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Monday, November 14, 2011

एक शानदार व्यक्तित्त्व का शानदार जीवन सफ़र --

आज उन्हें इस मृत्युलोक से प्रस्थान किये हुए एक वर्ष पूरा हो गया है । लेकिन आज भी विश्वास नहीं होता कि वे आज हमारे बीच नहीं हैं ।
फोन की घंटी बजते ही कभी कभी लगता है कि अभी डांट पड़ेगी --अरै कहाँ रहते हो ? कई दिन से कोई फोन , कोई बात ! बहुत बिज़ी हो गए !

जिंदगी का सफ़र कितना ही शानदार क्यों न हो , एक दिन रुक ही जाता है । पूरी जिंदगी में उन्हें कभी बीमार नहीं देखा , लेकिन जीवन के अंतिम वर्ष में ऐसे बीमार हुए कि कोई भी कुछ नहीं कर सकता था ।

अंतत: काल के आगे जीवन हार जाता है

प्रस्तुत है , पिताश्री की पुण्य तिथि पर एक चित्रमयी श्रधांजलि :

ज़वानी के दिनों में जब चेहरे पर काल की लकीरें नहीं होती
ज़ाहिर है , बहुत हैंडसम थे
हमारे ताउजी उनसे भी ज्यादा और दादाजी ताउजी से भी ज्यादा हैंडसम थे


अपने कार्यकाल में सारे देश में सरकारी कार्य से जाना होता रहता था । इसी बहाने अंडमान निकोबार भी घूम आए । यह फोटो सेवा निवृति के बाद का है । सेवा निवृति के बाद भी ६ साल तक ऑफिस ने उन्हें नहीं छोड़ा । यह उनकी कार्य के प्रति निष्ठां और कर्तव्य परायणता का ही परिणाम था ।


पोर्ट ब्लेयर में


एक जीवंत व्यक्तित्त्व के स्वामी थे । गाने का बड़ा शौक था । बचपन से उन्हें सुनते आए थे । जब भी कोई प्रोग्राम होता , ऑफिस में या घर में , या समाज में --उनका गाना अवश्य होता था ।

हमारे सामने तो भजन ही गाते थे । लेकिन ज़वानी में हरियाणवी रागनी ( रोमांटिक गीत ) भी खूब गाई होंगी ।
एक फॅमिली फंक्शन में फ़िल्मी गानों में बस एक ही गाना सुना था --अब हम न मिल सकेंगे , तुम मुझको भूल जाओ ।
इस पर सबसे छोटी पोती ने सुनाया --दिल के टुकड़े हज़ार हुए , कोई यहाँ गिरा , कोई वहां गिरा ।
इस पर सब खूब जमकर हँसे ।


ऑफिस के एक कार्यक्रम में ऑर्केस्ट्रा के साथ गाते हुए ।
गा तो हम भी लेते हैं , लेकिन ऑर्केस्ट्रा के साथ कभी नहीं गया ।


३१ दिसंबर १९८९ को सेवा निवृत हुए
इससे पहले उन्हें एक प्रोजेक्ट को बंध कर ऑफिस की सारी प्रोपर्टी को डिस्पोज करना था । उन्होंने एक एक पैसे का हिसाब कर सारा काम ईमानदारी से निपटा दिया । अंत में ६४ रूपये १२ आने बचे रह गए जिसे डायरेक्टर ने बतौर ईनाम उन्हें दे दिया ।

यह उनके लिए सबसे बड़ा ईनाम था

सेवा निवृति के अवसर पर बोलते हुए

पैदल चलना और घूमना उनका सबसे बड़ा शौक था

मित्र मण्डली के साथ --प्रभात फेरी पर

सेवा निवृति के बाद , सामाजिक कार्यों में उनका बड़ा योगदान रहा

क्षेत्रीय विधायक के साथ वृक्ष आरोपण करते हुए


१२ दिसंबर ००९ को हमने उनका आखिरी जन्मदिन मनाया

इस अवसर पर सारा परिवार एकत्रित था और बच्चों ने पुष्प गुच्छ भेंट कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया ।


आज भले ही वो हमारे बीच मौजूद हों , लेकिन उनका यह मुस्कराता चेहरा सदा हमें प्रेरणा देता हुआ हमारा मार्गदर्शन करता रहता है

अभी भी जब मैं यह पोस्ट लिख रहा हूँ , मेरी बायीं ओर की दिवार पर उनका यह फोटो टंगा हुआ मानो मुझे ही देख रहा है

ऐसे व्यक्ति दुनिया में निश्चित ही कम ही होते हैं , यह मेरा निष्पक्ष रूप से मानना है

41 comments:

  1. बाबु जी को हमारा सादर नमन !

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  2. उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि !

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  3. आप ने अपने पिछले जन्म को स्मरण किया। आखिर हम अपने माता पिता का पुनर्जन्म ही तो हैं।

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  4. पिताजी को पुण्‍यस्‍मरण।

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  5. विनम्र श्रद्धांजलि

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  6. पिता जी को विनम्र श्रद्धांजलि।
    आपके पास पिताजी की यादों का ऐसा एलबम है जिसमें सुंदर/दुर्लभ चित्र हैं। बहुत धनी हैं आप।

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  7. विनम्र श्रद्धांजलि

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  8. यह आपने अच्छा किया , समय निकाल कर उनकी पुन्य स्मृतियों को संगृहीत और कलमबद्ध करते जाएँ ...
    अच्छा लगा उनके बारे में जानकार !
    सादर श्रद्धांजलि..

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  9. चित्रों में आपके पिता जी को देखा,
    सचमुच उनका व्यक्तित्व शानदार था,

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  10. आपके पिताजी की स्मृति को नमन !

    आप उनके अधूरे कार्यों को करते रहें ,वे जीवित रहेंगे !

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  11. बाबूजी को विनम्र श्रद्धांजलि !

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  12. भाई जी को ....
    सादर श्रद्धांजलि!

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  13. आपने चित्रमयी जो झांकी पिताजी की प्रस्तुत की है वह सिर्फ आपके लिए ही नही हम सबके लिए प्रेरक एवं अनुकरणीय है। ऐसी महान विभूति का अनुसरण करना ही उन्हे सच्ची श्रद्धांजली हो सकती है। आपके माध्यम से उनका सदा स्मरण होता रहेगा।

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  14. शानदार व्यक्तित्व की स्मृति का नायब तरीका .. आपके पिताजी की पुण्य तिथि पर उनको विनम्र श्रद्धांजलि

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  15. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति आज के तेताला का आकर्षण बनी है
    तेताला पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से
    अवगत कराइयेगा ।

    http://tetalaa.blogspot.com/

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  16. विनम्र श्रद्धांजलि

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  17. विनम्र श्रद्धांजलि !

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  18. सादर श्रद्धांजलि!
    शरीर से न सही पर वे हमेशा साथ ही हैं...
    आज ही के दिन मेरे नानाजी भी हमें छोड़ गए थे २००४ में, उनकी बातें... आज भी अक्षरशः याद हैं!

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  19. एक अद्भुत शानदार व्यक्तित्व...वाकई कम ही देखने को मिलता है.चेहरे पर रौब मिश्रित कोमलता है.
    नमन एवं सादर श्रद्धांजलि आपके पिताजी को.

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  20. विनम्र श्रद्धांजलि !

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  21. शानदार व्यक्तित्व के स्वामी आपके पिताश्री को उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर विनम्र श्रधांजलि. उनका व्यक्तित्व चित्रों से भी साफ़ झलकता है.

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  22. जीवंत व्यक्तित्व -संस्कृत में कहावत है -आत्मा वै जायते पुत्रः --वे तो आपमें ही विद्यमान हैं ! यशस्वी जन अपनी वंश परम्परा में जीते हैं -नमन !

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  23. विनम्र श्रद्धांजलि


    Gyan Darpan
    .

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  24. अरविन्द जी , उनके आदर्शों पर चलना कठिन तो है , लेकिन नामुमकिन नहीं । कोशिश पूरी रहेगी ।

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  25. आपकी प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
    बालदिवस की शुभकामनाएँ!

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  26. सादर नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि

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  27. पिता को इस तरह स्मरण करना बहुत अच्छा लगा ... जाने वाले की कमी तो हमेशा रहती है .. पर उनके जीवन से अगर किसी एक को भी प्रेरणा मिल सके तो जीवन धन्य हो जाता है ... सादर नमन है पिता जी को हमारा ...

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  28. मन तो करता है कभी साथ न छोड़े हमें पचपन दिखने वाले मगर शास्वत चक्र को तोडा नहीं जा सकता. हमारी भावभीनी और विनम्र श्रधांजलि . पिताजी दिल के कोने में सदैव आपके साथ रहे यही शुभकामनाएं

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  29. कुछ व्यस्तता के चलते इस पोस्ट पर आने में लेट हो गया...सीनियर दराल सर ने शानदार ढंग से जीवन जिआ, अपने कर्तव्यों को पूरा किया...सामाजिक दायित्वों को निभाया...अब स्वर्गलोक से ही उनका आशीर्वाद आपके साथ है...
    उनके देहावसान से ठीक नौ दिन पहले पांच नवंबर को मेरे सिर से भी पिता का साया उठा था...हम कितने भी बड़े क्यों न हो जाएं लेकिन पिता का हाथ सिर पर रहने से संबल मिलता रहता है...लेकिन यही सृष्टि का विधान है...
    पुण्य स्मरण...

    जय हिंद...

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  30. सही कह रहे हैं खुशदीप और कुश्वंश जी । पिता का होना ही साहस सा प्रदान करता रहता है ।
    खुशदीप आपके पिता जी को भी विनम्र श्रधांजलि ।

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  31. वक्त के साथ इंसान की यादे ही सहारा रह जाती है, डा० साहब, मेरे श्रद्धा-सुमन उनके चरणों में !

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  32. जाने वाले कभी नहीं आते सिर्फ़ यादे छोड जाते है।

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  33. सादर नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि । मेरे पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं ।

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  34. आप सभी के स्नेह और सम्मान से अभिभूत हूँ . आभार .

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  35. एक धनी परम्परा के मालिक हैं आप भाई साहब आप भी तो ऐसे ही ज़िंदा दिली इंसान हो सलामत रहे यह विरासत यह जीवंत परम्परा .चिर -स्मरण अपनों का .

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  36. पिता का होना ही काफी है। जो उनकी छाया से महरूम रहे हैं,इसकी क़ीमत वे ज़्यादा जानते हैं।

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