कभी कभी सोचता हूँ क्या सचमुच रावण ने इतना बड़ा अपराध किया था जो उसे यूँ बार बार मारा जाता है .
जहाँ तक पढने सुनने में आता है , रावण एक सुशिक्षित , ज्ञानी , विद्वान पंडित था . साथ ही अति पराक्रमी , बहादुर , शक्तिशाली और वरदान प्राप्त योद्धा भी था .
उसके चरित्र में भी कोई दाग नहीं था .
उससे बस एक भूल हो गई जो उसने सीता मैया का अपहरण किया और उन्हें कैद में रखा . इसके अलावा तो कोई और अपराध नहीं किया था . उसने कभी सीता मैया को छुआ तक नहीं .
रावण अपनी जिद्द पर ज़रूर अड़ा रहा और बहुत समझाने के बावजूद भी टस से मस नहीं हुआ . अंतत : यही अहंकार उसे ले डूबा .
लेकिन क्या जब तक धरती पर जीवन रहेगा , रावण को यूँ ही मारा जाता रहेगा ?
एक छोटी सी भूल की इतनी बड़ी सजा !
या अहंकार का होना इतना बड़ा गुनाह है ?
यदि हकीकत की दुनिया में देखें तो जाने कितने ही दुष्कर्मी सड़कों पर आज़ाद घूम रहे हैं और उन्हें कोई सजा नहीं मिलती .
दिल्ली जैसे शहर में रोज लड़कियों का अपहरण होता है. रेप की कितनी ही घटनाएँ होती हैं . महिलाओं से छेड़ छाड़ तो आम बात है . कामकाजी महिलाओं का शोषण हो रहा है . दहेज़ के लालची लोगों द्वारा बहुओं को सरे आम जला दिया जाता है .
बड़े सेठों के बच्चे , नेताओं के बच्चे , आला अफ़सरों के बच्चे --शराब के नशे में सड़क पर निरीह जनता को कुचल देते हैं , रोड़ रेज़ में सरे आम हत्या कर देते हैं, शराब न मिलने पर गोली मार देते हैं .
क्या यह अहंकार की निशानी नहीं है ?
लेकिन उनके विरुद्ध अक्सर कोई कार्यवाही नहीं हो पाती . उन्हें कोई सज़ा नहीं मिल पाती .
यदि मिलती भी है तो बस नाम मात्र .
बिल्ला रंगा को फाँसी हुई , लेकिन फिर सब भूल गए .
निर्दोष जनता को बम से उड़ाने वाले आतंकवादी या तो पकडे नहीं जाते या फिर उन्हें सज़ा ही नहीं हो पाती .
कुछ तो सरकारी मेहमान बन जनता के पैसे पर ऐश कर रहे हैं .
ऐसे में क्या सचमुच रावण को बार बार मार कर हम कुछ हासिल कर रहे हैं ?
लगता है , अब समय आ गया है , हम अपनी परम्पराओं का निष्पक्ष रूप से निरीक्षण करें और समयानुसार संभावित संशोधन करें .
नोट : थोड़ी देर तक धार्मिक भावनाओं और आस्थाओं को भूलकर यदि हम निष्पक्ष चिंतन करें , तो शायद कोई सार्थक बात निकल कर आए .
त्रेतायुग के रावण को अब बक्शो .
ReplyDeleteकलयुग को रावण को अब पकडो ||
सही है डॉ.बाबु जी ...?
डॉ साहब ,बहुत विचारोत्तेजक!रावण भले ही ब्राह्मण था मगर ऋषियों मुनियों को बहुत सताता रहता था ... :)
ReplyDeleteआज के रावण ही तो राम का मुखौटा लगाये घूम रहे हैं और प्रतीकात्मक रावण पर निशाना साध रहे हैं ..
और यह संघर्ष निरंतर रहा है और रहेगा !
बहुत सटीक लिखा है, आज के समय के लिए प्रांसगिक भी है।
ReplyDeleteरावण के अपराधों के कारण ही राम का अवतार हुआ। सभी राक्षस रावण के संरक्षण में ही निर्दुंद होकर अपराध कर रहे थे।
ReplyDeleteआपके लेख पढने से पहले से ही मेरी खुद की भी ये ही राय थी कि ..उस युग के रावन का इतना कसूर नहीं था जितनी बड़ी उसको सज़ा मिली ....और आज के रावन खुले आम हम सबके बीच निर्भय होकर घूमते है ....उनका वध कौन करेगा ....ऐसा कौन सा राम आएगा इस धरती पर जो ऐसे रावनो का वध कर सबको मुक्ति देगा ........आपका लेख प्रशंसनिए है ....आभार
ReplyDeleteसारी हिन्दू कथा-कहानियां, रामलीला, कृष्णलीला आदि, सांकेतिक भाषा मैं हैं - सत्य उसे माना गया जो सनातन है, काल पर निर्भर नहीं करता हैं!
ReplyDelete"प्रकृति निरंतर परिवर्तन शील है", साकार रूप आ-जा रहे हैं... जन्म ले रहे हैं, कुछ नाटक कर रहे हैं, और फिर मिटटी- राख में मिलते जा रहे हैं ( )...
और इस खेल, अथवा पहेली, में प्रत्येक व्यक्ति से उपेक्षित है कि वो शक्ति रुपी निराकार से शीघ्रातिशीघ्र सम्बन्ध जोड़े और अंत तक उससे जुदा रहे... राम के पात्र गद्दी न मिलने, जंगल में वर्षों भटक, सटी अर्थात शक्ति रुपी सीता, वैदेही, धर्म-पत्नी से बिछुड़, अन्य व्यक्तियों कि सहायता से उसे छुडा, अयोध्या लौट कर भी, किन्तु फिर सीता को बनवास, वशिष्ठ मुनि के आश्रम भेज, बच्चों से भी दूर रह, आदि आदि, मन पर नियंत्रण रख अपना जीवन व्यतीत किये... जबकि रावण का पात्र भौतिक ज्ञान और उससे मिलने वाले शारीरिक सुख को ही केवल सत्य मान अपना जीवन यापन किया...
इस कारण हमारी कहानियों में संकेत है कि भौतिक सुख लेना बुरा नहीं है, किन्तु ऐसा करने के साथ साथ, अपने कको एक पात्र मान, और असली कर्ता को केवल एक ही सर्वगुण संपन्न निराकार मान, उसके साथ सम्बन्ध जोड़ना आवश्यक है, अर्थात वो ही मानव का अपने सीमित जीवन काल में (लक्ष्मण समान) लक्ष्य होना चाहिए...
क्या हम कुछ रावणों को मार सकते हैं जो सत्ता में बैठे उन नेताओं को, जो रामराज्य का सपना देख रहे जनता का शोषण करने अपनी लंका सोने से भर रहे हैं :)
ReplyDelete.
ReplyDeletejaane kab tak yun hi rawan ko maarkar khush hote rahinge ham...
badiya saarthak prastuti heti dhanyavaad
क्यूंकि काल चक्र सत युग से कलियुग की ओर चल रहाजाना गया है (जैसा काल के साथ साथ मानव प्रकृति और उसकी कार्य क्षमता घटती प्रतीत हो रही है), त्रेता में शिव से (जैसे दोनों राम और रावण शिव के भक्त थे) और द्वापर में राम के जीवन से, रामलीला से, प्रेरणा लेना सही माना गया (द्वापर में पांडवों को राम समान बनवास जाना पड़ा)... और कलियुग में कृष्ण लीला' से... 'महाभारत' में, कथा के सभी पात्र समान वर्तमान में भी, अधिक संख्या में ही, दुर्योधन, दुशाशन आदि देखने को मिल रहे हैं, जिसकी पुष्टि डॉक्टर दराल ने भी की है... वास्तव में आपको शिव समान भोले राम भी मिल जायेंगे, और सिद्धार्थ समान राजकुमार, जो राम समान, सोने की राज गद्दी को लात मार 'सत्य' की खोज में निकल गए...
ReplyDeleteमीरा बाई भी कह गयी गीता के हीरो 'कृष्ण' के लिए कि वे मूर्खों को ही राजा का रोल देते हैं - जो भौतिक वस्तु को प्राथमिकता दे सोना एकत्रित कर रहे हैं, उसको श्रेष्ट मान और बुद्धि, ज्ञान अथवा परम ज्ञान, को गौण समझ! यही मकद्ज्सल समान मायाजाल है जिसे तोड़ने के लिए डंडे समान, (गणेश जैसी) हाथी की सूंड की आवश्यकता है :)
जब काल घोर कलियुग पर पहुँच गया है तो परिवर्तन तो निश्चय है और वास्तव में उसे 'कृष्ण' ही लायेंगे :)
रामलीला हर साल होती है.रावण भी हर साल मरता है.
ReplyDeleteरावण के बारे में अलग अलग सोच हों सकतीं हैं.
आपकी प्रस्तुति सोचने का नया आयाम देती है.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
रावण-दहन पर विचार करने के साथ और भी कई बातें हैं जो लोगों की आदत में शुमार होकर औचित्य के प्रति उदासीन बना देती हैं - रावण की भगिनी के (दो वीरों के द्वारा))नाक-कान काटा जाना और दर्शकों का हर्षातिरेक से भर जाना ,अब के डायन होने का दोष लगा कर,क्रूरता से किसी अकेली स्त्री को घेर कर मार डालना भी इसका ही परिवर्तित रूप होगा !
ReplyDeleteराम जी के योद्धाओं द्वारा रावण की रानियों के बाल पकड़ कर घसीटा जाना और भी बहुत सी बातें मर्यादा अंतर्गत नहीं आतीं (ऐसा मुझे लगता है).
आज के समय के लिए प्रांसगिक रचना| धन्यवाद|
ReplyDeleteरावण यूँ ही मारा जाता है और वह द्विगुणित रूप से अपना विस्तार करता रहता है.
ReplyDeleteसही चिंतन,आभार.
ReplyDeleteऐसे में क्या सचमुच रावण को बार बार मार कर हम कुछ हासिल कर रहे हैं ?
ReplyDeleteएक ऐसा प्रश्न जिसका जवाब बहुत मुश्किल है।
हर आदमी के अंदर राम और रावण दोनों है...ज़रूरत है बस राम के विवेक को जगाए रखने की और रावण के अहंकार को सुलाए रखने की...
ReplyDeleteवैसे डॉक्टर साहब रावण आज के मैनेजमैंट युग में होता तो बड़ा सक्सेसफुल रहता, दस सिर होने की वजह से
खुद ही ग्रुप डिस्कशन कर लेता...
जय हिंद...
रावण नहीं मारा जाता!
ReplyDeleteउसका पुतला फूंका जाता है!
ऐसे तो कितने ही 'नेताओं' के भी आये दिन पुतले फूंके जाते हैं, और वो और अधिक शक्तिशाली होते जा रहे हैं!
राक्षश राज राहू का गला भी 'मोहिनी रूप में' विष्णु ने काट दिया था - किन्तु उसका सर तो अमृत हो गया था! और वो सभी राक्षसों के माध्यम से आज भी बोलता है :)
राक्षश राज रावण भी राहू समान अमरत्व को प्राप्त कर लिया था, किन्तु उसका धड, केतु, निर्जीव सा तभी से प्रकृति में डोल रहा है (सांकेतिक भाषा में यह कहा गया अल्ट्रा वायोलेट और इन्फ्रारेड किरणों के बारे में जो थोड़ी बहुत सूर्य की किरण के साथ हमारे वातावरण में प्रवेश पाती रहती हैं... और जिनकी मात्रा ओजोन तल में दिखाई पड़ने वाले छिद्र के कारण वर्तमान में बढ़ गयीं हैं, और वैज्ञानिक जगत चिंतित हो उसके निवारण के लिए प्रयास रत है...) हमारी कहानियां रावण की नाभि में राम के तीर मारने को दर्शाती हैं (विभीषण के उसकी कमजोरी को बताने पर)...विह्नु की नाभि से कमल पर ब्रह्मा को बैठे दिखाया जाता है - पृथ्वी से ही उत्पन्न हुए सूर्य / चन्द्र की ओर संकेत करते... इत्यादि इत्यादि...
सबके मन में उठते सवालों को आपने शब्द दे दिए हैं...
ReplyDeleteआज के युग में तो बस रावण ही चहुँ ओर नज़र आते हैं.
रावण को समूल नष्ट करना होगा और उसके लिए तो राम को आना पड़ेगा इस युग में राम कहा और कैसे आयेंगे |
ReplyDeleteपुतला तो जल जाता है हर साल पर रावन कहाँ मरता है.
ReplyDeleteसार्थक चिंतन
सही मायनों में निष्पक्ष चिंतन की ज़रूरत है
ReplyDeleteरावण वध कर विजयी भव ,
ReplyDeleteजब श्री राम अयोध्या आए थे ,
अधर्म पर धर्म की जीत पर,
तब सबने घी के दीप जलाये थे ।
दीवाली का पर्व अब हो गया है धुआं धुआं ,
खोये का स्वाद भी खो गया है जाने कहाँ ,
नहीं लगती अब पटाखों की आवाज़ मधुर
जब से धमाकों में घुली है, चीख पुकार यहाँ ।
अब बदल गया है पर्व ये , दीवाली का पावन ,
तब कण कण में थे राम , अब जन जन में है रावण ।
और कौन हैं ये रावण ?
काम, क्रोध, मद , लोभ, में डूबी गहन आबादी ,
महंगाई , प्रदूषण और भ्रष्टाचार की बर्बादी ,
मासूमों का खून बहाते आतंकवादी ,
धर्म , प्रान्त और जात पात पर विष पिलाते अवसरवादी ।
पावन मात्रभूमि को जिसने किया कुरूप ,
यही हैं वो आज के रावण के दस रूप ।
किन्तु रावण भी हम हैं , और हमीं हैं राम ,
जो अंतररावण को मारे , वही कहलाए श्री राम ।
'राम लीला' कहानी है अनेकता में एकता की, एक टीम की, उदाहरणतया धोनी आदि किसी क्रिकेट कप्तान की टीम के जीत-हार की,,, बच्चों के सी-सौ के खेल समानं - कभी ऊपर (आकाश में) तो कभी नीचे (धरा पर), किन्तु हर स्थिति में आनंद लेते... डरपोक बच्चे ही केवल रोते / अथवा धरा पर बैठे शैतान बच्चों के ऊपर उठे बच्चों को डराने अथवा उनको गिराने हेतु सी-सौ से अचानक हट जाने द्वारा,,,
ReplyDeleteऔर बाल-कृष्ण तो नटखट थे ही, जो योगिराज बन शरीर को मिथ्या, 'प्रभु की योगमाया / माया' द्वारा जनित बता गए :).
..
[प्रभु, अर्थात जो साकार भूमि के अस्तित्व प्राप्त करने के पहले भी अजन्मा-अनंत ब्रह्माण्ड के शून्य में पहले भी विद्यमान था...उसे नादबिन्दू, निराकार ब्रह्म, विष्णु कहा गया - मात्र दो शब्द, 'विष' और 'अणु', के योग से बना, जो उत्पत्ति कर 'विष' का विपरीत 'अमृत', अर्थात 'गंगाधर', 'चंद्रशेखर', आदि, 'शिव' अर्थात धरा, अथवा 'महाशिव' अर्थात हमारा सौर-मंडल बन गया जिसका अभिन्न अंग, त्रिनेत्रधारी शिव भी हैं , बन गया क्षीरसागर / मानस 'मंथन' द्वारा, जिसमें आरम्भ में विष ही उत्पन्न हुआ था और सभी अज्ञानी रावण / महिषासुर थे - "तमसो मा ज्योतिर्गमय..." एक दीपक से आरम्भ कर दीपावली द्वारा :]....
रावण का फूंका जाना कोई धार्मिक प्रक्रिया नहीं फूहण और बेशर्म तथा घोर अधार्मिक हरकत है जिसे पूंजीपति-साम्राज्यवादी अपने पिट्ठूओ के माध्यम से सम्पन्न कराते हैं।
ReplyDeleteचाहें तो यहां एक रावण को देख लें.
ReplyDeleteसमय ने सभी के लिए अपेक्षित मर्यादाएं बदल दी है या क्षुद्र स्वार्थों के लिए मान्यताएं बदल दी गयी हैं ....
ReplyDeleteमुखौटे वाले राम है और रावण भी !
सार्थक चिंतन!
रावण पुतला दहन करे, मन-रावण कबहूं न मारे
ReplyDeleteवरण बुराई का कर कर के, पंडित रावण को जारे
सच्चाई का सुंदर चित्रण। रावण दहन देखने सारी जनता जाती है। कितना ऊंचा रावण का पुतला बना था कैसी आतिश-बाजी रही यही सब देखने। मुख्य अतिथि के रूप मे पधारे; देश के, प्रदेश के, नगर के, ग्राम के, मुखिया की खुशी का ठिकाना नही! शुभकामनाओं के संदेश देते हुए पुन: मुखिया के रूप मे चयन करने हेतु अपील करते हुये……। हो सकता है शव-दाह गृह मे किसी के अंतिम संस्कार मे सम्मिलित होने जाने पर क्षण भर के लिये उत्पन्न होते वैराग्य भाव की भांति बुराइयों को त्यागने का भाव मन मे आये बाकी तो "फिर ढाक के तीन पात" सुंदर रचना के लिये बहुत बहुत बधाई व आभार…
शायद यह प्रतीकात्मक ही होगा लेकिन आज के रावणों का दहन करना ज्यादा जरूरी हो गया है.
ReplyDeleteरावण की तादाद बढ़ रही है ,क्यों कि इसके पालने पोसने वाले समाज को दिशा दिखाने वाले जगह पर बैठे लोग हैं । पहले इन्हें खत्म करना होगा ।
ReplyDeleteअच्छा लेख ।
राहुल जी , रावण की पूजा करना एक नई जानकारी है । लेकिन कारण समझ नहीं आया ।
ReplyDeleteहमारे ज्ञानी-ध्यानी पूर्वज रामलीला आदि के सभी पात्रों को निराकार ब्रह्म के मन रुपी खेत की उपज जाने, और जगत मिथ्या कह गए, एक स्वप्न, अथवा योगनिद्रा में शेषनाग के ऊपर लेटे विष्णु / शिव का अपने तीसरे नेत्र में फिल्म देखने समान...
ReplyDeleteकिन्तु इस ड्रामे में सारे के सारे रोल बहुरूपिया कृष्ण ने किये हैं!
वो ही सूर्य समान धनुर्धर, पूजनीय त्रेता के राम, किन्तु उत्पत्ति की उलटी दिशा में चलती रील के कारण, द्वापर के अज्ञानी अर्जुन, और उससे भी निम्न बुद्धि वाले हम सभी कलियुग के मानव आदि, के माध्यम से पृथ्वी पर सभी जीव के विभिन्न काल तक काम आने वाली शक्ति के स्रोत, माता-पिता, यद्यपि स्वयं अपने केंद्र में संचित गुरुत्वाकर्षण, निराकार अनंत शक्ति के स्रोत विष्णु के अंश, कृष्ण, आत्मा के कारण अस्तित्व में हैं - वर्तमान में लगभग साढ़े चार अरब वर्षों से, जबकि हमारी गैलेक्सी १३.७ वर्ष की मानी जाती है किन्तु उसे ब्रह्माण्ड की आयु मान! क्यूंकि हिन्दू मान्यतानुसार ब्रह्माण्ड अनादि अनंत है...
सौर-मंडल के अन्य सदस्यों में से शुक्र ग्रह अर्थात शुक्राचार्य को राक्षसों का गुरु (राजा) माना गया, और हम यह भी जानते हैं आज की ग्रहों आदि पर जीवन सूर्य से प्राप्त शक्ति पर ही निर्भर है, जिस कारण सूर्य और शुक्र में सूर्य श्रेष्ट होने पर भी शुक्र दुसरे नंबर पर आता है जहां तक भौतिक संसार, प्राणीयों के शरीर का प्रश्न है...
इस कारण नीलाम्बर कृष्ण / दक्षिण भारत में मुरगन, उत्तर में कार्तिकेय, और पीताम्बर कृष्ण, दोनों आवश्यक हैं, पूज्य हैं, आत्मा और शरीर के योग हेतु :)
विरोधाभास है यह रावण के राज में साल दर साल उसका पुतला फूँका जाना .फिर भी हर साल उसका कद और काठी दोनों बढ़ जातीं हैं .रावण एक प्रवृत्ति का नाम है .चाहे उसे एहंकार कह लो या कुछ और .हकीकत यही है -
ReplyDeleteतुलसी के पत्ते सूखे हैं ,और कैक्टस आज हरे हैं ,
आज राम को भूख लगी है ,रावण के भण्डार भरें हैं .
दिल्ली में रावण स्कोर्पियो में घूम रहें हैं .सूर्प -नखा कोई नहीं है जो इसे नाथे.
शिव का वाहन किसे माना जाता है?
ReplyDeleteमेरे विचार में सभी पढ़े-लिखे 'हिन्दू' तो कम से कम जानते होंगे ही कि शिव के वाहन, एक चौपाये शक्तिशाली पशु का नाम नन्दी था (जबकि सभी सांसारिक जीव अपने सीमित काल में आनंद खोज रहे होते हैं - जो कठिनाई से ही मिलता है आज :)...
और कृष्ण की माँ यद्यपि 'देवकी' (और पिता 'वसुदेव') थी, किन्तु उसे पाला पोसा 'यशोदा' ने (यश देने वाली :) और पिता नन्द (आनंद देने वाले :)...
और शक्तिशाली कृष्ण ड्राइवर (सारथी) थे, द्वापर में सर्वश्रेष्ट धनुर्धर अर्जुन के अश्वरथ के :)
उनके हाथ में था अर्जुन को सुरक्षित रख, सही स्थान पर ले जाना, अर्थात वो 'डिसीज़न मेकर' थे, न कि अर्जुन!
और वो उसके अध्यात्मिक गुरु भी थे...
और मजा यह है कि वो गीता में भी कह गए कि जो भी, कभी भी, अर्जुन समान उनके ऊपर अपने जीवन कि नैय्या छोड़ दे, तो वो उसे गंतव्य तक स्वयं ले जायेंगे...
किन्तु वर्तमान ज्ञानी अपने को कृष्ण से भी अधिक ज्ञानी मान कहता है "You mind your own business" :)
@उससे बस एक भूल हो गई जो ...
ReplyDelete1. प्राचीन ग्रंथ में एक सम्वाद है जहाँ राम लक्ष्मण से कहते हैं कि यदि रावण सीता को वापस कर दे तो?
और लक्ष्मण कहते हैं कि उन्हें तो लौटाना ही पड़ेगा परंतु उसने ज्ञान के प्रति जो अपराध किये हैं, उनकी सज़ा उसे अवश्य मिलेगी
2. सीताहरण से पहले भी रावण के कुकृत्यों की एक लम्बी शृंखला है।
3. निर्बल का अहंकार शायद उतना हानिकर न हो परंतु एक शक्तिशाली, ज्ञानी का अहंकार जब हिंसक हो जाता है तो उसे रोकना ही चाहिये।
एक सुन्दर आलेख के लिये आभार! इस बहाने राहुल जी का आलेख भी पडःअने को मिला। वैसे रावण की एक लघु चर्चा मेरी एक पुरानी पोस्ट पर भी है:
दशहरे के बहाने दशानन की याद
@ Smart Indian - स्मार्ट इंडियन said
ReplyDeleteकभी कभी, एक प्रश्न मन में उठता है - श्रीराम ने एक रावण का वध करने पर उस हिंसा का प्रायश्चित भी किया था। हम हर साल रावण मारकर कौन सा तीर मार रहे हैं?
अनुराग जी , रावण की विद्वत्ता को नकारा नहीं जा सकता । तभी तो राम ने भी लक्ष्मण को रावण से शिक्षा लेने के लिए कहा था ।
श्री राम ने भी रावण को उसके अहंकार की वज़ह से ही सजा दी थी ।
लेकिन आज हमने रावण को एक खलनायक मात्र बना दिया है और अंधाधुंध भेड़ चाल चलते हुए हर साल रावण दहन के रूप में एक तमाशे का आयोजन करते रहते हैं ।
शायद कहीं न कहीं इस सोच को बदलने की ज़रुरत है ।
जी, आपसे सहमत हूँ।
ReplyDeleteमेरी सोच, अथवा योगियों की सोच के अनुसार, नाद बिंदु विष्णु / राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य, अर्थात शुक्र ग्रह के सार, का निवास स्थान - साकार मानव शरीर में - ध्वनि ऊर्जा के स्रोत, कंठ में है... जिसके माध्यम से बोलने, गाने आदि द्वारा - जिव्हा की सहायता से - प्रत्येक नोर्मल व्यक्ति अपने मन में उठते विचारों को समय समय पर व्यक्त करता रहता है, अथवा मौन भी रह सकता है (जो अधिकतर 'स्वीकृति का सूचक' माना जाता है) ...
ReplyDeleteअन्यथा विचारों को आवश्यकतानुसार हाथ / पैर के माध्यम से भी लिख / टंकण कर अन्य व्यक्ति (अथवा व्यक्तियों) के साथ आदान प्रदान किया जा सकता है...
यह कदापि आवश्यक नहीं की सभी, किसी भी व्यक्ति विशेष से, हर बात पर सहमत हों...
कहावत है, "पसंद अपनी अपनी / विचार (ख्याल) अपना अपना"...
इसी कारण तो किसी भी, छोटे से छोटे विषय पर भी, मानव समाज तीन भाग में बंट सा जाता है - कुछ आपके साथ सहमत, कुछ असहमत, और कुछ न इधर के न उधर के, अर्थात तटस्थ, यानि बीच के... सिक्के के खाली - बीच के मोटे - स्थान के जिन्हें मानव शरीर में गले से जुड़े ऊपर सर और नीचे शरीर, अर्थात धड...
राक्षस राज राहू के समान उसका अमृत सर, जिसमें मुख्य ज्ञानेन्द्रियाँ, आँख, नाक, कान, जिव्हा और मस्तिष्क समाये हैं,,, और नीचे 'पापी पेट' और हृदय से जुड़े विभिन्न अंश...
जहां तक करोड़ों की सोच बदलने का प्रश्न है, शायद अपनी सोच पहले बदलनी होगी, सत्य को जान...
कितने रावण मारोगे भाई जी ???
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
आत्म-परिष्कार से ही रावण मरेगा- बाहर हो कि भीतर।
ReplyDeleteअपने अन्दर के एक रावण पर विजय प्राप्त कर लें , यही काफी है सतीश जी ।
ReplyDeleteडॉक्टर दराल जी, जब अपने भीतर के रावण के ऊपर विजय करने की बात मान ली, तो मैं गीता के तेरहवें अध्याय के दो श्लोक, २८ और २९ आपकी सूचना हेतु प्रस्तुत करना चाहता हूँ -
ReplyDelete"जो परमात्मा को समस्त शरीरों में आत्मा के साथ देखता है और जो यह समझता है कि इस शरीर के भीतर न तो आत्मा, न ही परमात्मा कभी भी विनष्ट होता है, वही वास्तव में देखता है //
"जो व्यक्ति परमात्मा को सर्वत्र तथा प्रत्येक जीव में समान रूप से वर्तमान देखता है, वह अपने मन के द्वारा अपने आपको भ्रस्ट नहीं करता // इस प्रकार वह दीव्य गंतव्य को प्राप्त करता है //"
अपने अंदर का रावण कोई मार सके तो कोई बात है ... वैसे तो सदियों से हम ये रस्मी रस्म निभा रहे हैं ...
ReplyDeleteकाम, क्रोध, मद , लोभ, में डूबी गहन आबादी ,
ReplyDeleteमहंगाई , प्रदूषण और भ्रष्टाचार की बर्बादी ,
मासूमों का खून बहाते आतंकवादी ,
धर्म , प्रान्त और जात पात पर विष पिलाते अवसरवादी ।
पावन मात्रभूमि को जिसने किया कुरूप ,
यही हैं वो आज के रावण के दस रूप ।
किन्तु रावण भी हम हैं , और हमीं हैं राम ,
जो अंतररावण को मारे , वही कहलाए श्री राम ।
पेशोपेश में हूँ कि किस की तारीफ करूँ आपके लेख की या कविता की.... चलिए दोनों की ही सही...
एक ही विषय पर उम्दा गद्य और पद्य...!...!!
wah...wah...