सन २०११ की जनगणना अनुसार देश में मेल फीमेल रेशो ९४० है यानि १००० पुरुषों पर ९४० महिलाएं । केवल केरल और पोंडिचेरी में महिलाओं की संख्या पुरुषों से ज्यादा है । बाकि सभी राज्यों में पुरुषों की संख्या ज्यादा है । आश्चर्यजनक रूप से मेल फीमेल रेशो केंद्र शासित प्रदेशों में सबसे कम है , जैसे दमन दीव -६१८, दादर और नागर हवेली --७७५, चंडीगढ़ --८१८ . दिल्ली मे भी यह रेशो ८६६ ही है ।
महिलाओं की संख्या कम होने का मुख्य कारण है, पुत्र की चाह । पुत्र प्राप्ति के लिए अक्सर लोग लिंग जाँच कराकर फिमेल फीटस को अबोर्ट करा देते हैं ।
इसे रोकने के लिए सरकार ने पी एन ड़ी टी एक्ट लागु किया हुआ है । इसके बावजूद भी यह रेशो बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं हुई है । हालाँकि कुछ फर्क तो आया है ।
क्या आप जानते हैं जो दूध हम पीते हैं , वह कहाँ से आता है । ज़ाहिर है , यह हमारे गाँव और डेरियों से आता है जहाँ पशु पालन होता है । दूध की अधिकांश मात्रा भैसों से आती है । इसका कारण यह है कि जहाँ गाँव में भैंस लगभग हर घर में होती हैं , वहीँ गाय बहुत कम लोग पालते हैं । गायें दूध भी कम देती है और उनके दूध में वसा और प्रोटीन की मात्रा भी कम होती है ।
यहाँ एक महत्त्वपूर्ण और आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि जहाँ भैंस गाँव के लगभग हर घर में मिलती है , वहीँ भैंसा सारे गाँव में बस एक ही होता है । और उसका काम सिर्फ प्रजनन करना ही होता है । यदि गलती से दूसरा भैंसा आ भी जाये तो पहला भैंसा उसे मार मार कर भगा देता है जैसे जंगल में एक शेर दूसरे शेर को मार भगाता है । यह सत्य हरियाणा और दिल्ली के गाँव में मुख्य रूप से देखा जा सकता है । हालाँकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में भैसा गाड़ी में जोतने के काम में लाया जाता है ।
इस तरह गाँव में भैंसें अनेक और भैंसा एक ही होता है ।
ऐसा कैसे संभव होता है ?
होता यह है कि भैंस से पैदा होने वाले बच्चों में मेल फीमेल की रेशो तो लगभग बराबर ही होती है ।फीमेल( कटिया ) को तो प्यार से पाला पोसा जाता है क्योंकि बड़ा होकर वह दूध देती है । लेकिन मेल ( कटड़ा ) बच्चे को थोडा सा बड़ा होते ही बेच दिया जाता है ।
अक्सर खरीदने वाले इन्हें खरीद कर बूचरखाने में ले जाते हैं और वही उनका अंतिम पड़ाव होता है ।
गाँव के घरों में रह जाती हैं सिर्फ फिमेल ( कटिया ) जो बड़ी होकर भैंस बनती है और दूध देकर मालिक के रोजगार का साधन बनती है ।
इस तरह मानव जाति ने अपने फायदे को ध्यान में रख कर भैसों की प्रजाति पर नियंत्रण रखा हुआ है ।
पृथ्वी पर सबसे ज्यादा विकसित प्राणी ने दूसरे प्राणियों की नियति अपने हाथ में कर रखी है ।
पृथ्वी पर सबसे ज्यादा विकसित प्राणी ने दूसरे प्राणियों की नियति अपने हाथ में कर रखी है ।
भैंसों की प्रजाति में नर और मादा का यह अनुपात सही है या गलत --फैसला आपका ।
यह प्रश्न बहुत गंभीर है. संतति पर नियंत्रण घातक परिणाम ला सकता है. आभार.
ReplyDeleteगांव में अकेला भैंसा...
ReplyDeleteपीछे प्लेबैक चलना चाहिए...हु़ड़ दबंग...दबंग...हुड़ दबंग...दबंग...
पुत्र की चाह में कन्या भ्रूण की हत्या और पैसे (साथ ही देखभाल से छुटकारा) की चाह में भैंसों को वध के लिए बेचना...मानव जाति का यही स्वार्थ उसे विनाश के कगार पर तेजी से ले जा रहा है...नेचुरल सेलेक्शन की थ्योरी अपना काम करती रहती है...आदमी भूल गया है कि डायनासॉर इस दुनिया से क्यों गायब हुए थे...
जय हिंद...
अब समय आ गया है जब नर-भैंसों को संरक्षित किया जाए....!
ReplyDeleteगंभीर प्रश्न्……………गंभीर समस्या।
ReplyDeleteशायद इसीलिए उन स्थानों पर बलात्कार के अधिक केस मिलते हैं!!
ReplyDeleteखुशदीपजी की टिप्पणी ने बहुत हंसाया।
ReplyDeleteअपने फायदे के लिए इंसान कुछ भी कर देता है ..गंभीर समस्या पर ध्यान दिलाती पोस्ट ..
ReplyDeleteआदमी तो चीलों को भी मार कर खा गया। मांसाहारियों का बस चले तो वे मानव-मांस भी चबाने लग जाएँ।
ReplyDeleteप्रकृति से टकराव मानव -विनाश की रूप-रेखा ही बुनेगा। परंतु अच्छा है जब लोग सुधरना ही नहीं चाहते तो नष्ट ही हो जाएँ। जो सात्विक लोग बचेंगे उन्हें लेकर 'विनाश के खंडहर पर पुनर्निर्माण की पताका फहराई जाएगी'।
एक विकसित मानव सभ्यता की ही दें है ये निरंतर स्त्री पुरुष रेसिओ में गिरावट. अपने मानसिक दिवालिअपन से हम ऐसे वातावरण को तैयार करते है की अंत में वो हामी पर भरी पड़ता है. सम्हालने के लिए अभी वक्त गया नहीं है .. दाराल साहब बधाई एक गंभीर विषय उठाने के लिए
ReplyDeleteभारत में कहावत चली आ रही है, "जिसकी लाठी उसकी भैंस"...
ReplyDeleteकिन्तु, "जिसका चाकू उसका भैंसा" का प्रचार नहीं किया गया किन्तु अपनाया गया लगता है...
पशु बलि (मानव बलि तक, जैसे मजबूती देने के लिए सीरी फोर्ट के बनाने में गुलामों का सर नीवं में रखा गया!) तो परम्परानुसार चलती आ रही हैं, मुर्गा, बकरा तो आम भोज्य पदार्थ चले आ रहे हैं...नागालैंड में तो कुत्ते का मांस भी चाव से खाया जाता है... भारत में गाय को माता मान, और बैल को शिव का वाहन मान खेती बाड़ी के काम में लाये जाने के कारण संरक्षण हो पाया है कुछ हद तक...
माँ दुर्गा, 'शेरा वाली माता', को भी 'महिषासुर मर्दिनी' कहा गया... यह प्रथा तो पहले से चली आ रही है...
किन्तु तकनीकी में तो आविष्कार और उसके आधार पर भ्रूण ह्त्या नया है,, कलयुग का है...
मनुष्यों में नर मादा का गिरता अनुपात चिंताजनक विषय है । इस पर रोक भी लगाई जा रही है ।
ReplyDeleteभैंसों की प्रजाति में नर और मादा का यह अनुपात सही है या गलत --
भैंसों में यह समस्या है या नहीं , अभी तक इसका आभास नहीं हुआ है । शायद यह समस्या है ही नहीं ।
इसका कारण है , मादा भैंस की उपयोगिता और नर की अनुपयोगिता । इसीलिए सदियों से ऐसा होता आया है । और अभी तक कोई दिक्कत महसूस हुई भी नहीं ।
इस पोस्ट का उद्देश्य बस इस दिलचस्प पहलु पर प्रकाश डालना था । न तो यह प्रथा बदलने वाली है , और शायद न ही इसकी ज़रुरत है ।
मांसाहार भी मनुष्य प्रजाति के संरक्षण का ही एक उपाय लगता है ।
मनुष्य अन्य प्रजातियों के अनुपात को नियंत्रण में रखने का दम्भ भरता है या प्रचार करता है पर अपनी प्रजाति के इस विध्वंसकारी प्रवृत्ति को प्रश्रय दिये हुए है.
ReplyDeleteबहुत ही गंभीर समस्या...
ReplyDeleteसमस्या गंभीर है.पर खुशदीप जी की :) टिप्पणी ने माहोल थोडा सहज कर दिया.
ReplyDeleteएक शानदार पोस्ट लिख डाली है आपने...
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ReplyDeleteअगर महिला मुक्ति आन्दोलनों का परचम ऐसे ही लहराता रहा तो एक दिन गर्भजात पुरुष लुप्त हो जायेगें ..लैब वाले रहगें ...
ReplyDeleteमहिलायें तब मात्र अंडज होगीं बच्चे नहीं जनेगीं ....कारण? वे पुरुषों की तरह उदार नहीं हैं ....और अब तो मुक्ति आन्दोलनों में कुछ पेनीट्रेशन के खिलाफ भी हल्ला बोल चुंकी हैं -ट्रेंड दिख रहा है मुझे तो साफ़ ,क्या आपको भी डाक्साब ?
गहन चिंतन....
ReplyDeleteडॉक्टर साहिब, वैसे एक प्राचीन हिन्दू मान्यता यह भी है कि केवल कृष्ण ही एक पुरुष है और अन्य सभी नारियां :)
ReplyDeleteपुनश्च -
ReplyDeleteयोगियों के दृष्टिकोण से सारे साकार रूप वास्तव में कुछ मात्रा शक्ति (बहुरूपिया कृष्ण / काली) और कुछ मात्रा शक्ति के ही परिवर्तित भौतिक रूप के योग द्वारा बने हैं... और नर / नारी ही नहीं, विभिन्न अन्य रूप, कीड़े मकोड़े से लेकर तारे / ग्रह आदि भी दिख रहे हैं हमें अर्थात आत्माओं को :)
gahan chintan..
ReplyDeleteअरविन्द जी , मनुष्यों , जानवरों और पक्षियों समेत --सभी प्रजातियों में अपने वंश को चलाने के लिए बेसिक इंस्टिंक्ट होती है । इसके लिए मादाएं ही जिम्मेदार रहती हैं । अक्सर देखा जाता है कि चीटियों , मधु मक्खियों आदि कई जंतुओं में नर का काम बस मादा को गर्भवति करना ही होता है । बाकि सारा काम मादाएं ही करती हैं ।
ReplyDeleteबाकि जानवरों में भी यही ट्रेंड देखा जा सकता है । मनुष्यों में भी मां ही बच्चे की देख रेख पूर्ण रूप से करती है । अभी कहीं पढ़ा था कि विकसित देशों में फेशनेबल कही जाने वाली महिलाएं भी ममता के मामले में सभी एक जैसी होती हैं और कम नहीं होती ।
अत: मादा का रोल कभी कम नहीं हो सकता ।
ऐसा लगता है वर्तमान हिन्दुओं ने कभी मंदिर / घर में प्रार्थना नहीं गाई / सुनी, "त्वमेव माता च पिता त्वमेव // त्वमेव बंधुस्च सखा त्वमेव / त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव // त्वमेव सर्वं मम देव देव??...
ReplyDeleteइसी में सार छुपा है हिन्दू मान्यता का, (सत्यम शिवम् सुन्दरम), जिसमें सृष्टिकर्ता को निराकार अनंत शक्ति रूप जाना गया (और अनादि / अजन्मा भी, जबकि साकार सूर्य को आदित्य / अदिति कहा गया)...
और यह मानव, अर्थात विभिन्न आत्माओं पर छोड़ दिया गया कि वो उसे विष्णु माने अथवा देवी, यानि पुरुष अथवा नारी...इसे ही योगमाया, अथवा माया कहा गया, मकडजाल समान, जिसको तोड़ने के लिए गणेश की सूंड चाहिए :)
जय माता जगदम्बा की!
संतति प्रश्न पर नये तरीके से ध्यानाकर्षण .
ReplyDelete@ दराल साहब ,
ReplyDeleteहमारी अपनी परसोना में बेहद कंट्रास्ट है ! हमें एक समय में एक से अधिक स्त्रियों की सोहबत तो चाहिए पर हम स्त्री और पुरुष का अनुपात अपनी इस लालसा के विरुद्ध तय करते हैं !
मेरा ख्याल यह है कि ये सीधा सादा जैविक प्रश्न नहीं है ! इसके लिए शताब्दियों की सोशल कंडीशनिंग से उपजी पुरुष अहमन्यता जन्य "आन" का प्रश्न और "आर्थिक गुणा भाग" को अधिक उत्तरदाई माना जाये !
मेरा अपना अनुमान यह भी है कि अगर स्त्री पुरुष अनुपात की विसंगति दर ऐसी ही बनी रही तो एक लंबे समय के बाद इसका रोल रिवर्सल भी ज़रूर होगा !
@ इंसान तो बेकुसूर है ,
विजय माथुर जी ने स्त्री पुरुष अनुपात का ठीकरा मांसाहार पे थोप दिया है ! क्या उन्हें पता नहीं कि देश के सभी आदिवासी क्षेत्रों में स्त्रियां की संख्या पुरुषों से अधिक है , जबकि आहार से वे मुख्यतः मांसाहारी हैं ! माथुर साहब की मानूं तो ज्यादा स्त्रियों की संख्या वाले आदिवासी लोग सात्विक नहीं माने जायेंगे :)
और जे सी साहब की टिप्पणियां इस मामले में बेक़सूर ईश्वर को आरोपों के घेरे में लपेटने का यत्न सा लगीं उनकी मानें तो इंसान निर्दोष सिद्ध हुआ :)
हा! हा! हा! अली जी, आप तो मेरे पुराने ससुराल, जगदलपुर वाले निकले! यही तो लीला है!!! इस्लाम धर्म ने चार पत्नी रखना सही माना, तो कृष्ण ने ६०, ००० स्वयं रखीं (ऐसी मान्यता है, और आसान काम नहीं है इतनी रानियाँ रखना और उस पर पहाड़ को भी एक ऊँगली पर उठा लेना :)
ReplyDelete'मैं' आपकी सूचना हेतु, नीचे डॉक्टर साहिब के ब्लॉग में भी दे रहा हूँ, मेरी ही एक टिप्पणी एक जानी-मानी हस्ती के ब्लॉग पर जो मैंने दी थी भगवान्/ शैतान के ऊपर चर्चा के संदर्भ में... ...
"दिव्या जी, 'हत्यारा झपट्टा' और आपके बीच हुए वार्तालाप ने सिद्ध कर दिया कि भगवान् अदृश्य होने के साथ साथ रहस्यवादी / रहस्यवाद प्रिय भी है, अर्थात नटखट नंदलाल है :)
बच्चों के समान इशारे करता है, आवाज़ देता है , मैं कौन हूँ? / मैं कहाँ हूँ? / तुम कौन हो ? / आदि आदि, कह स्वयं छुप जाता है - लुक्का-छुप्पी का खेल खेलता है :)
आप और हम उलझे हुए हैं कि मोहन दास कौन थे? और इतिहास के पन्ने लाल-काले हो गए किन्तु चर्चा समाप्त नहीं होती, निष्कर्ष नहीं निकल सकता कि वो भगवान थे या शैतान? अस्थायी व्यक्तियों, शेक्सपियर द्वारा माने गए इस संसार रुपी स्टेज पर अनंत नाटक / कृष्णलीला के विभिन्न पात्रों का एक अंश कहता है वो महात्मा थे तो दूसरा उनके अवगुण गिनाते उन्हें शैतान कह रहे हैं, और आज के अज्ञानी बच्चे, 'भारत' नहीं 'इंडिया' की नयी पौध मस्त रह सकते थे किन्तु इतिहास पीछा छोड़े तब न! ... और यह भी मजबूरी है श्री कृष्ण की, क्यूंकि एक वो ही तो इस सृष्टि के नाटक के मूल कारण हैं, बहुरूपिया हैं - ब्रह्मा भी हैं, विष्णु भी हैं और महेश भी, बनाना, चलाना, तोडना सभी कार्य तो उनके ही अंतर्गत आते हैं, और वो कहते भी हैं कि वो प्रति क्षण कार्य कर रहे हैं यद्यपि तीनों लोक में उनको कुछ नया पाने को नहीं रह गया है :) "
@ जे सी साहब,
ReplyDeleteआपने कमाल कर दिया , इस्लाम वालों के लिये चार , भगवान के लिए साठ हज़ार और स्वयं के लिए कम से कम दो :)
अभी आपने कहा ना कि आपकी पुरानी ससुराल जगदलपुर तो फिर नई ससुराल का विकल्प खुला रह गया ना :)
@ अली साहेब, सही फरमा रहे हैं... विकल्प तो खुला है... किन्तु जगदलपुर पुरानी ससुराल इस लिए है कि कुछेक वर्षों से ससुराल का स्थानान्तरण इंदौर हो गया है :)
ReplyDeleteइस तरह गाँव में भैंसें अनेक और भैंसा एक ही होता है ।
ReplyDelete..kuch din baat we bhi gayab hone ke kagar par hai...
डॉ संजय , ऐसा भी हो सकता है , क्योंकि भैंसा पालना गाँव में किसी की भी जिम्मेदारी नहीं होती ।
ReplyDeleteअली जी , मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जहाँ मेल फिमेल रेशो लगभग बराबर है । ज़रा सी कम क्या हुई कि लगे शोर मचाने । और किसी भी प्रजाति में बस फिमेल ही होती हैं , मेल बहुत कम ।
शायद कभी ऐसा दौर भी आए कि मानव जाति में भी मेल की अहमियत कम हो जाये ।
मनुष्य चाहता है सबको नियंत्रित करना पर भूल रहा है ... कभी उसको नियंत्रित करने वाला भी आने वाला है ...
ReplyDelete'प्राचीन हिन्दू' कथा-कहानियां सांकेतिक भाषा में लिखी होने के कारण इन्हें लाइनों के बीच पढने की, सार निकालने की, आवश्यकता है...
ReplyDeleteजो मुझे समझ आया, योगेश्वर विष्णु / शिव, परम ज्ञानी निराकार जीव, अर्थात शुद्ध शक्ति रूप को (८ x ८ =) ६४ योगिनियों से बना हुआ जाना प्राचीन सिद्धों ने जो शून्य विचार तक तपस्या द्वारा पहुँच पाए ...
जबकि प्रत्येक व्यक्ति, पुरुष अथवा नारी, पैदाईश के समय शरीर से केवल एक 'योगिनी' होता / होती है, अर्थात एक योगिनी वाले शरीर का योग चौंसठ योगिनी वाली आत्मा के साथ हुआ होता है...
इस प्रकार अपने जीवन काल में प्रत्येक व्यक्ति को अपने शरीर में, अन्दर और बाहर एक समान होने के लिए, ६३ अतिरिक्त योगिनियों के योग की तालाश रहती है किसी भी एक जीवन काल में 'कृष्ण' (काले भैंसे?) की अनुभूति पाने हेतु :)
इसे ही बुद्ध समान सत्य का बोध होना, अथवा मोक्ष भी कहा गया...
'प्राचीन हिन्दू' कथा-कहानियां सांकेतिक भाषा में लिखी होने के कारण इन्हें लाइनों के बीच पढने की, सार निकालने की, आवश्यकता है...
ReplyDeleteजो मुझे समझ आया, योगेश्वर विष्णु / शिव, परम ज्ञानी निराकार जीव, अर्थात शुद्ध शक्ति रूप को (८ x ८ =) ६४ योगिनियों से बना हुआ जाना प्राचीन सिद्धों ने जो शून्य विचार तक तपस्या द्वारा पहुँच पाए ...
जबकि प्रत्येक व्यक्ति, पुरुष अथवा नारी, पैदाईश के समय शरीर से केवल एक 'योगिनी' होता / होती है, अर्थात एक योगिनी वाले शरीर का योग चौंसठ योगिनी वाली आत्मा के साथ हुआ होता है...
इस प्रकार अपने जीवन काल में प्रत्येक व्यक्ति को अपने शरीर में, अन्दर और बाहर एक समान होने के लिए, ६३ अतिरिक्त योगिनियों के योग की तालाश रहती है किसी भी एक जीवन काल में 'कृष्ण' की अनुभूति पाने हेतु :)
इसे ही बुद्ध समान सत्य का बोध होना, अथवा मोक्ष भी कहा गया...
इस कारण धर्मपत्नी, अर्थात शिव की मूल अर्धांगिनी सती, यानि शक्ति अथवा ऊर्जा के भण्डार समान, इस जन्म में उनकी दूसरी पत्नी पार्वती समान, प्रत्येक पुरुष की 'अर्धांगिनी', के रोल को प्राचीन हिन्दुओं ने उच्चतम स्थान दिया... पत्नी को भवसागर पार कराने हेतु, अर्थान मोक्ष, परम ज्ञान दिलाने हेतु केवट समान रोल दिया गया है - ऐसी प्राचीन हिन्दू मान्यता है :)
किन्तु काल चक्र के साथ साथ घटती क्षमता के कारण करवा चौथ के दिन स्त्रियाँ अपने पति की दीर्घ आयु की कामना के रूप में चन्द्रमा की पूजा (ज्येष्ठ शुक्ल, इस वर्ष जून १२ को) निर्जला एकादशी समान, घटते चंद्रकला के साथ (१५-११), चौथे दिन (कार्तिक कृष्ण) के दिन मनाते हैं, लगभग चार माह पश्चात (इस वर्ष १५ अक्तूबर को}...
जानकारी पूर्ण मार्मिक पोस्ट .
ReplyDeleteजो नियति मवेशियों में वृषभ और कटड़े की है ,वही नियति एशिया में महिलाओं की है कन्या भ्रूण की है .यह एक अति विषम स्थिति है हमारे राष्ट्र के लिए परिवार के लिए तो यह लानत मलानत की बात है ही .यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता ?क्या ढकोसला है .और नवरात्र पर कन्या पूजन ?
इस पोस्ट के कमेंट भी जानदार है। अफसोस कि देर से पढ़ा पाया।
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