आज उन्हें इस मृत्युलोक से प्रस्थान किये हुए एक वर्ष पूरा हो गया है । लेकिन आज भी विश्वास नहीं होता कि वे आज हमारे बीच नहीं हैं ।
फोन की घंटी बजते ही कभी कभी लगता है कि अभी डांट पड़ेगी --अरै कहाँ रहते हो ? कई दिन से न कोई फोन , न कोई बात ! बहुत बिज़ी हो गए !
जिंदगी का सफ़र कितना ही शानदार क्यों न हो , एक दिन रुक ही जाता है । पूरी जिंदगी में उन्हें कभी बीमार नहीं देखा , लेकिन जीवन के अंतिम वर्ष में ऐसे बीमार हुए कि कोई भी कुछ नहीं कर सकता था ।
अंतत: काल के आगे जीवन हार जाता है ।
प्रस्तुत है , पिताश्री की पुण्य तिथि पर एक चित्रमयी श्रधांजलि :
ज़वानी के दिनों में जब चेहरे पर काल की लकीरें नहीं होती ।
ज़ाहिर है , बहुत हैंडसम थे ।
हमारे ताउजी उनसे भी ज्यादा और दादाजी ताउजी से भी ज्यादा हैंडसम थे ।
अपने कार्यकाल में सारे देश में सरकारी कार्य से जाना होता रहता था । इसी बहाने अंडमान निकोबार भी घूम आए । यह फोटो सेवा निवृति के बाद का है । सेवा निवृति के बाद भी ६ साल तक ऑफिस ने उन्हें नहीं छोड़ा । यह उनकी कार्य के प्रति निष्ठां और कर्तव्य परायणता का ही परिणाम था ।
पोर्ट ब्लेयर में ।
एक जीवंत व्यक्तित्त्व के स्वामी थे । गाने का बड़ा शौक था । बचपन से उन्हें सुनते आए थे । जब भी कोई प्रोग्राम होता , ऑफिस में या घर में , या समाज में --उनका गाना अवश्य होता था ।
हमारे सामने तो भजन ही गाते थे । लेकिन ज़वानी में हरियाणवी रागनी ( रोमांटिक गीत ) भी खूब गाई होंगी ।
एक फॅमिली फंक्शन में फ़िल्मी गानों में बस एक ही गाना सुना था --अब हम न मिल सकेंगे , तुम मुझको भूल जाओ ।
इस पर सबसे छोटी पोती ने सुनाया --दिल के टुकड़े हज़ार हुए , कोई यहाँ गिरा , कोई वहां गिरा ।
इस पर सब खूब जमकर हँसे ।
ऑफिस के एक कार्यक्रम में ऑर्केस्ट्रा के साथ गाते हुए ।
गा तो हम भी लेते हैं , लेकिन ऑर्केस्ट्रा के साथ कभी नहीं गया ।
३१ दिसंबर १९८९ को सेवा निवृत हुए ।
इससे पहले उन्हें एक प्रोजेक्ट को बंध कर ऑफिस की सारी प्रोपर्टी को डिस्पोज करना था । उन्होंने एक एक पैसे का हिसाब कर सारा काम ईमानदारी से निपटा दिया । अंत में ६४ रूपये १२ आने बचे रह गए जिसे डायरेक्टर ने बतौर ईनाम उन्हें दे दिया ।
यह उनके लिए सबसे बड़ा ईनाम था ।
सेवा निवृति के अवसर पर बोलते हुए ।
पैदल चलना और घूमना उनका सबसे बड़ा शौक था ।
मित्र मण्डली के साथ --प्रभात फेरी पर ।
सेवा निवृति के बाद , सामाजिक कार्यों में उनका बड़ा योगदान रहा ।
क्षेत्रीय विधायक के साथ वृक्ष आरोपण करते हुए ।
१२ दिसंबर २००९ को हमने उनका आखिरी जन्मदिन मनाया ।
इस अवसर पर सारा परिवार एकत्रित था और बच्चों ने पुष्प गुच्छ भेंट कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया ।
आज भले ही वो हमारे बीच मौजूद न हों , लेकिन उनका यह मुस्कराता चेहरा सदा हमें प्रेरणा देता हुआ हमारा मार्गदर्शन करता रहता है ।
अभी भी जब मैं यह पोस्ट लिख रहा हूँ , मेरी बायीं ओर की दिवार पर उनका यह फोटो टंगा हुआ मानो मुझे ही देख रहा है ।
ऐसे व्यक्ति दुनिया में निश्चित ही कम ही होते हैं , यह मेरा निष्पक्ष रूप से मानना है ।
Monday, November 14, 2011
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restects for the departed soul
ReplyDeleteबाबु जी को हमारा सादर नमन !
ReplyDeleteउन्हें विनम्र श्रद्धांजलि !
ReplyDeleteआप ने अपने पिछले जन्म को स्मरण किया। आखिर हम अपने माता पिता का पुनर्जन्म ही तो हैं।
ReplyDeleteपिताजी को पुण्यस्मरण।
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि
ReplyDeleteपिता जी को विनम्र श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteआपके पास पिताजी की यादों का ऐसा एलबम है जिसमें सुंदर/दुर्लभ चित्र हैं। बहुत धनी हैं आप।
विनम्र श्रद्धांजलि
ReplyDeleteयह आपने अच्छा किया , समय निकाल कर उनकी पुन्य स्मृतियों को संगृहीत और कलमबद्ध करते जाएँ ...
ReplyDeleteअच्छा लगा उनके बारे में जानकार !
सादर श्रद्धांजलि..
चित्रों में आपके पिता जी को देखा,
ReplyDeleteसचमुच उनका व्यक्तित्व शानदार था,
आपके पिताजी की स्मृति को नमन !
ReplyDeleteआप उनके अधूरे कार्यों को करते रहें ,वे जीवित रहेंगे !
बाबूजी को विनम्र श्रद्धांजलि !
ReplyDeleteसादर नमन !
ReplyDeleteभाई जी को ....
ReplyDeleteसादर श्रद्धांजलि!
आपने चित्रमयी जो झांकी पिताजी की प्रस्तुत की है वह सिर्फ आपके लिए ही नही हम सबके लिए प्रेरक एवं अनुकरणीय है। ऐसी महान विभूति का अनुसरण करना ही उन्हे सच्ची श्रद्धांजली हो सकती है। आपके माध्यम से उनका सदा स्मरण होता रहेगा।
ReplyDeleteशानदार व्यक्तित्व की स्मृति का नायब तरीका .. आपके पिताजी की पुण्य तिथि पर उनको विनम्र श्रद्धांजलि
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि !
ReplyDeleteसादर नमन ...
ReplyDeleteसादर श्रद्धांजलि!
ReplyDeleteशरीर से न सही पर वे हमेशा साथ ही हैं...
आज ही के दिन मेरे नानाजी भी हमें छोड़ गए थे २००४ में, उनकी बातें... आज भी अक्षरशः याद हैं!
एक अद्भुत शानदार व्यक्तित्व...वाकई कम ही देखने को मिलता है.चेहरे पर रौब मिश्रित कोमलता है.
ReplyDeleteनमन एवं सादर श्रद्धांजलि आपके पिताजी को.
विनम्र श्रद्धांजलि !
ReplyDeleteशानदार व्यक्तित्व के स्वामी आपके पिताश्री को उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर विनम्र श्रधांजलि. उनका व्यक्तित्व चित्रों से भी साफ़ झलकता है.
ReplyDeleteshandar vyaktitv ke malik babuji ko vinamr shraddhanjali.
ReplyDeleteजीवंत व्यक्तित्व -संस्कृत में कहावत है -आत्मा वै जायते पुत्रः --वे तो आपमें ही विद्यमान हैं ! यशस्वी जन अपनी वंश परम्परा में जीते हैं -नमन !
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि
ReplyDeleteGyan Darpan
.
सादर नमन।
ReplyDeleteअरविन्द जी , उनके आदर्शों पर चलना कठिन तो है , लेकिन नामुमकिन नहीं । कोशिश पूरी रहेगी ।
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
बालदिवस की शुभकामनाएँ!
सादर नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि
ReplyDeleteपिता को इस तरह स्मरण करना बहुत अच्छा लगा ... जाने वाले की कमी तो हमेशा रहती है .. पर उनके जीवन से अगर किसी एक को भी प्रेरणा मिल सके तो जीवन धन्य हो जाता है ... सादर नमन है पिता जी को हमारा ...
ReplyDeleteमन तो करता है कभी साथ न छोड़े हमें पचपन दिखने वाले मगर शास्वत चक्र को तोडा नहीं जा सकता. हमारी भावभीनी और विनम्र श्रधांजलि . पिताजी दिल के कोने में सदैव आपके साथ रहे यही शुभकामनाएं
ReplyDeleteकुछ व्यस्तता के चलते इस पोस्ट पर आने में लेट हो गया...सीनियर दराल सर ने शानदार ढंग से जीवन जिआ, अपने कर्तव्यों को पूरा किया...सामाजिक दायित्वों को निभाया...अब स्वर्गलोक से ही उनका आशीर्वाद आपके साथ है...
ReplyDeleteउनके देहावसान से ठीक नौ दिन पहले पांच नवंबर को मेरे सिर से भी पिता का साया उठा था...हम कितने भी बड़े क्यों न हो जाएं लेकिन पिता का हाथ सिर पर रहने से संबल मिलता रहता है...लेकिन यही सृष्टि का विधान है...
पुण्य स्मरण...
जय हिंद...
सही कह रहे हैं खुशदीप और कुश्वंश जी । पिता का होना ही साहस सा प्रदान करता रहता है ।
ReplyDeleteखुशदीप आपके पिता जी को भी विनम्र श्रधांजलि ।
वक्त के साथ इंसान की यादे ही सहारा रह जाती है, डा० साहब, मेरे श्रद्धा-सुमन उनके चरणों में !
ReplyDeleteजाने वाले कभी नहीं आते सिर्फ़ यादे छोड जाते है।
ReplyDeleteसादर नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि । मेरे पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं ।
ReplyDeleteआप सभी के स्नेह और सम्मान से अभिभूत हूँ . आभार .
ReplyDeleteएक धनी परम्परा के मालिक हैं आप भाई साहब आप भी तो ऐसे ही ज़िंदा दिली इंसान हो सलामत रहे यह विरासत यह जीवंत परम्परा .चिर -स्मरण अपनों का .
ReplyDeleteपिता का होना ही काफी है। जो उनकी छाया से महरूम रहे हैं,इसकी क़ीमत वे ज़्यादा जानते हैं।
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