteझूठ .....
ReplyDeleteमुझे पता है आपने ये कविता कब लिखी थी .....
जब हंसोड़ दंगल चैम्पियन में प्रथम पुरूस्कार mila tha ....
:))
बढ़िया कल्पना है भाई जी !
ReplyDeleteवैसे मैं नहीं चाहता कि आपका यह सपना पूरा हो ...मुलाकात में बरसों लगेंगे :-))
दाराल जी आप भी सेलिब्रिटी बन गए है..... शुभकामनाएं
ReplyDeleteअरे नहीं हीर जी ।
ReplyDeleteउसके बाद थोड़े मशहूर ज़रूर हुए लेकिन दोस्त तो बहुत बने ।
यानि हकीकत में तो दोस्तों के करीब ही आए हैं ।
सतीश भई , यह सपना नहीं बस एक कल्पना है ।
संजय --कब , कहाँ , कैसे । :)
अपनों से दूर हो गया हूँ
ReplyDeleteजब से मशहूर हो गया हूँ ।
"आम" ही रहिये...
लेकिन "आम" में भी "खास"....
ये मशहूरी बड़ी सख्त होती है जी....हजारों देखने वाले देती है पर अपने अदंर एकांत असुरक्षा इतनी भर देती है कि अपने अंदर झांकना ही नहीं चाहते कई मशहूर लोग....और जब अंदर का एकाकीपन अपने एकांतवास से बोर होकर बाहर आ जाता है तो सहम जाता है..बवाल खड़ा कर देता है...सही जी मशहूर होने की कीमत तो चुकानी ही पड़ती है.....
ReplyDelete@भई हम तो आम आदमी ही अच्छे!
ReplyDeleteजी, साधारण बना रहूँ, यह कामना मेरी भी है। कविता भी पसन्द आयी। सेलिब्रिटी की कीमत चुकाना तो और बात है, कई बेचारों को तो सेलिब्रिटी-सुख मिले बिना भी कीमत चुकानी पड़ती है।
कभी मिलता जुलता कुछ लिखा था। कुछ पंक्तियाँ:
ईश्वर को साधारण प्रिय है
बार बार रचता क्यों वरना
खास बनूं यह चाह नहीं है
मुझको भी साधारण रहना
न अति ज्ञानी न अति सुन्दर
मिल जाऊँ सबमें वह गहना
एक हेनरी फोर्ड हुआ करता था... उसके बारे में यह मशहूर था कि वो जब घर से बाहार किसी अन्य शहर में जाता था तो सस्ते से होटल में ठहरता था... परेशानी औरों को होती थी ...वे कहते थे, 'आप तो इतने अमीर हो फिर भी सस्ते होटल में क्यूँ ठहरते हो?', तो वो कहता था 'यहाँ मुझे कोई नहीं जानता'!
ReplyDeleteवो फिर कहते, 'किन्तु आप अपने घर में भी ऐसे ही रहते हो'! तो उसका उत्तर था 'क्यूंकि वहाँ मुझे सभी ऐसा ही जानते हैं"!
पुनश्च - उनके यह कहने पर कि आपके बेटे तो किन्तु महंगे होटल में रहते हैं, उनका उत्तर होता था कि उनका बाप अमीर है किन्तु मेरा बाप गरीब था!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
कल्पना में भी यथार्थ लिख दिया ..मशहूर होने पर सच ही एकाकी रह जाना पड़ता है .. अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteअपनों से दूर हो गया हूँ
ReplyDeleteजब से मशहूर हो गया हूँ ।
करते हैं सब यही शिकायत
मैं अब मग़रूर हो गया हूँ ।
वैसे तो हम सभी ही अपनी छवि की चाकरी करतें हैं लेकिन मशहूरी की कीमत जरा ज्यादा ही चुकानी पड़ती है सरजी !बहुत अर्थ पूर्ण कविता जीवन की झांकी दिखलाती .एक सच से रु -बा -रु करवाती -मशहूरी का दर्द .
अपनों से दूर हो गया हूँ
ReplyDeleteजब से मशहूर हो गया हूँ ।
करते हैं सब यही शिकायत
मैं अब मग़रूर हो गया हूँ ।
शानदार गज़ल सर...
सादर बधाई..
stay........bahut khub
ReplyDeleteबड़ा आदमी भीतर से एक बड़ी कसक लिए होता है- आम जीवन से कट जाने की। तालियों की गड़गड़ाहट जीवन में जब कम होने लगती है,तब भीतर का सन्नाटा और गहरा जाता है। इतना ज्यादा,कि कभी मनोरंजन के लिए जाना जाने वाला व्यक्ति आखिरी क्षणों में अपनी तकलीफ भी शेयर नहीं कर पाता दुनिया से।
ReplyDeleteसही कह रहे हैं रोहित जी ।
ReplyDeleteबिलकुल सही राधारमण जी । ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जिन्हें देखकर दुःख भी होता है ।
वर्तमान मशहूर कवियों से कर जोड़ क्षमा याचना करते हुए कहना चाहूँगा की "जहां न पहुंचे रवि / वहाँ पहुंचे कवि", कहावत मानव जीवन के लक्ष्य का सार माना गया है... जो मन की उड़ान और उसकी संभावित पहुँच को दर्शाता है - अनंत, परम सत्य तक भी ...
ReplyDeleteऔर वर्तमान, कलियुग अर्थात काल की निम्नतम मानव क्षमता के युग का सत्य किसी कवि ने ही कहा, "सूर सूर, तुलसी शशि, उडुगन केशवदास/ अबके कवि खाद्योत्सम, जंह तंह करें प्रकाश"...
तुलसी दास जी ने भी रामायण में राम और हनुमान के चरित्रों के माध्यम से दर्शाया है कि मानव जीवन में कैसे हर कदम में परिक्षा ली जाती है... जब हनुमान जी अकेले ही समुद्र लांघ, लंका दहन आदि के पश्चात लौटे तो राम चन्द्र जी ने उनकी तारीफ करी तो हनुमान जी सत्य जानते हुए उनको बोले कि यह उनकी कृपा से ही संभव हो पाया था, यदि वो उसे शक्ति प्रदान नहीं करते तो उनके लिए यह संभव नहीं हो पाता :)... (योगियों कि मान्यतानुसार, यह दर्शाता है राम के सूर्य का और हनुमान के मंगल ग्रह का क्रमशः प्रतिरूप मनोरंजक कहानियों के माध्यम से दर्शाया जाना प्राचीन 'हिन्दुओं' द्वारा)...
Dhanywaad!
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