अक्सर किसी को कहते सुना होगा--क्या करें , दिल नहीं मानता । इन्सान के दिल और दिमाग में एक द्वंद्ध हमेशा चलता रहा है । दिल कुछ और कहता है , दिमाग कुछ और । और हम सोचते रहते हैं कि दिल की माने या दिमाग की ।
वैसे तो हमारे शरीर में दिल यानि हृदय का काम शरीर में रक्त का संचार बनाये रखना है । लेकिन यहाँ दिल से तात्पर्य है --अंतर्मन , ज़ेहन , या हमारी चेतना ।
इस दिल का काम है हमें सही दिशा दिखाना । हमें सही रास्ते पर चलाना ।
लेकिन दिमाग यानि मष्तिष्क एक कंप्यूटर की तरह काम करता है जिसमे न भावनाएं होती हैं , न संवेदनाएं । वह नाप तोल कर कुछ का कुछ बनाने में सक्षम होता है । इसीलिए दिमाग सच को झूठ , झूठ को सच --सत्य को असत्य और असत्य को सत्य बना सकता है ।
यह दिमाग ही है जिसकी वज़ह से आज तक कोई बड़ा आदमी कोई भी जुर्म करके भी जीवन भर जेल में नहीं रहा । यहाँ वकीलों का दिमाग काम करता है ।
दिमाग ही मनुष्य को बुरे कामों की ओर ले जाता है । और तर्क वितर्क से उसे सही भी ठहरा देता है ।
लेकिन दिमाग प्रैक्टिकल भी होता है । वह भावनाओं के आवेश में नहीं बहता । वह स्वतंत्र रूप से कार्य करने की क्षमता रखता है ।
जबकि दिल अक्सर भावनाओं में बहकर कभी कभी गलत निर्णय ले सकता है ।
ऐसे में सवाल उठता है कि --दिल की माने या दिमाग की ।
आम तौर पर तो यही कहा जाता है कि जो दिल कहे , वही काम करना चाहिए ।
लेकिन कहते हैं --दिल तो पागल होता है । हमेशा दिल की मानने में हानि भी हो सकती है ।
अब आप ही बताइए , क्या किया जाये --दिल की माने या दिमाग की ?
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मौके-मौके की बात, कभी दिल कभी दिमाग.
ReplyDeleteसमय और स्थिति के अनुसार जो सही हो उसकी सुने तो अच्छा रहता है ....!
ReplyDeleteसर जब दिमाग की बत्ती बंद हो जाती है तब ही दिल मानता नहीं है और वह पागल करार दिया जाता है ... वैसे सारा कंट्रोलिंग पावर दिमाग के पास होता है ... और एक दूजे के बिना रह भी तो नहीं सकते हैं ..आभार
ReplyDeleteमैंने कहीं पढ़ा था कि यदि आप दुविधा में हो तो सिक्का उछाल कर फ़ैसला कीजिए. लेकिन आप सिक्का उछालने से ठीक पहले ही निर्णय पा आ पहुंचेगे क्योंकि आपके मन में आएगा कि सिक्का इस करवट गिरे तो अच्छा. यही आपका फ़ैसला है.
ReplyDeleteदिल, दिमाग़ के लिए भी यही थ्योरी आजमाई जा सकती है
You are absolutely right
Deleteदिल कभी गलत नहीं कहता ...
ReplyDeleteआधा दिल और आधा दिमाग का -फिफ्टी फिफ्टी :)
ReplyDeleteबाकी कौन पड़े व्यासीय और शास्त्रीय विवेचन के झमेले में .....नयी पड़ना मुझे ....
और वैसे भी जिस दिल पर मुझे नाज था वो दिल नहीं रहा ...
अर्जे नियाज इश्क के काबिल नहीं रहा
जिस दिल पर मुझे नाज था वो दिल नहीं रहा ...
जब हर व्यक्ति बैठा अथवा खडा होता है, दिमाग का स्थान सर्वोच्च स्तर पर रहता है...
ReplyDeleteऔर भौतिक रूप से देखें तो दिल को अधिक काम करना पड़ता है रक्त को पैरों से सर तक, मस्तिष्क रुपी कम्प्युटर तक, पहुंचाने के लिए,,, और इसे ही मानव के शरीर में चार पैरों पर चलने वाले मानव के निकटतम सम्बन्धी बन्दर / चिम्पांजी आदि पशुओं की तुलना में उच्च रक्त चाप होने के कारण माना गया था,,, जैसा मैंने एक लेख पढ़ा था कि रूसी चिकत्सकों ने बंदरों पर, उन्हें ऐसे वस्त्र पहना जिससे वो बाध्य हों पिछले पैरों पर खड़े रहने को, शोध कार्य कर,,, और यह पाते कि कुछ बंदरों का रक्त चाप बढ़ गया और कुछ मर भी गए!
किन्तु जब व्यक्ति लेटा या सोया होता है दोनों, दिल-ओ-दिमाग, लगभग एक ही स्तर पर हो जाते है, और दिल पर कम दबाव पड़ता है...
इस कारण उनके द्वारा यह निर्णय लिया गया कि जितना हो सके व्यक्ति - जब भी मौक़ा लगे - कम से कम पैर उठा कर बैठे जिससे ह्रदय को पैरों मैं गुरुत्वाकर्षण के कारण जमा हुए रक्त को मस्तिष्क तक उठाने हेतु थोड़ी सहायता मिल जाए...
dil ki sun kar dimaag sae faesla lena chahiyae
ReplyDeleteकभी दिल कभी दिमाग
ReplyDeleteवैसे अमूमन ज्ञानी लोग तो कहते है कि दिमाग से काम लो, भावनाओं में मत बहो ! मगर मेरा कहना है कि जिसमे समझदारी उसी में है
ReplyDeleteफायदा ज्यादा दिखे !
in medical profession what is more important
ReplyDeletethe sound of heart beat
the functioning of brain
doctors give importance to heart because in many cases brain dead is also thought to be alive
मेरे हिसाब से दिमाग के साथ दिल से काम करना चाहिए....बाकी यह व्यक्तिगत दिमाग के ऊपर निर्भर है कि वह कितना योग्य है ?
ReplyDelete'पोरस' ने दिल से काम किया 'सिकंदर' को छोड़ दिया यदि दिमाग से काम लिया होता तो सिकंदर को कैद करके तभी जीत जाता और पूरे देश को आगे दुर्दिन न देखने पड़ते।
ReplyDeleteजो सही हैं वही करना चाहिए ....चाहे मन की सुने चाहे दिल की ?
ReplyDeleteएक टिप्पणी प्रकाशित हो गयी तो सोचा अब कॉपी रखने की आवश्यकता नहीं... किन्तु फिर गूगल की गुगली से आउट हो गया :D
ReplyDeleteअब संक्षिप्त में सार लिख रहा हूँ... मैंने लिखा था कि दिल और दिमाग (मस्तिष्क) एक ही शरीर के अन्य अंगों के अतिरिक्त दो महत्वपूर्ण अंग हैं... इस कारण इन के बीच में सही तालमेल होना आवश्यक है सत्य तक पहुँचने के लिए - अपने कर्ता द्वारा निर्धारित गंतव्य तक पहुँचने के लिए...
रचना जी , शारीरिक रूप से दिमाग दिल के धड़कने पर निर्भर करता है । यानि यदि दिल बंद हो जाये तो दिमाग भी बंद हो जाता है । जबकि दिल धड़कता रहे और दिमाग बंद हो जाए तो उसे ब्रेन डेड कहते हैं । यानि दिल का महत्त्व ज्यादा है ।
ReplyDeleteदिमाग हमारे सोचने समझने की शक्ति है । इसीलिए अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए हम दिमाग का इस्तेमाल करते हैं ।
ReplyDeleteलेकिन दिल स्वार्थ से परे होता है । इसलिए हमें तो लगता है कि यदि आप सात्विक विचार रखना चाहते हैं और सचाई के रास्ते पर चलना चाहते हैं तो दिल की बात सुनिए ।
ऐसा करके आपको सांसारिक रूप से हानि तो हो सकती है लेकिन मन की शांति अवश्य मिलती है ।
जब शासकीय कार्य कर रहे हों तो दिमाग की..जब कर्तव्य पथ पर चल रहे हों तब दिमाग की..लेकिन जब प्यार कर रहे हों तब दिल की बात मानना श्रेष्ठ है।
ReplyDeleteदिल का काम धड़कना है, बस वह धड़कता रहे, बाकी सब काम के लिए शरीर के दूसरे कल-पुर्ज़े हैं ना :)
ReplyDeleteबेहद कठिन प्रश्न है. इसका सही उत्तर शायद ही कोई दे पाए.
ReplyDeleteदिमाग से डिस्कस कर लीजिये मगर मानो बादशाह की !
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
डॉक्टर का काम रोगो की सही-सही पहचान करके मरीज को ठीक करना होता है। पर आपने तो सभी लोगो को सांसत में डाल दिया है....अब समझ नहीं आ रहा कि दिल के पागलों की तरह रेगिस्तान में कुर्त्ता फाड़के लैला-लैला चिल्लायें या फिर दिमाग की बात मान कर .......................????????? हम तो समझ नहीं पा रहे।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति |मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वगत है । कृपया निमंत्रण स्वीकार करें । धन्यवाद ।
ReplyDeleteखगोलशास्त्री और हस्तरेखा शास्त्री की दृष्टि से देखें तो मानव शरीर नवग्रह अर्थात नौ ग्रहों के सार से बना है (सूर्य से शनि तक, जिसमें से शनि का सार हमारे नर्वस सिस्टम बनाने में लगा है और जो शक्ति अर्थात ऊर्जा को ऊपर अथवा नीचे दोनों दिशाओं का राजा है, और अन्य आठ ग्रहों का सार शरीर के अन्य अंगों में, जैसे हड्डियों का ढाँचे अर्थात नर-कंकाल, मांस-मज्जा, रक्त, आदि द्वारा ८ दिशाओं के आठ दिग्गजों अर्थात हर दिशा का एक एक राजा)... और इनके मिलेजुले प्रभाव को मानव हथेली में (ह्रदय, मस्तक, और जीवन) तीन मुख्य रेखाओं द्वारा, अपनी निजी फ़ाइल समान हर व्यक्ति आया हुआ है... किन्तु दुर्भाग्यवश अथवा काल के प्रभाव से अज्ञानतावश स्वयं पढ़ नहीं पाता है 'आम आदमी'... )
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!यदि किसी ब्लॉग की कोई पोस्ट चर्चा मे ली गई होती है तो ब्लॉगव्यवस्थापक का यह नैतिक कर्तव्य होता है कि वह उसकी सूचना सम्बन्धित ब्लॉग के स्वामी को दे दें!
ReplyDeleteअधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
डॉ टी एस दराल जी
ReplyDeleteकुछ ऐसे भी निश्चय ही हैं जिनके दिल तो धड़क रहे हैं पर दिमाग़ बंद हो चुके हैं :)
दिल क्या कहता है और दिमाग क्या कहता है, यह तो कभी समझ नहीं आया। बस दो भावनाएं साथ आती हैं, एक कहती है यह काम कर लो और दूसरी कहती है मत करो। अब कौन सी बात दिल है और कौन सी दिमाग, कुछ पता नहीं चलता। हाँ शब्दों का आडम्बर है, और फिल्मों का सटीक वाक्य। जब भी दुविधा में हों, किसी अन्य का परामर्श लेना चाहिए ना कि दिल और दिमाग की फिल्मी वाक्य के चक्कर में पड़ना चाहिए।
ReplyDeleteJC said...
ReplyDeleteखगोलशास्त्री और हस्तरेखा शास्त्री की दृष्टि से देखें तो मानव शरीर नवग्रह अर्थात नौ ग्रहों के सार से बना है (सूर्य से शनि तक, जिसमें से शनि का सार हमारे नर्वस सिस्टम बनाने में लगा है और जो शक्ति अर्थात ऊर्जा को ऊपर अथवा नीचे दोनों दिशाओं का राजा है, और अन्य आठ ग्रहों का सार शरीर के अन्य अंगों में, जैसे हड्डियों का ढाँचे अर्थात नर-कंकाल, मांस-मज्जा, रक्त, आदि द्वारा ८ दिशाओं के आठ दिग्गजों अर्थात हर दिशा का एक एक राजा)... और इनके मिलेजुले प्रभाव को मानव हथेली में (ह्रदय, मस्तक, और जीवन) तीन मुख्य रेखाओं द्वारा, अपनी निजी फ़ाइल समान हर व्यक्ति आया हुआ है... किन्तु दुर्भाग्यवश अथवा काल के प्रभाव से अज्ञानतावश स्वयं पढ़ नहीं पाता है 'आम आदमी'... )
November 29, 2011 7:49 AM
वास्तव में हम दिल या दिमाग में से किसी की मानने में पूर्णत: स्वतंत्र नहीं हैं।
ReplyDeleteहमारा स्वभाव अन्तर्मुखी है तो हमें दिल की मानने पर मजबूर होना पडेगा और बहिर्मुखी है तो दिमाग की चलेगी।
प्रणाम
मेरी टिप्पणी कहाँ गयी -दिल दहल उठा है !
ReplyDeleteदेवेन्द्र जी , हमें तो लगता है , आजकल शासकीय कार्यों मे भी दिमाग के साथ दिल की बात भी माननी चाहिए .
ReplyDeleteसही बात है सतीश जी .
काजल जी , ऐसे लोगों को हमारी भाषा में तो ब्रेन डेड कहते हैं . लेकिन यह दिल वह दिल नहीं है . यह दिल यदि धड़कता हो तो दिमाग बंद हो ही नहीं सकता . :)
अरविन्द जी , फ़िलहाल तो यहाँ भी दिख रही है और पिछली पोस्ट पर भी .
ReplyDeleteचलिए अब दिल और दिमाग की बात हो जाए .
अवसर तो दोनो को मिलना चाहिये ,परन्तु दिल को प्राथमिकता मिलनी चाहिये ......
ReplyDeleteइस दिल का काम है, हमें दिशा दिखाना
ReplyDeleteऔर दिमाग का काम है तर्क कर दिखाना
दोनों अपनी जगह काम आने वाले ही लगते हैं ...
कशमकश.... है , तो है !!
दिल और दिमाग एक-दूसरे से पृथक् नहीं हैं। वे पूरक हैं,परन्तु व्यक्तित्व संतुलित न होने के कारण हम स्वभाव अथवा जगत-व्यवहार को अलग-अलग खांचे में रखते हैं। यह संतुलन तभी कायम हो सकता है जब कोई भी कार्य करते अथवा निर्णय लेते समय हमें आत्म-स्मरण बना रहे।
ReplyDeleteमेरे हिसाब से तो दोनों ही अपनी अपनी जगह जरूरी हैं...!
ReplyDeleteदिल की भी सुनें और दिमाग से उसे संतुलित करें...!!
लेकिन कई बार उल्टा ही हो जाता है..क्या करें ??
दिल है कि मानता नहीं...इसी लिए कहा जाता है...!!
कई बार ऐसा भी होता है कि दिमाग कहता है -यह काम करो, इसे बहुत फायदा होगा । लेकिन दिल कहता है कि मत करो , क्योंकि भले ही न करने से फायदा न हो , लेकिन यही सही है ।
ReplyDeleteयहाँ दिमाग प्रैक्टिकल बात कह रहा है और दिल उचित । यानि दिल की माने तो कुर्बानी देनी पड़ सकती है ।
फिर भी लगता है कि दिल की सुनने से मन की शांति तो रहती है ।
परिस्थित के अनुसार फैसला लेना चाहिए
ReplyDeleteकभी२ दिल और दिमाग दोनों के फैसले
गलत साबित होते है,..
दिल हमेशा सही राह दिखाता है... गणितीय प्रपंचों से दूर जो है!
ReplyDeleteडॉक्टर साहिब, आप का प्रश्न ही सही नहीं लगता, क्यूंकि विचार का एक मात्र स्रोत मन ही है... आदमी अनंत प्राणियों के साथ-साथ लाखों वर्ष से पृथ्वी पर आ-जा रहा है... और हमारा आधार पृथ्वी हमारी सुदर्शन चक्र समान घूमती गैलेक्सी के किनारे की ओर अवस्थित एक छोटे से सौर-मंडल का असंख्य सदस्यों में से एक छोटा सा सदस्य है...
ReplyDeleteइस के अतिरिक्त आकाश में दिखाई देते असीम गुरुत्वाकर्षण और प्रकाश आदि शक्ति के स्रोत सूरज के चारों ओर असंख्य पिंड अंतरिक्ष के शून्य में कम से कम साढ़े चार अरब वर्षों से चक्कर काटते चले आ रहे हैं - (अर्थात गैलेक्सी के केंद्र पर अवस्थित निराकार किन्तु परम शक्तिशाली ब्लैक होल पर आधारित सूर्य द्वारा घुमाए जा रहे हैं सभी असंख्य सदस्य जो सूर्य के माध्यम से उपलब्ध कराई गयी शक्ति पर अपने और अपने ऊपर आधारित प्राणीयों आदि के जीवन के लिए निर्भर हैं)... इस स्पेस ट्रेन समान तंत्र को हम मानव जाति द्वारा निर्मित रेलगाड़ी के माध्यम से कुछ-कुछ समझ सकते हैं, यद्यपि वो अभी अपनी सौर-मंडल समान चरम सीमा से बहुत दूर है... इस में एक (या पहाड़ों आदि में आवश्यकतानुसार कभी-कभी दो भी) इंजन अपने पीछे कई, एक श्रंखला में, स्वतंत्र किन्तु आपस में जुड़े, डब्बों को खींच ले जाता है... जितना शक्तिशाली इंजन उतनी उसकी क्षमता डिब्बों को खींच ले जाने की - जैसे मालगाड़ियों में डीज़ल से चलने वाला इंजन...
और, इसी प्रकार मानव का मस्तिष्क ही ब्लैक होल समान असीमित शक्ति का स्रोत है... और पेट में, सोलर प्लेक्सस में, कोयले/ डीज़ल समान, भोजन आदि से प्राप्त शक्ति को रक्त के माध्यम से सम्पूर्ण शरीर में उपलब्ध कराने वाला मसल पम्प अर्थात दिल है, रेल के इंजन समान...
दिल भाव प्रधान है तो दिमाग विचार प्रधान.
ReplyDeleteमनुष्य की आत्मा उनसे ऊपर उनकी स्वामी
है.श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय ३ श्लोक ४२ और ४३
का निम्न सार है.
'इन्द्रियों को स्थूल शरीर से पर यानी श्रेष्ठ बलवान और
सूक्ष्म कहते हैं,इन्द्रियों से पर मन(दिल)है,मन से भी
पर बुद्धि(दिमाग) है.और जो बुद्धि से भी अत्यंत पर
है,वह आत्मा है.'
'इस प्रकार बुद्धि से पर अर्थात सूक्ष्म ,बलवान,और
अत्यंत श्रेष्ठ आत्मा को जानकर बुद्धि के द्वारा मन को
वश में करके 'काम'(कामना)रुपी दुर्जय शत्रु को मारना
चाहिये.'
आपकी सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
JC said...
ReplyDeleteडॉक्टर साहिब, आप का प्रश्न ही सही नहीं लगता, क्यूंकि विचार का एक मात्र स्रोत मन ही है... आदमी अनंत प्राणियों के साथ-साथ लाखों वर्ष से पृथ्वी पर आ-जा रहा है... और हमारा आधार पृथ्वी हमारी सुदर्शन चक्र समान घूमती गैलेक्सी के किनारे की ओर अवस्थित एक छोटे से सौर-मंडल का असंख्य सदस्यों में से एक छोटा सा सदस्य है...
इस के अतिरिक्त आकाश में दिखाई देते असीम गुरुत्वाकर्षण और प्रकाश आदि शक्ति के स्रोत सूरज के चारों ओर असंख्य पिंड अंतरिक्ष के शून्य में कम से कम साढ़े चार अरब वर्षों से चक्कर काटते चले आ रहे हैं - (अर्थात गैलेक्सी के केंद्र पर अवस्थित निराकार किन्तु परम शक्तिशाली ब्लैक होल पर आधारित सूर्य द्वारा घुमाए जा रहे हैं सभी असंख्य सदस्य जो सूर्य के माध्यम से उपलब्ध कराई गयी शक्ति पर अपने और अपने ऊपर आधारित प्राणीयों आदि के जीवन के लिए निर्भर हैं)... इस स्पेस ट्रेन समान तंत्र को हम मानव जाति द्वारा निर्मित रेलगाड़ी के माध्यम से कुछ-कुछ समझ सकते हैं, यद्यपि वो अभी अपनी सौर-मंडल समान चरम सीमा से बहुत दूर है... इस में एक (या पहाड़ों आदि में आवश्यकतानुसार कभी-कभी दो भी) इंजन अपने पीछे कई, एक श्रंखला में, स्वतंत्र किन्तु आपस में जुड़े, डब्बों को खींच ले जाता है... जितना शक्तिशाली इंजन उतनी उसकी क्षमता डिब्बों को खींच ले जाने की - जैसे मालगाड़ियों में डीज़ल से चलने वाला इंजन...
और, इसी प्रकार मानव का मस्तिष्क ही ब्लैक होल समान असीमित शक्ति का स्रोत है... और पेट में, सोलर प्लेक्सस में, कोयले/ डीज़ल समान, भोजन आदि से प्राप्त शक्ति को रक्त के माध्यम से सम्पूर्ण शरीर में उपलब्ध कराने वाला मसल पम्प अर्थात दिल है, रेल के इंजन समान...
November 30, 2011 6:40 AM
राकेश जी , बहुत सही ज्ञान दिया है आपने गीता का .
ReplyDeleteशरीर से श्रेष्ठ इन्द्रियां , इन्द्रियों से श्रेष्ठ मन ( दिल ) , दिल से श्रेष्ठ बुद्धि ( दिमाग ) और दिमाग से श्रेष्ठ आत्मा .
गीतानुसार मन बड़ा चलायमान होता है और इसे बुद्धि द्वारा वश में किया जा सकता है .
लेकिन आधुनिक परिवेश में तो यही लगता है की बुद्धि ही इन्सान को सभी कुकर्म करने के लिए प्रेरित करती है जबकि दिल या मन बुद्धि का ही सकारात्मक रूप है . दुसरे शब्दों में बुद्धि के दो पहलु होते हैं --एक अच्छा ( मन ) , दूसरा बुरा ( दिमाग) .
अब कौन किस पर हावी होता है , यह हमारे संस्कारों( कंडिशनिंग) पर निर्भर करता है .
जे सी जी , आपकी बात का भी अनुमोदन हो गया लगता है .
वो कहतें हैं न सबकी सुन कर अपने दिल की .अपने अन्दर की आवाज़ सुन .सही गलत सबको पता होता है दिमाग की लापरवाही बे -फिक्री आदमी से अनर्थ करवा देती है .दिल शब्द की प्रतीकात्मक व्याख्या आपने बड़ी सटीक की है .
ReplyDelete'आधुनिक वैज्ञानिक' द्वारा उपलब्ध जानकारी और प्राचीन हिन्दुओं के कथन को ध्यान में रख संक्षिप्त में कहें तो, अनंत शून्य रुपी निरंतर फूलते गुब्बारे समान ब्रह्माण्ड का सार हमारी तथाकथित 'सुदर्शन-चक्र' समान घूमती गैलेक्सी है... अर्थात इसके केंद्र में स्थित निराकार ब्लैक होल, यानि सुपर गुरुत्वाकर्षण, 'सौ सूर्यों के प्रकाश वाला कृष्ण', योग द्वारा सौर-मंडल के सार से बने प्रत्येक साकार मानव शरीर के भीतर विद्यमान आत्मा कहलाता है... जैसा गीता में कृष्ण भी कहते दिखाए गए हैं कि वे सबके भीतर माया से दीखते हैं यद्यपि सारी सृष्टि उन के (विराट रूप, योगेश्वर विष्णु/ शिव के) भीतर है...
ReplyDeleteअब दिल-दिमाग के मामले में इतने विद्वानों की उपस्थिति में कुछ भी कहना छोटे मुँह बड़ी बात हो जायेगी, इसलिये अपन चुप ही रहेंगे।
ReplyDeleteहा हा डाक्टर साहब ... जब जिसकी बात फायदेमंद हो उसी की मान ली जाए ... वैसे मेरा मानना है दिल की मानो ... दिल दिमाग पे राज करता है ...
ReplyDeleteनासवा जी , आपसे पूर्णया सहमत हूँ ।
ReplyDeleteहूँ......
ReplyDeleteमुझे अक्सर डांट पड़ती है ज़ज्बाती होने की ....
यानि दिल से सोचने वाले कभी आगे नहीं बढ़ सकते ....
पर क्या करें हमने तो हमेशा दिल की मानी ....
सभी पोस्ट्स को पढ़कर यही लगता है --दिल और दिमाग , दोनों की अपनी अपनी अहमियत है . कभी दिल की बात सही होती है , कभी दिमाग की . इसलिए एक संतुलन बनाकर डिस्क्रिशन यूज करना चाहिए .
ReplyDeleteहीर जी , अब इस उम्र में तो क्या बदलेंगे . जैसे हैं वैसे ही ठीक हैं जी .
प्रश्न----निर्णय दिल से ले या दिमाग से
ReplyDeleteउत्तर---आपके पास जो है उससे निर्णय ले
प्रश्न----निर्णय दिल से ले या दिमाग से
ReplyDeleteउत्तर---आपके पास जो है उससे निर्णय ले
Sabki suno aur man ki karo. Dil vyaktigat jeevan mein faydemand hai aur dimag practical jeevan mein.
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